अनुक्रम (Contents)
प्रेमाश्रयी काव्यधारा की विशेषताएँ | जायसी और उसके पद्मावत का स्थान एवं महत्त्व
सूफी काव्य-परम्परा- सूफी कवियों की प्रेमगाथाएँ हिन्दी-जगत् की अनुपम देन हैं। उनमें जायसी के ‘पद्मावत’ का शीर्ष स्थान है। सूफी-काव्य-परम्परा प्रेम-पीर को लेकर आई। यह परम्परा हिन्दी में शताब्दियों तक चलती रही। बंगाल के शासक हुसैनशाह के अनुरोध से जिसमें ‘सत्यपीर’ की कथा लिखी गई। कुतुबन मियाँ एक ऐसी कहानी लेकर जनता के सामने आए, जिनके द्वारा उन्होंने मुसलमान होते हुए भी अपने मनुष्य होने का परिचय दिया। कुतुबन चिस्ती वंश के शेख बुरहान के शिष्य थे। उन्होंने ‘मृगावती’ नामक एक प्रेमाख्यान काव्य 909 हिजरी में लिखा। जायसी ने अपने से पूर्व की कुछ प्रेम कहानियों का उल्लेख इस प्रकार किया है-
विक्रम धँसा प्रेम कै वारा सपनावति कहँ गयउ पतारा ।।
मधूपाछ मुग्धावति लागी। गगन पूर होइगा वैरागी ।।
राज कुँवर कंचनपुर गयऊ। मिरगावति कहँ जोगी भयऊ ।।
साध कुँवर खंडावत जोगू। मधुमालति कहँ कीन्ह वियोगू ।
प्रेमावति कहँ सुरपुर साधा। ऊषा लगि अनरुध वर बाँधा ।।
विक्रमादित्य और ऊषा- अनिरुद्ध की प्रमुख कथाओं को छोड़ देने से जायसी के पूर्व जो प्रेमाख्यान लिखे हुए पाये जाते हैं उनमें कुतुबन की ‘मृगावती’, मंझन की ‘मधुमालती’, ‘मुग्धावती’ और ‘प्रेमावती’ है। ‘मुग्धावती’ और ‘प्रेमावती’ का पता अभी तक नहीं लगा है। ‘मृगावती’ की एक प्रति का पता ‘नागरी प्रचारिणी सभा काशी’ को लग चुका है। ‘माधुमालती’ भी प्राप्त हो चुकी है।
कुतुबन की मृगावती- ‘मृगावती’ में चन्द्रगिरि के राजा गनपति देव के पुत्र और कंचन नगर के राजा रूपमुरारि की कन्या मृगावती के प्रेम का वर्णन है। राजकुमार अनेक कष्टों को सहन करता हुआ मृगावति के पास पहुँचता है। मृगावती उड़ने की विद्या जानती थी, वह एक दिन उड़ जाती है। राजकुमार उसकी खोज में योगी बनकर निकल पड़ता है। वह समुद्र से घिरी हुई एक पहाड़ी पर पहुँचता है और वहाँ रुक्मणी नाम की सुन्दरी का उद्धार करता है। मृगावती के पिता की मृत्यु हो जाती है और वह स्वयं राज्य करने लगती है। राजकुमार रुक्मणी को उसके पिता के पास छोड़कर मृगावती के पास आता है। वह मृगावती को लेकर घर चल देता है। मार्ग में रुक्मणी को भी साथ ले लेता है। बहुत दिनों तक राज्य करने के पश्चात् एक दिन शिकार खेलते हुए हाथी से गिरकर उसकी मृत्यु हो जाती है। मृगावती और रुक्मणी सती हो जाती हैं। मंझन की मधुमालती- ‘मधुमालती’ में कनेसर नगर के राजा सूरजभान के पुत्र मनोहर और महारस नगर की राजकुमारी के प्रेम का वर्णन है। अप्सरायें सोते हुए मनोहर को उठाकर मधुमालती की चित्रसारी में ले जाती हैं। मनोहर के जगने पर दोनों में प्रेम हो जाता है। मधुमालती और मनोहर सो जाते हैं। अप्सरायें पुनः राजकुमार को उसके घर पहुँचा देती हैं। मनोहर जागने पर प्रेम-योगी बनकर मधुमालती की खोज में निकल पड़ता है। समुद्र को पार करते ही वह तूफान में घिर जाता है और एक पटरे पर बहता हुआ चित-विलासपुर के राजा के राज्य में पहुँच जाता है। उसकी पुत्री प्रेमा को एक राक्षस अपहरण कर लाया है। मनोहर प्रेमा का उद्धार करता है। प्रेमा मधुमालती की सखी थी। वह मनोहर को भाई कहती है और मनोहर को मधुमालती से मिला देता है। मिलन के कुछ दिनों बाद ही दोनों का वियोग हो जाता है। अन्त में बड़ी कठिनाई से दोनों का मिलन हो जाता है। इस प्रेमाख्यान में ताराचन्द्र की भी कथा आती है। वह भी मधुमालती को बहिन कहता है।
जायसी का पद्मावत प्रेमगाथा- काव्यों में जायसी का ‘पद्मावत’ वह केन्द्र बिन्दु है, जहाँ आकर प्रेम-गाथा-परम्परा अपने चरम विकास पर पहुँच गई। ‘पद्मावत’ प्रेमगाथा काव्यों की समस्त विशेषताओं और परम्पराओं का प्रतिनिधित्व करता है। ‘पद्मावत’ से पहले ‘मृगावती’, ‘मधुमालती’ आदि प्रेमाख्यान काव्यों की रचना हो चुकी थी। ‘पद्मावत’ की कथा का विकास इन्हीं के आधार पर हुआ है। पद्मावत के पश्चात् लिखे गये समस्त प्रेमाख्यान काव्य ‘पद्मावत’ से पूर्णरूप से प्रभावित हैं। इसमें जायसी ने हिन्दू-मुस्लिम संस्कृतियों का बड़ी सफलता से समन्वय किया है। प्रेमतत्त्व की मार्मिक व्यंजना ‘पद्मावत’ के समान अन्यत्र नहीं मिलती है। इसमें फारसी शैली और हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति का विराट समन्वय है। नागमती के रूप में जायसी की विरहिणी आत्मा धधकती हुई दिखाई पड़ती है। ‘रामचरितमानस’ के पश्चात् ‘पद्मावत’ का ही हिन्दी-जगत् में आदर और सम्मान के साथ नाम लिया जाता है। इस प्रकार प्रेम-गाथा काव्यों में ही नहीं अपितु समस्त हिन्दी काव्य-जगत में ‘पद्मावत’ का गौरवपूर्ण स्थान है।
