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परामर्शदाता के उत्तरदायित्व | परामर्शदाता की विशेषताएँ

परामर्शदाता के उत्तरदायित्व
परामर्शदाता के उत्तरदायित्व

परामर्शदाता के उत्तरदायित्व

परामर्श कार्य का सम्पूर्ण भार परामर्शदाता पर होता है। परामर्श प्रक्रिया का सफलतापूर्वक संचालन करने के लिये परामर्शदाता को निम्नलिखित उत्तरदायित्वों का पालन करना पड़ता है-

1. उपबोध्य के बारे में सूचनायें एकत्रित करना – जो उपबोध्य परामर्श से समस्या समाधान के लिये सम्पर्क करे उसके तथा परिवार के बारे में सूचनाओं का संग्रह करना परामर्शदाता का कार्य है।

2. शिक्षा और व्यवसायों के बारे में सूचनाओं का संग्रह करना- परामर्शदाता का उत्तरदायित्व है कि आगे की शिक्षा तथा व्यवसायों के बारे में सूचनाओं को संगृहीत करे। 3. साक्षात्कारों की व्यवस्था करना- साक्षात्कार परामर्श का मेरुदण्ड माना जाता है। साक्षात्कार के लिये आवश्यक व्यवस्था का प्रबन्ध करना परामर्शदाता का उत्तरदायित्व है।

4. सम्बन्ध स्थापित करना- सफल परामर्श के लिये आवश्यक है कि परामर्शदाता को विद्यालयों के प्राचार्य, व्यावसायिक संगठन के अधिकारियों और अभिभावकों के सम्पर्क में रहना चाहिये। सम्पर्क से ही उनका सहयोग प्राप्त कर सकता है।

5. भौतिक सुविधाओं का प्रबन्ध करना-परामर्शदाता को अपना कार्यालय आकर्षक बनाने के लिये उसमें आवश्यक सामान की व्यवस्था भी करनी चाहिये।

6. स्थापन में सहायता करना- उपबोध्य के किसी व्यवसाय में स्थापन सम्बन्धी कार्य में परामर्शदाता को सहायता करनी चाहिये ।

7. निःशुल्क परामर्श- किसी सामाजिक केन्द्र अथवा समुदाय समर्थित अभिकरण पर प्रार्थियों को निःशुल्क शैक्षिक एवं व्यावसायिक परामर्श देना, उपयुक्त सामुदायिक अभिकरणों के मामलों को सन्दर्भित करना, भावी कार्यक्रमों की योजना बनाना।

8. उपयुक्त परीक्षणों का चुनाव- व्यावसायिक परामर्शदाता अभ्यर्थियों के लिये उपयुक्त परीक्षणों का चुनाव करता है तथा उन परीक्षणों की व्यवस्था करता है। दूसरे परामर्शदाताओं के साथ विषय सम्मेलनों में भाग लेता है तथा उनसे प्राप्त निष्कर्षों की व्याख्या करता है। साक्षात्कारों, परीक्षण परिणामों तथा विषय सम्मेलनों के आधार पर परामर्श प्रदान करता है।

9. भावी रोजगार- कृत्य चाहने वाले अभ्यर्थियों के लिये अभिकरण की सीमाओं में सम्भव रोजगार की व्यवस्था करता है अथवा उपबोध्य को अन्य नियोजन अभिकरणों से सम्पर्क करने की सलाह देता है।

10. सहायता की सिफारिश- वर्तमान अभिकरणों की सेवा सुविधा की अपेक्षा और अच्छे ढंगों से उपबोध्य को सहायता देने के लिये अन्य सामाजिक अथवा कल्याण अथवा रोजगार अभिकरण को विषयों या मामलों को भेजता है। वह उपबोध्य को आर्थिक चिकित्सा सम्बन्धी कानूनी तथा अन्य प्रकार की सहायता के लिये अभिकरणों की सिफारिश कर सकता है।

11. सुधार तथा विस्तार – अन्य साथियों के सहयोग से सेवाओं में सुधार तथा विस्तार के लिये कार्यक्रमों की व्यवस्था करता है। वह शोध योजनाओं तथा संगठन अभिकरणों के कार्यों में भी सहयोग देता है।

12. व्यावसायिक समायोजन- युवकों के लिये व्यावसायिक समायोजन की समस्याओं के सम्बन्ध में सामूहिक निर्देशन का कार्य करता है।

शार्टले द्वारा बताये गये कर्त्तव्यों को पूरा करना व्यावसायिक परामर्शदाता के लिये तभी सम्भव होगा जब उसने आवश्यक अर्हतायें एवं प्रशिक्षण प्राप्त किया हो। इसीलिये ब्लूम तथा बैलिन्स्की ने परामर्शदाताओं के व्यापक एवं गहरे प्रशिक्षण की आवश्यकता पर बल दिया है।

परामर्शदाता की विशेषताएँ

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने परामर्शदाताओं की अनेक विशेषतायें बतायी हैं। ई.सी. रोयबर ने इन विशेषताओं का समाहार करते हुये परामर्शदाताओं की विशेषताओं को सात वर्गों में रखा है-

