B.Ed./M.Ed.

परामर्श की सफलता के लिये आवश्यक कौशल

परामर्श की सफलता के लिये आवश्यक कौशल
परामर्श की सफलता के लिये आवश्यक कौशल

परामर्श की सफलता के लिये आवश्यक कौशल

परामर्श की प्रक्रिया बड़ी संवेदनशील होती है। इस कार्य में उपबोधक की योग्यता तथा निपुणता का अधिक प्रभाव पड़ता है। परामर्श में उपबोधक के धैर्य, संवेगों पर नियंत्रण और वाक्पटुता का परीक्षण होता है। परामर्श की प्रक्रिया में अनेक बार ऐसी स्थिति पैदा होती है कि क्रोध आना स्वाभाविक है, लेकिन परामर्शदाता अपने क्रोध पर नियंत्रण रखकर टकराव की स्थिति को पैदा नहीं होने देता है। परामर्श की सफलता के लिये निम्नलिखित कौशलों का होना आवश्यक है-

1. सम्बन्ध – परामर्श में उपबोधक और उपबोध्य के मध्य मित्रतापूर्ण सम्बन्ध होना आवश्यक है। परस्पर सम्बन्ध के आधार पर उपबोधक उपबोध्य का विश्वास जीतकर उसके जीवन के गोपनीय तथ्यों को जानने में सफल हो सकता है। इसीलिये सम्बन्ध स्थापित करने में उपबोधक को निपुण होना चाहिये। इस कौशल में निपुणता के लिये आवश्यक है कि उपबोधक मधुर वाणी का उपयोग करे। उसका व्यवहार एक अधिकारी या वरिष्ठ नागरिक जैसा न हो। उपबोध्य के परामर्श कक्ष में प्रवेश करते समय वह भी अज्ञात भय और झिझक से ग्रस्त होता है। उसके भय को दूर करने के लिये उपबोधक को मुस्कुराहट के साथ स्वागत करना चाहिये। परामर्श का प्रारम्भ तुरन्त उपबोध्य की समस्या पर वार्तालाप से प्रारम्भ नहीं करना चाहिये। प्रारम्भ परिचय, परिवार के बारे में जानकारी, विद्यालय की क्रियाओं में रुचि आदि के बारे में चर्चा से करना चाहिये। प्रारम्भ में उपबोधक को वार्तालाप में थोड़ा हास्य का पुट रखना चाहिये। इस प्रकार के कौशल द्वारा वह उपबोध्य के हृदय को जीतकर मधुर सम्बन्ध स्थापित करने में सफल हो सकता है। व्यंग्य, अनुचित शब्द और आलोचना से बचना चाहिये।

2. दृढ़ता – परामर्श का दूसरा कौशल दृढ़ता है। परामर्श में सदैव लचीलेपन से काम नहीं चलता है। परस्पर सम्बन्ध स्थापित कर लेने के बाद परामर्श को आगे बढ़ाने के लिये उपबोधक को कुछ चरणों का दृढ़ता से पालन करना चाहिये। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उपबोध्य परामर्श को हास्यास्पद बना सकता है। यहाँ दृढ़ता से आशय यह नहीं है कि उपबोधक उपबोध्य के ऊपर हावी होकर उसे भयभीत कर दे। परामर्श में वार्तालाप के समय मुख्य विषय से भेंटक सकता है। अतः ऐसी परिस्थिति में उसे मुख्य विषय की ओर मोड़ने के लिये दृढ़ता का परिचय देना चाहिये। वार्तालाप के समय उपबोधक को उन बिन्दुओं पर दृढ़ता का परिचय देना चाहिये जिनको वह उचित समझता है।

3. विचार विनिमय का कौशल- परामर्श की सफलता विचारों के परस्पर आदान-प्रदान पर निर्भर होती है। उपबोधक को इस कौशल में दक्ष होना चाहिये। उपबोध्य के साथ वार्ता को आगे बढ़ाने में निपुण होना चाहिये। अनेक बार उपबोध्य कुछ चिन्तन में लीन हो जाने पर वार्ता बन्द कर देता है। ऐसे समय उपबोधक को कोई प्रासंगिक बात कहकर या दृष्टान्त देकर उपबोध्य को वार्तालाप के लिये प्रेरित करना चाहिये। उपबोधक का भाषा पर अधिकार होना चाहिये। उपबोधक को अनुचित शब्द और आलोचना से बचना चाहिये। उसको बिना पूर्वाग्रह के उपबोध्य की बात सुननी चाहिये।

