अनुक्रम (Contents)
मौखिक भाषा के रूप में कक्षा-कक्ष में अधिगम उपकरण
मौखिक भाषा के रूप में कक्षा-कक्ष में अधिगम उपकरण निम्नलिखित हैं-
1. चित्र पठन
चित्र पठन वह अधिगम उपकरण है जिसका प्रयोग कक्षा-कक्ष में मौखिक भाषा के रूप में बहुतायत से किया जाता है। कक्षा-कक्ष में छात्रों के अधिगम को बढ़ाने के लिए चित्रों का सहारा लिया जाता है। चित्र पठन से तात्पर्य है चित्रों को पढ़ना अर्थात् चित्रों को समझकर उनमें छिपे संदेशों को पढ़ना तथा चित्रों की बोधगम्यता को समझना । शिक्षण में विभिन्न चित्रों का प्रयोग बोधगम्यता को बढ़ाने के लिए एक साधन के रूप में किया जाता है। चित्रों के माध्यम से प्रकरण काफी स्पष्ट हो जाता हैं। इससे छात्रों की बोध गम्यता भी काफी बढ़ जाती हैं, छात्रों को रटकर पठन-सामग्री को याद रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। चित्रों का प्रयोग शिक्षक छात्रों की अधिगमशीलता को बढ़ाने के लिए करता है। अतः अधिगम बढ़ाने में चित्र-पठन एक उपकरण के रूप में प्रयोग किये जाते हैं।
2. कहानी-कथन
कहानी-कथन भी कक्षा-कक्ष में एक अधिगम उपकरण के रूप में किया जाता है। कक्षा-कक्ष में शिक्षक छोटी-छोटी रोचक कहानियाँ सुनाए जिससे छात्र धैर्य के साथ रुचि लेकर उन्हें सुनें और उनमें सुनने की दक्षता का विकास हो सके। कहानियों का प्रयोग टेपरिकॉर्डर पर टेप करके भी किया जा सकता है। कहानी सुनना तथा सुनाना बालकों की प्रिय वस्तु है। इससे उनमें जिज्ञासा, अवधान तथा रुचि का विकास होता है। कहानी – कथन द्वारा छात्रों के भाषण में स्वाभाविकता तथा प्रवाह उत्पन्न किया जा सकता है। इससे मनोरंजकता के साथ छात्रों की कल्पना शक्ति को भी सजग किया जा सकता है। कहानी – कथन छात्रों की एकाग्रता को बढ़ाने का भी साधन माना जाता है। छोटे बच्चे कहानियों को बहुत तल्लीनता और मनोयोग से सुनते हैं। बड़े भी कहानियों में रुचि लेते हैं। छात्रों से कहानी सुननी भी चाहिए इससे उनकी बोलने की क्षमता का विकास होता है और वे स्पष्ट तथा साफ धीरे-धीरे बोलना प्रारंभ कर देते हैं। कहानी धीरे-धीरे कई भागों में बाँटकर सुनानी चाहिए।
3. कविता का सस्वर पाठ
कविता का सस्वर पाठ करने से भी छात्रों में मौखिक भाषा के उचित प्रयोग की कुशलता उत्पन्न होती है। इससे बालकों के उच्चारण में विराम, बलाघात संबंधी भूलें कम होती हैं। जब बालक कविता का सस्वर पाठ कर रहा हो तो पढ़ना रोककर संशोधन करने की शीघ्रता नहीं करनी चाहिए। कविता का सस्वर पाठ करते समय लय, ताल और भाव के अनुसार ही कविता पाठ करना चाहिए। कविता में छात्रों की रुचि उत्पन्न कर काव्य रचना के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करना चाहिए। कविता का सस्वर पाठ करते समय कवि के भावों एवं विचारों के साथ पूर्ण तादात्म्य स्थापित करके अलौकिक आनंद की अनुभूति छात्रों को करानी चाहिए। छात्रों में कविता पाठ द्वारा कवि के भावों, कल्पनाओं तथा अभिव्यक्तियों के सौन्दर्य की परख की योग्यता उत्पन्न करनी चाहिए। छात्रों को विविध कविता-शैलियों का परिचय कराते हुए छात्रों में से ऐसी स्थायी रुचि का विकास करना चाहिए जिससे उनमें स्वाध्यायशीलता पैदा हो सके। अतः कविता-पाठ छात्रों में सुरों की पहचान, आरोह-अवरोह के ज्ञान की समझ उत्पन्न करती है।
