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भारतीय मौद्रिक नीति के प्रमुख तथ्य
भारतीय मौद्रिक नीति में अनेक प्रकार के विकासात्मक एवं सुधारात्मक परिवर्तन समय-समय पर होते रहे हैं। भारतीय मौद्रिक नीति के अन्तर्गत उन सभी पक्षों को स्थान दिया गया है, जोकि भारत को एक विकसित अर्थ व्यवस्था प्रदान करते हैं। भारतीय मौद्रिक नीति के प्रमुख तथ्यों को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
1. कीमतों पर नियन्त्रण (Controlling on prices) – भारतीय मौद्रिक नीति में इस तथ्य की व्यवस्था की गयी है कि वस्तुओं की कीमत आवश्यकता से अधिक न हो जाये। कीमतों पर नियन्त्रण रखने के लिये सरकार द्वारा समय-समय पर उपाय किये जाते हैं, जिससे वस्तुओं की पूर्ति, उत्पादन एवं माँग को साम्य स्थिति में रखा जा सके।
2. ब्याज दर पर नियन्त्रण (Controlling on rate of interest) – भारतीय मौद्रिक नीति में रिजर्व बैंक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। रिजर्व बैंक द्वारा अपनी अधीनस्थ बैंकों को निर्देश दिये जाते हैं कि ब्याज दर को कब कितना परिवर्तित करना है क्योंकि अधिक ब्याज दर तथा कम ब्याज दर दोनों ही अर्थव्यवस्था के लिये अच्छे नहीं माने जाते।
3. बैंकों की स्थापना (Establishment of bank) – भारतीय मौद्रिक नीति के अन्तर्गत विविध बैंकों की स्थापना की गयी है। कुछ बैंक सामान्य क्रियाकलापों को निर्धारित करते हैं तो कुछ बैंक एक निश्चित क्षेत्र के लिये कार्य करते हैं; जैसे- भूमि विकास बैंक भूमि सुधार एवं भूमि उत्पादकता सम्बन्धी कार्यों के लिये ऋण प्रदान करते हैं।
4. बैंकिंग सुविधाओं का विकास (Development of banking facilities) – आज प्रत्येक ग्रामीण धन को नकद रूप में रखने के स्थान पर साख पत्रों, एफ. डी. या बचत खातों का प्रयोग करता है। इससे वह धन को नकद रूप में रखने के जोखिम से बच सकता है। बैंक सुविधा के प्रयोग से आर्थिक विकास की स्थिति उत्पन्न होती है।
5. आर्थिक विकास का समावेश (Inclusion of economic development) – भारत द्वारा अपने आर्थिक विकास के लिये उन क्षेत्रों में धन लगाने को प्राथमिकता प्रदान की गयी है जोकि भारत के आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं; जैसे – कृषि क्षेत्र के लिये अधिक धन की व्यवस्था करना क्योंकि कृषि भारत के 70% लोगों का प्रमुख व्यवसाय है जोकि अर्थव्यवस्था में प्रमुख सहयोग देती है।
6. साख विस्तार पर नियन्त्रण (Controlling on credit extension) – भारतीय मौद्रिक नीति के अन्तर्गत रिजर्व बैंक द्वारा अधीनस्थ बैंकों की साख पर नियन्त्रण किया जाता है, इसके परिणामस्वरूप एक निश्चित सीमा तक आवश्यक साख का विस्तार किया जाता है।
7. उत्पादन में वृद्धि (Increment in production) – उत्पादन की प्रत्येक वृद्धि आर्थिक विकास एवं अर्थव्यवस्था के लिये अच्छी मानी जाती है। इसलिये बजट में कृषि एवं उद्योग दोनों के लिये उचित धनराशि की व्यवस्था की जाती है।
8. सन्तुलित बजट (Balanced budget) – सन्तुलित बजट के अन्तर्गत उन सभी पक्षों का ध्यान रखा जाता है जोकि आर्थिक कल्याण से सम्बन्धित होते हैं। उन वस्तुओं पर कर कम लगाया जाता है जोकि अनिवार्य एवं महत्त्वपूर्ण हैं। उन वस्तुओं पर अधिक कर लगाया जाता है जोकि विलासिता से सम्बन्धित होती हैं। इसी आधार पर कृषि उत्पादों के विक्रय पर कोई कर नहीं होता तथा उर्वरकों पर सरकार छूट प्रदान करती है।
9. निवेश को प्रोत्साहन (Motivation to investment) – सामान्य रूप से भारतीय व्यक्ति अपने धन की बचत को नकद रूप में अपने पास रखते हैं। सरकार द्वारा बैंकों की ब्याज दर बढ़ाकर तथा उनको बीमा आदि का लाभ देकर समस्त बचत को बैंकों में जमा कराया जाता है। इस धन का उपयोग बैंकों एवं बीमा कम्पनियों द्वारा उद्योगों एवं विकास कार्यों में लगाया जाता है, जिससे एक ओर जनता को अपने धन का लाभ मिलता है, वहीं दूसरी ओर समाज में विकास की गति तीव्र होती है।
10. निर्यात को प्रोत्साहन ( Motivation to export) – वर्तमान समय में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मुद्रा के अवमूल्यन को रोकने के लिये तथा विदेशी मुद्रा के भण्डार में वृद्धि के लिये आवश्यक निर्यात को बढ़ावा दिया गया है। इस कार्य में जिन उत्पादों की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में माँग है, उन उत्पादों के लिये सरकार द्वारा ऋण प्रदान किया जाता है, जिससे उत्पादक अधिक उत्पादन करके विदेशों के लिये निर्यात करता है। इससे विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।
11. मुद्रा की क्रय शक्ति पर नियन्त्रण (Controlling on purchasing power of money) – अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मुद्रा का अवमूल्यन भी अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि इससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मुद्रा एवं देश की प्रतिष्ठा को आघात लगता है। इसलिये सरकार द्वारा सदैव मुद्रा की क्रय शक्ति पर नियन्त्रण रखते हुए उसे स्थिर रखने का प्रयास किया जाता है।
12. उच्च जीवन स्तर (High living standard) – प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के लिये सरकार द्वारा औद्योगिक एवं कृषि क्षेत्र में रोजगार की सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं। उद्योगपतियों को ऋण प्रदान किये जाते हैं, जिनके आधार पर औद्योगिक विकास होता है। लोगों को रोजगार मिलता है तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है।
13. कुटीर उद्योगों का विकास (Development of cottage industries) – सरकार की मौद्रिक नीति में कुटीर उद्योगों के विकास के लिये धनराशि व्यय करने का प्रावधान किया गया है। इस आधार पर प्रत्येक ग्रामीण व्यक्ति को छोटे-छोटे उद्योग लगाने के लिये धन एवं सुविधा प्रदान की जाती है। इससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि भी होती है।
14. मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण (Controlling on monetary inflation) – मौद्रिक नीति के अन्तर्गत मुद्रा स्फीति रोकने के लिये सरकार द्वारा प्रयास किये जाते हैं क्योंकि अधिक मुद्रा स्फीति से महँगाई बढ़ जाती है तथा अर्थव्यवस्था के लिये भी इसे अच्छा नहीं माना जाता। आर्थिक उतार-चढ़ाव के कारण विदेशी कम्पनियाँ अपना धन भारत में लगाने के लिये तैयार नहीं होतीं क्योंकि इस निवेश में उनको अपना लाभ दृष्टिगोचर नहीं होता ।
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