अनुक्रम (Contents)
जयशंकर प्रसाद जी के काव्य में राष्ट्रीय भावना
प्रसाद जी यद्यपि सौन्दर्य, प्रेम तथा प्रकृति के चित्रकार हैं तथापि युग की प्रवृत्तियों से भी वे अछूते नहीं रहे हैं। उनके काव्य में पराधीनता के प्रति आवेश एवं स्वाधीनता के लिए ललक पायी जाती है। उनकी राष्ट्रीय भावनाओं की अभिव्यक्ति काव्य की अपेक्षा नाटकों में अधिक एवं स्पष्टता से हुई है। अतीत का चित्रण करते समय कवि ने राष्ट्रीय उद्गारों को व्यक्त करने का अवकाश निकाल ही लिया है। ‘चन्द्रगुप्त’ नाटक में कार्नेलिया का ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा’ तथा स्कन्दगुप्त में ‘प्रथम जिसे किरणों का दे उपहार’ बाल गीत भारत के प्रति उनकी असीम भक्ति प्रदर्शित करता है। उन्होंने ‘चन्द्रगुप्त में अलका द्वारा प्रणय गीत गवाकर स्वतन्त्रता की बलिदेवी पर सहर्ष बलिदान होने वाले का आह्वान किया है
हिमादि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतन्त्रता पुकारती ।।
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो ।
प्रशस्त पुण्य पंथ है बढ़े चलो बढ़े चलो।।
अपने काव्य-ग्रन्थों में उन्होंने यत्र-तत्र राष्ट्रीय भावनाओं को व्यक्त किया है ‘लहर’ में संगृहीत अतीत की घटनाओं पर दी हुई कुछ कविताएं- करुणा की सहस्रधार, वैशाली की मतिध्वनि, प्रलय की छाया आदि में भारतीय गौरव और गरिमा के प्रति उनका प्रेम प्रदर्शित होता है। अपने महाकाव्य ‘कामायनी’ में भी उनके राष्ट्रीय भावों की छाप स्पष्ट लक्षित होती है। कामायनी ‘मनु’ के पशुवध का विरोध करती है, इस भावना में गांधीवाद की अहिंसा सजग हो उठी है। इसी प्रकार कामायनी द्वारा कवि ने सूत कतवाकर गांधीवाद का समर्थन किया है-
तुम दूर चले जाते हो जब, तब लेकर तकली यहाँ बैठ
मैं उसे फिराती रहती हूँ, अपनी निर्जनता बीच पैठ
मैं बैठी गाती हूँ तकली के प्रवर्तन में स्वर विभोर-
चल री तकली धीरे-धीरे प्रिय गये खेलने को अहेर ।
महात्मा गांधी यन्त्रवाद के विरोधी थे और कुटीर उद्योगों के प्रति उनके हृदय में निष्ठा थी, प्रसाद ने उनकी इस भावना को भी अपने काव्य में साकार रूप दिया है। ‘कामायनी’ के संघर्ष सर्ग में यन्त्र शक्ति के अभिशाप का चित्रण करते हुए वे कहते हैं
प्रकृत शक्ति तुमने यन्त्रों से सबकी छीनी।
शोषण कर जीवनी बना जर्जर झीनी ।
प्रसाद जी की राष्ट्रीयता न तो संकुचित थी और न उनका अतीत प्रेम पुरातनता के प्रति आग्रह था। अपितु वे नवयुग में विकास के लिए नूतनता के पक्षपाती थे। उन्होंने जिस प्रकार से में हिन्दी-काव्य को नवीन भावना, नवीन विचार, नवीन भाषा, नवीन छन्द और नवीन शैली प्रदान की, उसी प्रकार वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नवीनता देखना चाहते थे। तभी तो उन्होंने कहा है-
पुरातनता का यह निर्भीक सहन करती न प्रकृति पल एक ।
नित्य नूतनता का आनन्द, किए है परिवर्तन में टेक।।
You May Also Like This
- कविवर सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- कविवर बिहारी का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- रसखान का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- सूरदास का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय, रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल- जीवन-परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएँ
- सूरदास जी की जीवनी और साहित्यिक परिचय
- तुलसीदास का साहित्यिक परिचय
- भक्तिकाव्य की प्रमुख प्रवृत्तियां | भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएं
- सूरदास जी की जीवनी और साहित्यिक परिचय (Surdas biography in Hindi)
अगर आप इसको शेयर करना चाहते हैं |आप इसे Facebook, WhatsApp पर शेयर कर सकते हैं | दोस्तों आपको हम 100 % सिलेक्शन की जानकारी प्रतिदिन देते रहेंगे | और नौकरी से जुड़ी विभिन्न परीक्षाओं की नोट्स प्रोवाइड कराते रहेंगे |