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नैतिकता में पतन तथा नैतिक पतन के उत्तरदायी कारक | Degeneration in Morals in Hindi

नैतिकता में पतन
नैतिकता में पतन

नैतिकता में पतन को समझाते हुये नैतिक पतन के उत्तरदायी कारकों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।

नैतिकता में पतन (Degeneration in Morals)

प्रत्येक समाज में कुछ नैतिक नियम प्रचलित होते हैं जिन्हें उस समाज की संस्कृति का अनिवार्य अंग माना जाता है। नैतिक नियमों का सम्बन्ध आचरण की पवित्रता तथा चरित्र की दृढ़ता से होता है। यह नियम स्पष्ट करते हैं कि विभिन्न परिस्थितियों में क्या उचित है और क्या अनुचित। इसके साथ ही विभिन्न नैतिक मूल्यों में एक संस्तरण होता है जिसमें आध्यात्मिक मूल्यों का स्थान सर्वोच्च होता है। नैतिकता का पतन वह स्थिति है जिसमें एक समूह के अधिकांश सदस्य नैतिक नियमों में इस तरह के संशोधन करने लगते हैं जिसमें वे अधिक से अधिक भौतिक सुखों को प्राप्त कर सकें। इसके लिये संस्कृति द्वारा स्वीकृत आदर्श नियमों की अवहेलना की जाने लगती है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि सुखवाद, भोगवाद और विचलनकारी प्रवृत्तियाँ ही नैतिकता में होने वाला पतन है। वर्तमान युग में उन्मुक्त यौनिक आचरण, बेईमानी से धन का उपार्जन, क्रूरता, व्यक्तिगत तथा समय का अपव्यय आदि नैतिक पतन की कुछ प्रमुख अभिव्यक्तियाँ हैं। आज संसार के विभिन्न समाजों में नैतिक पतन की समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि चारों ओर सब कुछ बिखरा हुआ दिखाई देता है। कोई व्यक्ति चाहे युवा हो या वृद्ध, स्त्री हो या पुरुष, मालिक हो या मजदूर नेता हो या उसका अनुयायी, कहीं भी व्यक्ति की भूमिका उसकी स्थिति के अनुरूप दिखायी नहीं देती। प्रत्येक व्यक्ति दूसरे के व्यवहार से एक अजीब-सी घुटन, पीड़ा और कभी-कभी उत्तेजना महसूस करता है जबकि वह यह भूल जाता है कि वह स्वयं भी नैतिक मूल्यों से उतना ही गिरा हुआ है।

नैतिक पतन के उत्तरदायी कारक

भारत में बढ़ते हुये नैतिक पतन के कारणों की कोई निश्चित सूची बनाना कठिन है। मूलरूप से हमारी संस्कृति का विघटन तथा असंतुलित सामाजिक परिवर्तन ही इस समस्या के मुख्य कारण रहे हैं। इस समस्या के लिये उत्तरदायी कुछ महत्वपूर्ण कारणों का उल्लेख इस प्रकार किया जा सकता है-

1. सुख सम्बन्धी विचारधारा

वर्तमान युग में यह विचारधारा बहुत प्रभावपूर्ण बन गयी है कि सुख प्राप्त होना चाहिए। इसका साधन चाहे कुछ भी हो तथा यह कि धन एक ऐसी शक्ति है जिसके द्वारा प्रत्येक वस्तु खरीदी जा सकती है। इसी विचारधारा के फलस्वरूप घूसखोरी, गबन, विश्वासघात, मद्यपान, अनुशासनहीनता तथा अपराधों को प्रोत्साहन मिला है। इस विचारधारा के अन्तर्गत धन का संचय ही व्यक्ति की योग्यता का आधार है। इसके फलस्वरूप सामाजिक सम्बन्धों सामाजिक प्रतिष्ठा तथा विवाह सम्बन्धों के क्षेत्र में उसी व्यक्ति को सबसे अधिक उपयुक्त समझा जाता है जो सम्पन्न हो। उसकी बेईमानी, जालसाजी, घूसखोरी अथवा कर्तव्यहीनता को एक अनैतिक कृत्य के रूप में नहीं देखा जाता।

