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निदानात्मक मूल्यांकन क्या है?
सामाजिक अध्ययन में उपलब्धियों तथा उनके परिणामों से कमजोर छात्रों की जानकारी उपलब्ध हो जाती है। परन्तु इस बात का पता नहीं चल पाता है कि उसकी कमजोरियों के पीछे क्या कारण रहे थे अथवा उनकी अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयाँ क्या थीं? इस प्रकार की जानकारी करना ही निदान कहलाता है।
शिक्षा-शब्द कोश के अनुसार, “निदान उपयुक्त उपचारात्मक अथवा उच्च अधिगम कार्यों को निर्धारित करने के द्वारा उसके अधिगम को सुसाध्य बनाने के उद्देश्य से एक विशेष विषय में आवश्यक कार्यों के पदानुक्रम की उसकी निष्पत्ति को विश्लेषित करके एक छात्र की विद्यमान क्षमताओं को निर्धारित करने की प्रक्रिया है।” सामाजिक अध्ययन के शिक्षण अधिगम के दौरान जब किसी छात्र को कठिनाई होती है अथवा परीक्षा में सफल नहीं हो पाता है तब यह ज्ञात करना आवश्यक हो जाता है कि सामाजिक अध्ययन के किस अनुभाग / खण्ड में छात्र को अधिगम में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। शिक्षक उस छात्र से कठिनाईपूर्ण अनुभाग / खण्ड की समस्या के कारणों को खोजता है तत्पश्चात् उनका निराकरण करके अधिगम पथ पर अग्रसर होने के लिये सहायता देता है।
निदानात्मक परीक्षण की रचना (Construction of a Diagnostic Test)
सामाजिक अध्ययन शिक्षण में छात्र की अधिगम सम्बन्धी समस्याओं का निदान खोजने हेतु देश में तथा विदेशों में विभिन्न प्रामाणिक निदानात्मक परीक्षण तैयार किये गये हैं, जिन्हें खरीद करके प्रयोग में लाया जाता है । परन्तु यह माँग महँगा पड़ता है। इसलिये सामाजिक अध्ययन शिक्षक को स्वयं इसकी रचना में दक्ष होना आवश्यक है। इसकी रचना को निम्नलिखित पदों में बाँटा गया है।
1. नियोजन (Planning)- निदानात्मक परीक्षण की रचना में सामाजिक अध्ययन शिक्षक को सर्वप्रथम अग्रलिखित तथ्यों का नियोजन जरूरी है-
(a) अधिगम की कठिनाइयों का ज्ञान — निदानात्मक परीक्षण की रचना हेतु सामाजिक अध्ययन शिक्षक को सर्वप्रथम विषय के उन क्षेत्रों में अधिगम की कमजोरियों की जानकारी प्राप्त करनी चाहिये। इसके लिये निम्नलिखित तथ्यों से जानकारी प्राप्त की जाती है-
(i) कक्षा में किया गया अभ्यास कार्य।
(ii) छात्र की कक्षा में किया जाने वाला व्यवहार।
(iii) उपलब्धि परीक्षणों के निष्कर्ष।
(iv) कक्षा में छात्रों से पूछे गये प्रश्न और उत्तर।
(v) गृहकार्य को छात्र द्वारा पूरा करना।
2. समस्यात्मक क्षेत्र को स्पष्ट करना (Specifying the Difficulty Area) — छात्र सामाजिक विषय के किस क्षेत्र में समस्या का अनुभव करता है अथवा असफल होता है। इससे उस इकाई या उप इकाई का चयन कर लिया जाता है और निदानात्मकं परीक्षण में उन्हीं तथ्यों पर बल देते हुये प्रश्नों की रचना की जाती है।
3. विषय-वस्तु विश्लेषण (Content Analysis) – निदानात्मक परीक्षण की रचना में सामाजिक विषय की एक उप इकाई की विषय इकाई का विश्लेषण करके निम्नलिखित तथ्यों ज्ञात करने का प्रयास किया जाता है-
(i) प्रविष्टि व्यवहार (Entry Behaviour) – प्रविष्टि व्यवहार में ज्ञात किया जाता है। कि छात्र इकाई/उप-इकाई के विषय में पहले से कितना ज्ञान रखता है।
(ii) अन्तिम व्यवहार (Terminal Behaviour) — अन्तिम व्यवहार में यह ज्ञात किया जाता है क इकाई / उप इकाई के शिक्षण-अधिगम के तत्पश्चात् छात्र में किस प्रकार के व्यवहार परिवर्तन होंगे?
(iii) परीक्षण प्रश्नों का चयन (Selection of the Test Item) — निदानात्मक परीक्षण में परीक्षण प्रश्नों का चयन करना अति महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इन प्रश्नों का उद्देश्य विषय-वस्तु की जानकारी प्राप्त करना नहीं है, बल्कि छात्र की विषय के अन्तर्गत होने वाली कठिनाइयों तथा कमजोरियों का पता लगाना होता है। इसमें लघु उत्तरीय, अति लघु उत्तरीय प्रश्नों को रखना उचित होता है।
परीक्षण प्रशासन (Test Administration) – निदानात्मक परीक्षण का प्रशासन कैसे होगा, इस पर प्रारम्भ में ही विचार-विमर्श कर लेना चाहिये-
(i) परीक्षण प्रश्नों का अंकन विधि।
(ii) परीक्षण प्रशासनों हेतु समय सीमा।
(iii) परीक्षण परिणामों की व्याख्या की प्रक्रिया।
(iv) परीक्षण देने एवं परीक्षण के उत्तर देने से सम्बन्धित छात्रों को दिये जाने वाले निर्देश।
रचना (Construction)— नियोजन स्तर पर लिये गये निर्णयों के दृष्टिगत निदानात्मक परीक्षण की रचना की जाती है-
(i) प्रश्नों का उत्तर कुंजी की रचना।
(ii) प्रश्नों के उपर्युक्त प्रकारों का चयन।
(iii) आदर्श उत्तरों की रचना।
(iv) प्रश्न-पत्र में आवश्यक निर्देश एवं समयावधि की व्यवस्था।
प्रशासन (Administration) – इसमें निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए-
(i) समय सीमा की समाप्ति पर छात्रों को लिखने से रोक देना चाहिए।
(ii) छात्रों से प्रश्न-पत्र सहित उत्तर पत्रक एकत्र कर लेना चाहिए।
(iii) निर्देश छात्रों को स्पष्ट रूप से समझा देना चाहिए।
मूल्यांकन (Evaluation) — निदानात्मक परीक्षण के प्रशासन के उपरान्त उसका मूल्यांकन किया जाता है-
(i) कटिंग एवं ओवरराइटिंग को मान्यता नहीं देनी चाहिए।
(ii) मूल्यांकन में उत्तर कुंजी तथा आदर्श हल की सहायता से अंकन करना चाहिए।
परिणामों की व्याख्या (Iterpretation of the Result)-
(i) प्राप्त जानकारी के आधार पर छात्रों द्वारा कृत- त्रुटियों, उनकी कमजोरियों एवं उनके द्वारा अनुभव की जाने वाली कठिनाइयों की प्रकृति को भी जानना आवश्यक है।
(ii) परीक्षण से प्राप्त उत्तरों की उचित व्याख्या करके छात्रों की कमजोरियों एवं कठिनाइयों की जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।
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