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बंधेज रँगाई क्या है? बंधेज रँगाई की विधियाँ अथवा बंधेज रँगाई के चरण

बंधेज रँगाई क्या है
बंधेज रँगाई क्या है

बंधेज रँगाई क्या है?

बंधेज रँगाई- बंधेज रँगाई विश्वभर में प्रसिद्ध एक अप्रतिम कला है। भारत एवं अफ्रीकन इस कला में अग्रणी देश हैं। उन्नीसवीं सदी में भारत की ‘बांधनी’ इंग्लैण्ड में लाल बुन्दकीदार स्कार्फ एवं रूमालों के रूप में लोकप्रिय हो गयी थी। अब बीसवीं सदी के अन्त में भारत के बंधेज रँगाईयुक्त परिधान विदेशी फैशन में स्थान पा चुके हैं।

‘बांधनी’, ‘बन्दिश’ या ‘बंधेज रेंगाई’ में वस्त्र पर बने डिजाइन की बुँदकियों को धागे से कसकर बाँध दिया जाता है, तत्पश्चात् उसे रँगा जाता है। इससे धागे में बँधे स्थानों पर रंग नहीं चढ़ता तथा शेष पूरा वस्त्र रंगीन हो जाता है। यही बाँधकर रँगने की क्रिया टाइ एण्ड डाइ (Tie and Dye) कहलाती है। यह एक प्रकार की अवरोधक रँगाई (Resist Dyeing) है। अफ्रीका में बीज बाँधकर बंधेज रँगाई की जाती है। जापान में यह कला शिबोरी (Shibori) कहलाती है।

भारत में प्राचीनकाल से बाँधनी का प्रचलन आ रहा है। रामायण, महाभारत तथा बाणभट्ट रचित हर्षचरित में भी बाँधनी का उल्लेख है। 1373 ई. कालीन साहित्य में भी भी सतरंगी चुनरी का वर्णन मिलता है। सत्रहवीं शताब्दी के आसपास लिखी गई ‘वर्णका’ में गुजरात की बाँधनी प्रचलित होने का प्रमाण मिलता है। उस समय इसे ‘बंधालम’ कहा जाता था। अब भी गुजरात, कच्छ, काठियावाड़, भुज एवं जामनगर की ‘बाँधनी कला’ काफी प्रसिद्ध है। वैसे यह माना जाता है कि बाँधनी का घर राजस्थान है। यही यह कला फली फूली एवं विकसित हुई। पाली, जयपुर, अलवर, सीकर, बाड़मेर, अजमेर, बीकानेर और जोधपुर में कई प्रकार की, कई रंगों की ‘बांधनी’ बनाई जाती है। जोधपुर में बांधनी का आरम्भ पन्द्रहवी शताब्दी में हुआ। कहा जाता है कि जोधाजी के शासनकाल में सिंध प्रान्त के मुल्तान नगर का एक कारीगर मोहम्मद बिन कासिम अपने बंधेज रँगाई के नमूने लेकर राव जोधाजी के दरबार में पहुँचा। राव जोधाजी को यह कला इतनी मनमोहक लगी कि उन्होंने उस कारीगर का सारा सामान खरीद लिया। फिर उसे सम्मानित एवं पुरस्कृत किया तथा उसके पूरे परिवार सहित जोधपुर में बुलवाकर रहने को जगह दे दी। तभी से वहाँ यह कला जोर-शोर से विकसित हुई। आज जोधपुर की खाँडा फलसा मोहल्ला बाँधनी का प्रमुख केन्द्र है।

भारत में पर्व-त्योहार, विवाह, पुत्रजन्म तथा सभी शुभ अवसरों पर बाँधनी का पहनना शुभ माना जाता है। अधिकांश लाल चुनरी का व्यवहार ऐसे अवसरों पर होता है। सम्पन्न घरानों की महिलाएँ रंग-बिरंगी चुनरियाँ भी ओढ़ती हैं जैसे दो रंगी, तिरंगी, चतुरंगी, पंचरंगी, छहरंगी, सतरंगी, अठरंगी और नवरंगी । जितने अधिक रंग होते हैं, वह चुनरी उतरी ही महँगी भी होती है। प्रत्येक रंग किसी न किसी भाव का प्रतीक है। लाल रंग उत्सव, प्रेम, प्रसन्नता का प्रतीक है, तो पीला रंग वसन्त, आम के बौर, बुद्धि और जीवन प्रदान करने वाले सूर्य की किरणों का । नीला रंग साँवले कृष्ण, आकाश एवं स्वर्ग का द्योतक है। जामुनी रंग भौतिक सुख-सुविधाओं का तथा हरा रंग यौवन एवं जीवन का प्रतीक है। इसलिए चुनरियाँ विभिन्न रंगों में रंगी जाती हैं।

