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प्रसार शिक्षण के माध्यम में प्रदर्शनी एवं मेला | प्रदर्शनी तथा मेला के लाभ | प्रदर्शनी तथा मेला की सीमाएँ

प्रसार शिक्षण के माध्यम में प्रदर्शनी एवं मेला
प्रसार शिक्षण के माध्यम में प्रदर्शनी एवं मेला

प्रसार शिक्षण के माध्यम में प्रदर्शनी एवं मेला का विस्तृत वर्णन कीजिए।

प्रदर्शनी तथा मेला (Exhibition and Mela)- प्रदर्शनी तथा मेला अत्यन्त सशक्त प्रसार माध्यम है। इनका आयोजन एक निश्चित स्थान पर व्यवस्थित ढंग से किया जाता है। यह एक वृहत प्रयास होता है जिसे प्रसारकर्ता अनेक सहयोगियों की सहायता से करता है। प्रदर्शनी या मेला के माध्यम से अनेक प्रकार की सूचनाएँ तथा जानकारियाँ लोगों तक पहुँचायी जाती हैं। उपकरणों, यंत्रों, प्रणालियों, चित्रों, पोस्टरों, चार्टों आदि को प्रदर्शनी में महत्व दिया जाता है। उपकरणों, यंत्रों, पद्धतियों आदि के विषय में जानकारी देने के लिए गाइड होते हैं। ये देखने वालों को यंत्रों की कार्य-प्रणाली तथा उससे लाभ के विषय में बताते हैं। लोगों में जिज्ञासा जगाने, उनका ध्यान आकर्षित करने, उनमें अभिरुचि पैदा करने का प्रदर्शनी एक अत्यन्त सफल आयोजन है। परिवार नियोजन, टीकाकरण पोषाहार सप्ताह जैसे राजकीय कार्यक्रमों के निमित्त जन-समुदाय को प्रेरित करने में प्रदर्शनी या मेला की उल्लेखनीय भूमिकाएँ रही हैं।

प्रदर्शनी तथा मेला आयोजन स्थानीय संस्थाओं या राजकीय संस्थाओं अथवा दोनों के संयुक्त प्रयासों के फलस्वरूप होता है। प्रदर्शनी या मेला स्थल तथा समय का चयन करते समय अनेक बातों का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इनके सम्बन्ध में सही निर्णय नहीं होने पर प्रदर्शनी या मेला की सफलता का प्रभाव पड़ता है। जैसे वर्षा या शीतकाल में आयोजन होने पर दर्शक वर्ग को अनेक असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। कुछ लोग तो असुविधाओं के विषय में सोचकर प्रदर्शनी देखने जाते ही नहीं हैं। प्रदर्शनी तथा मेला स्थल सुगम तथा यातायात सुविधाओं से परिपूर्ण होना चाहिए। इससे दूरस्थ लोगों को भी आने और जाने में कठिनाई नहीं होती । प्रदर्शनी या मेला का आयोजन ऐसे महीनों में करना अच्छा होता है, जब खेतों पर काम कम रहता है, जैसे फरवरी का महीना। प्रदर्शनी या मेले का मुख्य विषय सर्वसाधारण व्यक्तियों से सम्बद्ध होना चाहिए, इससे एक बड़ा दर्शक वर्ग आकर्षित होता है। साथ ही, अन्य लाभदायक जानकारियाँ देने वाले स्टॉल भी होने चाहिए। किन्तु नाना प्रकारेण विषयों को एक साथ, एक ही समय, एक ही प्रदर्शनी या मेले में समाहित किया जाना उचित नहीं होता।

