गृहविज्ञान

प्रसार शिक्षण में सहायक सामग्री के रूप में परिपत्र, पर्चा, लघु पुस्तिका एवं विज्ञप्ति पत्र

प्रसार शिक्षण में सहायक सामग्री के रूप में परिपत्र
प्रसार शिक्षण में सहायक सामग्री के रूप में परिपत्र

प्रसार शिक्षण में सहायक सामग्री के रूप में परिपत्र (Circularletters)

परिपत्र को सामान्य भाषा में गश्ती चिट्ठी के नाम से जाना जाता है। इसके माध्यम से सूचनाओं तथा संदेशों को अनेक व्यक्तियों तक एक साथ पहुँचाया जा सकता है। किसी आयोजन से सम्बन्धित सूचनाएँ तथा निमंत्रण भी इसी माध्यम द्वारा ग्रामीणों तक पहुँचाए जाते हैं। कार्यकर्त्ता द्वारा भेजे गए परिपत्रों का गहरा प्रभाव लोगों पर पड़ता है तथा वे कार्यक्रम अथवा आयोजन में अपनी भूमिका के प्रति सुनिश्चित होकर अपने कर्त्तव्य पालन के निमित्त सचेष्ट हो जाते हैं। लिखित सूचनाओं का अपना अलग महत्व होता है। सुनी हुई बातें प्रायः लोग भूल जाते हैं, किन्तु लिखित सूचनाओं को बार-बार पढ़ एवं सुना सकते हैं लिखित सूचनाओं को अधिक विश्वसनीयता के साथ ग्रहण भी किया जाता है। जो लोग साक्षर नहीं भी होते हैं, उनके लिए भी परिपत्र का महत्व होता है। पत्र पाकर वे स्वयं को महत्वपूर्ण समझते हैं तथा अपने अस्तित्व के प्रति आस्थावान हो जाते हैं।

परिपत्र प्रसारित करते समय प्रसारकर्ता या प्रसार अधिकारी को कुछ मूलभूत बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए-

(क) परिपत्र यथासम्भव छोटा तथा स्पष्ट भाषा में लिखा होना चाहिए।

(ख) विषयवस्तु तथा तथ्य स्पष्ट होने चाहिए।

(ग) पत्र के संदर्भ ये यदि प्राप्तकर्ता पूर्व परिचित है, तो सर्वप्रथम संदर्भ का स्मरण कराएँ।

(घ) नई पद्धतियों या सूचनाओं के सम्बन्ध में परिपत्र जारी करते समय, तत्सम्बन्धी सारी जानकारियों से पत्र-प्राप्तकर्ता को सुस्पष्ट भाषा में अवगत कराएँ । यथासम्भव परिपत्र का सम्बन्ध पूर्व कार्यक्रमों से रखें।

(ङ) परिपत्र का संचारण मात्र एक उद्देश्य के निमित्त होना चाहिए। एक साथ अनेक सूचनाओं का प्रसारण लोगों को भ्रमित कर सकता है तथा उलझन में डाल सकता है।

(च) परिपत्रों के माध्यम से ग्रहणकर्त्ता को कोई कार्य या उत्तरदायित्व सौंपा जाना चाहिए। इससे कार्यक्रम में गतिशीलता आती है, जैसे- गर्मियों में भोजन- प्रदूषण से बचने के उपाय, बरसात में मच्छर-नाशक दवाइयों का छिड़काव, हैजे से बचने के लिए टीकाकरण, स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था, बैंकों द्वारा ऋण वितरण सम्बन्धी सूचना, कृषकों एवं उद्यमियों के लिए आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम सम्बन्धी सूचना आदि ।

परिपत्र का लेखन अथवा छपाई स्पष्ट अक्षरों में होनी चाहिए। प्रसारकर्ता इसमें विद्यालय शिक्षक तथा अन्य लोगों की सहायता ले सकता है। यदि साइक्लोस्टाइलिंग मशीन या टाइपराइटर की सहायता ली जाए तो परिपत्र अधिक प्रभावशाली हो जाता है।