4. अभिनय
अभिनय द्वारा भावाभिव्यक्ति का अच्छा अभ्यास हो जाता है। इससे बोलचाल भी बालक सरलता से सीख जाता है तथा भावों की अभिव्यक्ति भी उसे आ जाती है। अभिनय करते समय भिन्न-भिन्न पात्रों के रूप में छात्रों को भिन्न-भिन्न शब्द बोलने पड़ते हैं। उन्हें यह मालूम हो जाता है कि माता-पिता आदि से बोलते समय किन-किन शब्दों का प्रयोग किया जाए और अपने साथियों से वार्ता करते समय कौन-कौन से शब्द बोले जाएँ। नाटकों में तो कई शब्द, विशेष अर्थों में प्रयुक्त होते हैं; जैसे पति के लिए आर्यपुत्र, साधु-संत या मुनि आदि के लिए भगवन् । इस प्रकार नाटकों के द्वारा छात्रों का शब्द भण्डार भी बढ़ाया जा सकता है। अभिनय करते हुए जब अन्य छात्र अपने साथियों के क्रिया-कलापों को देखते हैं तो उन्हें मानव स्वभाव तथा मानव चरित्र का अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होता है। इससे उन्हें बड़ा लाभ होता है। समाज के अंदर रहने वाले मनुष्यों को पहचान सकने में समर्थ हो सकते हैं। उन्हें ज्ञात हो जाता है कि कौन-सा व्यक्ति सच्चा तथा ईमानदार है और कौन-सा कपटी। इन छद्म वेश धारण करने वाले व्यक्तियों से समाज की रक्षा करनी होगी।
अभिनय प्रणाली को शिक्षक विभिन्न छात्रों के मध्य पात्रों के कार्य कक्षा के विभिन्न विद्यार्थियों में बाँट देता है। कोई बालक किसी पात्र का अभिनय करता है तो कोई बालक किसी का। विद्यार्थी को जिस पात्र का अभिनय करना होता है, उससे संबंधित संवादों को वह ध्यानपूर्वक पढ़ता है तथा उसके अनुसार ही कायिक तथा वाचिक अभिनय करता है। इस प्रणाली में समय तथा धन की अधिक बचत होती है। अभिनय के द्वारा छात्रों को सामाजिक आवश्यकताओं तथा विषमताओं दोनों की जानकारी हो जाती है। बालक विभिन्न पात्रों के चरित्र को निभाकर नाटक के पात्रों को स्वयं में आत्मसात करके अभिनय करता है। पात्रों ने कौन-सा कार्य किया जिससे उन्हें सफलता मिली। क्या वह भी वह कार्य कर सकता है ? जीवन में एक सामान्य व्यक्ति के समक्ष कौन-कौन सी परिस्थितियाँ आती हैं और किसी विशेष परिस्थिति में वह क्या करता है ? इस प्रकार अभिनय द्वारा छात्र परिस्थितियों का सामना करना सीखते हैं। पात्र अपने बड़ों से किस प्रकार का आचरण करते हैं ? वे अपने से बड़ों से किस प्रकार मिलते हैं और छोटों से किस प्रकार व्यवहार करते हैं? इस प्रकार का अभिनय कक्षा में अधिगम बढ़ाने में सहायक होता है।
5. वाद-विवाद
वाद-विवाद भी बालक के मानस के द्वार खोलने की एक कुंजी है। वाद-विवाद के द्वारा छात्रों में अध्ययन, मनन तथा चिंतन बढ़ाया जा सकता है। वाद-विवाद के द्वारा तर्क की भावना को भी प्रोत्साहन मिलता है। इसके द्वारा अपने विचारों को बालक सुसंगठित तथा सुव्यवस्थित रूप से रखने का प्रयास करने लगता है।