प्रदर्शनी या मेले का आयोजन एक वृहत व्यवस्था होती है। इसके निमित्त काफी सोच- विचार की आवश्यकता होती है, जिसकी परिकल्पना काफी पहले से की जानी चाहिए। आयोजन- स्थल को अच्छी तरह साफ-सुथरा करके ही घेरा आदि बनाने का काम प्रारम्भ करना चाहिए। प्रदर्शनी में लोगों के बैठने तथा पेयजल का प्रबन्ध होना आवश्यक है। प्रदर्शनी के स्टॉल पर जिन लोगों को गाइड या निदेशक का कार्यभार दिया जाता है, जिनमें विशेष चुस्ती-फुर्ती, उत्साह, लोगों को समझाने की क्षमता, स्थानीय भाषा का ज्ञान जैसे गुणों का होना भी प्रदर्शनी की सफलता को प्रभावित करता है। स्टॉलों की परस्पर दूरी न तो बहुत अधिक, न बहुत कम होनी चाहिए। इनकी सजावट आकर्षक होनी चाहिए तथा इनमें प्रकाश का अच्छा प्रबन्ध होना चाहिए जिससे दर्शक प्रदर्शित वस्तुओं का अच्छी तरह अवलोकन कर सकें। प्रदर्शनी या मेले में अल्पाहार के भी स्टॉल होने चाहिए, किन्तु इनकी सफाई का पूरा प्रबन्ध आवश्यक है। संगीत, नृत्य, नाट्य कार्यक्रम आदि प्रदर्शनी के आकर्षण को बढ़ावा देते हैं। प्रदर्शनी का प्रचार करते समय ऐसे कार्यक्रमों की घोषणा अवश्य करनी चाहिए। ग्रामीणों को निम्नलिखित लाभ या जानकारियाँ प्रदर्शनी के माध्यम से पहुँचायी जा सकती है-

कृषि क्षेत्र में- नए यंत्र-मशीनें उपकरण, कीटनाशक दवाइयाँ- उर्वरक खाद, गोबर गैस संयंत्र, पशुओं का रख-रखाव, बैंकों द्वारा ऋण व्यवस्था, उन्नत बीज की पहचान आदि।

उद्योग धन्धों के क्षेत्र में- लकड़ी काटने की मशीन, सूत कातने, कपड़ा बुनने के साधन, छपाई के साधन, पॉपकार्न, बुढ़िया के बाल जैसे खाद्य पदार्थ बनाने की मशीन, सिलाई के उपकरण, लाख-लकड़ी, पत्थर बेंत आदि की घरेलू उपयोग की वस्तुएँ बनाना इत्यादि।

गृहोपयोगी – सौर ऊर्जा, धुआँ रहित चूल्हे, उन्नत चूल्हे, बायोगैस, प्रेशरकुकर, मसाला- अनाज पीसने की घरेलू मशीन, घरेलू उपकरण, श्रम बचत के साधन, सिलाई-कशीदाकारी के सामान, संतुलित आहार, पोषाहार, पूरक आहार, बाल आहार सम्बन्धी सूचनाएँ, गृह सज्जा की ‘वस्तुएँ, पौष्टिक रोटी या खिचड़ी बनाना इत्यादि।

प्रदर्शनी का आयोजन करते समय इस बात पर ध्यान अवश्य देना चाहिए कि प्रदर्शित वस्तुएँ या उपकरण अधिक महँगे न हों। प्रदर्शनी समाप्त होने के बाद ये वस्तुएँ कहाँ उपलब्ध होंगी, इसकी सूचना भी दर्शक को मिल जानी चाहिए। स्थानीय साधनों द्वारा निर्मित चीजों का प्रदर्शन अधिक प्रभावकारी होता है तथा लोगों को इनका निर्माण करने की प्रेरणा देता प्रदर्शन के अवसर पर प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जानी चाहिए। इससे लोगों का उत्साह बढ़ता है। दर्शक को लिखित या छपित सामग्री, पोस्टर, फोल्डर, आदि बँटवाने का प्रबन्ध भी किया जाना चाहिए। दर्शक वर्ग पर प्रदर्शनी या मेले का क्या प्रभाव पड़ा, इसे जानना महत्वपूर्ण है। साथ ही, यह भी जानने की चेष्टा करनी चाहिए कि जिस जिज्ञासा के साथ दर्शक प्रदर्शनी देखने आए थे, उसकी पूर्ति हुई अथवा नहीं, वे प्रदर्शनी में और क्या देखना चाहते हैं प्रदर्शनी द्वारा वे कहाँ तक संतुष्ट हैं, इत्यादि।

