प्रसार शिक्षा शिक्षण पद्धतियों को प्रभावित करने वाले तत्व
प्रसार शिक्षा की सफलता हेतु यह भी आवश्यक है कि प्रसार कार्यकर्त्ता को प्रसार शिक्षा की समस्त शिक्षण पद्धतियों तथा उससे जुड़ी सामग्री की जानकारी सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों रूप से हो। उसकी सफलता इसी पर निर्भर करती है कि उसने पद्धति तथा साधनों की उपलब्धता और उनके प्रयोग पर कितना ध्यान दिया है। उसका एक स्थान का प्रयोग दूसरे स्थान पर भी सफल हो यह आवश्यक नहीं है क्योंकि दोनों स्थान के लोगों के बौद्धिक स्तर में अन्तर होता है, ग्रहण क्षमता में अन्तर होता है, सामाजिक आर्थिक स्तर में अन्तर होता है। वे तत्व जो शिक्षण पद्धति को प्रभावित करते हैं निम्नलिखित हैं-
(1) प्रसार शिक्षा का उद्देश्य- प्रसार शिक्षा का उद्देश्य सदैव धनात्मक होता है अर्थात् जिन लोगों के लिये यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है उन्हें कार्यक्रम से लाभ होगा। इस उद्देश्य के प्रति वहाँ के स्थानीय लोगों में विश्वास उत्पन्न करना आवश्यक है और इस विश्वास को उत्पन्न करने के लिये स्थानीय निवासियों को प्रसार शिक्षा का उद्देश्य समझाना सबसे पहला काम है। जब वे इसे समझ जायेंगे तो कार्यक्रम के प्रति आस्था अपने आप आ जायेगी अतः पहले कार्यक्रम का उद्देश्य समझायें बतायें तब कार्यक्रम प्रारम्भ करें।
(2) कार्यक्रम में शिक्षा ग्रहण करने वाले की भागीदारी- हम इसके पूर्व देख चुके हैं कि इस कार्यक्रम में प्रतिभागी काम करके सीखता है अर्थात् यह एक व्यावहारिक शिक्षा है अतः केवल मौखिक रूप से जानकारी देने पर इसका उद्देश्य पूरा नहीं होता है। गाँवों में इस शिक्षा के अन्तर्गत खेती के उन्नत नये तरीके, उत्तम खाद, बीज, पशुओं की देखभाल तथा गृह प्रबन्ध हेतु पौष्टिक आहार, स्वास्थ्य शिक्षा, सफाई, बच्चों की देखभाल, विपणन जैसे विषयों पर शिक्षा दी जाती है। ये सब विषय ऐसे हैं जिनमें शिक्षा ग्रहण करने वाले की भागीदारी आवश्यक है केवल भाषण देकर यह शिक्षा पूर्ण रूप से नहीं दी जा सकती है।
(3) स्थानीय परिस्थितियाँ- स्थानीय परिस्थितियों के अन्तर्गत उस स्थान विशेष जहाँ कार्यक्रम चलाया जा रहा है वहाँ के विश्वास, आस्थाएँ, मान्यताएँ, रीतियाँ, कुरीतियाँ, वहाँ की आर्थिक, भौगोलिक परिस्थितियों, वहाँ का स्थानीय नेतृत्व, वहाँ उपलब्ध दैनिक जीवन सम्बन्धी सुविधाएँ जैसे जल सुविधा है या पीने का पानी भी कोसों मील जाकर लाना पड़ता है। इस प्रकार यातायात, विद्युत आपूर्ति सुविधा किस प्रकार की है यह भी शिक्षण पद्धति को प्रभावित करता है।
(4) शिक्षण विधि तथा सम्बन्धित सामग्री की उपलब्धता – इसके पूर्व हम देख चुके हैं कि प्रसार शिक्षण में एक साथ एक से अधिक विधियों का प्रयोग अधिक प्रभावशाली होता है किन्तु हर क्षेत्र में प्रसार कार्यकर्ता के लिये ऐसा करना सुविधाजनक नहीं होता है। कई बार प्रसाररकर्त्ता में स्वयं कमी होती है। यह कमी अनुभव ज्ञान पद्धतियों की जानकारी सम्बन्धी कमी होती है जिसके कारण वह ऐसा नहीं कर पाता है पर यदि प्रसार कार्यकर्त्ता स्वयं में सक्षम होता है उसके पास सुविधाएँ होती हैं तब वह एक से अधिक विधियों का प्रयोग कर अपने शिक्षण कार्यक्रम को सफल तथा प्रभावी बना लेता है।
