प्रश्न १. बिहारी का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर प्रकाश डालिए।

बिहारी का जीवन परिचय - kavivar bihari ka sahityik parichay

बिहारी का जीवन परिचय – kavivar bihari ka sahityik parichay

बिहारी का जीवन परिचय

बिहारी रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि हैं। श्रृंगार रस के सर्वश्रेष्ठ कवियों में बिहारी की गणना की जाती है। ‘बिहारी सतसई‘ का मूल प्रतिपाद्य श्रृंगार रस ही है। उन्होंने 700 से कुछ अधिक दोहों की रचना की। इन दोहों में भावों का सागर लहराता है। भाषा की समास शक्ति एवं कल्पना की समाहार शक्ति के बल पर उन्होंने दोहे जैसे छोटे छन्द में बड़े-बड़े प्रसंगों का समावेश कर दिया है। इसीलिए उनके सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है। बिहारी सतसई की प्रशंसा करते हुए कहा गया है-
सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगें घाव करें गम्भीर।

जीवन परिचय

महाकवि बिहारी का जन्म ग्वालियर के निकट बसुवा गोविन्दपुर नामक ग्राम में सम्वत 1660 वि. (सन् 1603 ई.) में हुआ था। इनके पिता का नाम केशवराय था। इनका विवाह मथुरा में हुआ था और अपनी युवावस्था में वे ससुराल में ही रहे। बाद में कुछ समय आगरा में रहे और फिर जयपुर के मिर्जा राजा जयसिंह के यहां गए। राजा जयसिंह अपनी नव विवाहिता के प्रेम पाश में आबद्ध होकर राजकाज भूल गए थे। बिहारी की एक श्रृंगारिक अन्योक्ति ने राजा को सचेत कर कर्तव्य पथ पर अग्रसर कर दिया। वह दोहा है :
नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं विकासु इहिं काल।
अली कली ही सों बिंध्यौ, आगे कौन हवाल।।
इस दोहे ने राजा जयसिंह की आंखें खोल दी और उन्होंने बिहारी को अपने दरबार में स्थान दिया। उसके बाद यहीं रहते हुए बिहारी ने राजा जयसिंह की प्रेरणा से अनेक सुन्दर दोहों की रचना की। कहा जाता है कि उन्हें प्रत्येक दोहे की रचना के लिए एक अशर्फी (स्वर्ण मुद्रा) प्रदान की जाती थी। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद बिहारी भक्ति और वैराग्य की ओर मुड़ गए। सम्वत् 1720 (सन् 1663 ई.) में उनकी मृत्यु हो गई।

रचनाएँ

कविवर बिहारी की प्रसिद्धि का मुख्य आधार उनकी एकमात्र काव्यकृति ‘बिहारी सतसई‘ है। इसमें 719 दोहे हैं। यह सतसई बिहारी की अनुपम कृति है। इसका एक-एक दोहा हिन्दी साहित्य का एक-एक रत्न माना जाता है। बिहारी सतसई का कुशल सम्पादन बाबू जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ ने ‘बिहारी-रत्नाकर‘ नाम से किया है।

शृंगार रस के ग्रन्थों में ‘बिहारी सतसई’ सर्वोत्कृष्ट रचना है। शृंगारिकता के अतिरिक्त इसमें भक्ति और नीति के दोहों का भी अदभुत समन्वय मिलता है। शृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का चित्रण इस ग्रन्थ में किया गया है।

बिहारी ने यद्यपि कोई रीति ग्रन्थ (लक्षण ग्रन्थ) नहीं लिखा, तथापि ‘रीति’ की उन्हें जानकारी थी। काव्यांगों का इस जानकारी का उपयोग उन्होंने अपनी ‘सतसई’ में किया है इसीलिए बिहारी को रीतिसिद्ध कवि कहा जाता है।

हिन्दी साहित्य में स्थान

बिहारी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ मुक्तककार हैं। मुक्तक कविता में जो गुण होना। चाहिए, वह बिहारी के दोहों में चरम उत्कर्ष पर पहुंचा है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ग्रन्थ ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ में मुक्तक काव्य के गुणों पर विचार करते हुए लिखा है-
“इसके लिए कवि को मनोरम वस्तुओं और व्यापारों का एक छोटा-सा स्तवक कल्पित कर उन्हें अत्यन्त संक्षिप्त और सशक्त भाषा में प्रदर्शित करना पड़ता है। अतः जिस कवि में कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की समास शक्ति जितनी ही अधिक होगी, उतना ही वह मुक्तक रचना में सफल होगा।”
यह क्षमता बिहारी के दोहों में विद्यमान है। निश्चय ही बिहारी रीतिकाल के मूर्धन्य कवि हैं और उनकी बिहारी सतसई हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ मुक्तक रचना है।
 

प्रश्न २. बिहारी की लोकप्रियता के कारण बताइए।

अथवा

“बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।” उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।

अथवा

“बिहारी एक सफल मुक्तककार हैं” इस कथन की समीक्षा कीजिए।

अथवा

मुक्तक रचना के रूप में बिहारी सतसई की विशेषताओं पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।

