अनुक्रम (Contents)
टिप्पण लेखन हेतु सावधानियां
टिप्पण लिखने के लिए अधोलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए-
1. जिस विषय पर टिप्पण लिखना है, उसे लिखने से पूर्व जिस पत्र के सम्बन्ध में टिप्पणी प्रस्तुत करना है, उसका क्रमांक अंकित करना चाहिए और जिस पृष्ठ पर टिप्पणी लिखी गयी है, उसकी पृष्ठ संख्या लिख देनी चाहिए।
2. साधारण मामले में टिप्पण के साथ उसका प्रालेख भी प्रस्तुत कर देना चाहिए।
3. यदि विचाराधीन पत्र पर किसी अधिकारी ने कोई स्पष्ट आदेश दे रखा है, तो उसे टिप्पण लेखन में उसी रूप में उद्धृत कर देना चाहिए।
4. जिस विषय या प्रकरण पर टिप्पणी की जानी है, उसको विषय की सुगमता के लिए पृथक् पृथक् भागों में बाँट लेना चाहिए और फिर उन पर टिप्पण लिखना चाहिए। मूल पत्र पर टिप्पणी कदापि न लिखिए, वरन् अलग पृष्ठ पर लिखना उचित होता है। प्रायः कार्यालयों में टिप्पणी के लिए अलग से छपे हुए कागज होते हैं। यदि वे हों तो उन्हीं पर लिखें। यदि कागज में हाशिया छपा हो तो ठीक है, अन्यथा बायीं और कम-से-कम कुछ जगह छोड़ दीजिए, ताकि सम्बन्धित उच्चाधिकारी उस पर अपने आदेश-अनुदेश लिख सके।
5. टिप्पणी सदा उसी विषय के पत्र-बन्ध (File) में प्रस्तुत की जाती है, जिससे मूल पत्र सम्बन्धित होता है। सम्बन्धित पत्र, पत्र-बन्ध में दायीं ओर रखकर उसमें ‘विचाराधीन’ ध्वज लगा देने चाहिए। यदि कोई पूर्व सन्दर्भ हों तो उन पर क, ख, ग अंकित ध्वज लगा दिये जायँ। इससे अधिकारी को समस्त सन्दर्भ ढूंढ़ने में सरलता रहती है।
6. टिप्पणी के प्रारम्भ के बाद विषय का उल्लेख करना चाहिए। उसके बाद उसका इतिहास, विभिन्न दृष्टिकोण और अन्त में अपने सुझाव ।
7. व्यय-सम्बन्धी प्रकरणों में सबसे पहले यह देख लेना चाहिए कि जिस मद से सम्बन्धित व्यय होना है, उसमें यथेष्ट धन है या नहीं।
8. टिप्पण यथासम्भव संक्षिप्त होना चाहिए।
9. टिप्पण में आवश्यक दिनांक आदि लिखना नहीं भूलना चाहिए।
10. टिप्पण की समाप्ति पर टिप्पणक को बायीं ओर प्रथमाक्षर में अपना हस्ताक्षर करना चाहिए और हस्ताक्षर के नीचे दिनांक भी लिख देना चाहिए। यथा रा.प्र.
11. किसी भी टिप्पणी के प्रथम अनुच्छेद को छोड़कर अन्य अनुच्छेदों को संख्याबद्ध कर देना चाहिए। इससे आदेश देने वाले अधिकारी को सुगमता हो जाती है और वह प्रस्तावित अनुच्छेद देखकर ही टिप्पणी के किसी भी भाग का अवलोकन कर सकता है।
12. टिप्पण की समाप्ति पर यदि कागज में स्थान न रह जाय तो दूसरा कागज संलग्न कर उस पर पृष्ठ संख्या लिख देनी चाहिए।
13. टिप्पण को तटस्थ भाव से लिखना चाहिए। सुझाव देते समय दृढ़ोक्ति का प्रयोग न करें, अन्यथा ऐसा समझा जा सकता है कि आप मामलों में अनुचित दिलचस्पी ले रहे हैं।
14. टिप्पण लिखने में भाषा के प्रति विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए। भाषा सुस्पष्ट हो और उसमें वर्णनात्मकता के बजाय भावों को अभिव्यक्ति देने की तीव्र शक्ति हो। टिप्पण में कहावतों तथा मुहावरों का प्रयोग न करके विचारों तथा तथ्यों को वास्तविक रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। टिप्पण की भाषा सरल, संयत, विनीत और भद्र होनी चाहिए।
15. टिप्पण लिखते समय विषय या तथ्यों को असम्बद्ध तरीके से प्रस्तुत न करके क्रम के साथ विचार की श्रृंखला को रखना चाहिए। आशय के आकलन के लिए टिप्पण में क्रमबद्धता होना बहुत ही आवश्यक बात है। इससे टिप्पणी पर निर्णय लेने वाले अधिकारी को विषय, प्रकरण अथवा मामले के आकलन में यथेष्ट सहायता मिलती है और वह प्रस्तावित अनुच्छेद को देखकर अपना विचार रख सकता है या निर्णय दे सकता है।
16. टिप्पण करते समय इस बात की ओर देना अति महत्त्वपूर्ण है कि शब्द, विचार, अनुच्छेद, वाक्य-योजना आदि के प्रभाव की अन्त्रिति अस्त-व्यस्त न होकर ठीक ढंग से हो, सम्पूर्ण टिप्पण का समग्र प्रभाव (Total Effect) सुस्पष्ट होना चाहिए।
17. टिप्पण-लेखन में शैली की अपनी स्वतंत्र सत्ता और महत्ता होती है। शैली के बारे में कतिपय सामान्य बातों की ओर ध्यान देना जाना चाहिए। एक बात विशेष ध्यातव्य है कि हिन्दी टिप्पण लेखन की शैली अँगरेजी लेखन से भिन्न होती है। यथा— “Necessary action may kindly be taken at the earliest.” इसे हिन्दी में लिखते समय “तुरन्त कार्यवाही करें” लिखा जाना चाहिए, न कि अँगरेजी का शब्दशः अनुवाद। यहाँ ‘करें’ शब्द स्वयं आदरसूचक है।
18. पदोन्नति और नियुकति के सम्बन्ध में सम्बद्ध कर्मचारी के कार्य और आचरण के अभिलेख टिप्पणी के साथ प्रेषित करने चाहिए तथा यह भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि नियुक्ति के लिए सम्बन्धित पद ‘लोक सेवा आयोग’ या ‘कर्मचारी सेवा चयन आयोग को भेजा जाना है अथवा नहीं।
19. टिप्पण-लेखन में किसी भी आलोचना या छिद्रान्वेषण नहीं किया जाना चाहिए और न ही किसी की नियत एवं ईमानदारी पर शंका ही की जानी चाहिए। यदि किसी की आलोचना करनी अपेक्षित हो जाय, तो भी अत्यन्त संयत और शिष्ट भाषा में करें।
20. टिप्पण-लेखन में विचाराधीन पत्र के किसी अंश को अक्षरशः उद्धृत नहीं करना चाहिए।
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