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प्राचीन भारतीय चिन्तन का महत्व
प्राचीन भारतीय चिन्तन का महत्व- नमस्कार दोस्तो , आज की हमारी इस पोस्ट में हम आपको प्राचीन भारतीय चिन्तन का आशय एवं महत्व के संबंध में Full Detail में बताऐंगे , जो कि आपको सभी आने वाले Competitive Exams के लिये महत्वपूर्ण होगी| इसके पहले की पोस्ट में मैंने प्राचीन भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषताएँ तथा प्राचीन एवं आधुनिक राजनीतिक चिन्तन में अन्तर के बारे में बताया था |
प्राचीन भारतीय चिन्तन का आशय एवं महत्व
प्राचीन भारतीय चिन्तन का इतिहास अति प्राचीन है। यह वैदिक काल से प्रारम्भ होकर मुगलकाल तक माना जाता है। आज से हजारों वर्ष पूर्व जब दुनिया में चिन्तन का विस्तार नहीं हो पाया था उस समय भी भारतीय राजनैतिक एवं सामाजिक चिन्तन सर्वोच्च शिखर पर था। यह गौरवशाली परम्परा वैदिक काल से आज तक बनी हुई है।
औपनिवेशिक काल में कतिपय पाश्चात्य विचारकों ने इस भ्रम को फैलाया कि भारत का प्राचीन चिन्तन अति साधारण है इसमें कुछ भी उल्लेख करने योग्य नहीं है। उनमें से कुछ विद्वानों ने इसे निरा आदर्शवाद, अव्यावहारिक रहस्यवाद से भरा हुआ बताया। इस भ्रम को मैक्स मूलर, डनिग जैसे पूर्वाग्रह से ग्रस्त विद्वानों ने आगे बढ़ाया । समय गुजरने के साथ नये तथ्य सामने आये और फैलाया गया भ्रम टूट गया। नये तथ्यों ने स्पष्ट किया कि प्राचीन भारतीय चिन्तन पाश्चात्य राजनैतिक चिन्तन से अत्यधिक प्राचीन एवं प्रासंगिक है। भारत में प्लेटो एवं अरस्तू से शताब्दियों पूर्व राजनैतिक का व्यापक विवरण मिलता है। भारत के वेद, पुराण, एवं उपनिषद प्राचीन भारतीय चिन्तन की उत्कृष्ट नमूने है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र चिन्तन के आधुनिक स्वरूप का उदाहरण है। अरस्तू के समकालीन कौटिल्य का सम्पूर्ण दर्शन व्यावहारिक है तथा यह सिद्ध कारता है कि भारत का चिन्तन कहीं भी पीछे नहीं है। यहां पर मैक्सी का कथन प्रासगिंक हो जाता है जब वह कहते है-”हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत का राजनैतिक इतिहास यूरोप के राजनैतिक इतिहास से अधिक प्राचीन है और राजनैतिक विचारों की दृष्टि से निष्फल भी नहीं है।” एशियाटिक सोसायटी के उदय के साथ स्थिति में बदलाव प्रारम्भ हुआ। ब्रिटेन की बदली परिस्थितियों में भारतीयों की संस्कृति एवं इतिहास की जानकारी की आवश्यकता महसूस की गई। यहीं से भारतीय चिन्तन का नया स्वरूप दुनिया के सामने आया।
प्राचीन भारतीय चिन्तन का महत्व
दुनिया में अनेक विद्वान राजनैतिक चिन्तन को अनुपयोगी एवं हाँनिपद्र मानते है। इसमें मुख्य रूप से बेकन, लेस्ली, स्टीफन, बर्क, डनिंगआदि प्रमुख हैं। स्टीफन तो कहता है कि –“वे देश भाग्यशाली है जिनके पास कोई राजनैतिक दर्शन नहीं है क्योंकि ऐसा तत्व चिन्तन निकट भविष्य में होने वाली क्रान्तिकारी उथलपुथल का सूचक होता है।” डनिंग का स्पष्ट मत था कि –” जब कोई राजनैतिक पद्धति राजनैतिक दर्शन का स्वरूप ग्रहण करने लगे तो समझ लेना चाहिए कि उसके विनाश की घड़ी आ गई है।”
