अनुक्रम (Contents)
राजभाषा-सम्बन्धी विभिन्न उपबन्ध
(क) राजभाषा आयोग, 1955- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 344 (1) के अनुसार राष्ट्रपति में अधिकार निहित किया गया कि संविधान लागू होने के बाद 5 वर्ष पर वह एक राजभाषा आयोग गठित करेगा। इसके अनुसार 7 जून, 1955 को राष्ट्रपति द्वारा मुम्बई के भूतपूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री बालगंगाधर खेर की अध्यक्षता में 21 सदस्यीय आयोग का गठन किया गया।
हिन्दी के पक्ष में इस आयोग के महत्त्वपूर्ण सुझाव अग्रलिखित थे-
1. भारतीय भाषाओं के माध्यम से ही अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा दी जाय।
2. 14 वर्ष तक के प्रत्येक विद्यार्थी को हिन्दी का सम्यक् ज्ञान कराया जाय।
3. माध्यमिक शिक्षा के स्तर पर पूरे देश में हिन्दी का शिक्षण अनिवार्य कर दिया जाय।
4. सन् 1965 तक भारत सरकार के राजकाज की प्रधान भाषा अँगरेजी रहेगी तथा हिन्दी गौण होगी।
5. अखिल भारतीय तथा उच्च स्तरीय सेवाओं के लिए अँगरेजी को कायम रखा जाय।
6. संसद और विधान-मण्डलों में हिन्दी और प्रादेशिक भाषाओं को महत्त्व दिया जाय।
7. प्रतियोगी परीक्षाओं में हिन्दी का एक अनिवार्य परचा रखा जाय।
8. यदि सिर्फ एक लिपि रखने की बात हो तो सभी भारतीय भाषाओं के लिए देवनागरी लिपि को उपयुक्त समझा जाय।
9. प्रशासनिक कर्मचारियों को एक समय-सीमा के भीतर हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कराया जाय। 45 वर्ष से ऊपर की आयु वाले कर्मचारियों को हिन्दी-ज्ञान के प्रशिक्षण से छूट दी जाय और साथ ही निर्धारित समय में प्रशिक्षण न प्राप्त कर सकने वाले कर्मचारियों को दण्डित न किया जाय।
(ख) राजभाषा के सम्बन्ध में राष्ट्रपति का आदेश, 1960
राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद- 344 (6) के अनुसरण में 27 अप्रैल, 1960 ई. को एक विस्तृत आदेश जारी किया गया जिसके प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-
1. अखिल भारतीय सेवाओं तथा उच्चतर केन्द्रीय सेवाओं में भर्ती के लिए परीक्षा का माध्यम अँगरेजी रहे और कुछ समय बाद हिन्दी को वैकल्पिक माध्यम चुना जाय।
2. हिन्दी एवं दूसरी भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के निर्माण एवं उनके समन्वय पर जोर दिया जाय।
3. एक मानक विधिकोष बनाया जाय और कानून सम्बन्धी साहित्य का हिन्दी में अनुवाद किया जाय।
4. जिन कर्मचारियों की आयु 1.1.1961 को 45 वर्ष से कम हो उनके लिए हिन्दी का प्रशिक्षण अनिवार्य कर दिया जाय।
5. सभी प्रशासनिक साहित्य का अनुवाद किया जाय।
6. प्रशिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिए अँगरेजी और हिन्दी दोनों ही परीक्षा का माध्यम रहें।
7. शिक्षा मंत्रालय की ओर से वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के निर्माण के लिए एक स्थायी आयोग स्थापित किया जाय।
8. टंककों और आशुलिपिकों को हिन्दी-टंकण और आशुलेखन में प्रशिक्षण देने की व्यवस्था में की जाय।
(ग) राजभाषा अधिनियम 1963 एवं संशोधित अधिनियम, 1967
10 मई, 1963 को संसद द्वारा राजभाषा अधिनियम पारित किया गया। इसमें कुल नौ धाराएँ हैं, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं-
1. संसद और राज्यों की विधानसभाओं की सभी कार्रवाइयों की भाषा हिन्दी तथा प्रादेशिक भाषाएँ होंगी और उनका अँगरेजी अनुवाद देना होगा।
2. 26 जनवरी 1955 के बाद भी हिन्दी के अतिरिक्त अंगरेजी भाषा संघ के उन सभी राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लायी जाती रहेगी। जिनके लिए वह इससे पहले प्रयोग में लायी जाती रही है।
3. सन् 1965 के बाद किसी भी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की अनुमति से अंग्रेजी के साथ हिन्दी अथवा राज्य की अन्य किसी भाषा को राजभाषा का स्थान दे सकेगा।
4. संघ के संकल्पों अधिसूचनाओं, प्रेस विज्ञप्तियों, विज्ञापनों, करारों, संविदाओं, प्रशासनिक प्रतिवेदनों आदि दस्तावेजों को हिन्दी और अँगरेजी दोनों भाषाओं में बनाना, निष्पादित करना और जारी करना अनिवार्य होगा।
5: अधिनियम लागू होने के दस वर्ष बाद राजभावा के संबन्ध में 30 सदस्यों की एक समिति की नियुक्ति संसद द्वारा की जायेगी जिसमें लोकसभा के 20 एवं राज्यसभा के 10 सदस्य होंगे। यह समिति हिन्दी की प्रगति की जाँच करेगी, राज्य सरकारों की राय लेगी और अपनी रिपोर्ट संसद के विचारार्थ प्रस्तुत करेगी, जिस पर राष्ट्रपति द्वारा आवश्यक आदेश जारी किया जायेगा।
6. राज्यों के विधान-मण्डलों द्वारा पारित अधिनियम को हिन्दी पाठ या उसके अनुवाद प्राधिकृत पाठ माने जायेंगे।
7. जब तक कर्मचारियों द्वारा हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त नहीं कर लिया जाता है तब तक हिन्दी के साथ अँगरेजी के और अँगरेजी के साथ हिन्दी के अनुवाद कागजातों में दिये जायें।
