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नाटक क्या है ? (What is Drama ?)
नाटक कला का एक रूप है, जो व्यक्ति के तनाव एवं द्वंद्व की खोज करती है। यह सामान्यतः कला का वह रूप है जिसमें दर्शकों के बीच एक कहानी का प्रस्तुतीकरण, संवादों एवं शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से किया जाता है। नाटक के दौरान कहानी का सम्प्रेषण थियेटर के विभिन्न अवयवों; यथा अभिनय, पहनावा, दृश्यों, प्रकाश, संगीत, आवाज एवं संवाद के माध्यम से किया जाता है। नाटक एवं उसके द्वारा संप्रेषित सन्देश का बौद्धिक एवं भावनात्मक प्रभाव नाटक के कलाकारों एवं दर्शकों / श्रोताओं दोनों पर होता है। नाटक एक दर्पण के समान है जिसमें हम अपनी छवि का मूल्यांकन कर सकते हैं एवं मानव व्यवहार तथा भावनाओं को गहराई से समझ सकते हैं। नाटक, जीवन के सत्यों को उद्घाटित करती कहानियों के द्वारा उन पर विभिन्न समय एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोणों को प्रदर्शित करते हुए हमारे दृष्टिकोण को वृहत बनाती है।
नाट्य शिक्षा क्या है? (What is Drama Education ?)
नाट्य शिक्षा, कला के नाटक रूप का शैक्षिक संसाधन के रूप में उपयोग करता है। इसमें अभिनयकर्त्ता का प्रशिक्षण भी समाहित है जो बच्चों के भौतिक, सामाजिक, भावनात्मक एवं संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देती है। यह एक बहुसंवेदी उपागम है जो निम्नांकित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उन्मुख होता है-
(1) आत्म चेतना में वृद्धि (मन, शरीर, आवाज ) एवं समन्वय एवं समानुभूति ।
(2) विचारों के शाब्दिक एवं अशाब्दिक सम्प्रेषण में रचनात्मक एवं स्पष्टता को बढ़ावा।
(3) मानव व्यवहार अभिप्रेरणा, विविधता, संस्कृति एवं इतिहास की गहरी समझ में बढ़ावा। में नाट्य शिक्षा थियेटर के अवयवों यथा पहनावे, दृश्य, प्रकाश, संगीत, संवाद, ध्वनियाँ, कहानियों की पुनरावृत्ति आदि का प्रयोग बच्चों के अधिगम अनुभवों को बढ़ाने के लिए किया जाता है। नाट्य शिक्षा नाट्य क्रियाओं के दौरान छात्रों को विभिन्न भूमिकाओं का अनुभव कराता है, जो उसके बाद के जीवन में काम आते हैं।
नाट्य शिक्षा के लाभ / महत्त्व (Advantage/Imortance of Drama Education)
नाटक शिक्षा का महत्त्व निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत निहित है-
(1) छात्रों के आत्मविश्वास में वृद्धि- कक्षा में एक नई भूमिका को स्वीकार करना एवं दर्शकों के सामने मंच पर एक पात्र विशेष की भूमिका अदा करना बच्चों को उनके विचारों और योग्यताओं पर विश्वास करने में मदद करता है। नाटक की क्रियाओं द्वारा प्राप्त आत्मविश्वास बाद के जीवन में उनके कार्य, उनके विद्यालय एवं उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं में शामिल हो जाता है
(2) छात्रों की कल्पनाशीलता में वृद्धि- नाटक के क्रम में रचनात्मक विकल्पों की तलाश, नये विचारों को सोचना, परिचित वस्तुओं को नवीन तरीकों से दर्शकों के सामने रखना आदि क्रियाओं बच्चों की कल्पनाशीलता में वृद्धि करती है और जैसा कि आइंस्टीन ने कहा है कल्पनाशीलता, ज्ञान से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
(3) समानुभूति का विकास- भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में विभिन्न संस्कृति के कलाकारों के बीच अलग-अलग किरदारों को निभाते हुए बच्चे में दूसरों के दृष्टिकोण को समझने में और उनके प्रति सहनशील बनाने में मदद करता है तथा इस प्रकार प्रकारातर से उनकी समानुभूति को बढ़ाता है।
