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परीक्षण मानकीकृत मानक एवं इसके प्रकार | Norms in Hindi

परीक्षण मानकीकृत मानक एवं इसके प्रकार
परीक्षण मानकीकृत मानक एवं इसके प्रकार

परीक्षण मानकीकृत मानक (Norms)

परीक्षण मानकीकरण प्रक्रिया वह है जिसमें उद्देश्यों एवं विषयवस्तु के अनुसार पदों का चयन किया गया हो और जिसकी प्रशासन विधि, निर्देशन, समय-सीमा, फलांकन पद्धति और विवेचन विधि पूर्णतया निर्धारित हो, साथ ही जिसकी वैधता तथा विश्वसनीयता को ज्ञात किया गया हो, जिसके मानक ज्ञात किए गए हों और उनका प्रशासन एक विशाल समूह पर किया गया हो।

मानक को स्पष्ट करते हुए बोरोन और बेरनार्ड ने लिखा है- “मानक वह माप अथवा अंक है जिनकी सहायता से शिक्षक परीक्षण परिणामों की व्याख्या सार्थक सन्दर्भ में कर सकता है।”

वस्तुनिष्ठ परीक्षण को मानकीकृत करने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि उसका मानक निर्धारित किया जावे। मानक कई तरह के होते हैं, यथा

(1) आयु मानक (Age Norm),

(2) श्रेणी मानक (Grade Norm),

(3) शतांशीय मानक (Percentile Rank or Norm),

(4) प्रतिमान प्राप्तांक मानक (Standard Score Norm)।

(1) आयु मानक- आयु मानक से तात्पर्य किसी विशिष्ट आयु समूह के औसत निष्पादन से होता है। यदि हम 11 वर्ष वाली कुछ बालिकाओं को प्रतिनिधित्व न्यादर्श (Sample) लेकर उनकी लम्बाई नापें और इन मापों का औसत निकालें तो वह औसत लम्बाई 11 वर्ष की बालिकाओं हेतु मानक लम्बाई निर्धारित करती है। इसी तरह 6, 7, 8, 9, 10 और 12 वर्ष की आयु की बालिकाओं की औसत लम्बाई ज्ञात की जा सकती है। बालिकाओं की औसत लम्बाई या मानक निर्धारित करने के पश्चात् किसी भी बालिका के विषय में विवेचना की जा सकती है।

इसी भाँति मानसिक योग्यता का मानक ‘मानसिक आयु’ भी ज्ञात की जा सकती है, जहाँ आयु के फलस्वरूप परिवर्तन दिखाई देने की सम्भावना हो, वहाँ आयु मानक निर्धारित किये जाते हैं।

लगभग सभी बुद्धि परीक्षणों में आयु मानकों को ‘मानसिक आयु’ के रूप में और उपलब्धि परीक्षणों में ‘शैक्षणिक आयु के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

(2) श्रेणी मानक- श्रेणी मानक भी अपनी विशेषताओं में आयु मानक की ही भाँति होते हैं, परन्तु अन्तर यह है कि आयु मानक में निष्पत्ति का मापन आयु स्तर को आधार मानकर किया जाता है जबकि श्रेणी मानक में निष्पत्ति का मापन कक्षा-स्तर अथवा श्रेणी समूह के आधार मानकर किया जाता है। श्रेणी मानक में प्रत्येक कक्षा-स्तर के एक प्रतिनिधिकारी समूह पर परीक्षण का प्रशासन किया जाता है तथा इसी आधार पर प्रत्येक कक्षा-स्तर का मध्यमान-फलांक ज्ञात किया जाता है। दो क्रमिक कक्षाओं के मध्य स्तरों के मध्य जो फलांक आता है उसके हेतु स्तर का अंश मूल ज्ञात कर लिया जाता है।

