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भारत में अपराध वृद्धि के कारण
संसार के अपराध की उच्चतर दर वाले देशों में भारत का छठा स्थान है तथा अपराधशास्त्रियों की यह धारणा है कि आने वाले वर्षों में भारत में अपराध दर में वृद्धि होगी। अभी यह वृद्धि जनसंख्या वृद्धि की दर से कहीं अधिक है। अपराध की यह बढ़ती हुई संख्या देश के लिए चिन्ता का विषय है।
1. भारत में होने वाले अपराधों में सामाजिक तथा आर्थिक कारण प्रमुख हैं। पाश्चात्य देशों में मानसिक कारणों का अधिक महत्व है।
2. यहाँ अपराध व फसल में घनिष्ठ संबंध है। औद्योगिक नगरों में वेतन वितरण के दिन से अपराधों का संबंध है। अपने देश में भाषा, जाति, धर्म के आधार पर भी अनेक अपराध होते हैं।
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अपराध के कारण
भारत में अपराध के कारण निम्नलिखित हैं 1. सामाजिक 2. आर्थिक 3. धार्मिक 4. राजनैतिक 5. मनोवैज्ञानिक 6. अन्य कारण।
अपराध के सामाजिक कारण
अपराध वृद्धि के सामाजिक कारण निम्नलिखित है-
1. दहेज प्रथा- भारत में दहेज प्रथा का व्यापक प्रचलन है। इस प्रथा ने आज अत्यधिक विषम रूप धारण किया है जिससे अनेक अपराधों को जन्म मिला है। दहेज की कठिनाई से कन्याओं का निरादर ही नहीं वरन् उनकी हत्या का प्रचलन हुआ।
2. विधवा पुनर्विवाह पर रोक- कई कारणों से सवर्णों में विधवा पुनर्विवाह पर रोक लगाई गई। जीवन भर वैधव्य भोगना ही बहुत बड़ी सजा है। किन्तु जब समाज विधवाओं को घृणा व पीड़ा का शिकार बनाता है तो विधवाओं की स्थिति अत्यन्त दयनीय हो जाती है। इनमें बाल-विधवाओं की कहानी तो और भी मर्मस्पर्शी है।
3. बाल विवाह- बाल विवाह के प्रचलन के कारण अनेक अपराध होते हैं। योग्य जीवन-साथी मिलने में कठिनाई होती है। ये विवाह तब होते हैं जब विवाह संबंधी कोई जानकारी नहीं होती। अतएव पथभ्रष्ट हो जाना सरल होता है।
4. देवदासी प्रथा – देवदासी प्रथा में कुछ माता-पिता अपने बच्चों को विशेष कर लड़कियों को देवी-देवताओं की सेवा के लिए मन्दिरों को अर्पित कर देते हैं। ये लड़कियां देवी-देवताओं की सेवा तो कम किन्तु महन्तों की शरीर सेवा अधिक करती हैं।
5. कुलीन विवाह प्रथा – कुलीन विवाह में हर माता-पिता अपनी कन्या की शादी कुलीन घरों में ही करना चाहते हैं।
6. नरबलि की प्रथा – नरबलि की प्रथा का क्षेत्र धीरे-धीरे संकुचित हो रहा है किन्तु फिर भी देश के कुछ भागों में नरबलि की कुप्रथा का प्रचलन हैं। स्वार्थ हेतु देवी-देवताओं को सन्तुष्ट करने के लिए कभी-कभी अपने ही बच्चों की और कभी दूसरों के बच्चों की बलि दे दी जाती है।
7. समाचार पत्र– समाचार पत्र अनेक अपराध संबंधी सूचनाओं व विवरणों से भरे रहते हैं। ये अनेक ढंगों से अपराधों को प्रोत्साहित करते हैं, जैसे- 1. अपराध करने की विधि बतलाकर 2. अपराध को आर्थिक लाभप्रद दर्शाकर 3. अपराधियों को प्रतिष्ठा का स्थान देकर 4. अपराध को आकर्षक व उत्तेजनापूर्ण विषय बनाकर 5. अपराधियों को दण्ड से बचाकर अपराध को एक सामान्य विषय बनाकर आदि।
8. अपराध सम्बन्धी साहित्य – समाचार पत्रों के अतिरिक्त आजकल ऐसी अनेक पुस्तकों का प्रकाशन बढ़ गया है अपराधों से संबंधित होती हैं। जैसे हत्या, डकैती, चोरी, यौन, जालसाजी, ब्लैकमेलिंग, नग्न चित्र तथा अन्य अश्लील विषयों से संबंधित रोमांचक, उत्तेजक, कामुक, सनसनीखेज, पुस्तकों का प्रकाशन जिनके पाठकों की संख्या देश-विदेश में निरन्तर बढ़ रही है।
9. चलचित्र – चलचित्र मनोरंजन का एक सस्ता व लोकप्रिय ढंग है। आजकल धार्मिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, चलचित्रों को देखने वालों की संख्या कम हो रही है।
