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राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका
राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका – राष्ट्रीय एवं भावनात्मक एकता के आदर्श को प्राप्त करने के लिए देश की शिक्षा की योजना की उसी के अनुरूप बनानी चाहिए। भावनात्मक एकता के आदर्श को प्राप्त करने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित बातों की ओर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए-
1. अध्यापक को विद्यार्थी को प्रजातन्त्रात्मक मूल्यों से परिचित कराना चाहिए।
2. पाठयक्रम में पाठय-सहगामी क्रियाओं को महत्वपूर्ण स्थान देना चाहिए।
3. अध्यापक को अपने विषय के साथ-साथ देश की सांस्कृतिक गतिविधियों का भी ज्ञान होना चाहिए।
4. भावात्मक एकता को सुदृढ़ बनाने का प्रयास करना चाहिए।
5. उचित पाठय पुस्तकों का निर्माण कराना चाहिए जिसमें तथ्यों को तोड़ा – मरोड़ा न – गया हो तथा ईर्ष्या का कोई स्थान न हो ।
6. वर्ष में कम से कम चार बार राष्ट्रीय भावना पर आधारित नाटकों का आयोजन करना चाहिए।
7. कभी-कभी विद्यालय में भावात्मक एकता पर विशिष्ट व्यक्तियों के व्याख्यानों का आयोजन किया जाना चाहिए।
8. विद्यार्थी की भावनाओं को उचित दिशा प्रदान की जानी चाहिए एवं छात्रों को संवेगों के मार्गन्तिरीकरण तथा शोध की शिक्षा देनी चाहिए।
9. विद्यार्थियों को उच्चतर मूल्यों को अपनाना एवं निम्नतर मूल्यों का त्यागने की आदत डालने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
10. प्रत्येक विद्यालय में एक निश्चित वेश लागू किया जाना चाहिए जिससे छात्रों में एकता की भावना उत्पन्न हो ।
11. छात्रों में उचित अभिवृत्तियों का निर्माण किया जाना चाहिए।
12. पाठय विषय में सामान्य विज्ञान पढ़ाया जाना चाहिए इसके अर्न्तगत भूगोल, नागरिक शास्त्र, इतिहास, सामाजिक अध्ययन सुदृढ़ हो
13. देश के लिए सेवायें प्रदान करने के लिये वर्ष में कम से कम दो बार विद्यार्थियों को शपथ ग्रहण करनी चाहिए। सकता है।
14. एक राज्य में विद्यार्थियों को अन्य राज्यों का भ्रमण कराना चाहिए जिससे विद्यार्थी अन्य राज्यों की संस्कृतियों से परिचित हो सकें।
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