8. उच्च न्यायालंयों के निर्णयों में हिन्दी या किसी राजभाषा का वैकल्पिक प्रयोग किया जा सकेगा।
9. संशोधन द्वारा यह कहा गया कि जब तक अहिन्दी भाषी राज्य अँगरेजी को समाप्त करने का संकल्प नहीं करेंगे तब तक अँगरेजी का प्रयोग चलता रहेगा।
(घ) राजभाषा अधिनियम, 1976 (यथा संशोधित, 1987)
सन् 1963 ई. में राजभाषा अधिनियम की धारा-3 की उपधारा (4) तथा धारा-8 के अधीन प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारत सरकार ने सन् 1976 ई. में ‘राजभाषा नियम लागू किया। फिर 9अक्टूबर, 1987 को सन 1976 ई. के ‘राजभाषा नियम’ में कुछ संशोधन किये गये। इस ‘राजभाषा नियम’ की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं-
1. राजभाषा नियम, 1976 तमिलनाडु को छोड़कर सभी राज्यों पर लागू होगा। इस नियम के अनुसार केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों से ‘क’ क्षेत्र (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हिमांचल प्रदेश, हरियाणा एवं दिल्ली) में स्थित कार्यालयों एवं व्यक्तियों को पत्र आदि हिन्दी में भेजे जायेंगे। यदि किसी को अँगरेजी में पत्र भेजा भी जाय तो उसका हिन्दी अनुवाद जरूरी होगा।
2. ‘ख’ क्षेत्र (पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र तथा केन्द्रशासित चंडीगढ़ एवं अण्डमान-निकोबार) के कार्यालयों को भेजे जाने वाले पत्र सामान्यतः हिन्दी में होंगे। यदि कोई पत्र अँगरेजी में भेजा जाय तो हिन्दी अनुवाद अवश्यक संलग्न किया जाय। यदि कोई राज्य किसी अन्य भाषा में पत्र व्यवहार चाहे तो पत्र के साथ हिन्दी अनुवाद भेजे जायें। भाषी राज्य) में स्थित कार्यालयों
3. ‘ग’ क्षेत्र (पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, उत्तरी पूर्वी क्षेत्र, द्रविड़ को भेजे जाने वाले पत्र अँगरेजी में होंगे।
4. कर्मचारी अपने आवेदन, अपील या अभ्यावेदन हिन्दी या अँगरेजी में दे सका है। हिन्दी में हस्ताक्षरित पत्रों का उत्तर हिन्दी में दिया जाय।
5. केंन्द्रीय सरकार के कार्यालय में कर्मचारी फाइलों पर टिप्पणी हिन्दी में या अँगरेजी में लिख सकता है। उससे एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद की माँग नहीं की जायेगी।
6. केन्द्रीय सरकार के सभी मैन्युअल, संहिताएँ, नियम, रजिस्टर, फार्म, नामपट्ट, सूचनापट्ट, पत्रशीर्षक, लिफाफे, अन्तर्देशीय और स्टेशनरी आदि हिन्दी और अँगरेजी दोनों भाषाओं में होंगे।
राजभाषा हिन्दी के वर्तमान और भविष्य पर डॉ. हरदेव बाहरी की इस निष्कर्षपरक टिप्पणी से सहमत होते हुए कहा जा सकता है कि, “संविधान ने जिसको रानी बनाना चाहा था, उसे एक अधिनियम अंगरेजी की सहचरी बनाया और इस समय सरकार ने उसको इसी विदेशी भाषा की चेरी बना रखा है। जनतान्त्रिक शासन-व्यवस्था में जनता की भाषा ही राजभाषा होगी, इसमें कोई सन्देह नहीं है, परन्तु हमें अँगरेजी को हटाना होगा। इसके रहते हिन्दी ही नहीं, हमारी कोई भी प्रादेशिक भाषा पनप नहीं सकती।”
- पत्राचार से आप क्या समझते हैं ? पत्र कितने प्रकार के होते हैं?
- पत्राचार का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कार्यालयीय और वाणिज्यिक पत्राचार को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रमुख तत्त्वों के विषय में बताइए।
- हिन्दी की संवैधानिक स्थिति पर सम्यक् प्रकाश डालिए।
- प्रयोजन मूलक हिन्दी का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध रूप- सर्जनात्मक भाषा, संचार-भाषा, माध्यम भाषा, मातृभाषा, राजभाषा
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विषय-क्षेत्र की विवेचना कीजिए। इसका भाषा-विज्ञान में क्या महत्त्व है?
You May Also Like This
- कविवर सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- कविवर बिहारी का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- रसखान का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- सूरदास का जीवन परिचय, कृतियाँ/रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय, रचनाएँ, भाषा-शैली, हिन्दी साहित्य में स्थान
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल- जीवन-परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएँ
- सूरदास जी की जीवनी और साहित्यिक परिचय
- तुलसीदास का साहित्यिक परिचय
- भक्तिकाव्य की प्रमुख प्रवृत्तियां | भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएं
- सूरदास जी की जीवनी और साहित्यिक परिचय (Surdas biography in Hindi)
अगर आप इसको शेयर करना चाहते हैं |आप इसे Facebook, WhatsApp पर शेयर कर सकते हैं | दोस्तों आपको हम 100 % सिलेक्शन की जानकारी प्रतिदिन देते रहेंगे | और नौकरी से जुड़ी विभिन्न परीक्षाओं की नोट्स प्रोवाइड कराते रहेंगे |