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लैंगिक असमानता से आप क्या समझते हैं? | लैंगिक असमानता के प्रभाव 

लैंगिक असमानता से आप क्या समझते हैं
लैंगिक असमानता से आप क्या समझते हैं

लैंगिक असमानता से आप क्या समझते हैं?

बालिका एवं बालक जब परिवार से बाहर निकलकर सामाजिक जीवन में पदार्पण करते हैं तो उसको भेदभाव की दृष्टि से देखा जाता है। एक बालिका जीन्स टॉप पहनकर सड़क पर निकलती है तो उसके लिये समाज में अँगुलियाँ उठती हैं। बालक के लिये कोई कुछ नहीं कहता। एक बालिका बाइक चलाती है तो समाज में उसे अच्छा नहीं माना जाता पर बालक के लिये ऐसा नहीं है। जब एक बालिका पुलिस एवं सेना में नौकरी करती है तो उसके लिये यह अच्छा नहीं है परन्तु एक बालक के लिये अच्छा है। इस प्रकार की अनेक विसंगतियाँ समाज में पायी जाती हैं। जो कि लैंगिक विभेद उत्पन्न करती हैं।

लैंगिक असमानता के प्रभाव 

इसका वर्णन अग्रलिखित रूप में किया जा सकता है जो सभी समाज के विकास की प्रमुख बाधाएँ होती हैं-

1. वयस्क स्थिति में भेदभाव (Inequality in adult situation) – बालक जब वयस्क होता है तो समाज में कहा जाता है कि उसका लड़का युवा हो गया है अब उसको चिन्ता करने की कोई बात नहीं है जबकि बालिका वयस्क होती है तो अभिभावक एवं समाज दोनों हीं चिन्तित होते हैं। अभिभावक इसलिये चिन्तित होता है कि उसे विवाह के लिये धन एकत्रित करना है तथा अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करना है। समाज के व्यक्ति भी अभिभावक पर विवाह के लिये दबाव बनाते हैं। इस प्रकार बालक एवं बालिका के वयस्क होने पर समाज में भेदभाव किया जाता है।

2. स्त्री-पुरुष अधिकारों में भेदभाव (Inequality in rights of male and female)- स्त्री-पुरुष के मध्य अधिकारों में भी भेदभाव पाया जाता है। भारतीय समाज की चर्चा करें तो विवाह के समय बालिका को यह बताया जाता है कि उसको अपने पति एवं पति के परिवारीजनों की सेवा करनी है क्योंकि वे हमारे तथा तुम्हारे लिये पूज्य हैं। इस तथ्य से कन्या के सभी अधिकारों को उसके परिवार वाले ही समाप्त कर देते हैं।

3. निर्णयन प्रक्रिया में भेदभाव (Inequality in decision making process ) – निर्णयन की प्रक्रिया में पुरुष वर्ग द्वारा अपनी स्त्री से कोई सलाह नहीं ली जाती तथा स्वयं स्त्री भी इस तथ्य को स्वीकार करती है कि उसका बाहरी या सामाजिक निर्णयों में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिये।

4. सहभागिता सम्बन्धी भेदभाव (Participation related inequality) – स्त्री-पुरुष सहभागिता के क्षेत्र में पुरुष वर्ग अपने सहयोग के लिये स्त्री की सहभागिता चाहता है परन्तु स्त्री के लिये सहभागी बनने के लिये तैयार नहीं होता।

5. शिक्षा सम्बन्धी भेदभाव (Education related inequality) – शिक्षा सम्बन्धी भेद भाव की स्थिति व्यापक रूप से भारतीय समाज में देखी जाती है। समाज में बालकों को उच्च शिक्षा के लिये घर से बाहर जाने की अनुमति होती है, छात्रावासों में रहने की अनुमति होती है तथा विदेशों में अध्ययन करने की अनुमति होती है जबकि बालिकाओं को उच्च शिक्षा के लिये घर बाहर रहने की अनुमति नहीं दी जाती। इससे बालिकाओं की उच्च शिक्षा की स्थिति पुरुषों की उच्च शिक्षा की स्थिति से सदैव निम्न बनी रहती है। शिक्षा के लिये स्त्रियों को सदैव हतोत्साहित किया जाता है।

6. कार्य क्षेत्र सम्बन्धी भेदभाव (Working field related inequality) – समाज में स्त्री-पुरुष के मध्य कार्य सम्बन्धी भेदभाव देखे जाते हैं। प्रथम बालिकाओं के कार्य क्षेत्र को घर के अन्दर तक सीमित रखा जाता है। बालकों के कार्य क्षेत्र को बाहर के लिये सुरक्षित रखा जाता है।

7. सांस्कृतिक क्षेत्र सम्बन्धी भेदभाव (Cultural field related inequality) – सांस्कृतिक गतिविधियों में भी पुरुष की प्रधानता तथा स्त्री एवं पुरुष के भेदभाव को दिखाया जाता है। लोकनृत्य की परम्परा में नृत्य को स्त्रियों का कार्य माना जाता है। इसके साथ-साथ विभिन्न नाटकों एवं कथाओं में स्त्री को पुरुष की अधीनता में दिखाया जाता है।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक व्यवस्था भी स्त्री-पुरुष के भेदभाव से परिपूर्ण है क्योंकि जब परिवार में ही लिंगभेद का बीज बो दिया जाता है तो वह समाज में वृक्ष का रूप धारण कर लेता है। पुरुष वर्ग अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु विविध प्रकार के षड्यन्त्र करके अपनी वर्चस्वता को बनाये रखने के लिये स्त्री को अधीन रखने का प्रयास करता है।

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shubham yadav

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