आधुनिक शैक्षिक विचारधारा के अनुसार बालक को केवल निष्क्रिय श्रोता नहीं माना- जाना चाहिए, वरन् उसको सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय बनाये रखने पर बल दिया जाना चाहिए। बालक जिस ज्ञान को क्रिया करके प्राप्त करता है, वह ज्ञान स्थायी होता है। बालक को सक्रिय बनाये रखने के दृष्टिकोण से विभिन्न क्रियात्मक शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता है उनमें से एक वाद-विवाद है। वाद-विवाद में शिक्षक तथा छात्र मिलकर किसी प्रकरण, प्रश्न या समस्या के संबंध में सफलतापूर्वक सामूहिक वातावरण में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। कक्षा-कक्ष में वाद-विवाद दो रूपों में हो सकता है- औपचारिक वाद-विवाद तथा अनौपचारिक वाद-विवाद।
6. अन्त्याक्षरी
अधिगम के उपकरण के रूप में कक्षा कक्ष में अन्त्याक्षरी का भी उपयोग किया जा सकता है। आजकल पाठशालाओं में अन्त्याक्षरी प्रतियोगिता अधिगम बढ़ाने के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध है। इस प्रतियोगिता में छात्रों के दो दल बना दिए जाते हैं। पहले दल का कोई सदस्य किसी कविता या पद का वाचन करता है। वाचन समाप्त हो जाने पर दूसरे दल का कोई सदस्य ऐसी कविता पढ़ता है जिसका प्रथम अक्षर पूर्व पठित कविता का अंतिम अक्षर होता है। इस प्रकार दोनों दलों के छात्र बराबर कविता पढ़ते चलते हैं। किसी समय यदि कोई दल किसी अक्षर विशेष से कविता सुनाने में असमर्थ होता है, तब दूसरे दल वाले उसी अक्षर से प्रारंभ होने वाली कविता सुनाकर विजय प्राप्त कर लेते हैं।
अन्त्याक्षरी प्रतियोगिता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि विद्यार्थी बिना प्रयास के ही कविताएँ कण्ठस्थ करने में उत्साह प्रकट करते हैं परंतु इस प्रतियोगिता से जितना लाभ होना चाहिए, उतना नहीं हो पाता है। इसका कारण यह है कि कविता के गुणों की ओर आवश्यक ध्यान देकर, एक दल की कविता के अंतिम अक्षर से प्रारम्भ होने वाली कविता को दूसरे दल से कहलवा देना ही यथेष्ट समझा जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें एक दोष और भी है। दो-तीन विद्यार्थी कविताएँ याद करके सुनाते रहते हैं, दूसरे विद्यार्थियों को बहुत कम अवसर दिया जाता है। यह सभी छात्रों के विकास के लिए सर्वथा अनुचित माना जाता है क्योंकि इससे कुछ छात्रों का ही भाषा विकास होता है, सभी का नहीं। यदि विद्यार्थियों को कविता का चुनाव करने में अध्यापक सहयोग दें तो इससे छात्रों को अधिक लाभ की प्राप्ति होती है। अन्त्याक्षरी प्रतियोगिता में छात्रों को कविता कथन की अधिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं होती है। इससे छात्रों को कविता-कथन के अधिक अवसर प्राप्त नहीं होते हैं। यदि अध्यापक छात्रों को कविता का चुनाव करने में सहयोग प्रदान नहीं करते हैं तो छात्रों को अन्त्याक्षरी से उतना लाभ भी प्राप्त नहीं होता है। अतः अन्त्याक्षरी प्रतियोगिता का शिक्षक को अधिगम बढ़ाने के लिए एक उपकरण के रूप में प्रयोग करना चाहिए।