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अपराध वृद्धि के आर्थिक कारण
अपराध वृद्धि के आर्थिक कारण निम्नलिखित हैं-
1. निर्धनता व बेकारी- भारत में निर्धनता व बेकारी बहुसंख्यक अपराधों की जननी है। भारत सम्पन्न साधनों वाला निर्धन देश है, जहाँ व्यापक बेरोजगारी और भुखमरी है। बेकार अशिक्षितों के साथ साथ शिक्षित बेकारों की संख्या बहुत अधिक है। देश में लाखों इंजीनियर व टेक्नीकल हैंड उचित काम के अभाव में बेकार हैं। यह स्थिति देश के लिए घातक है।
2. फसलों की दशा- भारत कृषि प्रधान देश है। अधिकांश लोग अपनी जीविका लिए कृषि पर निर्भर करते हैं। अतः उनकी आर्थिक दशा का मूलाधार खेती है। भारत की कृषि प्रणाली पिछडी है। साथ ही वह वर्षा के साथ एक प्रकार का जुआ है। वर्षा कभी कम होती है, कभी अधिक। कभी समय होती है तो कभी देर से। यहाँ वर्षा के साथ कभी-कभी ओले गिर जाते हैं।
3. अविकसित क्षेत्र – आर्थिक दृष्टि से पिछड़े क्षेत्र भी अपराध के लिए अनुकूल सिद्ध होते हैं। साथ ही यदि अपराधियों के छिपने के क्षेत्र सुलभ हो तो अपराध में वृद्धि होती है। चम्बल घाटी और उसके समीपवर्ती स्थान डाकू समस्या पनपाने में इसलिए सहायक हुए हैं।
4. औद्योगीकरण व नगरीकरण – औद्योगीकरण व नगरीकरण की प्रक्रिया भारत में अभी पश्चिमी देशों की तरह तीव्र और व्यापक नहीं है फिर भी तीव्र सामाजिक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी है। इससे भी ऐसी नवीन परिस्थितियों को जन्म मिला है जो अपराधों की वृद्धि में सहायक है।
अपराध वृद्धि के धार्मिक कारण
अपराध वृद्धि के धार्मिक कारण निम्नलिखित हैं-
1. धर्म का घटता हुआ प्रभाव- अपराध वृद्धि में धर्म का घटता हुआ प्रभाव एक प्रमुख कारण है। धर्म के भाव के कारण लोगों का आचरण नियंत्रित रहता था। धर्म सद्कार्य व पुण्य कार्य को प्रोत्साहित करता है। असद और पाप पूर्ण कार्यों से बचने की शिक्षा देता है। धर्म के अभाव में जीवन उच्छृंखल, स्वार्थी व अहंवादी हो जाता है। इससे भी भ्रष्टाचार, यौनाचार व अपराध बढ़ता है।
2. धार्मिक अन्धविश्वास व कुरीतियाँ- धर्म के नाम पर रूढ़िवादी व्यवहार, कुरीतियां व कुप्रथायें भी प्रचलित हो जाती हैं। देवी-देवताओं को सन्तुष्ट करने के नाम पर नर बलि आदि को उचित बताया जाता है।
3. धर्म के नाम पर शोषण- हमारी धार्मिकता का अनुचित लाभ उठाया जाता है। चोर, डाकू, ठग व अपराधी वेश बदलकर हमारा शोषण करते हैं। अनेक साधु सन्यासी साम्प्रदायिक दंगे कराते हैं।
अपराध वृद्धि के राजनैतिक कारण
1. राजनैतिक भ्रष्टाचार- आधुनिक राजनीति के दांव पेच व हथकण्डों को देखकर तो ऐसा लगता है कि राजनीति बदमाशों की चाल व फरेब है। नेताओं के हाथ में शासन की बागडोर होती है किन्तु इनमें से अधिकांश भ्रष्ट, बेईमान व अवसरवादी होते हैं।
2. युद्ध- युद्ध अपराध के लिये उत्तरदायी होता है। युद्ध की स्थिति में सामान्य जीवन समाप्त हो जाता है। असामान्य जीवन और परिस्थितियां पनपती हैं। नियन्त्रण शिथिल होता है। मूल्यों में वृद्धि होती है।
3. अस्त्र-शस्त्र सम्बन्धी नीति- भारत के स्वतन्त्र होने के पहले ‘आर्म्स एक्ट के द्वारा नागरिकों के अस्त्र-शस्त्र रखने पर कड़ा प्रतिबन्ध लगा था। स्वतंत्र भारत में इस कानून में परिवर्तन हुआ है।
अपराध वृद्धि के मनोवैज्ञानिक व मानसिक कारण
भारत में प्रथाओं, परम्पराओं, रूढ़ियों व निषेधों का बाहुल्य है। अतएव व्यक्तित्व का स्वाभाविक विकास नहीं हो पाता। इससे संवेगात्मक अस्थिरता, मानसिक तनाव, इच्छाओं का दमन पनपता है जो विविध अपराधों को जन्म देता है। इसी तरह मानसिक दुर्बलता मानसिक विकृतियां व रोग भी अपराधी व्यक्तित्व को जन्म देते हैं। इनके उपचार की उचित सुविधाओं की कमी होने के कारण भी अपराध बढ़ते हैं।
