भूगोल / Geography

ज्वारभाटा की उत्पत्ति | ज्वारभाटा का प्रभाव | ज्वार-भाटे के प्रकार

ज्वारभाटा की उत्पत्ति
ज्वारभाटा की उत्पत्ति

ज्वारभाटा की उत्पत्ति

समुद्र तट के निकट समुद्र का जल एक निश्चित अन्तराल पर प्रतिदिन दो बार उठता है और दो बार नीचे गिरता है। समुद्री जल स्तर के नियमित बारी-बारी से उठने और नीचे उतरने की इस घटना को क्रमशः ज्वार और भाटा कहते हैं।

ज्वारभाटा का प्रभाव

प्रसिद्ध विद्वान् मुरे के अनुसार, “सूर्य और चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण समुद्र तल के उठने और नीचे गिरने की क्रिया को ज्वार-भाटा कहते हैं।” ज्वार-भाटा पृथ्वी चन्द्रमा तथा सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण क्रिया से उत्पन्न होता है।

ज्वार-भाटे के प्रकार (Types of Tides Ebb)

ज्वार की लहरों की ऊँचाई के आधार पर ज्वार दो प्रकार के होते हैं- (1) दीर्घ (वृहत् ज्वार) (2) लघु ज्वार।

1. दीर्घ (वृहत् ) ज्वार – प्रत्येक माह की पूर्णिमा और अमावस्या को सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी तीनों एक ही सीध में होते हैं। अत: इन तिथियों पर सूर्य और चन्द्रमा का संयुक्त प्रभाव रहता है। यही कारण है कि अन्य दिनों की अपेक्षा इन तिथियों को ज्वार अधिक ऊँचाई तक उठता है। (औसत ज्वार से 20% अधिक) इसे वृहद् या दीर्घ ज्वार कहते हैं।

2. लघु ज्वार – शुक्ल और कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को सूर्य और चन्द्रमा की स्थिति पृथ्वी के केन्द्र से समकोण बनाती है। सूर्य तथा चन्द्रमा का आकर्षण एक-दूसरे के विपरीत दिशा में होता है जिससे ज्वार की ऊँचाई कम हो जाती है। (औसत से 20% नीचे) इसे लघु ज्वार कहते हैं।

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shubham yadav

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