आजकल भारत में बंधेज रँगाई का प्रचलन बढ़ गया है। पहले ऐसे वस्त्र ग्रामीण स्त्रियाँ ही पहनती थीं किन्तु अब शहरों में भी इनका प्रचलन हो गया है। कॉलेज की छात्राएँ, नौकरीपेशा कमीज, दुपट्टे, बच्चों के वस्त्र, साड़ी, ब्लाउज, लुंगी, साफे, टेबल क्लॉथ, पर्दे, चादर सभी लोकप्रिय हैं। भारत के बाँधनी वर्क की बिक्री विदेशों में हो रही है। यह कला विद्यालय, महाविद्यालय, महिला शिल्पकला केन्द्रो, अन्य प्रशिक्षण केन्द्रों के पाठ्यक्रमों में भी स्थान पा चुकी है। इस हस्तकला द्वारा छोटे कुटीर उद्योग स्थापित कर धनोपार्जन भी किया जा सकता है। बंधेज रँगाई का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि इसे सीखने के लिए साक्षर होना आवश्यक नहीं है। अनपढ़ या अल्पशिक्षित बेरोजगार कम समय में यह कला सीखकर अपना रोजगार आरम्भ कर सकते हैं। घरों में गृहिणियाँ भी पुरानी सफेद अथवा एकरंगी साड़ियों को बाँधी द्वारा रँगकर मैक्सी, गाऊन, दुपट्टे, स्कार्फ, टेबल क्लॉथ, लैम्पशेड जैसी काम की चीजें बना सकती हैं। निपुणता प्राप्त करने पर नये वस्त्र भी बाँधनी द्वारा रंग सकती हैं।

बंधेज रँगाई की विधियाँ अथवा बंधेज रँगाई के चरण

बंधेज रँगाई निम्नलिखित चरणों (Steps) में सम्पन्न होती है-

1. वस्त्र का चुनाव (Selection of Fabric)

2. नमूना उतारना (Tracing of Design)

3. गाँठें बाँधना (Tying of Knots).

4. रँगना (Dyeing)

5. सुखाना (Drying)

6. गाँठें खोलना (Untying of Knots)

7. इस्तरी करना (Ironing)

1. वस्त्र का चुनाव (Selection of Fabric)

बंधेज रँगाई मलमल, वॉयल, रेशम, जॉर्जेट, चिनॉन, शिफॉन, पश्मीना, ऊनी एवं हस्तकरघा निर्मित वस्त्रों पर की जाती है। क्योंकि ये आसानी से रँगे जा सकते हैं। नायलॉन अथवा कृत्रिम रेशेयुक्त वस्त्रों का चुनाव नहीं किया जाता क्योंकि इन पर रंग ठीक से नहीं चढ़ता। जिन सूती अथवा रेशमी वस्त्रों का चुनाव करें उन पर माँड़ (कलफ) का अंश नहीं रहना चाहिए। यदि कलफ चढ़ा वस्त्र हो तो उसे कुछ देर पानी में भिगोकर, रगड़कर, माँड़ छुड़कर ही सुखा लें, तभी उपयोग में लाएँ ।

2. नमूना उतारना (Tracing of Design)

बंधेज के नमूनों में प्रायः फूल-पत्ती, पशु-पक्षी, अथवा ज्यामितीय आकार चुने जाते हैं। सफेद कपड़े पर सीधे पेंसिल से आकार बनाये जा सकते हैं अथवा हल्के रंग के कार्बन से उतारे जा सकते हैं।

व्यावसायिक स्थानों पर नमूना छापने की दूसरी विधियाँ होती एक विधि में साड़ी अथवा कपड़े को चार तह करके मोड़ लेते हैं। फिर उसे वैसे ही पानी में भिगोकर, कीलयुक्त डिजाइन वाले साँचे पर रखकर दबाते हैं। कपड़े पर कीलों के उठे हुए निशानों से डिजाइन बन जाता है। इन्हीं उठे हुए स्थानों को बाँधा जाता है।

दूसरी विधि में कपड़े को लम्बाई एवं चौड़ाई में मोड़कर चार तह कर लेते हैं। फिर ऊपरी तह पर लकड़ी के ब्लॉक से डिजाइन छापा जाता है। ब्लॉक प्रिंट छापने के लिए गेरू, पानी और मिट्टी का तेल मिलाकर गाढ़ा घोल बनाते हैं। ब्लॉक को घोल में डुबोकर डिजाइन के अनुसार छपाई की जाती है।