अपराध वृद्धि के अन्य कारण
1. जैवकीय दोष व विकृतियां- अपराध वृद्धि में आंख, कान, नाक, गले के दोष बोलने के दोष, शारीरिक शक्ति का आधिक्य, शरीर का असामान्य विकास, असामान्य यौनेच्छा आदि सहायक कारक हैं।
2. नशीले पदार्थ- नशा व अपराध का घनिष्ठ संबंध है। नशे की स्थिति में व्यक्ति विवेक खो बैठता है। उसे भले व बुरे अपने व पराये का ज्ञान नहीं रहता। दुर्भाग्य से देश में नशीली वस्तुओं का व्यापक प्रचलन है जो वैयक्तिक विघटन और अपराध को जन्म देती हैं।
3. अपराधी पर्यावरण- बहुत से अपराध अनुकरण के फलस्वरूप होते हैं। इसीलिए बुरा पड़ोस, बुरा संग-साथ और पर्यावरण अनेक अपराधों का जनक होता है।
4. पुलिस व कचहरी- पुलिस अपराधियों की संख्या कम करने अथवा अपराध नियन्त्रण के उद्देश्य से रखी गयी है किन्तु पुलिस अपराध निरोध में नहीं वरन् अपराध वृद्धि में सहायक हुई है। प्रश्न 8 अपराध को रोकने के उपाय बताइये । उत्तर –
अपराध को रोकने के उपाय
अपराध को रोकने के कुछ प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं:
1. बन्ध्याकरण – कुछ लोग अपराध में वंशानुसंक्रमण का प्रमुख हाथ मानते हैं। ऐसे लोग अपराधी के माता-पिता की सन्तानोत्पत्ति की शक्ति को नष्ट करने के पक्ष में है। यह बन्ध्यकरण के द्वारा अपराध कम करना चाहते हैं।
2. मनोवैज्ञानिक चिकित्सालय- कुछ लोग मानसिक दोषों व संघर्षो के फलस्वरूप अपराध का होना मानते हैं। इनमें डॉ. बर्ट प्रमुख हैं। यह मनोवैज्ञानिक चिकित्सालयों को अपराध निरोध में महत्वपूर्ण मानते हैं।
3. शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार- कुछ लोग सामान्य शिक्षा के साथ-साथ नैतिक व धार्मिक शिक्षा के प्रचार व प्रसार को अपराध निरोध का प्रभावशाली ढंग मानते हैं जिनमें डॉ. सेठना का नाम उल्लेखनीय हैं।
4. निरीक्षित मनोरंजन के साधन – कुछ लोग व्यापारिक मनोरंजन के साधनों को अपराध का प्रमुख कारण मानते हैं। ऐसे लोग यह राय देते हैं कि सस्ते, स्वस्थ मनोरंजन के साधनों को जुटा कर अपराध को कम किया जा सकता है। इसके लिए कम्युनिटी हाउस व बायज क्लब की स्थापना की राय दी जाती है।
5. सुखी व संगठित परिवार- अपराध में परिवार की भूमिका कम नहीं है। टूटे, अनैतिक, निर्धन – व अभावग्रस्त परिवार अपराधों के केन्द्र होते हैं। अतएव अपराध निरोध में परिवार का पुनर्गठन व सुखी होना महत्वपूर्ण माना जाता है।
6. दोषों व कारणों को दूर करके- अपराध के कारणों को दूर करना अपराध निरोध का महत्वपूर्ण उपाय माना जाता है। इसमें गन्दी बस्तियों, गन्दे पर्यावरण, बेकारी, निर्धनता, सामाजिक व धार्मिक कुप्रथाओं में सुधार करना प्रमुख माना जाता है।
7. पड़ोसी सलाहकार समितियां- अपराध निरोध में पड़ोसी सलाहकार समितियां अत्यधिक सहायक सिद्ध हो सकती हैं। ये समितियाँ बच्चों के क्रियाकलापों पर दृष्टि रखें, उन्हें पथभ्रष्ट होने से बचायें। समय पर सलाह देकर व सुधार करके बालकों को अपराधी न होने में ये समितियां महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती हैं।
8. हृदय परिवर्तन- हृदय परिवर्तन के द्वारा अपराधियों को सामान्य जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरणा देने की सर्वोत्तम नीति अपराध निरोध में प्रभावी सिद्ध हुई है।
9. सरकारी कार्य – सरकार भी अनेक उपाय अपनाकर अपराध निरोध कार्यक्रम बनाने में सहायक हो सकती है। उदाहरण के लिए कुशल पुलिस व्यवस्था, कानूनों व अदालतों में आवश्यक सुधार, अपराधी खोज की कुशल विधियों को अपनाकर अपराध कम किया जा सकता है।
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