लाभ (Advantages)- परिपत्र द्वारा सूचना प्रसारण द्वारा प्रसारकर्त्ता या प्रसार अधिकारी के समय की बचत होती है, क्योंकि एक साथ कई लोगों से सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है। यह व्यक्तिगत सम्बन्ध को बढ़ावा देता है तथा लोगों में आत्म-विश्वास बढ़ाता है। परिपत्र की प्रतिक्रिया अनुकूल होने पर इस शिक्षण पद्धति की पुनरावृत्ति करते रहना चाहिए तथा कार्यक्रम सम्बन्धी निर्देश साप्ताहिक तथा पाक्षिक रूप से प्रसारित करते रहना चाहिए। इसस कार्यक्रम से सम्बद्ध लोगों को समय पर लाभकारी सूचनाओं की प्राप्ति हो जाती है। परिपत्र परोक्ष रूप साक्षरता अभियान को बढ़ावा देता है। लोग पढ़ने-लिखने के प्रति जिज्ञासु होते हैं। से

सीमाएँ (Limitations) – परिपत्र तथा साक्षरता का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। इस शिक्षण पद्धति का प्रयोग साक्षर लोगों के बीच ही किया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में डाक-सेवा सुलभ हो, वहीं इसका उपयोग हो सकता है।

प्रसार शिक्षण में सहायक सामग्री के रूप में पर्चा, लघु पुस्तिका, विज्ञप्ति पत्र

प्रसार शिक्षण में पर्चा, लघु-पुस्तिका, विज्ञप्ति जैसे लघु साहित्य का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। प्रसारकर्ता इनके माध्यम से समय-समय पर कार्यक्रम की प्रगति, नई पद्धतियों, कार्यक्रम के अगले चरण आदि की सूचना ग्रामीणों तक भेज पाता है। पर्चा या leaflet एक तह किया हुआ प्रपत्र होता है। इस पर सूचनाएँ मुद्रित या साइक्लोस्टाइल की हुई रहती हैं। पर्चा द्वारा एक ही विषय से सम्बद्ध बातों की सूचना दी जाती है। लघु पुस्तिका (Pamphlet) या विज्ञप्ति-पत्र (Bulletin) में चार या अधिक पन्ने होते हैं। इनमें कई विषयों से सम्बन्धित सूचनाएँ एवं साहित्य होता है। पर्चा, लघु पुस्तिका या विज्ञप्ति जैसी पठन सामग्रियाँ सामान्यतः प्रसार निदेशालयों द्वारा वितरित की जाती है। प्रसारकर्ता को नियमित रूप से इन्हें मँगवाते रहना चाहिए, जिससे वह इन्हें ग्रामीणों के बीच वितरित करने में सदैव समर्थ रहे। इनका उपयोग प्रदर्शन, अभियान, भेंट शिक्षण पद्धतियों के साथ भी होता है।

प्रसारकर्ता स्वयं भी, स्थानीय कार्यक्रमों से सम्बन्धित सूचनाएँ हस्तलिखित या मुद्रित पर्चा, लघु पत्रिका या विज्ञप्ति द्वारा प्रसारित कर सकता है। विषय-वस्तु की सामयिकता तथा लोकप्रियता पर पूरा ध्यान देना चाहिए। यथासम्भव स्थानीय भाषा एवं शब्दों का प्रयोग करना अच्छा रहता है, इससे अपनत्व भाव बढ़ता है। शब्द सरल तथा वाक्य छोटे होने चाहिए। एक पैराग्राफ में एक ही बात या विचार रखें। उपयुक्त चित्र तथा उदाहरणों द्वारा लिखित विवरण को रोचक बनाने की चेष्टा करनी चाहिए। पर्चा, लघु पुस्तिका अथवा विज्ञप्ति पत्र के माध्यम से कही गई बात अपने-आप में पूर्ण होनी चाहिए। हर चरण स्पष्ट रूप से व्याख्यित होने चाहिए, जिससे ग्रामीणों को इन्हें समझने में कोई कठिनाई न हो, किन्तु विस्तृत वर्णन से भी बचने की चेष्टा करनी चाहिए। कम वाक्यों का प्रयोग करते हुए अपनी सारी बातें प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहिए। लिखित संदेश जितना ही छोटा और सरल होता है, उसे उतना ही अधिक पढ़ा जाता है। किसी भी छपित सामग्री की सबसे बड़ी विशेषता है कि उस लम्बी अवधि तक बार-बार पढ़ा जा सकता है।

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shubham yadav

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