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भारतीय शिक्षा की अवधारणा | Concept of education in Hindi

भारतीय शिक्षा की अवधारणा
भारतीय शिक्षा की अवधारणा

भारतीय शिक्षा की अवधारणा | Concept of education in Hindi

शिक्षा मनुष्य के विकास की पूर्णता की अभिव्यक्ति है। शिक्षा के द्वारा ही इच्छा शक्ति की धारा पर सार्थक नियन्त्रण स्थापित हो सकता है। शिक्षा को शब्द संग्रह अथवा शब्द समूह के रूप में न देखकर विभिन्न शक्तियों के विकास के रूप में देखा जाना चाहिये। शिक्षा से ही व्यक्ति सही रूप में चिन्तन करना सीखता है। तथ्यों के संग्रह मात्र का नाम शिक्षा नहीं है, इसका सार मन में एकाग्रता के रूप में प्रकट होना चाहिये। शिक्षा व्यक्तियों का निर्माण करती है, चरित्र को उत्कृष्ट बनाती है और व्यक्ति को संस्कारित करती है। जो मनुष्य को मनुष्य बनाती है, वही सही अर्थ में शिक्षा है। शिक्षा स्वयं को पहचानने एवं अपनी शक्तियों को पहचानने की क्षमता का विकास करती है। शिक्षा एक साधन है, जो व्यक्ति के आन्तरिक गुणों को प्रखर करती है, उसमें जो अन्तर्निहित शक्तियाँ हैं, उनको विकसित करती है। इस बात को दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि शिक्षा बालक के नैतिक, शारीरिक, संवेगात्मक, बौद्धिक एवं आन्तरिक ज्ञान को बाहर लाने में योग देने वाली एक क्रिया है। शिक्षा सीखना नहीं है, वरन् मस्तिष्क की शक्तियों का अभ्यास और विकास है। साधारण बोलचाल में शिक्षा का अर्थ विद्यालयी शिक्षा से लिया जाता है। बालक के भावी जीवन की तैयारी तथा उसमें क्षमतापूर्वक दायित्व निभाने की क्षमता प्रदान करना शिक्षा का उद्देश्य समझा जाता है। अत: हम कह सकते हैं। व्यक्ति के जीवन में शिक्षा ऐसा परिवर्तन लाती है जिससे वह निरन्तर उत्कृष्टता की ओर अग्रसर हो सकता है। शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जो जीवन पर्यन्त चलती है।

शिक्षा की संकल्पना के सम्बन्ध में शिक्षाशास्त्रियों के विचार निम्नलिखित प्रकार हैं-

(1) प्लेटो के अनुसार- “शिक्षा से मेरा अभिप्राय उस प्रशिक्षण से है, जो अच्छी आदतों के द्वारा बालक में नैतिकता का विकास करती है।”

(2) अरस्तू के शब्दों में-“शिक्षा स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण करती है।”

(3) काण्ट ने कहा है-“शिक्षा व्यक्ति की उस पूर्णता का विकास है, जिस पर वह पहुँच सकता है।”

(4) स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में- “हमें उस शिक्षा की आवश्यकता है जिसके द्वारा चरित्र का निर्माण होता है, मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है, बुद्धि का विकास होता है और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है।”

(5) डीवी के अनुसार-“शिक्षा विकास है एवं विकास करना तथा अभिवृद्धि करना ही जीवन है।”

(6) रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शब्दों में- “शिक्षा का उद्देश्य आध्यात्मिक विकास करना है।”

(7) गाँधीजी ने भी शिक्षा में ‘मानवता’ की ओर दृष्टिपात किया है।

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shubham yadav

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