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प्रसार शिक्षण में समाचार पत्र की भूमिका
समाचार पत्र- प्रसार शिक्षण के अन्तर्गत समाचार-पत्र का तात्पर्य सामान्य दैनिक समाचार-पत्र से नहीं होता। प्रसार मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, परिवार कल्याण मंत्रालय, जनसम्पर्क विभाग या प्रसार कार्यालय के माध्यम से ऐसे समाचार पत्र साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक या वार्षिक रूप से प्रकाशित होते हैं जो कृषि, लघु उद्योग, कुटीर उद्योग, पशु-पालन, गृह-प्रबन्ध, मातृ एवं शिशु कल्याण, स्वास्थ्य सुरक्षा आदि से सम्बन्धित जानकारियाँ लोगों को देते हैं। इनके माध्यम से सम्बन्धित क्षेत्रों में होने वाली घटनाओं एवं उपलब्धियों की जानकारी भी दी जाती है। साथ ही भविष्य की विकट स्थितियों, जैसे- फसल सुरक्षा, हानिकारक कीटों का नाश, मारक रोगों से बचाव, आहार संरक्षण इत्यादि से कैसे निपटा जाए, इसकी जानकारी भी दी जाती है। उपलब्धता सम्बन्धी समाचार सचित्र छापने से उनकी विश्वसनीयता बढ़ती है तथा लोगों की प्रेरणा का स्रोत बनते हैं।
प्रसारकर्ता का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने क्षेत्र के लोगों को समाचार पत्र उपलब्ध कराने की व्यवस्था करे, जिससे लोग नई सूचनाओं, जानकारियों के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में हो रही प्रगति से भी अवगत हो सकें। इनके माध्यम से सामयिक जानकारी विस्तृत रूप से प्रचारित की जाती है तथा जनता को अपने कार्यक्रम के संचालन, नई पद्धतियों की कार्य-प्रणाली तथा उन्नति के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। समाचार-पत्र का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत होता है। इनके द्वारा हर विषय की चर्चा एक विराट समूह को उपलब्ध करायी जा सकती है। प्रसारकर्ता को अपने क्षेत्र में हो रहे कार्यों तथा उपलब्धियों का सचित्र विवरण, इन समाचार-पत्रों में छपने हेतु भेजना चाहिए, जिससे स्थानीय लोगों का इन पत्रों से अधिक जुड़ाव हो सके। स्थानीय कृषकों, उद्यमियों तथा गृहणियों को भी अपने अनुभव तथा विचार लिखने को उत्साहित करना चाहिए।
समाचार पत्र के लिए लिखना- प्रसार कार्य में समाचार पत्र शिक्षण पद्धति का एक अंग है। इनमें प्रकाशित सामग्री शिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से तैयार की जाती है। अतः इन्हें लिखते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। समाचार पत्र की छपाई आकर्षक, स्पष्ट और सुन्दर होनी चाहिए। हल्के, सरल तथा सभी के समझने योग्य शब्दों एवं भाषा का प्रयोग किया जाना भी आवश्यक है। विवरण सटीक और उदाहरण एवं चित्रों से परिपूर्ण हों तो लोगों को पढ़ने में अच्छा लगता है। वाक्य तथा पैराग्राफ छोटे होने चाहिए। समाचारों तथा संदेशों को समाचार-कथा के रूप में प्रस्तुत करके अधिक रोचक बनाया जा सकता है। समाचार-पत्र के प्रति सभी वर्ग के लोग जिज्ञासु हों, इसके लिए आवश्यक है कि सभी वर्ग की रुचि की सामग्री इसमें प्रकाशित हो, जैसे-
कृषि सम्बन्धी – नर्सरी तैयार करना, उर्वरक का प्रयोग, वार्षिक या मासिक- कार्य- सूची, गन्ना की उत्तम खेती, अच्छे बीज की पहचान, चूहा नियन्त्रण, ट्रैक्टर का रख-रखाव आदि।
उद्योग धंधे सम्बन्धी- नई मशीनों का आविष्कार, पॉलिश बनाने की विधि, मुर्गी- पालन के लिए कोठरी की व्यवस्था, पशुओं को मारक रोगों से कैसे बचाएँ आदि।