उदाहरण के लिए पाँचवीं कक्षा के प्रारम्भ में विद्यार्थियों का जो मध्यमान फलांक होगा 0.5 स्तर कहा जायेगा और आठवीं कक्षा के मध्य में 8.5 मूल दिया जायेगा। यदि सातवीं श्रेणी का बालक नवीं श्रेणी के अवस्था के अंकों (मानक) को प्राप्त कर लेता है तो उसे श्रेष्ठ माना जायेगा। दूसरी ओर यदि नवीं श्रेणी का बालक सातवीं श्रेणी की अवस्था के अंकों को प्राप्त करता है तो उसे निम्न स्तर का बालक कहा जायेगा। प्रायः श्रेणी मानकों को लब्धि प्राप्तांकों के रूप में जैसे- “बुद्धि-लब्धि” (1.Q.) और “शैक्षिक लब्धि” में जाना जाता है।

(3) शतांशीय मानक- व्यक्ति की स्वयं की आयु और श्रेणी समूह में तुलना करने हेतु हम शतांशीय मानक का प्रयोग करते हैं। विभिन्न वितरणों के प्राप्तांकों के मध्य तुलना करने के लिए भी शतांशीय मानक का प्रयोग किया जाता है। विभिन्न शैक्षिक स्थितियों में यदि कई छात्रों के मध्य तुलना करना होता है, तो इन क्रमों को शततमक क्रम में रूपान्तरित करना उपयोगी सिद्ध होता है। शतांशीय मापनी पर एक ऐसा बिन्दु है जिसके नीचे किसी वितरण का एक निश्चित प्रतिशत रहता है।

शतांशीय मान निकालने के लिए व्यक्ति की तुलना उस समूह से की जाती है जिसका कि वह सदस्य होता है। सबसे आसान तरीका यह है कि सबसे अधिक लेकर सबसे कम तक फलांकों का श्रेणीक्रम कर लिखा जाय और इसके बाद शतांशीय मानक निकाल लिया जाय। यदि किसी व्यक्ति का शतांशीय फलांक 60 है तो इसका तात्पर्य यह हुआ. कि उसके नीचे हैं। समूह के 60 व्यक्ति शतांशीय मान निकालने की विधि अत्यन्त सरल है और सांख्यिकी के प्रारम्भिक ज्ञान से ही इसे समझा जा सकता है। इसकी सहायता से ऐसे फलांक भी अर्थपूर्ण ढंग से व्यक्त किये जा सकते हैं जिनकी इकाइयाँ और संख्यात्मक प्रतिमान समान नहीं होते।

शतांशीय मानक निकालने के हेतु यह आवश्यक नहीं है कि पहले एक प्रतिनिधिकारी न्यादर्श लिया जाय।

(4) प्रतिमान प्राप्तांक मानक- शतांशीय मानक की सर्वप्रमुख समस्या यह है कि इसमें प्राप्तांकों की इकाई रूप स्पष्ट से समान नहीं होती। इस कठिनाई को दूर करने के लिए प्रतिमान प्राप्तांक मानकों का प्रयोग हुआ है। इसे Z प्राप्तांक मानक से भी सम्बोधित किया जाता है। मानक विचलन की सहायता से भी इस प्रकार के मानकों को ज्ञात किया जा सकता है। यह मानक विचलन किसी समूह के प्राप्तांकों के प्रसार का मापन है। प्रतिमान प्राप्तांक मानक सामान्यीकृत समूह (Normative group) पर आधारित होते हैं। इस प्रकार के मानकों को सिगमा प्राप्तांक मानक अथवा Z प्राप्तांक मानक के रूप में जाना जाता है।

शतांशीय मानकों की तरह प्रतिमान मानक भी किसी विशिष्ट समूह के सन्दर्भ में व्यक्ति के प्राप्तांकों के आधार पर उसके निष्पादन की विवेचना करते हैं। चूँकि यह नितान्त समान इकाइयों को व्यक्त करते हैं इसलिए यह शतांशीय प्राप्तांक से भिन्न है। इनका मूल इकाई, सन्दर्भ समूह का मानक विचलन है और व्यक्ति का प्राप्तांक समूह के मध्यमान से नीचे एवं ऊपर, मानक विचलन इकाइयों की संख्या में व्यक्त होती है।

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shubham yadav

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