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महादेवी वर्मा के काव्य के वस्तु एवं शिल्प की सोदाहरण विवेचना कीजिए ।
महादेवी के गीतों की विशेषताएँ
वस्तु और शिल्प अथवा भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही क्षेत्रों में नवीनता का सन्देश लेकर ‘छायावाद’ का आगमन हुआ है। इसकी प्रमुख प्रवृत्तियाँ एवं शैलीगत प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं- (क) वस्तुगत प्रवृत्तियाँ, (ख) शिल्पगत विशेषताएँ ।
(क) वस्तुगत प्रवृत्तियाँ विशेषताएँ
(1) वैयक्तिकता तथा आंतरिक अनुभूति- छायावाद के कवियों ने अपने काव्य से समाज-चित्रण की अपेक्षा अपने व्यक्तित्व हर्ष-विवाद को ही प्रधानता प्रदान की है। प्रसाद ने ‘आँसू’ में अपने वियोग-विदलित हृदय के अश्रु बहाए हैं, पंत प्रधान ‘ग्रन्धि’ में अपने मन की गाँठ खोलकर रख दी है, निराला ने प्रतयक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही विधियों से अपनी वैयक्तिक भावनाओं की सफल अभिव्यक्ति की है तथा महादेवी वर्मा ने अपनी व्यक्तिगत वेदना के संसार को विविध रंगों में रंग कर प्रस्तुत किया है। महादेवी वर्मा के काव्य में और व्यक्तित्व के मध्य एक अविच्छिन्न सम्बन्ध की प्रच्छन्न धारा दिखाई देती है। इसी तथ्य को लक्ष्य करके ‘मानव’ ने यह मन्तव्य प्रकट किया है कि “महादेवी वर्मा के गीतों के मूल में एक क्षीण सी कथा-धारा बहती है।”
महादेवी वर्मा की रचनाएँ इनके जीवन काल में अपने वाले विविध पड़ावों के समान है। ‘नीहार’ और ‘रश्मि’ में अधिकांशतः कवियत्री के मन की कोमल स्निग्ध और उल्लासमयी भावनाएँ व्यक्त हुई हैं। ‘नीरता’ में उनका हृदयस्थ विषाद साकार हो उठा है और ‘दीपशिखा’ में महादेवी जी के अकम्प विश्वास की अभिव्यक्ति हुई है यथाः
दूसरी होगी, कहानी !
शून्य में जिसके मिटे स्वर / धूलि में खोई निशानी !
आज जिस पर प्रलय विस्मित/मैं लगती चल रही नित
मोतियों की हाट और चिनगारियों का एक मेला
पंथ रहने दो अपरिचत प्राण रहने दो अकेला ।
(2) अतीन्द्रिय प्रेम का चित्रण- छायावादी कविता की अभिव्यक्ति में प्रेमतत्व के ऊपर अलौकिकता का आवरण पड़ा हुआ दिखाई देता है, जिसे अतीन्द्रियता कहा जाता है। इन्होंने ऐसे अवसर पर प्रतीकों के द्वारा अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है।
यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो।
(3) विषाद – भावना – निराशा, वेदना दुःखवाद एवं करुणा की विवृत्ति की अभिव्यक्ति छायावाद की एक प्रमुख विशेषता है। छायावाद के कवियों ने वेदना एवं दुख को जीवन का सर्वस्व एवं उपकारक माना है। ‘प्रसाद’ के ‘आँसू’ के माध्यम से कवि की वेदना शत शहस्त्र धाराओं में प्रवाहित हुई है। ‘निराला’ के स्नेह-निर्झर बह गया है’ सदृश कविताओं में वेदना एवं दुःखवाद को कई प्रकार से प्रकट किया है। महादेवी वर्मा ने भी विविध प्रकार से विषाद-भावना एवं दुःखवाद की अभिव्यक्ति की है, किन्तु एक भिन्न प्रकार से महादेवी जी को सुख की अपेक्षा दुःख अधिक प्रिय रहा है।
