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परिमापन की प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता
परिमापन की प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता- परिमापन के लिए जिस मापक्रम को विकसित किया जाता है, चाहे वह क्रमिक मापक्रम हो अथवा अंतराल या अनुपाती मापक्रम, उसकी मान्यतों के लिए दो गुणों का होना आवश्यक है—प्रामाणिकता (validity) एवं विश्वसनीयता ( reliability)।
इन्हीं मानदंडी के आधार पर हम किसी मापक्रम (scale) को मान्यता प्रदान करते हैं।
(A) प्रामाणिकता (Validity)
किसी मापक्रम की प्रामाणिकता से हमारा तात्पर्य है कि वह जो माप करना चाहता है, उसे सफलतापूर्वक माप रहा है। दो घटनाओं या व्यक्तियों में जो वास्तविक अंतर हैं, वही जब उस मापक्रम द्वारा भी स्पष्ट हो रहा है, तभी वह एक प्रामाणिक मापक्रम है। अर्थात, किसी मापक्रम की प्रामाणिकता या वैधता इस प्रश्न का स्वीकारात्मक उत्तर है- ‘क्या मापक्रम वही माप रहा है जिसे मापने का वह दावा करता है?’ सेल्टिज आदि के शब्दों में, ‘परिमापन यंत्र की प्रामाणिकता को उस विशेषता के रूप में परिमापित किया जा सकता है, जिसके आधार पर अनुसंधानकर्ता को यह कहने की शक्ति मिलती है कि यंत्र उसी गुण की माप कर रहा है, जो वह मापने का दावा करता है।’
इस तरह प्रामाणिकता के प्रश्न के दो पहलू हैं-एक तो यह कि मापक्रम संबद्ध विषय की ही माप कर रहा है, किसी और विषय की नहीं। और, दूसरे यह कि, वह उस विषय की सही- सही एवं शुद्ध माप कर रहा है।
जैसे, हम थर्मामीटर को लें। यह ताप की माप के लिए विकसित यंत्र है। यह एक प्रामाणिक यंत्र है क्योंकि यह ताप की माप करता है, किसी अन्य चीज की जैसे भार या समय की नहीं। इसकी प्रामाणिकता के लिए यह भी आवश्यक है कि यह ताप की सही-सही माप करता है। इसी तरह, ‘कार्य संतुष्टि मापक्रम’ (Job saisifaction scale) तभी प्रामाणिक है जब यह कार्य- संतुष्टि की ही माप करने में सफल हो।
प्रामाणिकता की जाँच (Test of Validity)
प्रामाणिकता की जाँच के लिए कई विधियाँ अपनाई जाती है जिनमें प्रमुख विधियाँ निम्न है—
(1) अंतर्वस्तु या आमुख प्रामाणिकता (Content or face validity)।
(2) व्यावहारिक प्रामाणिकता (Pragmatic validity)।
(i) समवर्ती प्रामाणिकता (Concurrent validity),
(ii) भविष्यवाची प्राथमिकता (Predicitive validity)
(3) शब्द – विन्यास या निर्माण प्रामाणिकता (Construct validity)।
तीनों प्रकार की प्रामाणिकता का अपना महत्व है। यदि शोधकर्ता के पास सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए समय का अभाव है तो उसके लिए अंतर्वस्तु प्रामाणिकता उपयोगी सिद्ध हो सकती है। लेकिन, दूसरी ओर यदि उसे अपने अध्ययन समूह या प्रतिदर्श से लंबे समय तक संपर्क का अवसर है, उनके व्यवहार को जानने एवं निरीक्षण करने का मौका है, तो भविष्यवाची प्रामाणिकता उपयोगी होती है। अध्ययन-समूह से संक्षिप्त संपर्क की स्थिति में समवर्ती प्रामाणिकता लाभप्रद हो सकती है। लेकिन, शब्द-विन्यास प्रामाणिकता के द्वारा शोधकर्ता को अपने विषय के विभिन्न पहलुओं के विश्लेषण का अवसर प्राप्त होता है।
(B) विश्वसनीयता (Reliability)
किसी भी मापक्रम या परीक्षण के लिए प्रामाणिकता के साथ-साथ विश्वसनीयता भी महत्वपूर्ण है। किसी मापक्रम को तभी विश्वसनीय कहा जाता है जब बार-बार प्रयोग के पश्चात भी वह एक व्यक्ति या घटना के संदर्भ में समान निष्कर्ष या माप प्रदान करे। विश्वसनीयता का अर्थ है यथार्थ या सही (accurate) माप जो त्रुटिहीन एवं स्थिर हो । गुडे एवं हाट के अनुसार, ‘एक मापक्रम तभी विश्वसनीय हो सकता है जब एक ही प्रतिदर्श पर बार-बार प्रयोग किए जाने पर एक ही परिणाम निकलता है।’
