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मृदा प्रदूषण का अर्थ (Soil Pollution )
मृदा के किसी भी भौतिक, रासायनिक और जैविक घटक में अवांछनीय परिवर्तन को मृदा प्रदूषण कहते हैं।
मृदा प्रदूषण न केवल विस्तृत वनस्पति को प्रभावित करता है बल्कि ये मिट्टी के सूक्ष्म जीवों की संख्या में परिवर्तन कर देते हैं, जोकि मृदा को उपजाऊ बनाये रखने के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
मृदा प्रदूषण के स्रोत
मृदा प्रदूषण करने वाले विभिन्न स्रोतों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया गया है-
1. प्राकृतिक स्रोत
जन्तुओं और वनस्पति स्रोतों से प्राप्त प्रदूषक इस सूची में हैं –
(i) पेड़-पौधे (वनस्पति) के अवशेष- पेड़-पौधों की मृत्यु और उनके अपघटन के फलस्वरूप मृदा में कार्बनिक पदार्थ मिल जाते हैं जोकि मृदा की उर्वरता (उपजाऊ) शक्ति को बढ़ाते हैं।
(ii) खलिहानों के जन्तुओं के अवशेष- जन्तुओं के मल, रक्त, मूत्र और घरेलू व्यर्थ पदार्थ (कूड़ा), मृत जीवों का शरीर खेतों और मैदानों में फेंक दिया जाता है जोकि गन्दी और जहरीली अवस्था पैदा करते हैं। जिससे सूक्ष्म जीवों की वृद्धि और पेड़-पौधों की संख्या प्रभावित होती है।
2. कृत्रिम स्रोत
कृत्रिम स्रोत निम्नलिखित प्रकार के हैं –
(i) औद्योगिक पदार्थ- उद्योग किसी भी प्रकार का प्रदूषण करने के लिए सबसे अधिक उत्तरदायी हैं। तीव्र औद्योगीकरण और उच्च तकनीकी विकास कठिनाई उत्पन्न कर रहे हैं।
(ii) कीटनाशक और खरपतवारनाशक- कई प्रकार के कीटनाशक पाये जाते हैं जोकि कृषि और अन्य उद्देश्यों के लिए प्रयोग किये जाते हैं। ये रसायन कीटों को मारने के लिए उपयोग में लाये जाते
मृदा प्रदूषण फैलाने वाले कीटनाशक इस प्रकार वर्गीकृत किये गये हैं-
(i) कान्ट्रैक्ट विष- ये सभी क्लोरीनेटेड हाइड्रोकार्बन हैं ये सभी कीटनाशक बहुत घातक हैं जब ये किसी भी कीट के सम्पर्क में आते हैं तो उन्हें पूर्णरूप से खत्म कर देते हैं। ये सभी अक्षयकारी प्रदूषक हैं और मृदा में प्राकृतिक रूप में विद्यमान रहते हैं।
(ii) अमाशय विष- ये कीटनाशक सीधे हानिकारक नहीं होते हैं।
मृदा प्रदूषण के प्रभाव
1. कृषि के लिए मृदा सबसे अधिक महत्वपूर्ण कारक है और यदि मृदा ही दूषित हो जायेगी तब फसलों के उत्पादन में भी कमी आयेगी।
2. मृदा प्रदूषण सूक्ष्म जीवों की संख्या व उनकी प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करता है।
3. कीटनाशक, कवकनाशक का अधिक उपयोग भी मृदा की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाता है।
4. रेडियोधर्मी पदार्थों की किरणें पौधों द्वारा अवशोषित की जाती हैं जोकि 2-50% तक क्लोरोफिल को घटा सकती हैं।
मृदा प्रदूषण का नियंत्रण
1. कीटनाशक, कवकनाशक और खरपतवारनाशक दवाइयों का उपयोग कम करना चाहिए।
2. प्राकृतिक उर्वरक का उपयोग कृत्रिम उर्वरक की अपेक्षा अधिक करना चाहिए।
3. औद्योगिक अपशिष्ट को खुले मैदानों में सीधे नहीं फेंकना चाहिए।
4. मृत जीवों के शरीर मृदा में न फेंककर उन्हें जलाकर भस्म कर देना चाहिए।
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