1. पारस्परिक सम्बन्ध – किशोरों तथा अन्य युवा समूहों के व्यक्तियों से शीघ्रता से घनिष्ठता स्थापित कर लेना तथा उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर लेना, युवकों को सहानुभूतिपूर्वक समझना, ईमानदारी, निष्ठा, लोगों से मिलने-जुलने की योग्यता, लोगों में रुचि रखना, लोगों के साथ कार्य करने में रुचि रखना, दूसरों के दृष्टिकोणों के प्रति संवेदनशील होना, धैर्य, चतुरता, दूसरों का विश्वास प्राप्त कर सकने की क्षमता, सामाजिक संवेदनशीलता, दूसरों की आवश्यकताओं का ध्यान अपनी विचारधारा की अपेक्षा दूसरों के दृष्टिकोण के प्रति सहिष्णुता रखना, व्यक्तियों का ध्यान, व्यक्तियों की निजता को ध्यान रखना, लोगों को समझना और मानना तथा आपसी सम्बन्धों में सौहार्द बनाये रखना। ये ऐसे गुण हैं जो अच्छे पारस्परिक सम्बन्धों को विकसित करने की दृष्टि से परामर्शदाता में होने चाहिये।

2. वैयक्तिक समायोजन- परिपक्वता, व्यक्तित्व, भावात्मक स्थिरता अपनी कमजोरियों का ज्ञान, लचीलापन तथा अनुकूलन क्षमता, महत्त्व का भाव, विनोद का पुट, पिछले अनुभवों से लाभ उठाने की योग्यता, आलोचकता को स्वीकार करने की सामर्थ्य, आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास या विश्वास अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिये एक विवेकसम्मत दर्शन, अपने बारे में ज्ञान वैयक्तिक समायोजन में सहायक होते हैं। यदि कभी कोई व्यक्ति परामर्शदाता की बात का दूसरा अर्थ समझ ले अथवा परामर्शदाता किसी अन्य व्यक्ति की बात का दूसरा अर्थ समझ ले तो उसे सहिष्णुतापूर्वक स्पष्ट कर सकने की क्षमता का होना भी आवश्यक है। उपर्युक्त विशेषतायें वैयक्तिक समायोजन के अन्तर्गत आती हैं।

3. शैक्षिक पृष्ठभूमि तथा विद्वत्ता की शक्तियाँ- ऊँची परिष्कृत सामाजिक अभिरुचियाँ, कार्यक्षमता, प्रज्ञा-ज्ञान तथा अभिरुचियों का विस्तृत क्षेत्र, सामाजिक संस्कार, पाण्डित्य के प्रति झुकाव, तथ्यों का आदर, व्यावहारिक निर्णय, अच्छा निर्णय तथा सामान्य विवेक आदि गुण परामर्शदाता में अपेक्षित हैं।

4. स्वास्थ्य एवं बाह्य व्यक्तित्व – स्वास्थ्य, मधुर वाणी, व्यक्तित्व की आकर्षक बाह्य रूपरेखा, प्राणवत्ता तथा सहन-शक्ति, स्वच्छता का होना परामर्शदाता के लिये आवश्यक है। परामर्शदाता का कोई व्यवहार (जैसे-अंग-संचालन आदि) ऐसा न हो जिसका लोग मजाक बनाते हों।

5. नेतृत्व – परामर्शदाता में नेतृत्व का गुण प्रधान रूप से होना चाहिये जिससे वह दूसरों को प्रभावित एवं उनका नेतृत्व कर सके। उसका व्यवहार विश्वसनीय होना चाहिये।

6. जीवन दर्शन– अच्छा आचरण तथा स्वस्थ जीवन-दर्शन, नागरिकता का भाव, संश्लिष्ट एवं मान्य मूल्य-व्यवस्था, महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिकता तथा धार्मिक परम्परायें, रुचियाँ तथा सौन्दर्य-बोध, मानव प्रकृति में आस्था का होना आवश्यक है।

7. वृत्ति के प्रति समर्पित होना- व्यावसायिक अभिरुचियाँ, निर्देशन कार्य में रुचि लेना, वृत्तिक दृष्टिकोण, प्रेरणा भाव, शिक्षा के कार्य के लिये निष्ठा एवं उत्साह, छात्रों के लिये नियुक्त कर्मचारियों के कार्य में रुचि, वृत्तिक नैतिकता के प्रति उच्च भावना, वृत्तिक विकास, कर्त्तव्य के निश्चित समय के अतिरिक्त भी कार्य करने की इच्छा तथा परामर्श को सहायता प्रदान करने वाले सम्बन्ध के रूप में मानकर कार्य करना भी आवश्यक गुण है।

इन सात बिन्दुओं के अन्तर्गत आने वाली विशेषताओं के सम्बन्ध में रोयबर लिखता है, “एक आदर्श परामर्श की विशेषताओं का यह विस्तार उस व्यक्ति को हतोत्साहित कर सकता है जो शोध कार्यों के लिये चुने हुये क्षेत्र का विचार रखता है।” ये विशेषतायें इतनी व्यक्तिनिष्ठ हैं कि उनको मात्र निश्चित करना कठिन है। फिर भी एक आदर्श परामर्शदाता के जो गुण रोयबर ने बताये हैं वे प्राचीन संस्कृतियों द्वारा भी मान्य हैं। जीवन दर्शन सम्बन्धी जिन विशेषताओं का उल्लेख किया है, वे विशेष रूप से ग्राह्य हैं।

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shubham yadav

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