7. बाल-सभा
बाल-सभा का प्रयोग भी कक्षा-कक्ष में छात्रों का अधिगम बढ़ाने के लिए करना चाहिए। बाल-सभा बच्चों की शिक्षण में रुचि उत्पन्न करती है। कक्षा में इनका आयोजन करते रहना चाहिए। बाल-सभाओं का आयोजन प्रारंभिक कक्षाओं के लिए विशेष उपयोगी माना जाता है। बाल-सभाओं में चुटकुले, बालगीत, कविताएँ, कहानियाँ आदि की प्रतियोगिताएँ रखी जा सकती हैं। बाल सभा के लिए सामग्री का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का चुनाव करना चाहिए-
(i) बाल गीत तथा तुकबंदियाँ अत्यन्त सरल होनी चाहिए। इनमें प्रयुक्त वाक्य छोटे होने चाहिए।
(ii) सम्पूर्ण कविताएँ 10-30 पंक्तियों से अधिक नहीं होनी चाहिए।
(iii) कविताओं में वर्णित बातें बालकों तथा बालिकाओं के वातावरण के अनुसार तथा उनकी अनुभव परिधि के भीतर हों।
(iv) ये कविताएँ मनोरंजक होनी चाहिए जिसके द्वारा बच्चे आनंद की प्राप्ति कर सकें।
(v) इन कविताओं में गेयता तथा अभिनयात्मकता होनी चाहिए।
8. सांस्कृतिक कार्यक्रम
कक्षा-कक्ष में अधिगम को प्रोन्नत करने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम भी रखे जा सकते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में छात्रों को मौखिक रूप से बोलने का अवसर प्राप्त होता है साथ ही विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी करने का अवसर मिलता है; जैसे-नृत्य, संगीत, अभिनय, नाटक आदि। छात्र जब रंगमंच पर इस प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम करते हैं तो उनका मनोबल काफी बढ़ जाता है, उनके उच्चारण में ठहराव आता है और उच्चारण की अशुद्धियाँ भी दूर हो जाती हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से छात्रों की सक्रियता को काफी सीमा तक बढ़ाया जा सकता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों से छात्रों में नेतृत्व का गुण, सहयोग से कार्य करने की प्रवृत्ति तथा अभिनय की क्षमता, मुखरता आदि शक्तियों का भी विकास होता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों से, इन कार्यक्रमों में भाग लेने वाले तथा भाग न लेने वाले सभी बच्चों का भला ही होता है। जो बच्चे भाग नहीं लेते हैं, वे भी भाग लेने वाले बच्चों की गतिविधियाँ देखकर उनसे प्रेरित होते हैं और अपने अंदर वे क्षमताएँ उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं।
9. प्रश्नोत्तर एवं संवाद
प्रश्नोत्तर एवं संवाद पाठों द्वारा छात्रों में संभाषण की शिक्षा का अभ्यास भली प्रकार कराया जा सकता है। विभिन्न अवसरों पर उचित भाषा का अभ्यास कराने के लिए अध्यापक को छात्रों से संवाद पाठ कराते रहना चाहिए साथ ही उनसे प्रश्नोत्तर भी करते रहना चाहिए। इससे छात्र प्रश्नों के उत्तर देना सीखते हैं तथा देश, काल एवं पात्र के अनुसार वार्तालाप करने की महत्ता समझते हैं और धीरे-धीरे उनके अभ्यस्त हो जाते हैं।
10. भाषण