2. नीति-निरपेक्ष मनोवृत्तियाँ

आज समाज के एक बड़े वर्ग में ऐसा जीवन व्यतीत करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है जो नैतिक आचरणों से स्वतन्त्र तथा परम्परागत मान्यताओं के बंधनों से मुक्त हो । ऐसे व्यक्ति समाज के सभी नियमों तथा मान्यताओं को पिछड़ापन मानते हैं। इस मनोवृत्ति की स्पष्ट अभिव्यक्ति हिप्पी जीवन में देखने को मिलती है। यौनिक उन्मुक्तता तथा नशीली वस्तुओं का सेवन इसी मनोवृत्ति का परिणाम है।

3. औद्योगीकरण

औद्योगीकरण ने स्नेह व बन्धुत्व के स्थान पर दिखावटी और हित प्रधान सम्बन्धों को प्रधानता दी है। इन औपचारिक सम्बन्धों के बीच व्यक्ति उचित और अनुचित का निर्धारण अपने स्वार्थों के दृष्टिकोण से करता है। लाभ प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य होता है, चाहे इसके लिये उसे किसी भी तरह का साधन अपनाना पड़े।

4. आधुनिकीकरण तथा पश्चिमीकरण

आधुनिकीकरण वह प्रक्रिया है जो प्रत्येक व्यवहार को तर्क के आधार पर देखने का प्रोत्साहन देती है। इससे मानवीय मूल्यों त्याग और सेवा का महत्व कम हो जाता है। यह प्रक्रिया नवीन विचारों, फैशन तथा स्वतंत्र सम्बन्धों में वृद्धि करके भी नैतिक पतन को बढ़ाती है। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने पश्चिमी ढंग की जीवन शैली को व्यवहार का आदर्श बना दिया जो भारत के परम्परागत सामाजिक तथा नैतिक मूल्यों के विरुद्ध है। इसके फलस्वरूप दाम्पत्य जीवन, पारिवारिक जीवन, शिक्षा संस्थाओं तथा आर्थिक जीवन से सम्बन्धित नैतिक मूल्य कमजोर पड़ गये हैं।

5. व्यक्तिवादिता

वर्तमान युग में व्यक्तिवादिता अपनी चरम सीमा पर पहुँच गयी है। यहाँ तक कि माता-पिता तथा भाई-बहनों से सम्बन्धों की स्थापना में भी व्यक्तिगत लाभ की आकांक्षा प्रबल बनी रहती है। इस प्रवृत्ति ने व्यक्तिगत निराशा, घुटन तथा तनावों में अभूतपूर्व वृद्धि कर दी। व्यक्ति की यह निराशा और तनाव धीरे-धीरे उसे नैतिक मूल्यों को छोड़कर अपनी अनैतिक आवश्यकताओं को पूरा करने की प्रेरणा देते हैं।

6. विघटित राजनीति

हमारे समाज में कुर्सी की राजनीति नैतिक पतन का एक मुख्य कारण सिद्ध हुआ। बॉटोमोर ने यह स्पष्ट किया है कि नैतिक नियमों तथा राजनीतिक सिद्धांतों के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध है। राजनीति जब दलबन्दी, जातिवाद, भ्रष्टाचार तथा स्वार्थपरता का शिकार हो जाती है। तब नैतिक नियम अपने आप प्रभावहीन होने लगते हैं। आज छोटे-बड़े नेता जिस प्रकार अपनी स्वार्थसिद्ध के लिये युवकों में जागरुकता के नाम पर उन्हें प्रदर्शनों तथा अनुशासनहीनता की ओर प्रेरित कर रहे हैं। उससे इस स्थिति को सरलतापूर्वक समझा जा सकता है। समाज के अन्य वर्ग भी नेताओं के व्यवहारों का ही अनुकरण करते हैं।

7. धार्मिक दुराचरण 

नैतिक नियमों के धर्माचरण करने से शक्ति प्राप्त होती है लेकिन जब कुछ व्यक्ति धर्म को अपना व्यवसाय बना लेते हैं. धर्म के नाम पर धर्मपरायण भोले-भाले लोगों का शोषण करते हैं तथा धर्म की व्याख्या व्यक्तिगत लाभ के लिए करने लगते हैं तो नैतिक नियमों के प्रति भी एक भ्रमपूर्ण स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसी स्थिति में एक नई आचार संहिता का विकास होता है जिससे अक्सर नैतिक पतन की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

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shubham yadav

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