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पर्यावरण क्या है ?
पर्यावरण’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-परि+आवरण। परि का अर्थ है चारों ओर से और आवरण’ का अर्थ है, ‘ढका’ या ‘घेरे रहना। इस अर्थ में पर्यावरण के शाब्दिक अर्थ से उन समस्त चीजों का बोध होता है जो किसी वस्तु या व्यक्ति को चारों ओर से घेरे हुए है। इसे निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है
बुडवर्थ के अनुसार, “वे समस्त तत्व जो व्यक्ति के जीवन की शुरूआत को प्रभावित करते हैं, पर्यावरण का भाग हैं। जीन्स के अतिरिक्त मनुष्य को प्रभावित करने वाले सभी तत्व पर्यावरण कहलाते हैं। डगलस के अनुसार, “वे सभी बाह्य तत्व जो व्यक्ति के विकास, वृद्धि, परिपक्वता, व्यवहार, स्वभाव एवं जीवन को प्रभावित करते हैं, पर्यावरण हैं।’
ई. जे. रॉस की मान्यता है कि, “पर्यावरण एक बाह्य शक्ति है जो हमें प्रभावित करती है।” हर्षकोविट्स के अनुसार, पर्यावरण उन सब बाहरी दशाओं और प्रभावों का योग है जो प्राणी या अवयवी के जीवन और विकास पर प्रभाव डालते हैं।”
फिटिंग का कहना है, “जीवों के पारिस्थितिकी कारकों का योग पर्यावरण है।”
प्रदूषण का मानव जीवन पर प्रभाव
विभिन्न देशों के जल स्रोतों के जल परीक्षणों से यह ज्ञात होता है कि संसार की 10% नदियाँ बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि इन नदियों के किनारे घनी आबादी वाले शहर बसे हुए हैं। बढ़ते हुए औद्योगीकरण के कारणों से नदियों प्रदूषित हो रही हैं। विश्व के देशों के पेयजल में बैक्टीरिया की मात्रा बहुत अधिक होती है, जोकि हानिकारक है। अतः सुरक्षा की दृष्टि से चालीस देशों में 340 स्थानों पर परीक्षण किए गए। इनमें से 240 नदियाँ, 40 झीले और जलाशय तथा 60 भूमिगत जल स्रोतों में अनेक बैक्टीरिया नाइट्रेट मल में पाए जाने वाले कोलीफार्मा और भारी धातुएँ पायी गयी हैं।
विश्व में प्रत्येक वर्ष दो हजार करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होता है, जिसमें अमेरिका अकेला इस गैस की 25% मात्रा उत्पन्न करता है, दूसरा नम्बर रूस का है, जो इस गैस की 22% मात्रा उत्पन्न करता है। यूरोप के कुल देश मिलकर 45% और अकेला पश्चिम जर्मनी 4% इस गैस की मात्रा उत्पन्न करता है। इन देशों की तुलना में हमारे देश में इस गैस की उत्पन्न मात्रा काफी कम है।
सर्वेक्षणों के आधार पर यह पता चलता है कि यदि इस गैस पर रोक न लगायी गयी तो आगामी 100 वर्षों में पृथ्वी की सतह का तापमान तीन से नौ डिग्री बढ़ जाएगा। इस प्रकार इस प्रदूषण से हमारे पर्यावरण को बहुत खतरा है। कुछ लोगों का मानना यह है कि इन प्रदूषणों से केवल मानव जीवन ही प्रभावित होता है, जबकि इसका प्रभाव सम्पूर्ण पारिस्थितिक तन्त्र पर भी पड़ता है। प्रदूषण के कारण प्रकृति का भी नाश होता है। इस प्रकार यह देखने को मिलता है कि यदि कोई प्रदूषक वातावरण के एक भाग को प्रभावित करता है तो दूसरे भागों पर भी उसके हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व मनुष्य का औसतन जीवन 80 वर्ष हुआ करता था, जबकि आज के मनुष्य का औसतन जीवन 60 वर्ष रह गया है, यह प्रदूषण का ही प्रभाव है। आज की बढ़ती हुई आबादी के कारण लोगों को न तो रहने के लिए स्वच्छ स्थान मिल पाता है और न ही खाने के लिए स्वच्छ भोजन मिल पाता है और न ही पीने के लिए स्वच्छ जल मिल पाता है। यही कारण है कि आज का कोई भी मानव पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं है।
देश के बढ़ते हुए उद्योगों ने भी प्रदूषण फैलने में कोई कमी नहीं छोड़ी। इनकी चिमनियों से निकलने वाला धुआं वायु को प्रदूषित करता है और इनसे निकलने वाला अवशिष्ट पदार्थ जल को प्रदूषित करता है और ये दोनों ही मानव जीवन के लिए आवश्यक हैं, जोकि मानव जीवन को सीधे प्रभावित करते हैं।
आज के बढ़ते हुए यातायात ने भी प्रदूषण फैलाने में कोई कमी नहीं की है। इसने भी मानव जीवन को काफी हद तक प्रभावित किया है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहाँ मानव अपने आप को सुरक्षित रख सके। यद्यपि सरकार द्वारा प्रदूषण नियन्त्रण के अनेकों प्रयास किए जा रहे हैं,
किन्तु कोई भी प्रयास पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पा रहा है। आज की स्थितियों के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि यदि प्रदूषण पर नियन्त्रण की कोई नयी नीति न अपनायी गयी तो कुछ समय के पश्चात् यहाँ के मानव का औसत जीवन 50 वर्ष ही रह जाएगा।
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