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प्राथमिक स्तर पर व्याकरण शिक्षण
प्राथमिक स्तर पर व्याकरण शिक्षण- व्याकरण की शिक्षा उस समय तक देना उचित नहीं जब तक कि वे भाषा का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त न कर लें। प्राथमिक शालाओं में शिक्षकों की दायित्व है कि वे बालकों को व्याकरण की विधिवत शिक्षा न देकर स्वयं व्याकरण के नियमों पर खरी उतरने, शुद्ध और सही भाषा का प्रयोग करें, क्योकि बालक इस स्तर पर अधिकांश बातें शिक्षक को आदर्श मानकर उसका अनुकरण करके सीखते हैं। दूसरे प्राथमिक स्तर पर बालकों का मस्तिष्क इतना विकसित नहीं हो पाता कि वे व्याकरण के नियमों को भली भाँति समझ सकें। अतः प्राथमिक स्तर पर व्याकरण शिक्षण उचित नहीं है। हाँ, उन्हें भाषा बोलने और लिखने का अभ्यास कराया जा सकता है। शुद्ध
व्याकरण शिक्षण के उद्देश्य
व्याकरण शिक्षण के उद्देश्य सामान्यतः व्याकरण की शिक्षा देते समय हमें निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखना चाहिए-
1. छात्रों को वर्णों, शब्दों और वाक्यों के शुद्ध और सही रूप की शिक्ष देना ताकि भाषा को विकृति से बचाया जा सके।
2. भाषा में नियमितता और स्थायित्व लाकर उसके सर्वमान्य रूप को सुरक्षित रखना।
3. छात्रों में शुद्ध अभिव्यक्ति और सृजनात्मकता का विकास करना ।
4. छात्रों में भाषा के गुण और दोषों को परखने की क्षमता उत्पन्न करना ताकि वे साहित्य की समालोचना कर सकें और साहित्य के विकास में अपना योगदान दे सकें।
5. व्याकरण के व्यवहारिक पक्ष पर सैद्धान्तिक पक्ष की अपेक्षा अधिक बल देना, जिससे व्याकरण का शिक्षण नीरस न बनने पाये।
संक्षिप्त व्याकरण शिक्षण का उद्देश्य विद्यार्थियों की भाषा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने में प्रवीण बनाना है ताकि वे भाषा के शुद्ध रूप को पहचानने में समर्थ हो सकें।
उच्च स्तर पर व्याकरण शिक्षण
उच्च स्तर पर व्याकरण शिक्षण का व्यवहारिक पक्ष प्रमुख होता है। शब्द शक्तियों आदि को व्यवहारिक रूप से बड़ी सरलता से बताया जा सकता है।
संक्षेपतः व्याकरण शिक्षण के सैद्धान्तिक और व्यवहारिक पक्ष को दृष्टिगत रखते हुए प्राइमरी स्तर पर व्याकरण शिक्षण की कोई आवश्यकता है। नहीं निम्न माध्यमिक कक्षाओं में दोनों पक्षों की ही शिक्षा पर समान बल दिया जाना चाहिए अर्थात ज्यों-ज्यों बालकों का स्तर बढ़ता जाता है, व्याकरण शिक्षण का व्यवहारिक पक्ष सबल और सैद्धान्तिक पक्ष गौण बनता जाता है।
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