3. गाँठें बाँधना (Tying Knots)

डिजाइन की रेखा पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बुँदकियाँ बनाकर इन्हें चुटकी से उठाते हुए उठे हुए झाग पर कई बार धागा घुमाकर बाँधकर अन्त में गाँठ लगा देते हैं। धागे को बिना तोड़े, हर बिन्दु पर बाँधते हुए पूरा डिजाइन बाँधा जाता है कि बाँधे प्रविक बोध हुए स्थान पर रंग नहीं चढ़ पाता है फिर भी कभी-कभी धागे से बँधे भाग में भी रंग आशंका रहती है जिससे रँगाई में दोष आ सकता है। इस दोष से बचने लिए कुछ मोटा और मजबूत धागा लेना चाहिए। धागे को रंग का अच्छा अवरोधक बनाने के लिए, उबलते मोम के घोल में धागे की लच्छी डुबोकर तत्काल बाहर निकालकर झटक लिया जाता है। धागे पर मोम की पतली परत चढ़ जाने से वह अच्छा अवरोधक बन जाता है।

विभिन्न विधियों से गाँठें बाँधकर बंधेज में अलग-अलग डिजाइन और प्रभाव उत्पन्न किये जाते हैं। ये गाँठें कभी सुतली और प्लास्टिक की सहायता से बँधती है तो कभी कपड़े के भीतर अजीबोगरीब वस्तुएँ रखकर। इन विधियों में कलाकार की कल्पनाशीलता और सूझबूझ की झलक मिलती है। गाँठें बाँधने की निम्नलिखित विधियाँ हैं-

(i) नोक पर- कपड़े पर बनी बुँदकियों के नीचे पेंसिल की नोक अथवा नाखून क नोक रखकर गाँठें बाँधते हैं। इसीलिए ‘बाँधनारी’ कारीगर स्त्रियाँ अपनी तर्जनी और अँगूठे के नाखून बढ़ाकर रखती हैं।

(ii) कीलों पर- मोड़े हुए, भीगे कपड़े को कीलदार डिजाइन पर रखकर दबा दिया जाता है। कील के उठे हुए निशानों पर ही गाँठे बाँधी जाती है।

(iii) चने, मटर या बीज- इनमें से कोई एक थोड़े-थोड़े अन्तर पर रखकर प्रत्येक दाने के चारों ओर धागा लपेटकर गाँठें बाँधते हैं।

(iv) मोती या काँच की गोलियाँ- कंचों या छोटे-बड़े मोतियों को बाँधकर विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न किए जाते हैं।

(v) माचिस की तीलियाँ, सूखी फलियाँ बाँधकर।

(vi) पूरे वस्त्र में गाँठें लगाकर- कभी-कभी धागे से गाँठें न बाँधकर वस्त्र के कोने के छोरों पर ही कपड़े को लपेटकर गाँठ बाँध दी जाती है।

(vii) कौड़ियाँ बाँधकर- कौड़ियाँ बाँधकर भी गाँठें लगाई जाती हैं।

(viii) वस्त्र में तह लगाकर- वस्त्र को पंखे की तरह या चौकोर अथवा आयताकार में तहें लगाकर मोड़ा जाता है और थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कसकर मोटा धागा या सुतली लपेटकर, बाँधकर रँगा जाता है।

(ix) प्लास्टिक बाँधकर वस्त्र को छाते की तरह मोड़कर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर प्लास्टिक बाँधकर रँगा जाता है। इससे चौड़े डिजाइन बनते हैं।

(x) लहरिया बँधाई – वस्त्र को पूरा तह करके, लपेटकर अत्यन्त पास-पास पूरा धागे से कसकर बाँधा जाता है और तब रँगाई की जाती है। इस प्रकार लहरिया या डोरिया डिजाइन बनता है। रंग की पतली लम्बी रेखाएँ मिलकर नमूने बनाती हैं।

4. वस्त्र रँगना (Dyeing)