(4) प्रकृति पर चेतना का आरोप- प्रकृति के प्रति छायावाद की कविता की एक प्रमुख विशेषता है। छायावादी कवियों ने प्रायः समस्त मान्य शैलियों पर प्रकृति के वर्णन लिखे हैं। प्रकृति पर चेतना का आरोप तथा प्रकृति का मानवीकरण छायाबाद के प्रकृति-वर्णन की बहुत-बड़ी मौलिक देन है। महादेवी वर्मा के काव्य में भी यह विशेषता मिलती है। वह रजनी का मानवीकरण करती हुई कहती है कि
रजनी ओढ़े जाती थी/झिलमिल तारों की जाली,
उसके बिखरे वैभव पर, / जब रोती उजियाली
(5) स्वच्छन्दतावाद- स्वच्छन्दता का कारण छायावाद की प्रमुख प्रेरणा रही है। परम्परा और प्राचीन के प्रति विद्रोह इसका मुख्य लक्षण है। सिद्धान्त रूप में महादेवी जी ने भी स्वच्छन्दतावाद को स्वीकार किया है-“सृष्टि के बाह्याकार पर इतना लिखा जा चुका था कि मनुष्य का हृदय अभिव्यक्ति के लिए रो उठा। स्वछंद छन्द में चित्रित उन मानव-अनुभूतियों का नाम छाया उपयुक्त ही था और मुझे आज भी उपयुक्त लगता है।”
(6) रहस्य भावना- छायावाद की कविता में रहस्य-भावना की इतनी अधिक अभिव्यक्ति हुई है कि छायावाद और रहस्यवाद का अटूट सम्बन्ध परिलक्षित होता है। इन कवियों ने अपनी रहस्य – भावना को प्रायः जिज्ञासा और कौतूहल के रूप में ही प्रकट किया है। महादेवी वर्मा की कविताओं में भी रहस्य – भावना प्रचुरता से उपलब्ध है। यथा :
शून्य नभ में उमड़ जब दुःख भार सी
नेश तम में सघन छा जाती घटा,
बिखर जाती जुगुनुओं की भाँति भी
जब सुनहले आँसुओं की हार-सी
तब चमक जो लोचनों को मूँदता
तड़ित की मुस्कान में वह कौन है?
(7) सौन्दर्य एवं शृंगार भाव की अभिव्यक्ति- छायावाद काव्य में प्रेम भाव का प्रचुर चित्रण हुआ है। वह प्रेम लौकिक एवं पारलौकिक दोनों ही प्रकार का है। लौकिक प्रेम-वर्णन में इन कवियों ने संयोगजन्य सुख और वियोगजन्य दुःख की अभिव्यक्ति की है। पारलौकिक पक्ष में इनकी प्रेमाभिव्यक्ति सत्य की सीमा को संस्पर्श करती हुई दिखाई देती है। महादेवी वर्मा ने अपने काव्य में प्रणय के अनेक रूपों को व्यक्त किया है। विशेषता यह है कि इन्होंने पार्थिव तथा प्रकृति प्रेम का चित्रण कहीं नहीं किया है। इसका एक भी गीत ऐसा नहीं है, जिसमें पार्थिव आलम्बन के प्रति इन्द्रियवासना की अभिव्यक्ति की गई हो। महादेवी वर्मा की प्रणयानुभूति के दो रूप हैं-. सात्विक प्रेम और निर्गुण निराकार के प्रति मानव आत्मा की ज्ञानमूलक आनन्दबद्धता। महादेवी वर्मा का प्रियतम यद्यपि निर्गुणकार निराकार है, तथापि वह सगुण प्रतीत होता है-
जो तुम आ जाते एक बार !
कितनी करुणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग,
गाता प्राणों का तार-तार अनुराग भरा उन्माद राग,
आँसू लेते वे पद पखार !
