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जीडीपी क्या है, इसके गिरने और बढ़ने से आपका क्या बिगड़ेगा?

जीडीपी क्या है
जीडीपी क्या है

जीडीपी क्या है, इसके गिरने और बढ़ने से आपका क्या बिगड़ेगा?

Here you will read about GDP in HindiHello Friends,currentshub में आपका स्वागत हैं, जीडीपी क्या है इसके गिरने और बढ़ने से आपका क्या बिगड़ेगा? आपमें से कई लोगों के मन में यह सवाल उठता होगा। लीजिए आपको बतातें है आखिर जीडीपी क्या होती है कहां से आया इसका विचार? आप सभी Students निचे से Download Button पर click करके PDF Notes Download कर पाएगे|

जीडीपी (GDP)

* किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को समझने का सबसे विशिष्ट तरीका उस देश के जीडीपी (GDP) के आंकड़ों का अध्ययन है.

* जीडीपी का पूरा नाम ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (Gross domestic product) या सकल घरेलू उत्पाद है.

* यह एक निश्चित अवधि में किसी देश में उत्पादित और आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त माल और सेवाओं का अंतिम बाजार मूल्य होता है.

* यह देश के कुल उत्पादन को मापता है अतः यह एक आर्थिक संकेतक भी हैं.

● आइए जीडीपी को हम एक उदाहरण के द्वारा समझने की कोशिश करते हैं-

* मान लेते हैं कि हमारे देश में किसी स्थान पर एक पेड़ खड़ा है लेकिन इससे हमारे देश की जीडीपी नही बढ़ती है जब हम उस पेड़ को काट देते है तो जीडीपी बढ जाती है क्योंकि पेड़ को काटने पर पैसे का आदान-प्रदान होने लगता है और आर्थिक गतिविधि (economic activity) बढ़ती है.

* जब हम कोई बाइक खरीदते हैं तो उसके लिए पैसा देते हैं जिससे जीडीपी में वृद्धि होती है फिर उस बाइक को चलाने के लिए हम पेट्रोल खरीदते हैं जिससे जीडीपी में वृद्धि होती है.

* पुनः बाइक के चलने पर धूंआ निकलता है और प्रदूषण फैलता है जिससे हम बीमार होते हैं तथा डॉक्टर के पास जाकर इलाज के लिए फीस देते हैं जिसके कारण पुनः जीडीपी में वृद्धि होती है.

* अतः देश मे जितनी बाइक की बिक्री होगी उतनी ही जीडीपी में बढ़ोतरी होगी और सरकार भी इस तरफ जोर देती है क्योंकि देश की जीडीपी को बढ़ाने का यह भी एक तरीका है.

* हर वित्तीय वर्ष में देश के लिए जो विकास दर निर्धारित की जाती है, वह जीडीपी में होने वाली बढ़ोतरी होती है.

* उदाहरण के लिए कार में लगे टायरों की लागत कुल उत्पादन में उस वक्त जोड़ी जाती है, जब उनका निर्माण होता है उसके बाद कार के मूल्य में भी उसे दोबारा जोड़ा जाता है, पर वास्तव में सिर्फ मूल्य में वृद्धि ही जोड़ी जाती है अर्थात तैयार माल के मूल्य से कच्चे माल के मूल्य को घटाया जाता है इसके बाद जो मूल्य प्राप्त होता है, उसे जीडीपी में जोड़ दिया जाता है.

* किसी भी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन हर वर्ष होता है और निर्यात के लिए उत्पादन कम ही होता है इस तरह जीडीपी से उस देश की जीवनशैली का भी पता चलता है.

● जीडीपी को मापने का तरीका क्या है?

* जीडीपी को दो तरीकों से मापा जाता है| पहला तरीका स्थिर मूल्य (constant price) पर आधारित है, जिसके अंतर्गत जीडीपी की दर व उत्पादन का मूल्य एक आधार वर्ष में उत्पादन की कीमत पर तय किया जाता है.

* जबकि दूसरा तरीका वर्तमान मूल्य (current price) पर आधारित है जिसमें उत्पादन वर्ष की महंगाई दर इसमें शामिल होती है.

* सकल मूल्य संवर्धित = उत्पादन का सकल मूल्य (माल और सेवाओं की कुल बिक्री का मूल्य) – मध्यवर्ती खपत मूल्य.

* विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में जोड़े गए सकल मूल्य के योग को “उत्पादन लागत पर प्राप्त सकल घरेलू उत्पाद” के रूप में जाना जाता है जिसमें अप्रत्यक्ष कर को जोड़कर तथा सब्सिडी को घटाने पर प्राप्त सकल घरेलू उत्पाद को “बाजार मूल्य पर प्राप्त सकल घरेलू उत्पाद” कहा जाता है.