बंधेज रँगाई का नियम है कि जिन स्थानों को सफेद रखना है पहले वहीं गाँठें बाँधकर वस्त्र को किसी हल्के रंग में रंगकर सुखा लेते हैं जैसे पीले रंग में। फिर जिन स्थानों को पीला रखना है, वहाँ गाँठें बाँधकर वस्त्र को कुछ गहरे रंग में रंगा जाता है जैसे लाल रंग में। फिर सुखाने के बाद जब गाँठें खोली जाएँगी तो वस्त्र की लाल जमीन पर पीली और सफेद बुंदकीदार डिजाइन दिखाई देगा। इसी प्रकार डिजाइन एवं इच्छा के अनुसार वस्त्र को एक, दो या तीन या अधिक रंगों में रँगा जा सकता है। रँगाई सदा हल्के रंग से आरम्भ की जाती है। सबसे गाढ़ा रंग सबसे अन्त में दिया जाता है। बंधेज रँगाई के लिए बाजार में मिलने वाले साधारण रंग, बेंथॉल रंग अथवा नेफ्थॉल रंगों का उपयोग किया जाता है।

रँगाई की विधि वही है जो रँगाई अध्याय में बताई गई है। बंधेज प्रायः साधारण पक्के रंगों से रँगे जाते हैं। एक मीटर वस्त्र के लिए एक लीटर पानी में तीन से पाँच ग्राम तक रंग का पाउडर मिलाया जाता है। साथ में उतना ही नमक तथा कपड़े धोने का सोडा मिलाकर रंग का घोल उबाला जाता है। नमक मिलाने से रंग में चमक आ जाती है। कपड़े धोले का सोडा मिलाने से कपड़े पर रहने वाली गन्दगी या चिकनाई छूट जाती है तथा वस्त्र पर रंग पक्का चढ़ता है। गरम रंग के घोल को चूल्हे पर से उतारकर उसमें कपड़ा अच्छी तरह दबाकर डुबोएँ। बीस मिनट उसी घोल में पड़ा रहने दें ताकि उस पर ठीक से रंग चढ़ जाए। फिर रंग से निकालकर बीस मिनट तक ठण्डे पानी में भिगोकर रखें। तब हाथ से दबाकर पानी निकालकर सुखाएँ।

ब्रेन्थॉल रंगों का उपयोग करने के लिए रंगों के साथ दिए गए निर्देशों का पालन करें। इसमें एक घोल बेस रंग का बनाया जाता है। दूसरा घोल सोडियम सल्फेट अर्थात् उसके साथ दिए हुए ग्लॉबर साल्ट का होता है। वस्त्र को पहले रंग में, फिर साल्ट में पुनः रंग, में, फिर साल्ट में भिगोकर सुखाते हैं। साल्ट, रंग पक्का करने का काम करता है।

5. वस्त्र सुखाना (Drying)

बँधे हुए वस्त्र को बिना गाँठ खोले सुखाया जाता है। सदा छाया में, हवादार स्थान में सुखाना चाहिए। तेज धूप में सुखाने से रंग खराब हो जाता है। एक बार सुखाने के बाद, पुनः गाँठें बाँधकर दूसरे रंग में रंगकर वस्त्र को सुखाया जाता है। चाहे जितने भी रंगों में वस्त्र को रँगा जाए, गाँठें अन्तिम रँगाई तक नहीं खोली जातीं। वस्त्र को गाँठयुक्त ही सुखाना है, इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

6. गाँठें खोलना (Untying of Knots)

डिजाइन के अनुसार, अन्तिम रँगाई करके वस्त्र जब पूरी तरह सूख जाए तभी धागे या सुतली के बंधन काटते हुए गाँठें खोली जाती हैं। गाँठें खोलते समय धागों को जोर से नहीं खींचना चाहिए। कैंची की सहायता से धागे काटें। तेज, चाकू अथवा ब्लेड का उपयोग न करें। इससे वस्त्र कटने की सम्भावना रहती है। कपड़े के छोर में लगाई गई मोटी गाँठें हाथ से ही खोली जा सकती हैं।

7. इस्तरी करना (Ironing)

बंधेज रँगाई के बाद तीन दिनों तक (कम से कम) वस्त्र पर इस्तरी नहीं करनी चाहिए। इससे रंग खराब हो सकता है। पहले लोग ‘बाँधनी’ पर इस्तरी करते थे किन्तु कुछ लोग गाँठ खोलने के बाद सलवटयुक्त वस्त्र फैशन के रूप में पहनना पसन्द करते हैं। किन्तु एक बार वस्त्र धुलने के बाद से सलवटें भी समाप्त भी समाप्त हो जाती हैं। बंधेज वस्त्र पर कभी भी खूब गर्म इस्तरी नहीं करनी चाहिए।

इस प्रकार प्रथम चरण से अन्तिम चरण तक एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरकर बाँधनी अपने अन्तिम सुन्दर रूप में आ जाती है।

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shubham yadav

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