प्रदर्शनी के अवसर पर प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जाती है। सब्जी-फल आदि की प्रदर्शनी तो प्रतियोगिता के साथ होनी ही चाहिए तथा प्रतियोगिता के विषय में लोगों को पूर्व जानकारी रहनी चाहिए जिससे वे अपना सबसे अच्छा उत्पादन प्रदर्शनी के निमित्त बचा सके। इसी प्रकार उद्योग-धन्धों से सम्बन्धित प्रदर्शनी द्वारा लोगों के कलात्मक ढंग से काम करने को बढ़ावा मिलता है। स्वास्थ्य रक्षा या टीकाकरण अभियान के अवसर पर शिशु प्रदर्शनी, पोषाहार सप्ताह के साथ पाक प्रतियोगिता आदि भी आयोजित किए जा सकते हैं।

प्रदर्शनी तथा मेला के लाभ (Advantages)

विराट जन समूह से सम्पर्क स्थापित करने के लिए प्रदर्शनी तथा मेला अत्यन्त सफल एवं सशक्त माध्यम है। इन्हें देखने के लिए अन्य क्षेत्रों तथा गाँवों के लोग भी आते हैं। सभी आयु वर्ग के लोगों का ध्यान प्रदर्शनी की ओर आकर्षित होता है। प्रदर्शनी या मेले के माध्यम से एक से अधिक विषयों के सम्बन्ध में जानकारियाँ लोगों तक पहुँचायी जा सकती हैं। ऐसे क्षेत्रों में जहाँ साक्षरता दर कम हो, वहाँ प्रदर्शनी आयोजित करना प्रसार शिक्षण की उत्कृष्ट पद्धतियों में से एक है। इससे प्रसार कार्य को आशातीत सफलता एवं बढ़ावा प्राप्त होता है। मनोरंजन, घूमने-फिरने, घर से बाहर निकलने का एक अच्छा साधन होने के कारण प्रदर्शनी वृहत आकर्षण का केन्द्र होती है। लोग पूरे उत्साह के साथ इसमें भाग लेते हैं। प्रदर्शनी द्वारा आयोजित प्रतियोगिताएँ लोगों में प्रतिस्पर्धा की भावना को पुष्ट करती है जिसके फलस्वरूप लोग अपने उत्पादनों में अधिक दिलचस्पी लेते हैं। नए उत्पादनों, यंत्रों तथा साधनों के विषय में जानकारी देने का प्रदर्शनी एक अच्छा माध्यम है। लोग स्वयं तो देखते ही हैं अन्य लोगों को भी इसके सम्बन्ध में सूचना देते हैं, आपस में सलाह करके खरीदते हैं।

प्रदर्शनी तथा मेला की सीमाएँ (Limitations)

साधारणतः प्रदर्शनी या मेले तभी सफल हो पाते हैं जब इनका आयोजन वृहत स्तर पर किया गया हो। इनकी तैयारी महीनों पूर्व आरम्भ की जाती है तथा अनेक लोगों एवं संस्थाओं का सहयोग प्राप्त करना होता है। इन्हें आयोजित करने में काफी पैसों का इन्तजाम भी करना पड़ता है। इनके आयोजन में स्थानीय प्रशासन पर काफी निर्भर करना पड़ता है। एक ही क्षेत्र में दुबारा प्रदर्शनी लगाने पर विषय परिवर्तन करना, नए आकर्षण प्रस्तुत करना, प्रदर्शनी की सफलता की कुछ आवश्यक शर्तें हैं।

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shubham yadav

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