प्रेम-गाथाओं की विशेषताएँ
(1) विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी के अंतिम भाग से लेकर 17वीं शताब्दी के अन्त तक हिन्दी साहित्य में निर्गुण और सगुण भक्ति धारा समान रूप में प्रवाहित होती रही। निर्गुण काव्य-धारा में संत कवियों ने जहाँ ज्ञान को प्रधानता दी है, वहाँ सूफी कवियों ने ‘प्रेम की पीर’ से युक्त प्रेमाख्यान काव्यों की रचना की है। सूफी कवियों में प्रेम-पीर का वर्णन विशेष रूप से मिलता है। सूफी प्रेमाख्यानों में राजकुमार किसी राजकुमारी के अलौकिक सौन्दर्य पर मोहित होकर समस्त वैभव त्यागकर वैरागी बन जाता है और अनेक कष्टों को झेलता हुआ राजकुमारी को प्राप्त कर लेता है। वहाँ राजकुमारी जीव और राजकुमारी परमात्मा के रूप में चित्रित किये गये हैं। राजकुमार को राजकुमारी की प्राप्ति जीव को ईश्वर की प्राप्ति है। सूफी कवियों ने सन्त कवियों की तरह खण्ड-मण्डन नहीं किया। उन्होंने मानव-हृदय की प्रेम-पीर को लेकर सरलतापूर्ण काव्य रचनाएँ कीं। जायसी सूफी कवियों ने विरह में समस्त सृष्टि को जलता हुआ दिखाया है।
(2) प्रेम-आख्यान काव्य भारतीय चरितकाव्यों सर्गबद्ध शैली पर नहीं रचे गये। इनकी रचना फारसी की मनसवी शैली पर हुई है। कथावस्तु सर्गों या अध्यायों में विभक्त न होकर उसके शीर्षक दे दिये गये हैं। मनसवी पद्धति में काव्य एक ही छन्द में (मनसवी छन्द) लिखा जाता है। उसमें समारम्भ से पहले ईश्वर स्तुति, पैगम्बर की वन्दना और ‘शाहेवक्त’ की प्रशंसा रहती है। सारा प्रेमगाथा-काव्य दोहा-चौपाई छन्दों में लिखा गया है। ‘पद्मावत’, इन्द्रावती, मृगावती आदि में उपर्युक्त विशेषतायें पूर्ण रूप से पाई जाती हैं।
(3) प्रेमाख्यान काव्यों में अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है। जायसी ने सात चौपाइयों के पश्चात् दोहे का क्रम रखा है। आगे चलकर गोस्वामी तुलसीदास के ‘रामचरित मानस’, लाल कवि का “क्षत्रप्रकाश”, पद्माकर का ‘राम-रसायन’ और ब्रजवासी दास का ब्रज-विलास’ इसी शैली में लिखा गया।
(4) समस्त प्रेम-गाथाएँ प्रायः मुसलमानों के द्वारा लिखी गईं इन भावुक और उदार मुसलमानों ने हिन्दू-जीवन के साथ सहानुभूति प्रकट की। साथ ही मुसलमानी संस्कृति की भी झलक इनकी रचनाओं में मिलती है।
(5) प्रेमगाथाओं में लौकिक प्रेम द्वारा आध्यात्मिक प्रेम की व्यंजना की गई है।
(6) प्रेमगाथाओं में गुरु और ईश्वर को विशेष महत्त्व दिया गया है।
(7) प्रेमगाथाओं में हिन्दू मुस्लिम एकता का सफल प्रयास किया गया है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रेम-गाथा – काव्य-परम्परा जायसी से पहले से चली आ रही थी, परन्तु जायसी के ‘पद्मावत’ में वह अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई। प्रेमाख्यान लिखने वाले सूफी कवियों में जायसी और उनके पद्मावत का स्थान सर्वोपरि है।
- जायसी की काव्यगत विशेषताएँ
- कबीर का ब्रह्म निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापी है।
- कबीर की भक्ति भावना का परिचय दीजिए।
You May Also Like This
- पत्राचार का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कार्यालयीय और वाणिज्यिक पत्राचार को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रमुख तत्त्वों के विषय में बताइए।
- राजभाषा-सम्बन्धी विभिन्न उपबन्धों पर एक टिप्पणी लिखिए।
- हिन्दी की संवैधानिक स्थिति पर सम्यक् प्रकाश डालिए।
- प्रयोजन मूलक हिन्दी का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध रूप- सर्जनात्मक भाषा, संचार-भाषा, माध्यम भाषा, मातृभाषा, राजभाषा
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विषय-क्षेत्र की विवेचना कीजिए। इसका भाषा-विज्ञान में क्या महत्त्व है?