4. सुनना- परामर्श में परामर्शदाता को धैर्यपूर्वक सुनने की क्षमता होनी चाहिये। अनेक उपबोध्य ऐसी बातें करते हैं जिनको सुनकर परामर्शदाता अपने पर नियंत्रण खोकर ऐसी बातें कर देता है कि उपबोध्य भी आक्रोशित होकर परामर्श त्याग कर चल देता है। अतः परामर्शदाता को ऐसा प्रदर्शन करना चाहिये कि वह उपबोध्य की बातों को ध्यान से सुन रहा है। ध्यानपूर्वक सुनने का प्रदर्शन परामर्शदाता की मुख मुद्रा से प्रकट होना चाहिये। सुनने की कला में निपुणता दर्शाती है कि परामर्शदाता उपबोध्य में रुचि ले रहा है।

5. प्रश्न पूछना- परामर्श प्रक्रिया में प्रश्न पूछने का बड़ा महत्त्व है। इस प्रक्रिया में प्रश्न पूछना न केवल आवश्यक ही है अपितु अत्यन्त उपयोगी और प्रेरणात्मक भी है। प्रश्न पूछने से परामर्शदाता समस्या के कारणों का पता लगा सकता है। प्रश्न उपबोधक को प्रेरणा प्रदान करने तथा चिन्तन शक्ति के विकास में सहायक करते हैं। इनकी सहायता से उपबोध्य की रुझान या अभिरुचि ज्ञात करने में सहायक होते हैं। प्रश्न परामर्श प्रक्रिया को गति प्रदान करते हैं। प्रश्न पूछते समय परामर्शदाता को ध्यान रखना चाहिये कि प्रश्नों की भाषा में स्पष्टता हो, उत्तर सुनिश्चित हो तथा प्रश्न का उत्तर उपबोधक की आयु, योग्यता तथा रुचि के अनुसार हो।

6. अनुक्रिया करना- परामर्श में परामर्शदाता द्वारा अनुक्रिया करना भी आवश्यक है क्योंकि बिना अनुक्रिया के उपबोध्य सोचेगा कि परामर्शदाता उसमें तथा उसकी समस्या में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। अनुक्रिया के रूप में हाँ, अच्छा, नहीं आदि शब्दों का प्रयोग परामर्शदाता द्वारा किया जा सकता है। उपबोध्य द्वारा पूछे गये प्रश्न का उत्तर देना या उसके द्वारा किसी विद्यालय, पाठ्यक्रम या व्यवसाय के बारे में जानने की इच्छा की सन्तुष्टि उपयुक्त सूचनायें देकर करना भी अनुक्रिया का रूप है।

7. परामर्श साक्षात्कार- साक्षात्कार एक आत्मनिष्ठ विधि है। साक्षात्कार को परामर्श का हृदय माना जाता है। अतः परामर्शदाता को साक्षात्कार कौशल में निपुण होना चाहिये। इस प्रकार के साक्षात्कार में परामर्शदाता को निम्नलिखित सोपानों का पालन करना चाहिये-

(i) तैयारी- साक्षात्कार का उद्देश्य, समय और स्थान पहले से ही निश्चित कर लेने चाहिये। उपबोध्य से सम्बन्धित समस्त जानकारी आलेखों से पूर्व में ही ज्ञात कर लेनी चाहिये। परामर्शदाता को साक्षात्कार में उपबोध्य का सहानुभूति प्रदर्शित करके विश्वास जीतना चाहिये। साक्षात्कार के मध्य में हास्य सम्बन्धी बातों के द्वारा उपबोध्य को चिन्तामुक्त करने का प्रयास करना चाहिये।

(ii) समस्या का स्पष्टीकरण- विश्लेषण द्वारा परामर्शदाता को समस्या के कारण जानने का प्रयास करना चाहिये। इसके बाद समस्या समाधान के विकल्पों की चर्चा करनी चाहिये।

(iii) समस्या का समाधान- समाधान के बारे में उपबोध्य पर यह प्रभाव पड़ना चाहिये कि उसने समय पर समाधान निकाला है।

(iv) समापन- समापन करना कठिन होने के कारण परामर्शदाता को समापन कला में निपुण होना चाहिये। साक्षात्कार की समाप्ति अचानक न करके इस धारणा के साथ होनी चाहिये कि आवश्यकता होने पर पुनः मिलेंगे।

(v) मूल्यांकन-परामर्शदाता को साक्षात्कार का मूल्यांकन करके कमियों का पता करने का प्रयास करना चाहिये ताकि इन त्रुटियों की पुनरावृत्ति से बचा जा सके।

इसी भी पढ़ें…

About the author

shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment