अनुक्रम (Contents)
भावपक्ष की दृष्टि से निराला में काव्य-सौन्दर्य की समीक्षा
निराला जी के काव्य में विविधता
निराला जी की रचनाओं में वे सभी भाव-स्तर मिल जाते हैं, जो आज के युग में किसी बड़े कवि में मिल कते हैं, पर कोई व्यवस्थित विकास नहीं दिखाई पड़ता। एक ओर उनकी रहस्यवादी रचनाएँ भी हैं, जिनमें बंगाल के ‘रामकृष्ण मिशन के वेदान्त का प्रभाव है। ‘तुम तुंग हिमालय श्रृंग और चंचल गति सुर सरिता’ नाम की इनकी कविता प्रसिद्ध ही है। दूसरी ओर इनकी करुणा की प्रबल धारा ने प्रपीड़ितों और शोषितों को भी अपनाया है। यह सहानुभूति प्रगतिवादी वृत्ति के अनुकूल बैठती है। ‘विधवा’ अथवा ‘भिखारी’ उनकी ऐसी ही रचनाएँ हैं। ‘कुकुरमुत्ता’ में अद्भुत ढंग से शोषित तथा उपेक्षित का मौलिक महत्त्व प्रतिष्ठित किया गया है। इन सबके साथ ही निराला जी में भारतीय संस्कृति का प्रेम भी प्रबल है।
निराला जी का भक्ति-सिद्धान्त
निराला जी मस्तिष्क से अद्वैतवादी हैं, पर हृदय से भक्ति तथा प्रेमवादी हैं। उनकी अनेक रचनाओं पर दार्शनिकता की छाप है। ‘जागरण’, ‘मैं और तुम’, ‘कर्ण’ आदि अनेक रचनाएँ सूक्ष्म दार्शनिक विचारों से ही ओत-प्रोत हैं।
सिद्धान्त रूप में इन दार्शनिक सिद्धान्तों को मानते हुए इनके हृदय में उनसे संतोष नहीं होता। इसी से निराला जी उपासक बने रहना चाहते हैं। इन्हीं विचारों को लक्ष्मण ने ‘पंचवटी प्रसंग’ में व्यक्त किया है :
आनन्द बन जाता हेय है, श्रेयस्कर आनन्द पाना है।
ये ही पंक्तियाँ निराला जी की भक्ति का आधार हैं। अतः निराला जी ‘सोऽम्, की रट नहीं लगाये रहते। वे करुणानिधान, भक्त-वत्सल भगवान पर भरोसा करते हुए ‘सर्वधर्मान परित्यज मामेकं शरणं ब्रज’ की भावना व्यक्त कर रहे हैं-
‘डोलती नाव, प्रखर है धार, सँभालो जीवन खेवनहार ।
उन्हें पूर्ण विश्वास है कि एक दिन उस प्रिय के अंचल में भक्त की नारी वेदना, विफलता तथा पीड़ा शान्त हो जायेगी-
“एक दिन थम जायगा रोदन तुम्हारे अंचल में।”
अद्वैतवाद पर पूर्ण आस्था रखने के कारण तथा भक्तोचित भावुकता में मग्न रहने के कारण अस्पष्ट रहस्यवाद इनकी रचनाओं में टिकने की पंक्तियों में उनकी भावुकता रहस्योन्मुख भावना में लीन हो गई है:
‘फिर किधर को हम कहेंगे, तुम किधर होगे,
कौन जाने सहारा तुम किसे दोगे ? /हम मगर बहते मिले,
क्या कहोगे भी कि हाँ पहचानते।/या अपरिचित खोल प्रिय चितवन
मगन बह जावेंगे पल में/परम-प्रिय-संग अतल जल में ? “
भावपक्ष- निराला जी निराशावादी नहीं हैं, पर ऐसे आशावादी भी नहीं, जो दुःखों की उपेक्षा करें। वे सुख-दुख के द्वन्द्व को महत्त्व देते हैं। निराला जी की रचनाओं का प्रेम भी एक विषय है पर वह प्रेम अत्यन्त पावन है। प्रेम की इस पावन धारा में सर्वसाधारण स्नान करने का साहस ही कहाँ कर सकते हैं-
दिव्य देहधारी ही कूदते हैं इसमें / प्रिय पाते हैं प्रेममृत पीकर होते हैं।”
प्रेम की इस साधना के लिए न जाने कितने कष्ट उठाने पड़ते हैं। हरिश्चन्द्र जी के-
“पगन में छाले पड़े, नांघिवे को नाले पर। “
वाले कष्टों से कम कष्ट निराला जी के प्रेम को भी यहीं झेलने पड़ते तो भी हरिश्चन्द्र जी के प्रेमी की तरह-
तऊ लाल लाले पर रावे दरस के।
निराला जी के प्रेमी को भी दर्शन के लाले पड़ जाते हैं।
बिछे हुए थे काँटे उन गलियों में जिनमें मैं चलकर आई,
X X X
किन्तु तुम्हारी प्रीति न पायी ।
निराला जी की रचनाओं में करुणा भी हृदय को द्रवित करने वाली है। इनकी रचनाओं में देश-प्रेम का स्वर भी मुखरित है। ‘जागो फिर एक बार’ की कुछ पंक्तियाँ देखिये-
जागो फिर एक बार,/समर में अमर कर प्राण,
गान गाये महासिन्धु से, / सिन्धु नदी तीरवासी !
निराला जी कुशल चित्रकार की तरह वस्तु के चित्र को खींचकर रख देते हैं। एक भिक्षुक का चित्र देखिये-
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
इसी प्रकार संध्या सुन्दरी का दृश्य भी देखने योग्य है-
निराला जी के काव्य का भावपक्ष सफल है, परन्तु विशेषकर उनका काव्य पुरुष भावनाओं का काव्य है।
- जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय (Jaishankar Prasad Biography in Hindi)
- जयशंकर प्रसाद जी प्रेम और सौन्दर्य के कवि हैं। इस कथन की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
- जयशंकर प्रसाद के काव्य की विशेषताएँ बताइए।
- जयशंकर प्रसाद जी के काव्य में राष्ट्रीय भावना का परिचय दीजिए।
You May Also Like This
- कविवर सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- कविवर बिहारी का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- रसखान का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- सूरदास का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय, रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल- जीवन-परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएँ
- सूरदास जी की जीवनी और साहित्यिक परिचय
- तुलसीदास का साहित्यिक परिचय
- भक्तिकाव्य की प्रमुख प्रवृत्तियां | भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएं
- सूरदास जी की जीवनी और साहित्यिक परिचय (Surdas biography in Hindi)
अगर आप इसको शेयर करना चाहते हैं |आप इसे Facebook, WhatsApp पर शेयर कर सकते हैं | दोस्तों आपको हम 100 % सिलेक्शन की जानकारी प्रतिदिन देते रहेंगे | और नौकरी से जुड़ी विभिन्न परीक्षाओं की नोट्स प्रोवाइड कराते रहेंगे |