(4) सहयोग भाव/सामूहिक भाव को बढ़ावा- नाट्य कला प्रतिभागियों के विचारों एवं समूह एवं योग्यताओं को जोड़ता है। इस सहयोगात्मक प्रक्रिया में पारंपरिक वैचारिक आदान-प्रदान, पूर्वाभ्यास, प्रस्तुतिकरण आदि शामिल हैं। ये क्रियाएँ बालकों में सहयोग की भावना एवं समूह की भावना का विकास करता है जो जीवन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
(5) एकाग्रता को बढ़ावा- नाट्य कला एक बड़े दर्शक समूह के सामने प्रस्तुत किया जाता है। ऐसे में इसके पूर्वाभ्यास, प्रस्तुतीकरण प्रतिभागियों से उच्च स्तर की एकाग्रता अपेक्षित होती है। यह एकाग्रता विचारों, शारीरिक क्रियाओं आदि सभी चरणों पर होती है।
(6) संप्रेषण कौशल में वृद्धि एवं वाणी- यह सभी के स्तर पर आवश्यक होती है। एकाग्रता का यह अभ्यास बाद के जीवन में सभी स्तरों पर बालक की मदद करता है।
(7) समस्या समाधान कौशलों का विकास- नाटक में भाग लेते हुए बच्चे कैसे, किससे, कब, कितना और कैसे सम्प्रेषण करना है यह सीखते हैं। साथ ही कई बार नाटक के बीच में आई अप्रत्याशित परिस्थितियों को सँभालने के लिये त्वरित सोच एवं त्वरित समस्या समाधान में मदद करता है।
(8) खेल / मस्ती / मनोरंजन- नाटक बालकों के लिए खेल, मस्ती एवं मनोरंजन का कार्य है जो बच्चों की अभिप्रेरणा को बढ़ाता है एवं उनका तनाव कम करता है।
(9) भावनात्मक अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम- नाटक क्रियाएँ बच्चे को विभिन्न प्रकार की भावनाओं एवं दमित इच्छाओं को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम प्रदान करती है। यह बालकों की आक्रमकता एवं तनाव को सुरक्षित रचनात्मक तरीके से कम करने में मदद करती है एवं प्रकारांतर से उनमें असामाजिक व्यवहारों की संभावना को कम कर देती है।
(10) आरामदायी- कई नाट्य क्रियाएँ बच्चों को शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक तनावों को अभिव्यक्त करने एवं उत्पन्न तनावों को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
(11) आत्मानुशासन को बढ़ावा- नाटक विचारों एवं क्रियाओं के प्रस्तुतीकरण के रूप में प्रतिफलन है जो बच्चों को अभ्यास एवं धैर्य की कीमत बनाती है। नाट्यकला एवं रचनात्मक गतिशीलता बच्चों के आत्मनियंत्रण को बढ़ाता है
(12) पारस्परिक विश्वास को बढ़ावा- नाटक की विभिन्न प्रक्रिया के दौरान प्रतिभागियों के बीच होने वाली अंतःक्रिया प्रतिभागियों का नाटक की क्रियाओं में शारीरिक गतिशीलता होती है जो बच्चे के शरीर को क्रियाशील रखते हुए उनमें लचीलापन समन्वय संतुलन एवं नियंत्रण को बढ़ाती है।
(13) शारीरिक स्वास्थ्य लाभ- अपने प्रति, दूसरों के प्रति और उस प्रक्रिया के प्रति विश्वास बढ़ाता है। नाटक की क्रियाओं में शारीरिक गतिशीलता होती है, जो बच्चे के शरीर को क्रियाशील रखते हुए उनमें लचीलापन समन्वय, संतुलन एवं नियंत्रण को बढ़ाती हैं।
(14) स्मरण शक्ति में वृद्धि- नाटक की क्रियाओं के पूर्वाभ्यास एवं पुनराभ्यास के दौरान बालक को शब्द, भाव भंगिमायें, शारीरिक स्थिति आदि सभी का स्मरण रखना होता है एवं उन्हें बार-बार दुहराना होता है जो बच्चे की स्मरण शक्ति बढ़ाने में मददगार है।
(15) सामाजिक रूप से जागरूक बनाना- नाटक की क्रियाएँ, यथा कहानी, कविताएँ, दंत कथाएँ, खेल आदि बालक को विभिन्न सामाजिक आयामों, समस्याओं, संस्कृतियों के बीच के द्वंद्व आदि के बारे में सिखा देती है जो बच्चों की सामाजिक, सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ाने एवं उन्हें समझने में उनकी मदद करती है
(16) सौन्दर्य बोध में वृद्धि- नाटक में भाग लेना एवं नाटक देखना दोनों ही क्रियाएँ बच्चों में आलोचनात्मक चिंतन एवं उनके सौन्दर्य बोध को बढ़ाती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नाट्य शिक्षा बालक के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
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