* उत्पादन लागत पर प्राप्त सकल घरेलू उत्पाद + अप्रत्यक्ष कर – दी जाने वाली सब्सिडी = “निर्माता या बाजार मूल्य पर प्राप्त सकल घरेलू उत्पाद”

● अब सवाल यह उठता है कि भारत मे जीडीपी का निर्धारण कैसे किया जाता है, जिससे हमारी इनकम निर्धारित होती है?

* भारत मे जीडीपी दर का निर्धारण कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में उत्पादन की वृद्धि या कमी की औसत के आधार पर किया जाता है.

* यदि हम कहते हैं कि भारत की जीडीपी मे 2% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है तो इसका मतलब यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था 2% की दर से बढ़ रही है परन्तु इस आंकड़े में अक्सर महंगाई की दर को शामिल नहीं किया जाता है.

* भारत में जीडीपी की गणना प्रत्येक तिमाही में की जाती है और इसके आंकड़े अर्थव्‍यवस्‍था के प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादन की वृद्धि दर पर आधारित होता है.

* इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वैश्वीकरण की वजह से लोगों की आय अब किसी एक देश की सीमा से बंधी नहीं रह गई है लोग अब विदेशों में जाकर भी कमाने लगे हैं.

* इसलिए राष्ट्रीय आय की गणना के लिए सकल राष्ट्रीय उत्पाद यानी जीएनपी को भी जोड़ा जाता है इसमें उस देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों को भी जोड़ा जाता है, भले ही उस वस्तु का उत्पादन या वह सेवा देश के भीतर दी जा रही हो या देश के बाहर.

* जैसा कि ऊपर बताया गया है कि जीडीपी की गणना करते समय महंगाई दर को भी देखा जाता है देश की अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को संतुलित करने के लिए कई मापदंड भी बनाए गए हैं.

* महंगाई के प्रभाव को कम करने के लिए जीडीपी डिफ्लेटर भी जोड़ा जाता है यह ऐसा मानक होता है, जो सभी घरेलू उत्पादों और सेवाओं के मूल्य का स्तर तय करता है.

* इसका उपयोग एक निश्चित अवधि में जीडीपी में वास्तविक वृद्धि जोड़ने के लिए किया जाता है इसमें किसी खास वर्ष को आधार वर्ष (base year) माना जाता है.

● आधार वर्ष (Base Year) क्या होता है-

* देशों की बदलती आर्थिक स्थिति के अनुसार आधार वर्ष में समय-समय पर परिवर्तन होता है, ताकि हर तरह की आर्थिक गतिविधियों को जीडीपी में जोड़ा जा सके.

* अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीडीपी के तुलनात्मक आंकड़े जुटाने के लिए यह सभी सरकारों के लिए अनिवार्य है कि वह राष्ट्रीय खाता व्यवस्था 1993 का पालन करें.

* संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संगठनों के आयोग, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन और विश्व बैंक मिलकर इसे जारी करते हैं.

* क्या आप जानते है कि जीडीपी का बेहतर सूचक कार्यशक्ति समता मूल्य (पीपीपी Purchasing Power Parity) होता है? बाजार विनिमय दर मुद्राओं की दैनिक मांग और आपूर्ति से तय होती है, जो मुख्य रूप से वस्तुओं के वैश्विक कारोबार से तय होती है, जबकि कई वस्तुओं का वैश्विक कारोबार नहीं होता है.

* जिन वस्तुओं का कारोबार वैश्विक स्तर पर नहीं होता है, उनका मूल्य विकासशील देशों में तुलनात्मक रूप से कम होता है। ऐसे में विनिमय दर पर जीडीपी का डॉलर में परिवर्तन ऐसे देशों की जीडीपी को कमतर दिखाता है.

* पीपीपी के अंतर्गत समान मात्रा में वस्तुओं के लिए दो देशों में चुकाए जाने वाले मूल्य से विनिमय दर तय होती है.

● अंत में देखते हैं कि आखिर जीडीपी हमें कैसे प्रभावित करता है?

* जीडीपी का प्रतिनिधित्व आर्थिक उत्पादन और विकास करता है हर किसी व्यक्ति एवं देश की अर्थव्यवस्था पर यह बड़ा प्रभाव डालता है.

* भले ही जीडीपी बढ़े या घटे दोनों ही स्थिति में शेयर बाजार पर इसका प्रभाव पड़ता है.

* अगर जीडीपी नेगेटिव अर्थात नकारात्मक है तो यह निवेशकों के लिए एक चिंता का विषय बन जाता है, क्योंकि इससे यह पता चलता है कि देश आर्थिक मंदी की दौर से गुजर रहा है इसके कारण उत्पादन कम हो जाता है, बेरोजगारी बढ़ जाती है और प्रत्येक व्यक्ति की वार्षिक आय भी प्रभावित होती है.

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shubham yadav

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