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निर्धनता का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Poverty in Hindi)
भारत में गरीबी की परिभाषा पौष्टिक आहार के आधार पर दी गयी है। योजना आयोग के अनुसार किसी व्यक्ति को गाँवों में यदि 2400 कैलोरी और शहरों में 2100 कैलोरी प्रतिदिन की ऊर्जा का भोजन उपलब्ध नहीं होता है तो यह माना जायेगा कि वह व्यक्ति गरीबी की रेखा के नीचे अपना जीवन व्यतीत कर रहा है।
कुछ प्रमुख विद्वानों ने निर्धनता को निम्न प्रकार परिभाषित किया है –
“निर्धनता वह दशा है जिसमें एक व्यक्ति अपर्याप्त आय या विचारहीन व्यय के कारण अपने जीवन स्तर को उतना ऊँचा नहीं रख पाता है जिससे उसकी शारीरिक व मानसिक कुशलता बनी रह सके और वह तथा उसके आश्रित समाज के स्तर के अनुसार, जिसका कि वह सदस्य है, जीवन व्यतीत कर सके।” – गिलिन एवं गिलिन
“निर्धनता को रहन-सहन की एक ऐसी दशा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें स्वास्थ्य और शारीरिक कुशलता का अभाव होता है।” – वीवर
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि निर्धनता एक सापेक्ष शब्द है। इसका मापदण्ड व्यक्तियों को न्यूनतम जीवन स्तर की सुविधाएँ प्राप्त न हो सकता है। न्यूनतम जीवन स्तर विभिन्न साधनों पर भिन्न मिन्न होने के कारण निर्धनता के किसी साधारण मापदण्ड का निर्धारण नहीं किया जा सकता है।
निर्धनता के कारण (Causes of Poverty)
निर्धनता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
1. अशिक्षा
भारत में सन् 2001 की जनगणना के अनुसार अब तक जनसंख्या का केवल ” 65.38 प्रतिशत भाग ही साक्षर है। इस प्रतिशत में वे व्यक्ति भी सम्मिलित हैं जो मामूली रूप से भी लिख ‘पढ़ सकते हैं।
2. उद्योगों की कमी
भारत में आज भी प्रमुख उद्योग शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों का उचित विकास नहीं हुआ है जिस कारणवश वहाँ पर बेरोजगारी में वृद्धि होती है जो निर्धनता का एक प्रधान कारण है।
3. सामाजिक कारण
देश में गरीबी के लिए जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रथा, उत्तराधिकार के नियम, शिक्षा व मानव कल्याण के प्रति उदासीनता आदि अनेक कारण हैं, जो गरीबों को और गरीब बना रहे हैं।
4. प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर
कृषि तथा विनिर्माणी क्षेत्र में परम्परागत उत्पादन तकनीकों ने प्रति व्यक्ति उत्पादकता के स्तर को नीचा बनाये रखा है जिसके कारण गरीबी और अधिक गहन हुई है। 5. श्रम की माँग और पूर्ति में असन्तुलन जब श्रमिकों की माँग कम होती है और उनकी पूर्ति – बढ़ जाती है तो समस्त श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध नहीं हो पाता और इस कारण बेरोजगारी फैलने लगती है।
6. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
भारत की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हुई है जिससे गरीबी एवं बेरोजगारी की समस्या की गम्भीरता और बढ़ गयी है। 2.5% वार्षिक वृद्धि की दर से जनसंख्या का बढ़ना ग्रामीण श्रम-पूर्ति की तीव्रता में वृद्धि करता है। श्रमिकों की संख्या में जो तीव्रता से वृद्धि हो रही है उसके अनुरूप रोजगार सुविधायें नहीं बढ़ पाती हैं।
7. प्राकृतिक प्रकोप
हमारी अर्थव्यवस्था प्रकृति पर बहुत अधिक निर्भर है। प्राकृतिक प्रकोपों का सामना करने के पर्याप्त साधनों का न होना भी हमारी निर्धनता का एक प्रमुख कारण है।
