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पर्यावरण प्रदूषण की समस्या एवं समाधान
पर्यावरण प्रदूषण : समस्या और समाधान,प्रदूषण की समस्या : कारण और निवारण
अन्य शीर्षक पर्यावरण प्रदूषण और निराकरण के उपाय, सामाजिक वानिकी और पर्यावरण, पर्यावरण प्रदूषण, धरती की रक्षा : पर्यावरण सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण का महत्त्व, पर्यावरण प्रदूषण: कारण और निवारण,पर्यावरण शुद्ध करने में विज्ञान की उपयोगिता, असन्तुलित पर्यावरणः प्राकृतिक आपदाओं का कारण, पर्यावरण सुरक्षा की महत्ता, पर्यावरण की समस्या एवं समाधान,पर्यावरण प्रदूषण रोकने के उपाय, वृक्षारोपण की उपयोगिता,
संकेत बिन्दु भूमिका, प्रदूषण का तात्पर्य, प्रदूषण के कारण, प्रदूषण के दुष्परिणाम, प्रदूषण निवारण के उपाय, उपसंहार।
भूमिका
प्रदूषण के विभिन्न प्रकारों में पर्यावरणीय प्रदूषण एक गम्भीर समस्या है। यह भारत की ही नहीं पूरे विश्व की समस्या है। इस समस्या से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। सम्पूर्ण मानव जाति के अस्तित्व को समाप्त कर सकने में सक्षम इस वैश्विक समस्या पर अब समस्त विश्व समुदाय एकजुट है और इसके निवारण के उपायों की खोज में जुटा है। उल्लेखनीय है कि पर्यावरण प्रदूषण से विश्व का पर्यावरण तो प्रदूषित हो ही रहा है, साथ ही इसके दुष्परिणामस्वरूप कई अनेक जटिल समस्याएँ भी उत्पन्न हो रही हैं।
प्रदूषण का तात्पर्य
निःसन्देह सौरमण्डल में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहाँ जीवन के होने के पूर्ण प्रमाण विद्यमान हैं। पृथ्वी के वातावरण में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन तथा 1% अन्य गैसें शामिल हैं। इन गैसों का पृथ्वी पर समुचित मात्रा में होना जीवन के लिए अनिवार्य है, किन्तु जब इन गैसों का आनुपातिक सन्तुलन बिगड़ जाता है, तो जीवन के लिए प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
विश्व में आई औद्योगिक क्रान्ति के बाद से ही प्राकृतिक संसाधनों का दोहन शुरू हो गया था, जो उन्नीसवीं एवं बीसवीं शताब्दी में अपने चरम पर था, कुपरिणामस्वरूप पृथ्वी पर गैसों का आनुपातिक सन्तुलन बिगड़ गया, जिससे विश्व की जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा एवं प्रदूषण का स्तर इतना अधिक बढ़ गया कि यह अनेक जानलेवा बीमारियों का कारक बन गया। इस तरह पर्यावरण में प्रदूषकों (अपशिष्ट पदार्थों) का इस अनुपात में मिलना, जिससे पर्यावरण का सन्तुलन बिगड़ता है, प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषण के कई रूप हैं-जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण इत्यादि।
प्रदूषण के कारण
उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक अपशिष्ट पदार्थ जल एवं मृदा प्रदूषण का तो कारण बनते ही हैं, साथ ही इनके कारण वातावरण में विषैली गैसों के फैलने से वायु भी प्रदूषित होती है। मनुष्य ने अपने लाभ के लिए जंगलों की तेजी से कटाई की है। जंगल के पेड़ प्राकृतिक प्रदूषण नियन्त्रक का काम करते हैं। पेड़ों के पर्याप्त संख्या में न होने के कारण भी वातावरण में विषैली गैसें जमा होती रहती हैं और उसका शोधन नहीं हो पाता।
मनुष्य सामान ढोने के लिए पॉलिथीन का प्रयोग करता है। प्रयोग के बाद इन पॉलिथीन को यूँ ही फेंक दिया जाता है। ये पॉलिथीनें नालियों को अवरुद्ध कर देती हैं, जिसके फलस्वरूप पानी एक जगह जमा होकर प्रदूषित होता रहता है। इसके अतिरिक्त, ये पॉलिथीन भूमि में मिलकर उसकी उर्वरा शक्ति को कम कर देती हैं। प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ ही मनुष्य की मशीनों पर निर्भरता बढ़ी है। मोटर, रेल, घरेलू मशीनें इसके उदाहरण हैं। इन मशीनों से निकलने वाला धुआँ भी पर्यावरण के प्रदूषण के प्रमुख कारकों में से एक है। बढ़ती जनसंख्या को भोजन उपलब्ध करवाने के लिए खेतों में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में वृद्धि हुई है। इसके कारण भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास हुआ है। रासायनिक एवं चमड़े के उद्योगों के अपशिष्टों को नदियों में बहा दिया जाता है। इस कारण जल प्रदूषित हो जाता है एवं नदियों में रहने वाले जन्तुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
