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युवा सक्रियता की परिभाषा
मानव की यह स्वाभाविक प्रकृति है कि जब कभी भी उसकी इच्छाओं, आवश्यकताओं, परम्परागत मूल्यों तथा कुशलता को दूसरे व्यक्तियों के द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होती, तो उसके अवचेतन मन में एक प्रकार का असंतोष निराशा और कभी-कभी तनाव उत्पन्न होने लगते हैं। ये तनाव कभी सामान्य होते हैं तो कभी कुछ विशेष परिस्थितियों में अत्यधिक उम्र धारण कर लेते हैं। कोई व्यक्ति या कोई भी वर्ग ऐसा नहीं होता जिसमें कम या अधिक मात्रा में ऐसे तनाव कभी पैदा न होते हों। बच्चों के मन में निराशा और तनाव उत्पन्न होते हैं। अपनी असमर्थता के कारण वे उसे व्यक्त नहीं कर पाते। समाज के प्रौढ़ और वृद्ध व्यक्ति अपने अनुभवों और उत्तरदायित्वों के कारण परिस्थितियों से समझौता कर लेते हैं। इसके पूर्णतया विपरीत युवा वर्ग न तो स्वयं अपने आपको असमर्थ समझता है और न ही उसके पास जीवन के अधिक अनुभव होते हैं। वह एक ओर पारिवारिक और जीवन के अधिक अनुभव होते है। वह एक ओर पारिवारिक और जीवन के उत्तरदायित्व से मुक्त होता है और दूसरी ओर स्वयं में एक अदम्य उत्साह तथा शक्ति का अनुभव करते हैं। इसके फलस्वरूप व परिस्थितियों तथा समस्याओं से निपटने के लिये कोई समझौता करना नहीं चाहता। आंदोलन अथवा हिंसा के द्वारा अपने असंतोष को व्यक्त करने लगता है। इस प्रकार युवा वर्ग द्वारा उत्तेजित ढंग से अपने अंसतोष को व्यक्त करना ही युवा अति सक्रियता है। युवा वर्ग द्वारा किये जाने वाले घेराव, हड़ताले, हिसांत्मक कार्य तथा उपद्रव युवा अति सक्रियता की विशेष अभिव्यक्तियाँ है तथा इन सभी का प्रत्यक्ष संबंध युवा असंतोष से है।
यह ध्यान रखना आवश्यक है कि अवधारणा के रूप में युवा सक्रियता तथा युवाअंति सक्रियता दो भिन्न दशाये हैं। युवा सक्रियता के रूप में अपने देश समाज, राजनीति विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाओं के प्रति युवा वर्ग में चेतना तथा जागरूकता का होना एक प्रगतिशील समाज का स्वरूप है। सम्भवतः इसी भावना से विभिन्न संगठनों में युवकों के सहभाग को सभी वर्गों की समान मान्यता दी जाती है लेकिन युवा अति सक्रियता एक ऐसी स्थिति है जिसमें सामाजिक तथा राजनैतिक जागरूकता का अंश बहुत कम तथा उद्देश्यहीन आन्दोलनकारी प्रवृत्ति का समावेश बहुत अधिक होता है। यही युवा अति सक्रियता को अनियंत्रित युवा सक्रियता भी कहा जा सकता है। सम्पूर्ण विश्व तथा भारत के युवा वर्ग का संबंध मुख्यतः छात्र वर्ग से है इसलिये इस स्थिति को हम अक्सर छात्र असंतोष के नाम से भी संबोधित करते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि युवा अति सक्रियता का तात्पर्य एक ऐसे व्यापक युवा असंतोष से है जिसमें मुख्य रूप से विद्यार्थी वर्ग अपने परिस्थिति संबंधी कारकों से प्रभावित होकर परम्परागत आदर्श नियमों तथा स्थापित व्यवस्थाओं के विरुद्ध एक आंदोलनकारी प्रवृत्ति अपनाने लगता है तथा भ्रान्त तर्कों द्वारा इसके औचित्य को सिद्ध करने का प्रयत्न करता है।
युवा सक्रियता की विशेषताएँ
युवा अंसतोष ही युवा अति सक्रियता को जन्म देता है। युवा अतिसक्रियता आज एक गंभीर रूप धारण कर चुकी है इसी आधार पर इसकी कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित है-
1. सर्वप्रथम भारत में युवा अतिसक्रियता का तात्पर्य एक ऐसे असंतोष से है जो मुख्यतः युवा निराशा, उदेश्यहीन शिक्षा, भ्रष्ट पर्यावरण तथा स्वार्थी नेतृत्व की उपज है।
2. युवा अतिसक्रियता की दशा एक ऐसे द्वन्द को स्पष्ट करती है, जिसमें व्यक्तिगत जीवन के अन्तर्गत समाज की परम्परागत मान्यताओं में कोई ताल-मेल नही रह जाता। व्यक्ति समाज के आदर्श – नियमों के पतन की अपेक्षा अपने निजी स्वार्थों को अधिक महत्व देने लगता है।
3. भ्रान्त तर्कों की सहायता से अपने प्रत्येक व्यवहार का औचित्य सिद्ध करना युवा अति सक्रियता की मुख्य विशेषता है। इस स्थिति में युवा वर्ग परिस्थितियों को उस रूप में देखना नहीं चाहता जैसी कि वे हैं। बल्कि उस रूप में देखता है कि जैसा कि वह स्वयं हैं ।
4. युवा वर्ग का मुख्य संबध अपने परिवार तथा शिक्षा संस्थाओं से होता है इस प्रकार युवा अति सक्रियता एक ऐसी स्थिति को स्पष्ट करती है जिसमें परिवार तथा शिक्षण संस्थाओं की नियंत्रण शक्ति दिखाई देती है।
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