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मुसलमानों में तलाक या विवाह-विच्छेद (Divorce among Muslims)
मुसलमानों में वैवाहिक सम्बन्धों का कोई विशेष महत्व नहीं होता है, क्योंकि इनके रीति-रिवाज के अनुसार शादी महज एक संविदा के रूप में होती है। जिसकी कुछ निश्चित शर्ते होती हैं। इन शर्तों के टूटने पर शादी भी टूट जाती है। तलाक का प्रावधान इन्हीं लोगों में बनाया गया है। किन्तु इनके यहाँ तलाक द्वारा सम्बन्ध विच्छेद या ‘मुताह’ शादियों के मुताबिक शादी की निश्चित अवधि समाप्त होने पर अपने आप बिना तलाक के ही पति-पत्नी में सम्बन्ध विच्छेद हो जाते हैं।
इस प्रकार के तलाक हो जाने के बावजूद स्त्रियाँ तब तक स्वतन्त्र नहीं हो पाती हैं जब तक तलाक के बाद उनकी तीन मासिक धर्म की अवधि नहीं बीत जाती है। इसका कारण यह है कि वह इन तीन मासिक धर्मों में अपने आप को देखती हैं कि कहीं वे गर्भवती तो नहीं हैं। इन तीन मासिक धर्मों के बीत जाने के बाद ही तलाक पूरा होता है। यदि पति चाहे तो इन तीन मासिक धर्मों के बीच में वह अपनी तलाकशुदा पत्नी को अपनी वैध पत्नी करार दे सकता है। इसके लिए उसे अपनी पत्नी की अनुमति लेने की भी आवश्यकता नहीं है।
अधिनियम द्वारा विवाह-विच्छेद (Divorce Granted by the Act)
एक मुस्लिम स्त्री को अधिनियम के अन्तर्गत निम्न आधारों पर तलाक के अधिकार दिए गए हैं-
1. जब पति का चार वर्ष से कोई पता न हो।
2. जब पति दो वर्ष से पत्नी का भरण-पोषण करने में असमर्थ हो ।
3. जब पति तीन वर्षों तक अपने वैवाहिक कर्तव्यों को पूरा करने में असमर्थ रहा हो।
4. जब पति को किसी अपराध में सात या सात से अधिक वर्षों के लिए जेल हुई हो।
5. जब पति पागल या नपुंसक हो।
6. जब पति कोढ़ या विषाक्त गुप्त रोग से पीड़ित हो ।
7. जब किसी मुस्लिम लड़की का विवाह 15 वर्ष के पूर्व कर दिया गया हो तथा 18 होने के पूर्व इस विवाह का प्रत्याखान कर दिया गया हो। यह तभी सम्भव है जब कि यौन सम्बन्ध स्थापित वर्ष पूरे न हुए हो।
8. जब पति चरित्रहीन हो ।
9. जब पति अपनी पत्नी को वैश्यावृत्ति के लिए प्रेरित करता हो।
10. मुस्लिम कानून द्वारा मान्य किसी अन्य आधार पर भी तलाक हो विना अदालत के तलाक सकता है।
बिना अदालत के तलाक किस प्रकार होता है ? (Divorce without the Interference of the Court)
1. तलाक (Talak)
मुस्लिम कानून के अनुसार, एक बालिंग और सही दिमाग रखने वाला पति, अपनी पत्नी को जिस समय चाहे बिना कोई कारण बताये हुए तलाक दे सकता है। तलाक लिखित या मौखिक दो प्रकार का होता है। लिखित तलाक के लिए तलाकनामा आवश्यक है। मौखिक तलाक निम्न तीन प्रकार का होता है –
(i) तलाके अहसन (Talak-e-Ahasan)- इसमें पत्नी के तुहर (मासिक धर्म) के समय एक बार तलाक की घोषणा की जाती है और इददत के समय स्त्री-पुरुष का सहवास नहीं होता है।
(ii) तलाके हसन (Talak-e-Hasan)- इसमें तीन तुहरों के समय तलाक की घोषणा की जाती है। इन तुहरों में सहवास नहीं होता है।
(iii) तलाक-उल-विद्दत (Talak-ul-Biddat)- इसमें किसी तुहर के समय एक वाक्य में एक बार स्पष्ट रूप से पति तलाक की घोषणा करता है। घोषणा के समय पत्नी या गवाह की उपस्थिति आवश्यक है।
2. इला (Ila)
एक शपथ के आधार पर चार माह तक मैथुन न करने से पति-पत्नी के सम्बन्धों में विच्छेद हो जाता है।
3. जिहर (Zihar)
यदि पति अपनी पत्नी की तुलना ऐसी स्त्री से कर देता है, जिसके लिए विवाह निषिद्ध है तो पत्नी अपने पति से प्रायश्चित करने के लिए कहती है अथवा अदालत में यह अर्जी देती है कि अदालत पति को प्रायश्चित करने को कहे या तलाक घोषित करने को कहे। पति द्वारा प्रायश्चित न करने की स्थिति में अदालत द्वारा तलाक करा दिया जाता है।
4. खुला (Khula)
जब पति और पत्नी दोनों ही सही मस्तिष्क के और बालिग हो तो पत्नी इच्छा पर एक-दूसरे की सहमति से विवाह-विच्छेद किया जा सकता है।
5. मुबारत (Mubarat)
यह पत्नी की पारस्परिक सहमति से होता है। इसमें खुला की भांति केवल पत्नी की इच्छा आवश्यक नहीं है, बल्कि दोनों की सहमति आवश्यक है।
6. तलाके तहब्बीज (Talak-e-Tahabbiz)
इसमें पति द्वारा दिये गये अधिकार पर पत्नी तलाक की घोषणा कर सकती है।
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