गृह एवं परिवारोपयोगी- बच्चों के लिए पूरक आहार, बाल-आहार कैसे तैयार करें, आँगन में सब्जियाँ उगाना, भोजन पकाते समय पोषक तत्वों की रक्षा, गर्भवती तथा नवजात शिशु की देखरेख, रोग निरोधक टीके लगवाना, मच्छर-मक्खियों का नाश करना, बच्चों में अच्छी आदतों का विकास आदि। समाचारर-पत्रों में विशेषज्ञों द्वारा लिखे लेख, संस्मरण, प्रगतिशील किसान, उद्यमी गृहणी से साक्षात्कार, चित्रमय समाचार, घर की बातें आदि के साथ-साथ पाठकों के पत्र – सुझाव, प्रश्नोत्तर आदि को भी समुचित स्थान प्राप्त होना चाहिए। लेख तथा उपयोगी सुझाव समय तथा मौसम के अनुरूप होने चाहिए। पत्र के अंक पाठकों का समय पर प्राप्त होने चाहिए। विलम्ब से प्रकाशित समाचार-पत्र की उपयोगिता कम हो जाती है।
प्रसारकर्ता को, उपयोगी समाचार-पत्रों की पर्याप्त प्रतियाँ मँगवाकर अपने क्षेत्र में वितरित करनी चाहिए। जो लोग साक्षर नहीं हैं उन्हें उपयोगी लेख- समाचार सुझाव आदि पढ़कर सुनाने चाहिए, जिससे वे भी लाभान्वित एवं जिज्ञासु हो सकें। अपने क्षेत्र के लोगों को लेख संस्मरण सुझाव आदि लिखने को प्रेरित करना चाहिए। अपने क्षेत्र में हुए प्रगतिशील कार्यों से सम्बन्धित समाचार सचित्र विवरण के साथ प्रकाशनार्थ भेजने चाहिए। अभियान, शिविर, प्रशिक्षण कार्यक्रम, परिणाम प्रदर्शन सम्बन्धी समाचार निश्चित रूप से प्रकाशनार्थ भेजे जाने चाहिए।
साक्षरता दर अच्छी होने पर प्रसारकर्त्ता स्वयं भी स्थानीय लोगों की सहायता से समाचार- पत्र प्रकाशित कर सकता है। इसमें भी सार्वजनिक रूप से उपयोगी विषयों से परिपूर्ण सामग्री रहनी चाहिए। स्थानीय भाषा तथा प्रचलित शब्दों का उपयोग करके, ऐसे समाचार पत्र को अधिक रोचक बनाया जा सकता है। अन्य समाचार-पत्रों से उपयोगी लेखों को ‘साभार’ प्रकाशित कर समाचार-पत्र की पठनीयता विकसित की जा सकती है। स्थानीय समाचारर-पत्र में स्थानीय समस्याओं को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। यदि प्रसारकर्त्ता को ऐसा अनुभव हो कि निकट भविष्य में कोई समस्या उठने वाली है तो लोगों को सावधान करने के लिए लेख एवं सुझाव छपने चाहिए, जैसे- बाढ़ से सुरक्षा, फसलों की कीड़ों की रक्षा, वर्षाकाल में भोजन संदूषण से बचाव, भंडारण, खाद्य संरक्षण, संक्रामक रोगों से प्रतिरक्षा आदि । अनाज-
प्रसार शिक्षण में श्यामपट की भूमिका
श्यामपट अथवा ब्लैक बोर्ड द्वारा शिक्षण आजकल अत्यन्त लोकप्रिय है। सामान्य शिक्षण कक्षा के अतिरिक्त इसका प्रयोग सभा, समूह चर्चा, प्रदर्शन आदि में भी किया जाता है। श्यामपट का प्रयोग करने के लिए कुछ सहायक सामग्री जैसे-चॉक, डस्टर या पट पोंछने के लिए कपड़े की आवश्यकता पड़ती है। पोंछने के लिए साफ डस्टर या कपड़े का प्रयोग करना चाहिए। श्यामपट साफ रहना चाहिए। बोर्ड पर स्पष्ट बड़े अक्षरों में लिखा जाना चाहिए। श्यामपट पर लिखते समय प्रसारकर्ता को वार्तालाप नहीं करना चाहिए। लिखने के पश्चात् ही कुछ बोलना या समझाना चाहिए। बोर्ड पर चित्र, आकृति, आदि बनाते समय रंगीन चॉक का प्रयोग करना चाहिए। रात्रि के समय पीले चॉक का प्रयोग किया जाता है। भाषण, वार्तालाप, समूह चर्चा या प्रदर्शन के विषय को ब्लैक बोर्ड पर सबसे ऊपर लिखना चाहिए तथा इसे सभा की समाप्ति पर ही मिटाना चाहिए।
श्यामपट द्वारा शिक्षण एक अत्यन्त सफल पद्धति है। इसके माध्यम से लोगों को विषय या सभा के साथ गठबंधित करके रखा जा सकता है, क्योंकि बार-बार जब श्यामपट पर कुछ लिखा जाता है तो लोगों की उत्सुकता जाग्रत होती रहती है। बोर्ड पर आकृति बनाकर सभा या प्रदर्शन को अधिक रोचक बनाया जा सकता है।
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