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निरंकुश एवं प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व का अर्थ | निरंकुश तथा प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में अन्तर

निरंकुश एवं प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व का अर्थ
निरंकुश एवं प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व का अर्थ

निरंकुश एवं प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व का अर्थ

निरंकुश तथा प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व- निरंकुश नेतृत्व में नेता बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न होता है जिसका कार्य अपने अनुयायियों को आदेश देकर उनसे अपनी इच्छानुरूप कार्य कराना होता है। उसकी इच्छा व निर्णय सर्वोपरि होते हैं तथा समूह के कार्य, लाभ एवं इच्छाएं उसके व्यवहार में लुप्त हो जाते हैं। उसका पृथक् से कोई अस्तित्व ही नहीं रहता है। क्रेच और क्रचफील्ड ने निरंकुश नेतृत्व की कुछ आधारभूत विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार किया है:

‘निरंकुश नेता प्रजातन्त्रात्मक नेता की अपेक्षा अत्यधिक निरंकुश शक्ति रखता है और वह स्वयं समूह की सारी नीतियों का निर्धारण करता है। वही प्रमुखतः योजनाओं को बनाता है। वह अकेला ही सामूहिक क्रियाओं के अगले कदमों के क्रम के निर्धारण के सम्बन्ध में पूर्णतया सचेत रहता है। वह स्वयं ही सदस्यों की क्रियाओं और उनके पारस्परिक सम्बन्धों के विषय में निर्देशन देता है। वह खुद ही अन्तिम या सर्वोच्च मध्यस्थ और न्यायाधीश के रूप में व्यक्तिगत सदस्यों को पुरस्कार या दण्ड देने का कार्य करता है और इसलिए समूह संरचना (Group Structure) के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति के भाग्य का निर्णय भी वही करता है।”

उपर्युक्त विद्वानों के अनुसार इस प्रकार इस का नेता जान-बूझकर सभी कार्यों पर अपना एकाधिकार कर लेता है तथा प्रभुत्व स्थापित करने हेतु विभिन्न प्रविधियों को काम में लाता है; जैसे :

(1) समूह के आदर्शों को निश्चित करते समय सदस्यों को हस्तक्षेप नहीं करने दिया जाता है।

(2) समूह के सभी नियमों का निर्धारण वह स्वयं ही अपनी इच्छानुसार करता है।

(3) वह मनोवैज्ञानिक रूप से समूह में यह विश्वास उत्पन्न कर देता है कि किसी भी कार्य को सम्पन्न करने हेतु उस पर आश्रित होना आवश्यक है।

(4) उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई सदस्य छोटे-से-छोटे कार्य भी नहीं कर सकता है।

(5) वह अपने सदस्यों की बौद्धिक चेतना का ह्रास करता है।

(6) वह समूह के सदस्यों में परस्पर सहयोग व प्रत्यक्ष सम्पर्क की भावनाओं को समाप्त करता है।

(7) वह ‘विभाजित करो और शासन करो’ (Divide and rule) की नीति अपनाता है।

(8) वह सदस्यों के पारस्परिक आन्तरिक सम्बन्धों पर नियन्त्रण कर एकछत्र शासन करता है।

