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परिवार में स्त्रियों के उत्पीड़न की प्रकृति (Nature of Torture of Women in Family)
हिन्दू समाज पुरुष प्रधान है। भारत में परम्परात्मक रूप से पितृसत्तात्मक संयुक्त परिवार व्यवस्था पायी जाती है, जिसमें परिवार के पुरुष सदस्यों को तो अनेक अधिकार एवं सुविधाएं प्राप्त हैं किन्तु स्त्रियों को उनसे वंचित रखा जाता है। संयुक्त परिवार व्यवस्था में स्त्रियों की बड़ी दुर्दशा होती है। वे दासी की तरह जीवन व्यतीत करती हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन खाना पकाने, बच्चों को जन्म देने, उनका पालन-पोषण करने एवं परिवार के सदस्यों की सेवा में ही व्यतीत हो जाता है। स्त्री को मनोरंजन का साधन समझा जाता है। उसे सास-ननद के उलाहने, गालियों एवं प्रताड़ना का शिकार बनना पड़ता है। शिक्षा एवं बाहरी संसार से उसका कोई नाता नहीं रह जाता है। वह सार्वजनिक जीवन से अनभिज्ञ बनी रहती है और उसके व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं हो पाता है।
नारियों की समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव (Suggestions for Solving the Women’s Problems)
विगत दशकों में नारी की समस्याओं के समाधान हेतु कई महत्वपूर्ण प्रयत्न किये गये हैं जिनके माध्यम से नारियों की स्थिति में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। परन्तु अधिकांश भारतीय नारियों आज भी विभिन्न पारिवारिक, वैवाहिक, सामाजिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य सम्बन्धी, आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से ग्रसित हैं। वे आज भी पुरुषों पर निर्भर हैं। नारी की समस्याओं के समाधान हेतु दिये जा सकते हैं निम्नलिखित सुझाव
1. वैधानिक सुधार- महिला संगठनों की सहभागिता व सलाह से महिलाओं के सम्बन्ध में एक भारतीय महिला अधिनियम पारित हो जो विवाह, उत्तराधिकार, सम्पत्ति यौन सन्तानोत्पत्ति आदि विषय पर स्पष्ट आदेश प्रदान करे। भारत की प्रत्येक वयरक नारी को यह अधिकार दिया जाये कि वह बिना धर्म, जाति, समुदाय के भेदभाव के अपने लिए इस अधिनियम को ग्रहण कर सकती है और इसका लाभ उठा सकती है।
2. नारी शिक्षा का प्रसार- नारी शिक्षा न केवल अनिवार्य की जाये वरन निर्धन परिवारों की कन्याओं को छात्रवृत्तियाँ भी दी जायें। नारी छात्रावासों की व्यवस्था की जाये। इस शिक्षा का आधुनिक अर्थों में व्यवसायीकरण किया जाना चाहिये।
3. रोजगार एवं स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहन- नारियों में अधिक-से-अधिक रोजगार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। इसके लिए सरकार को आरक्षण व सुरक्षात्मक भेदभाव की नीति अपनानी चाहिये। नारियों को वे सभी सुविधायें मिलनी चाहिये जो पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों व जनजातियों को मिल रही हैं।
4. मातृत्व का मौलिक- अधिकार प्रत्येक नारी को मातृत्व का मौलिक अधिकार मिले, चाहे वह विवाहित दायरे में हो या उससे बाहर। यह उसका नैसर्गिक अधिकार है, इसे संवैधानिक किया जाना चाहिये। इसके साथ ही उसे निरपेक्ष रूप से दैहिक अधिकार भी प्राप्त होना चाहिये। उसकी देह पर उसे ही स्वामित्व मिले। नारी की इच्छा के विरुद्ध किसी को भी उसके दैहिक उपयोग का अधिकार नहीं होना चाहिए।
5. नारी संगठनों को प्रोत्साहन एवं सहायता- महिलाओं को स्थानीय स्तर पर अपने बनाने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उनके संगठन को आर्थिक सहायता दी जानी चाहिये।
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