विभिन्न शिक्षण विधियों में अलग-अलग साधनों का प्रयोग होता है। कई बार साधनों के अभाव में शिक्षण पद्धति का प्रयोग नहीं हो पाता है। बहुत से साधान ऐसे होते हैं जिनके प्रयोग के लिये विद्युत आवश्यक है किन्तु विद्युत आपूर्ति के अभाव में वह साधन प्रयोग में नहीं आ पाते। इसी प्रकार कुछ साधन बहुत महँगे होते हैं। खेती सम्बन्धी नये उपकरण ऐसे साधन हैं जिनका प्रयोग शिक्षण विधि को रुचिकर तथा प्रभावी बनाता है अतः इनकी उपलब्धता शिक्षण विधि को रुचिकर बनाती है जबकि इनकी कमी के कारण शिक्षण प्रभावकारी नहीं हो पाता
(5) समय की मांग के अनुसार उपलब्धता- शिक्षा देने वाले तथा शिक्षा लेने वाले दोनों को समय देना पड़ता है और समय अलग-अलग नहीं एक साथ समय होना चाहिये। यदि दोनों एक साथ एक समय पर खाली नहीं होते हैं तो शिक्षण कार्य नहीं हो पाता है। खेती सम्बन्धी शिक्षा देते समय जब तक किये प्रयोग का परिणाम प्राप्त नहीं होता प्रसारकर्ता को वहाँ उपस्थित रहना होता है इस काम में हफ्ते, माह भी लग जाते हैं। समूह चर्चा, गोष्ठियों, प्रदर्शन विधियाँ भी समय की मांग करती हैं। दोनों पक्षों द्वारा एक साथ एक समय न देने पर शिक्षण विधियाँ अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाती हैं।
(6) शिक्षण विधि का प्रभावशाली होना- बदलते समय में शिक्षण की नई पद्धतियों के साथ-साथ नये साधन भी आते जा रहे हैं। शहरी औपचारिक शिक्षा को ही लें। एक समय पुस्तकें प्रभावी थीं जिन्हें विद्यार्थी पढ़ते थे सम्भाल कर रखते थे। आज सब कुछ कम्प्यूटर, इन्टरनेट पर हाजिर हैं। बेताल सुपरमैन की कॉमिक्स आती थी आज सी. डी. आ गई है। बच्चों की कविताओं की किताबें होती थीं आज सी. डी. आ गई है। यह प्रभाव प्रसार शिक्षा के क्षेत्र में भी है। आज प्रसार शिक्षा के क्षेत्र में भी सबसे प्रभावी माध्यम टी. वी. तथा वीडियो हो गया है। आज कृषि तथा लघु उद्योग कार्यक्रम टी. वी. पर प्रसारित होते हैं। आज टी. वी. प्रसार शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावी माध्यम बन गया है। शिक्षण की वे विधियाँ जिनमें स्वयं करके सीखना होता है अन्य विधियों की तुलना में अधिक प्रभावी होती हैं।
(7) प्रसार कार्यकर्त्ता की कार्यक्षमता- प्रसार कार्यकर्ता द्वारा चुनी गई सही शिक्षण पद्धति भी अपना प्रभाव छोड़ देती है। यदि उसकी प्रस्तुति सही नहीं होती है तो अच्छी शिक्षण विधि भी अरुचिकर हो जाती है। इसके लिये यह आवश्यक है कि प्रसार कार्यकर्त्ता को अपने विषय की पूर्ण जानकारी होनी चाहिये ताकि वह ग्रहण करने वाले की उत्सुकता जिज्ञासा को शान्त कर सके। प्रसार कार्यकर्त्ता को अपने काम में रुचि लेनी चाहिये । वह स्वयं हमेशा सब कुछ नया जानने सीखने को उत्सुक रहे ताकि उसमें भी अपने विषय की पूर्ण जानकारी बढ़ती जाये।
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