(8) नवीन मानवतावादी जीवनदर्शन- रवीन्द्र, टॉलस्टॉय, गाँधी प्रभृति युग-पुरुषों ने विश्व मानव की वन्दना की ओर इस प्रकार एक नवीन मानवतावादी जीवन दर्शन का उद्भव और विकास हुआ। महादेवी वर्मा के काव्य में भी इस नवीन मानवतावादी जीवन-दर्शन की अभिव्यक्ति हुई है। जर्जरित समाज के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करती हुई वह कहती हैं-
देखूँ खिलती कलियाँ या, / प्यासे सूखे अधरों को ।
तेरी चिर यौवन सुषमा,/ या जर्जर जीवन देखूँ।
कह दे माँ क्या देखूँ ।
(ख) शिल्पगत विशेषताएँ
(1) संस्कृतनिष्ठ कोमलकांत पदावली- छायावादी काव्य आदर्शवादी काव्यधारा है तदनुरूप इसमें संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग हुआ है। कोमल-कान्त कल्पना के अनुरूप की पदावली भी कोमलकान्त है; यथा कविता-
सकुच सलज खिलती शेफाली, अलस मौलश्री डाली डाली,
बनते नव प्रभात कुंजों में रजत श्याम तारों से आली ।
(2) भाषा में संगीतात्मकता- महादेवी वर्मा को संगीत का अच्छा ज्ञान है। इनकी कविता में संगीतात्मकता का सुन्दर पुट दिखाई देता है, जिसके फलस्वरूप भाषा विशे प्रभावशाली एवं प्रवाहयुक्त बन गई है। यथा-
शुक्लाभिसारिका मुग्धा बसन्त रजनी की शृंगार-सज्जा देखिए-
तारकमय नव वेणी बन्धन / शीश फूलकर शशि का नूतन
रश्मि-वलय सित धन अवगुंठन
मुक्ताहल अभिराम बिछा दे चितवन से अपनी।
(3) शब्दविधान में ध्वन्यात्मकता- अंग्रेजी की कविता में तदर्थ व्यंजना का बड़ा महत्त्व रहा है। छायावाद की कविताओं में यह बहुत लोकप्रिय रहा। महादेवी जी की कविता में भी यथा अवसर इसके दर्शन होते हैं। यथा शुक्लाभिसारिका मुग्धा वसन्त रजनी के आभूषणों की रुनझुन सुनते ही बनती है:
मर्मर की सुमधुर नूपुर ध्वनि/अति गुंजित पद्मों को किंकिण
भर पद-गति में अलख तरंगिणि
तरल रजत की धार बहा दे मृदु स्मित से सजनी ।
(4) अलंकारिता- संस्कृतनिष्ठ कोमलकान्त पदावली के फलस्वरूप छायावाद की कविता में अनुप्राय-छटा तो सर्वत्र दिखाई ही देती है। महादेवी जी की कविता में भी अनुप्रास की छटा व्याप्त है। कहीं-कहीं यमक का भी प्रयोग पाया जाता है-
जगत जगती की भूख प्यास ।
इनकी कल्पना के साथ अर्थालंकार स्वयं ही आ जाता है। इनकी पंक्तियों में अलंकार बहुत ही स्वाभाविक रूप में उलझे हुए दिखाई देते हैं। एक उदाहरण देखिए-
फूलों की में मीठी चितवन नभ की ये दीपावलियाँ,
पीले मुख पर सन्ध्या की वे किरणों की फुलझड़ियाँ,
विधु की चाँदी की थाली मादक मकरंद भरी थी,
जिसमें उजियारी रातें लुटती, घुलती मिसरी थी।
(5) सूक्ष्म अप्रस्तुत विधान एवं लाक्षणिक मूर्तिमता- सूक्ष्म अप्रस्तुत-विधान एवं लाक्षणिक मूर्तिमता छायावादी कविता का एक महत्त्वपूर्ण बहिरंग तत्त्व है। महादेवी वर्मा भावों का साकार चित्र प्रस्तुत करने में बहुत सिद्धहस्त हैं। थोड़ी-सी रेखाएँ और थोड़े से रङ्गों से उभरते हुए चित्रों के समान ही इनकी कविता में भी अल्प शब्दों से अंकित अनेक सुन्दर चित्र विद्यमान । इनका अप्रस्तुत-विधान भी इनकी कविता कला की उत्कृष्टता प्रदान करने में सहायक सिद्ध हुआ है। निम्न उदाहरण देखिए-
तिमिर पारावार में अनेक प्रतिमा हैं अकम्पित
आज ज्वाला से बरसता क्यों मधुर धनसार सुरक्षित,
(6) प्रतीकात्मकता- प्रतीक विधान छायावाद के शिल्प का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अंग है। इन कवियों ने प्रकृति के प्रदार्थों का प्रतीक रूप ग्रहण किया है। महादेवी जी ने दीपक, कमल अथवा कवि का क्रमशः आत्मभावना और पीड़ा के रूप में ग्रहण किया है। कहीं-कहीं दीपक प्रेम का भी प्रतीक है, यथा-
दीप मेरे जल अंकपित/धुल अचंचल
अथवा
फिर तुमने क्यों शूल बिछाए
- महादेवी वर्मा के गीतों की विशेषताएँ बताइए।
- वेदना की कवयित्री के रूप में महादेवी वर्मा के काव्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
- महादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताएँ- भावपक्षीय विशेषताएँ तथा कलापक्षीय विशेषताएँ
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