प्रदूषण के दुष्परिणाम
पर्यावरण प्रदूषण के कई दुष्परिणाम सामने आए हैं। इसका सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ा है। प्रदूषण के कारण आज मनुष्य का शरीर अनेक बीमारियों का घर बनता जा रहा है।
खेतों में रासायनिक उर्वरकों के माध्यम से उत्पादित खाद्य-पदार्थ स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से सही नहीं हैं। वातावरण में घुली विषैली गैसों एवं धुएँ के कारण शहरों में मनुष्य का साँस लेना भी दूभर होता जा रहा है। विश्व की जलवायु तेजी से हो रहे परिवर्तन का कारण भी पर्यावरणीय असन्तुलन एवं प्रदूषण ही है। ओज़ोन परत में छिद्र की समस्या भी प्रदूषण की ही उपज है। वर्ष 2014 के अन्त में यू. एन. ई. पी. द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष वायु प्रदूषण से जुड़ी लगभग एक लाख मौतें भारत सहित अमेरिका, ब्राजील, चीन, यूरोपीय संघ व मैक्सिको में होती हैं। यह रिपोर्ट पर्यावरण प्रदूषण से होने वाली हानियों का जीता-जागता प्रमाण है।
प्रदूषण निवारण के उपाय
पर्यावरण प्रदूषण को दूर करने के लिए हमें कुछ आवश्यक उपाय करने होंगे। मनुष्य स्वाभाविक रूप से प्रकृति पर निर्भर है। प्रकृति पर उसकी निर्भरता तो समाप्त नहीं की जा सकती, किन्तु प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि इसका प्रतिकूल प्रभाव पर्यावरण पर न पड़ने पाए। इसके लिए हमें उद्योगों की संख्या के अनुपात में बड़ी संख्या में पेड़ों को लगाने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए हमें जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने की भी आवश्यकता है, क्योंकि जनसंख्या में वृद्धि होने से स्वाभाविक रूप से जीवन के लिए अधिक प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है और इन आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रयास में उद्योगों की स्थापना होती है और उद्योग कहीं-न-कहीं प्रदूषण का कारक भी बनते हैं।
यदि हम चाहते हैं कि प्रदूषण कम हो एवं पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ सन्तुलित विकास भी हो, तो इसके लिए हमें नवीन प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना होगा। प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा तभी सम्भव है, जब हम इसका उपयुक्त प्रयोग करें। हमें अपने पूर्व राष्ट्रपति श्री एपीजे अब्दुल कलाम के इस कथन से सीख लेने की आवश्यकता है “हम सबको विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के माध्यम से पानी, ऊर्जा, निवास स्थान, कचरा प्रबन्धन तथा पर्यावरण के क्षेत्रों में पृथ्वी द्वारा झेली जाने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए कार्य करने चाहिए।”
उपसंहार
वस्तुत: पर्यावरण प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है, जिससे निपटना वैश्विक स्तर पर ही सम्भव है, किन्तु इसके लिए स्थानीय स्तर पर भी प्रयास किए जाने चाहिए। विकास एवं पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, अपितु एक-दूसरे के पूरक हैं।
सन्तुलित एवं शुद्ध पर्यावरण के बिना मानव का जीवन कष्टमय हो जाएगा। हमारा अस्तित्व एवं जीवन की गुणवत्ता एक स्वस्थ प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर है। पृथ्वी के बढ़ते तापक्रम को नियन्त्रित एवं जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए देशी तकनीकों से बने उत्पादों का उत्पादन तथा उपभोग जरूरी है। इसके साथ ही प्रदूषण को कम करने के लिए सामाजिक तथा कृषि वानिकी के माध्यम से अधिक-से-अधिक पेड़ लगाए जाने की भी आवश्यकता है। यदि हम इन बातों पर ध्यान दें, तो पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से काफी हद तक निपटा जा
सकता है।
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