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नागरिकशास्त्र की प्रकृति तथा इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
नागरिकशास्त्र की प्रकृति तथा इसकी उपयोगिता
नागरिकशास्त्र की प्रकृति-
नागरिकशास्त्र की प्रकृति के विषय में सभी विद्वान एकमत नहीं हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार यह कला है जबकि अधिकांश विद्वान इसे कला एवं विज्ञान दोनों ही मानते है।
(i) नागरिकशास्त्र विज्ञान के रूप में- गार्नर के अनुसार किसी विषय से सम्बन्धित क्रमबद्ध ज्ञान जो उचित प्रकार के निरीक्षण, प्रयोग, अध्ययन, अनुभव तथा वर्गीकरण द्वारा प्राप्त किया गया हो विज्ञान कहते हैं। जिस प्रकार रसायन एवं भौतिक विज्ञान में प्रयोगशाला का प्रयोग होता है, उसी प्रकार सम्पूर्ण नागरिक जीवन नागरिकशास्त्र के लिए प्रयोगशाला है। अत: अरस्तू, मॉण्टस्क्यू, ब्राइस आदि विद्वानों ने नागरिकशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में स्वीकार किया है।
(ii) नागरिकशास्त्र कला के रूप में- नागरिकशास्त्र में कला की सभी विशेषताएँ विद्यमान है, यह न केवल सिद्धान्तों का निर्माण करता है बल्कि व्यावहारिक जीवन में उनके प्रयोग पर बल देकर मानव जीवन को श्रेष्ठ व सुंदर बनाता है इस प्रकार नागरिकशास्त्र विज्ञान और कला दोनों हैं, क्योंकि यह उन दशाओं का अध्ययन करता है तथा अपने अन्वेषणों के परिणाम को मानव कल्याण की वृद्धि में कार्यान्वित करने का प्रयत्न करता है।
नागरिकशास्त्र की उपयोगिता एवं महत्व-
नागरिकशास्त्र की प्रकृति तथा इसकी उपयोगिता-प्रत्येक शास्त्र का अध्ययन तभी किया जाता है जब उसका जीवन में उपयोग हो। आज नागरिकशास्त्र का अध्ययन बहुत उपयोगिता हो गया है। इसके अध्ययन से मानव के प्राकृतिक गुणों का विकास होता है तथा वह एक आदर्श नागरिक बन जाता है। पेट्रिक गेड्स के अनुसार- “यद्यपि नागरिकशास्त्र आयु में सबसे छोटा एवं अन्तिम विज्ञान है, किन्तु ज्ञान के विशाल व चिर विकासशील वृक्ष पर ऐसी उपेक्षित शाखा है जो सबसे फलदायक सिद्ध हो सकती है।”
नागरिकशास्त्र की उपयोगिता और महत्व को हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत व्यक्त कर सकते हैं-
(i) आदर्श नागरिकता की शिक्षा- नागरिकशास्त्र के अध्ययन से हमें आदर्श नागरिकता की शिक्षा प्राप्त होती है। यह हमें प्रेम, सहयोग, त्याग, लोकसेवा , देश प्रेम तथा विश्व बंधुत्व का पाठ पढ़ाता है। प्रो० एस०वी० पुन्ताम्बेकर ने ठीक ही लिखा है कि “नागरिकशास्त्र नागरिकता का विज्ञान और दर्शन है।”
(ii) अधिकार तथा कर्तव्यों का ज्ञान- नागरिकशास्त्र के अध्ययन से नागरिकों को अपने अधिकार एवं कर्त्तव्यों का ज्ञान प्राप्त होता है। इस संदर्भ में अल्फ्रेड जे० शॉ ने लिखा है- “नागरिकशास्त्र में हम अपने अधिकारों का प्रयोग करना सीखते है जिससे हमारी उन्नति हो सके और हम समाज के उत्तरदायी व उपयोगी सदस्य बन सकें।”
(iii) सरकार और राज्य का ज्ञान- प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी राज्य में निवास करता है और हर राज्य में शासन संचालन के लिए सरकार होती है। अतः सरकार और राज्य की विस्तृत जानकारी के लिए नागरिकशास्त्र का अध्ययन आवश्यक है। नागरिकशास्त्र के अध्ययन से हमें राज्य की प्रकृति, उसके विकास, विश्व सरकारों में हुए प्रयोग, शासन करने के स्वरूप,
उनके संगठन, कानून प्रक्रिया और उसके लागू होने के ढंग का ज्ञान प्राप्त होता है। इन सभी विषयों का ज्ञान प्राप्त करके हम एक कर्तव्यनिष्ठ आदर्श नागरिक बन सकते हैं।
(iv) स्थानीय संस्थाओं का ज्ञान- नागरिकशास्त्र के अध्ययन से हमें स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं जैसे- नगर निगम, नगरपालिका परिषद्, जिला पंचायत, ग्राम पंचायत आदि के गठन और कार्यों का ज्ञान प्राप्त होता है।