सस्वर वाचन के द्वारा छात्रों में भाषण की क्षमता का विकास होता है। छात्र भाषण देने के लिए अपने वक्तव्य लिखित रूप में तैयार करते हैं तथा सभाओं में उसे पढ़ते हैं। भाषण सदैव पहले से तैयार करके रखा जाता है। लगभग सभी दीक्षांत समारोह में लिखित सामग्री का वाचन ही होता है। विधान सभा तथा लोक सभा में हमारे नेता भी भाषण देते समय प्रायः वाचन ही करते हैं। इस प्रकार अनेक औपचारिक अवसरों पर भाषण दिया जाता है। भाषण एक सस्वर वाचन है। इसका प्रयोग अधिगम के उपकरण के रूप में किया जाता है। भाषण से शुद्ध एवं प्रभावी तथा प्रवाहपूर्ण वाणी का विकास होता है जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करके वाचक के व्यक्तित्व को निखार देती है। इस प्रकार भाषण वह उपकरण हैं जिसमें वक्ता का प्रभाव श्रोताओं पर पड़े बिना नहीं रह सकता है। उत्तर सस्वर भाषण वातावरण को रुचिकर बना देता है। भाषण में महान व्यक्तियों के उद्धरणों की आवश्यकता पड़ सकती है। इससे छात्रों में नेतृत्व क्षमता का विकास होता है।
11. कवि सम्मेलन
कवि सम्मेलनों में भी मौखिक भाषा का प्रयोग किया जाता हैं। कवि सम्मेलनों में सस्वर वाचन किया जाता है। इस प्रकार के वाचन से छात्रों के उच्चारण में शुद्धता आती है तथा विराम चिह्नों का ध्यान रखते हुए उचित बल और आरोह-अवरोह के साथ वाचन करना पड़ता है। कवि सम्मेलनों में भावानुरूप अवसर के अनुरूप वाचन करना पड़ता है। इसमें श्रोताओं की संख्या एवं अवसर के अनुसार वाणी को नियंत्रित करना पड़ता है। उच्चारण एवं सुर में स्थानीय बोलियों का प्रभाव न आने दिया जाता है। कवि सम्मेलनों में उत्तम सस्वर वाचन किया जाता है। इससे वाचक में आत्मविश्वास जाग्रत होता है। औपचारिक अवसरों पर मंच पर आने होने वाली उनकी झिझक दूर हो जाती है और उनमें नेतृत्व के गुणों का विकास होता है। कवि सम्मेलनों में अच्छी तरह पढ़ी हुई कविता को याद करने में सरलता होती है। इसमें पढ़ने की गति में अवरोध उत्पन्न नहीं होना चाहिए।
12. विचार गोष्ठी
विचार गोष्ठी भी बालक के मौखिक वाचन में विशेष महत्त्व रखती है। इसमें सरस्वर वाचन से प्रवाहपूर्ण वार्तालाप का छात्रों में विकास हो सकता है। विचार गोष्ठी में जो कुछ भी पढ़ा जाय उसे यदि सुंदर ढंग से न पढ़ा जाये तो उसकी बात का प्रभाव कम हो जाता है। विचार गोष्ठी में निर्भीक ढंग से सस्वर वाचन करने से छात्रों में वार्तालाप की तथा भाषण की कुशलता का विकास होता है। विचार गोष्ठी के साथ-साथ सेमिनार और सम्मेलनों में भी अच्छे सस्वर वाचन का अपना विशेष महत्त्व होता है। विचार गोष्ठियाँ अधिकतर शैक्षिक संवादों पर आधारित होती हैं जिनके माध्यम से जहाँ एक ओर छात्रों की ज्ञान शक्ति का विकास होता है वहीं दूसरी ओर उनमें झिझक कम होती है। वार्तालाप तथा भाषण में प्रवाहपूर्णता आती है। वाणी ओजपूर्ण बनती है, घबराहट तथा आत्मविश्वास की कमी दूर होती है। वाचक में आत्मविश्वास जाग्रत होता है। उनमें भाषा-प्रयोग की क्षमता का विकास होता है। विचार गोष्ठियों में भाग लेने से छात्र वार्तालाप में निपुण बनते हैं तथा उनमें नेतृत्व की क्षमता का भी विकास होता है।