बिहारी रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि हैं। उन्होंने एकमात्र ग्रन्थ बिहारी सतसई की रचना की। जिसमें 700 से कुछ अधिक दोहे हैं। उन्होंने दोहे जैसे छोटे छन्द में इतने अधिक भावों का समावेश किया। है कि आलोचकों को उनके विषय में यह कहना पड़ा है- “बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।” उनकी सतसई के बारे में यह उक्ति प्रायः कही जाती है-
सतसइया के दोहरे ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगें घाव करै गम्भीर।।
एक सफल मुक्तक काव्य की सभी विशेषताएँ ‘बिहारी सतसई’ में उपलब्ध होती हैं। मुक्तक उस रचना को कहा जाता है जो अपने में अर्थ की दृष्टि से पूर्ण हो और जिसमें पूर्वापर सम्बन्ध का अभाव हो। बिहारी सतसई अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण लोकप्रिय काव्य-रचना सिद्ध हुई है। संक्षेप में बिहारी की काव्यगत विशेषताओं का उद्घाटन निम्न शीर्षकों में किया जा सकता है –

भाषा की समास शक्ति

कम शब्दों में अधिक भाव व्यक्त करने के लिए भाषा की समास शक्ति का प्रयोग बिहारी ने किया है। बड़े-बड़े प्रसंगों को भी दोहे की दो पंक्तियों में समाविष्ट कर देने में उन्हें सफलता मिली है। गुरुजनों से भरी सभा में नायक-नायिका किस प्रकार आखो के संकेत से ही वार्तालाप कर लेते हैं-
कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात।
भरे भौन में करत हैं नैननु ही सौं बात।।

कल्पना की समाहार शक्ति

बिहारी की काव्य प्रतिभा का मूल कारण है— उनकी कल्पना शक्ति। दूर की सूझ को कल्पना के बल पर अपने दोहों में साकार करने की यह शक्ति विरले कवियों में दिखाई पड़ती है। इसी से उनके काव्य में सरसता, मधुरता एवं चमत्कार आ गया है। युवावस्था और नदी में समानता खोजकर उन्होंने उसे एक ही दोहे में समाविष्ट कर दिया-
इक भीजै चहलैं परै बूड़े बहैं हजार।
किते न औगुन जग करै वै नै चढ़ती बार॥

चमत्कार प्रदर्शन

बिहारी ने अपने युग के अनुरूप ही कविता में चमत्कार प्रदर्शन की प्रवृत्ति का परिचय भी दिया है। श्लेष, यमक का चमत्कार उनके अनेक दोहों में देखा जा सकता है। यथा निम्न दोहे में कनक शब्द का दो बार प्रयोग अलग-अलग अर्थों में करते हुए यमक का विधान किया गया है-
कनक कनक तै सौ गुनी मादकता अधिकाय।।
या खाए बौराय नर वा पाए बौराय।।

बहुज्ञता का प्रदर्शन

बिहारी को अनेक विषयों की अच्छी जानकारी थी। ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद, इतिहास-पुराण आदि का ज्ञान उन्हें था, क्योंकि उन्होंने अपने दोहों में इन विषयों का प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए ज्योतिष ज्ञान की जानकारी निम्न सोरठे से सिद्ध होती है।
मंगल बिन्दु सुरंग, मुख ससि केसर आड़ गुरु।
इक नारी लहि संग, रसमय किय लोचन जगत।।

श्रृंगार रस की प्रधानता

बिहारी सतसई मलतः भंगार रस से ओत-प्रोत काव्य ग्रन्थ है। शृंगार के दोनों ही पक्ष संयोग और वियोग इसमें समाविष्ट किए गए हैं। उन्होंने नायिका के अंग-प्रत्यंग के सौंदर्य का सरस चित्रण तो किया ही है, साथ-ही-साथ नायक-नायिका की प्रेम क्रीडाओं, हाव-भाव का भी विशद चित्रण किया है। राधा-कृष्ण की यह क्रीड़ा कितनी आकर्षक है-
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौह करै भौंहनु हँसे देन कहै नटि जाइ।
वियोग श्रृंगार में बिहारी ने विरह ताप का अस्वाभाविक एवं ऊहात्मक चित्रण किया है। यथा-
औंधाई सीसी सुलखि विरह बरनि विललात।
बिच ही सूखि गुलाबु गौ छींटौं छुई न गाता।

प्रकृति चित्रण

बिहारी ने प्रकृति का आलम्बन रूप में चित्रण करके अनेक मार्मिक दोहे लिखे हैं, जिनसे प्रकृति का साकार चित्र उपस्थित हो जाता है। गर्मी की ऋत का यह वर्णन देखिए-
कहलाने एकत बसत अहि, मयूर, मृग बाघ
जगत तपोवन सो कियो दीरघ दाघ निदाघ।।

सरस प्रसंगों का वर्णन

बिहारी ने जीवन के सरस प्रसंगों का अनायास ही अत्यन्त सुन्दर वर्णन कर दिया है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति आनन्दित हो सकता है यथा-
नासा मोरि नचाय द्रग करी कका की सौंह।
कांटे सी कसकति हिए बहै कटीली भौंह।।

व्यजना सौन्दर्य

बिहारी के अनेक दोहों में अन्योक्ति एवं व्यंजना का सौन्दर्य दिखाई पड़ता है। उदाहरण के लिए निम्न दोहे को लिया जा सकता है जिसमें सामान्य अर्थ तो भौरे और कली से सम्बन्धित है, किन्तु दूसरा व्यंग्यार्थ राजा जयसिंह से सम्बन्धित है-
नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहि काल।
अली कली ही सौं विंध्यौ आगे कौन हवाल।।
उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मुक्तक काव्य की सभी विशेषताएँ बिहारी सतसई में उपलब्ध हैं। भाव पल एवं कला पक्ष दोनों ही दष्टियों से यह हिन्दी साहित्य का बेजोड ग्रन्थ है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण बिहारी अत्यन्त लोकप्रिय कवि हैं।