सेल्टिज, जहोदा आदि के अनुसार, विश्वसनीयता का अर्थ है कि किसी वस्तु की स्वतंत्र किंतु तुलनीय परिमाप समान परिणाम प्रदान करे (यदि यह विश्वास करने का कोई कारण न हो कि परिमापित वस्तु दोनों परिमापन के बीच परिवर्तित हो गई है)।
इस तरह, विश्वसनीयता का अर्थ है समान परिस्थिति में समान वस्तु का बार-बार किया गया परिमापन समान परिमाण दे। दूसरे शब्दों में, यदि किसी मापक्रम द्वारा किसी स्थिर एवं अपरिवर्तित घटना या वस्तु की दो बार माप की जाए तो समान परिणाम आना उसकी विश्वसनीयता का प्रमाण है। इस तरह, विश्वसनीयता का सरल अर्थ किसी मापक्रम की अनुकूलता एवं स्थिरता (consistency) है। कलिजर ने कहा है कि किसी मापक्रम की विश्वसनीयता उसकी यथार्थ (accuracy) या परिशुद्धता (precision) है।
किसी भी मापक्रम या परीक्षण की विश्वसनीयता के दो प्रमुख आधार है। (क) स्थायित्व (Stability) अर्थात पुनरावृत्त परीक्षण में परिणामों का स्थायी या स्थिर होना। इसकी जाँच के लिए एक ही प्रतिवर्ष पर मापक्रम की पुनरावृत्ति की जाती है और प्राप्त परिणामों की तुलना की जाती है। यदि परिणाम समान या स्थिर है तो मापक्रम में स्थायित्व का गुण है जो विश्वसनीयता का आधार है। इसके लिए समान प्रतिदर्श पर दो समय में हम एक मापक्रम द्वारा परिमाप करते हैं।
(ख) समरूपता (Equivalence), अर्थात यदि विभिन्न शोधकर्ता एक ही प्रतिदर्श पर एक ही समय मापक्रम द्वारा परिमापन करते हैं और उनके द्वारा प्राप्त परिणामों में समरूपता या समानता है, तो मापक्रम विश्वसनीय है। इसके लिए दो समान मापक्रम भी प्रयोग में लाए जाते हैं या एक ही मापक्रम को दो समान भागी में बाँटकर प्रयोग किया जाता है।
यदि हम यह जानते हैं कि परिमापन-यंत्र प्रामाणिक (valid) है, तो हमें उसकी विश्वसनीयता की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। कोई मापक्रम या परीक्षण यदि प्रामाणिक है तो वह विश्वसनीय भी होगा और यदि वह विश्वसनीय नहीं है तो प्रामाणिक भी नहीं होगा। लेकिन, विश्वसनीय का होना प्रामाणिकता की गारंटी नहीं है।
अतः अनुमापन यंत्र या मापक्रम की विश्वसनीयता पहले ही निर्धारित कर ली जानी चाहिए। कलिंजर (Kerlinger) ने विश्वसनीयता के महत्व को बताते हुए कहा है, ‘उच्च विश्वसनीयता यद्यपि अच्छे वैज्ञानिक परिणामों की गारंटी नहीं है, लेकिन विश्वसनीयता के बिना कोई अच्छे वैज्ञानिक परिणाम भी नहीं निकल सकते।’
इस तरह, विश्वसनीयता अनुसंधान निष्कर्ष को महत्वपूर्ण बनाने के लिए भले ही अनिवार्य है, किंतु पर्याप्त नहीं।
विश्वसनीयता की जाँच (Test of relability)
किसी भी मापक्रम (Scale) या परीक्षण (test) की विश्वसनीयता की माप स्थायित्व (stability) एवं सम-रूपता (equivalence) की माप से संबंधित है। एक विधि स्थायित्व या स्थिरता की माप करती है, तो दूसरी समरूपता या समानता की । विश्वसनीयता की माप की तीसरी विधि स्थिरता एवं समरूपता दोनों की माप करती है। विश्वसनीयता की जाँच की ये तीनों विधियाँ क्रमशः इस प्रकार हैं।
(क) परीक्षण-पुनः परीक्षण विधि (Test retest method).
(ख) वैकल्पिक पत्र या समानांतर पत्र (Alternate forms or parallel forms)
(ग) अर्द्ध-विभाजन विधि (Split-halfmethod)।
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