इस प्रकार इन प्रविधियों द्वारा नेता अपने अनुयायियों को पंगु बना देता है तथा ऐसे नेता के बिना अनुयायियों के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व निरंकुश नेतृत्व एकदम विपरीत होता है। प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में नेता समूह का व समूह नेता के लिए होता है। वह अपने सदस्यों को अधिक-से-अधिक कार्य करने की प्रेरणा देता है, सबके साथ समान व्यवहार करता है, समूह के सदस्यों की समस्याओं का निराकरण करता है, समूह के द्वारा किये गये छोटे-से-छोटे कार्य को महत्व देता है। इसके कार्यों का उल्लेख करते हुए क्रेच और क्रचफील्ड ने कहा है, “एक प्रजातान्त्रिक नेता समूह की क्रियाओं और उद्देश्यों के निर्धारण में भाग लेने के लिए प्रत्येक सदस्य को अधिक-से-अधिक प्रेरित करता है। वह उत्तरदायित्वों को अपने में ही केन्द्रित न करके उन्हें सदस्यों में विभाजित करता है। वह समूह की संरचना को शक्तिशाली बनाने के लिए सदस्यों के परस्पर सम्बन्धों और सम्पर्क को बढ़ाने में प्रोत्साहन देता है। प्रजातान्त्रिक नेता विभिन्न समूहों के पारस्परिक तनाव और संघर्षों को कम करने की चेष्टा करता है। वह एक ऐसी श्रेणीबद्ध समूह संरचना से बचने की कोशिश करता है जिसमें अधिकतर-सम्पन्न और उच्च स्थिति वाले व्यक्तियों का प्रभुत्व हो।” वे आगे लिखते हैं, ” जबकि निरंकुश नेता समूह की आधारशिला होता है और उसके अभाव में सम्पूर्ण संरचना बर्बाद हो जाती है, प्रजातन्त्रात्मक नेता अपने नेतृत्व की सफलता का अनुमान और ढंग से लगाता है। वह देखता है कि उसके कुछ समय के लिए समूह संरचना से हट जाने पर भी, उसके अभाव में भी समूह का कार्य कितने सुचारू रूप से चल सकता है।”

निरंकुश तथा प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में अन्तर

निरंकुश तथा प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में अन्तर का अध्ययन लिपिट (Lippit) तथा उनके सहयोगियों ने कर्ट लिविन (Kurt Lwein) के निर्देशन में किया है। इन दोनों के बीच अन्तर इस प्रकार हैं:

(1) निरंकुश नेतृत्व में उद्देश्य पूर्ति हेतु तरीकों व कार्यों का निर्धारण नेता द्वारा होता है तथा एक समय में एक ही विधि का प्रयोग कर कार्यविधि को निश्चित कर दिया जाता है। प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में इन विधियों का निर्धारण सामूहिक रूप से आपसी सलाह-मशविरा के द्वारा होता है व कार्य करने हेतु एक-दो विकल्प सामने होते हैं।

(2) निरंकुश नेतृत्व में नीतियों का निर्धारण नेता द्वारा और प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में समूह द्वारा होता है।

(3) निरंकुश नेतृत्व में कौन-सा कार्य किस के साथ किया जायेगा, का निर्धारण नेता करता है। इसके विपरीत, प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में कोई भी कार्य किसी के साथ करने की पूरी स्वतन्त्रता होती है।

(4) निरंकुश नेतृत्व में बिना ठोस प्रमाणों के किसी भी सदस्य की निन्दा व प्रशंसा नहीं की जा सकती जबकि प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में बिना ठोस प्रमाणों के किसी की निन्दा व प्रशंसा की जा सकती है।

इसके अतिरिक्त अन्य विद्वानों ने भी कुछ अन्तरों का उल्लेख किया है; जैसे :

(5) निरंकुश नेतृत्व में नेता की इच्छा सर्वोपरि होती हैं, समूह हित की उसे कोई चिन्ता नहीं रहती है, परन्तु प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में नेता की इच्छा का समूह – हित के समक्ष कोई। महत्व नहीं होता है।

(6) निरंकुश नेतृत्व में नेता ‘विभाजित करो और शासन करो’ (Divide and rule) की नीति अपनाता है। इसके विपरीत, प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में एकता पर अधिक बल दिया जाता है।

(7) निरंकुश नेतृत्व में नेता समस्त सत्ता व शक्ति का एकीकरण अपने अपने हाथों में कर लेता है, परन्तु प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में नेता सत्ता व शक्ति का विकेन्द्रीकरण कर देता है।

(8) निरंकुश नेतृत्व में नेता एकमात्र स्वेच्छाचारी शासक होता है। प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में नेता समूह का सच्चा प्रतिनिधि होता है।

(9) निरंकुश नेतृत्व में नेता का इतना अधिक महत्व होता है कि उसके अभाव में समूह का अस्तित्व संकट में पड़ जाता है, परन्तु प्रजातन्त्रात्मक नेतृत्व में सत्ता व कार्यों का विकेन्द्रीकरण इस प्रकार होता है कि सभी सदस्यों का समान महत्व होता है व नेता की अनुपस्थिति व अभाव का समूह के अस्तित्व पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता।

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shubham yadav

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