उपरोक्त कथन चिन्तन को अनुपयोगी मानते है। वे इसे आदर्शवादी, काल्पनिक भ्रम पैदा करने वाला मानते है। वे तर्क देते है कि अच्छे विचारक प्रायः अच्छे शासक नहीं होते हैं। वे कहते हैं कि सैद्धान्तिक ज्ञान व्यावहारिक नहीं होता है तथा व्यावहारिक ज्ञान सिद्धान्त पर खरा नहीं उतरता है। प्लेटो इसका आदर्श उदाहरण है। वह अपने आदर्श राज्य को मूर्त रूप देने में पूर्णतः असफल रहा। इसका दूसरा दोष यह है कि अधिकांश विचार परिस्थिति जन्य होते हैं। अतः उनका सामान्यीकरण करते हुए सिद्धान्त नहीं बनाया जा सकता। राजनैतिक दर्शन में हाल्स, रूसो तथा मैकियावेली के मानव संबंधी विचार तत्कालीन समाज की देन थे। कतिपय यही कारण था कि तत्कालीन परिस्थितियों में उपजी निराशा, हताशा ने उनके विचार को मानव के प्रति नकारात्मक बना दिया था।
उपरोक्त दोष के होते हुए भी चिन्तन का अध्ययन मानवोपयोगी है। इससे होने वाले लाभ निम्न है.
1.राज्य और उसका मूर्त रूप सरकार है। यह मानव से निर्मित है तथा मानव के इर्द-गिर्द ही घूमता है। अतः मानव के संबंध में विचार करना, विभिन्न प्रश्नों पर विचार करना सदैव से मानव तथा समाज के लिये लाभदायक रहा है।
2.राजनीतिक चिन्तन का मानव के साथ घनिष्ट संबंध रहा है। विद्वानों द्वारा समय-समय पर प्रतिपादित विभिन्न सिद्धान्तों ने मानव को बहुत लाभ पहुंचाया है। रूसो के विचारों ने 18 वीं शताब्दी में फ्रांसीसी क्रान्ति को जन्म दिया और इसी क्रान्ति से समानता, स्वतन्त्रता तथा भाईचारे का विचार सामने आया। मार्क्स ने 20वीं शताब्दी में “बोल्शेविक क्रान्ति” को जन्म दिया। इसी से साम्यवादी विचारधारा का उदय हुआ।
3.राजनीतिक चिन्तन से एक अलग प्रकार का लाभ यह होता है कि यह विभिन्न प्रकार की गई शब्दावलियों, सिद्धान्तों को जन्म देता है। इसमें प्रमुख्य रूप से राष्ट्रीयता, लोककल्याणकारी राज्य, व्यक्तिवाद, पंथनिरपेक्षता आदि प्रमुख है।
4.राजनीतिक चिन्तन के अध्ययन से एक अन्य लाभ यह होता है इससे हमें ऐतिहासिक घटनाओं को समझने और उसकी व्याख्या करने में सहायता मिलती है।
5.इससे वर्तमान घटनाओं को समझने में सहायता मिलती है। वर्तमान समस्याओं की जड़ सदैव इतिहास में रहती है। अतः उसका निवारण भी इतिहास से आता है। चिन्तन समस्या का निवारण ही नहीं करता वरनभविष्य में आने वाली समस्याओं का हल एवं मार्गदर्शन प्रस्तुत करता है। इस प्रकार से स्पष्ट है कि चिन्तन का अध्ययन प्रत्येक दृष्टि से लाभप्रद है। यह स्वभाविक प्रक्रिया है जो लम्बे समय से चली आ रही है।
प्राचीन एवं आधुनिक राजनीतिक चिन्तन में अन्तर
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