(v) विभिन्न समुदायों का ज्ञान- समाज के अन्तर्गत व्यक्ति अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनेक समुदायों और संघो का गठन करता है। नागरिकशास्त्र हमें इन समुदायों और संघों के उद्देश्यों, गठन तथा उपयोगिता का ज्ञान उपलब्ध कराता है। नागरिकशास्त्र हमें इस बात की भी शिक्षा देता है कि इन समुदायों और संघों का सदस्य बनकर व्यक्ति किस प्रकार सुख एवं शान्ति के साथ जीवन-यापन कर सकता है।
(vi) सामाजिक विज्ञानों का ज्ञान- नागरिकशास्त्र सभी सामाजिक विज्ञानों द्वारा उपलब्ध ज्ञान का उचित प्रयोग करता है। जो सामाजिक विज्ञान कोरे सिद्धान्तबादी हैं, उनके सिद्धान्तों को नागरिकशास्त्र व्यावहारिकता प्रदान करता है यह अन्य सामाजिक विज्ञानों की संकीर्णता को दूर कर उनके क्षेत्र को व्यापक बनाता है। इस सम्बन्ध में डॉ० ई० एम० व्हाइट ने ठीक ही लिखा है कि- “आधुनिक युग में जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उनको हल करने के लिए व्यापक दृष्टिकोण को आवश्यकता है और नागरिकशास्त्र अपने सामंजस्यपूर्ण अध्ययन से वास्तव में व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है।”
(vii) लोकतन्त्र की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका- आधुनिक युग में नागरिकशास्त्र के अध्ययन की सबसे बड़ी उपयोगिता लोकतन्त्र की आधारशिला को सुदृढ़ बनाने की प्रक्रिया है। लोकतान्त्रिक सरकार का संचालन जनता के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। ये प्रतिनिधि लोकतन्त्र को तब ही सफल बना सकते हैं, जब इनमें आदर्श नागरिक के गुण विद्यमान हो।
नागरिक को आदर्श बनाना नागरिकशास्त्र का मूल उद्देश्य है। अत: नागरिकशास्त्र लोकतन्त्र की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(viii) सद्गुणों का विकास- नागरिकशास्त्र के अध्ययन से व्यक्ति में सहयोग, प्रेम, सहानुभूति, त्याग, कर्त्तव्यपरायणता आदि सद्गुणों का विकास होता है। इन सद्गुणों के विकास से व्यक्ति परिवार के हित के लिए निजी हित का समाज के हित के लिए परिवार के हित का, राष्ट्र के हित के लिए समाज के हित का और विश्व के हित के लिए राष्ट्र के हित का बलिदान करने के लिए सदैव तत्पर रहता है।
(ix) विश्व-बन्धुत्व एवं अन्तर्राष्ट्रीयता के प्रति निष्ठा- नागरिकशास्त्र का अध्ययन हमें यह ज्ञान कराता है कि सम्पूर्ण विश्व एक है और हम इस अखिल विश्व के सदस्य हैं। अत: हमें विश्व शान्ति और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को अपने जीवन का लक्ष्य बनाना चाहिए। वास्तव में, नागरिकशास्त्र संकीर्ण भावनाओं को करने की शिक्षा प्रदान कर विश्व बन्धुत्व और अन्तर्राष्ट्रीय का पाठ पढ़ाता है, जिससे मनुष्यों में विश्वव्यापी मानव समाज और विश्व सरकार के प्रति निष्ठा का भाव पैदा होता है।
(x) राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का ज्ञान- नागरिकशास्त्र के अध्ययन से हमें आधुनिक युग की राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का ज्ञान होता है और हम उन समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। उपर्युक्त के अतिरिक्त नागरिकशास्त्र का अध्ययन हमें राष्ट्रीय एवं संवैधानिक इतिहास का ज्ञान उपलब्ध कराता है। जागरूक जनमत के निर्माण में भी नागरिक शास्त्र का अध्ययन बहुत उपयोगी है।
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नागरिकशास्त्र नागरिकता का विज्ञान एवं दर्शन है, संक्षेप में लिखिए।
नागरिकशास्त्र विज्ञान है अथवा कला या दोनों
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