8. तकनीकी प्रशिक्षण रोजगार
सुविधाओं को व्यापक रूप से उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक है, कि तकनीकी प्रशिक्षण का कार्यक्रम अपनाया जाय।
9. ग्रामीण ऋणग्रस्तता
आय में कमी होने के कारण भारतीय कृषक दैनिक जीवन ऋण लेकर व्यतीत करता है।
10. आर्थिक कारण
निर्धनता का सम्बन्ध आर्थिक पहलुओं से भी है। आर्थिक दशा का वर्णन आय और व्यय के सम्बन्ध में किया जाता है। अपर्याप्त उत्पादन, असमान वितरण, आर्थिक उच्चावचन, निर्धनता एवं बेरोजगारी,आदि को निर्धनता को जन्म देते हैं। भारत में उत्पादन के लिए परम्परागत साधनों का प्रयोग किया जाता है, जिसके कारण यहाँ पर्याप्त उत्पादन नहीं हो पाता है। इस स्थिति में अपनी जीविका चलाने के लिए आवश्यक वस्तुओं को एकत्र करना भी मुश्किल हो जाता है। आवश्यक वस्तुओं के अभाव में निर्धनता का सामना करना पड़ता है। उत्पादन के ठीक होने किन्तु उसका वितरण असमान होने पर भी निर्धनता का जन्म होता है। उत्पादन के साधनों पर कुछ लोगों का एकाधिकार होने पर अधिकांशतः लाभ वही ले जाते हैं। इस प्रकार आय की असमानता विद्यमान रहती है। अतः लोगों में निर्धनता भी विद्यमान रहती है। सम्पत्ति एवं आय का असमान वितरण, व्यापारिक मन्दी तथा बेरोजगारी की अवस्था भी निर्धनता उत्पन्न करती है। व्यापार में मन्दी की स्थिति में अनेकों लोग दिवालिया हो जाते हैं और उनकी जमा पूँजी खर्च हो जाती है। बेरोजगारी की अवस्था में भी व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ हो जाता है। फलस्वरूप उसकी कार्यक्षमता घट जाती है। इस प्रकार निर्धनता उत्पन्न हो जाती है।
निर्धनता निवारण हेतु सुझाव (Suggestions to Eradicate Poverty)
भारत में निर्धनता निवारण के निम्नलिखित उपाय किए गए हैं-
1. कृषि में सुधार
भारत एक कृषि प्रधान देश है अतः कृषि दशाओं में सुधार करना अत्यन्त में आवश्यक है। भूमि सुधारों, नवीन कृषि उपकरणों, सिंचाई की उन्नत सुविधाओं एवं अच्छी खाद का प्रयोग करके ही कृषि में सुधार किया जा सकता है।
2. कुटीर उद्योगों का विकास
कुटीर उद्योगों का विकास करने से देश के अधिकतम लोगों को रोजगार प्राप्त होगा और उत्पादन में भी वृद्धि होगी।
3. शक्ति के साधनों का पूर्ण उपयोग
भारत में निर्धनता को दूर करने के लिए शक्ति के साधनों का पूर्ण उपयोग करना अत्यन्त आवश्यक है। शक्ति के साधनों का पूर्ण उपयोग करके काफी अव्यय में बचत की जा सकती है।
4. परिवार नियोजन
देश की निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या भी निर्धनता का प्रमुख कारण है। परिवार नियोजन का प्रचार अधिक से अधिक करके बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
करने के लिए जनता के स्वास्थ्य के स्तर में
5. स्वास्थ्य के स्तर में सुधार
निर्धनता को दूर करने के जनता सुधार करना भी अत्यन्त आवश्यक है। अच्छे स्वास्थ्य से कार्यकुशलता में वृद्धि होगी जिससे प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी।
6. साख सुविधाओं में वृद्धि
आर्थिक विकास के लिए बैंकिग तथा साख-सुविधाओं की व्यवस्था करना आवश्यक है। कृषकों को ऋण की सुविधाएँ देने के साथ ही ऋण मिलने की प्रक्रिया इतनी सरल होनी चाहिए कि अधिक से अधिक किसान इससे लाभ उठा सकें।
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