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वर्णनात्मक अनुसन्धान प्ररचना की प्रमुख विशेषताएं
वर्णनात्मक अनुसन्धान प्ररचना की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. पद्धति के चुनाव में सावधानी – वर्णनात्मक अध्ययन में विभिन्न प्रणालियों का प्रयोग होता है, परन्तु अन्वेषणात्मक अध्ययन की अपेक्षा इस अध्ययन में किस प्रकार की पद्धति का चुनाव किया जाए, इसमें अत्यन्त सावधानी की आवश्यकता होती है। क्योंकि कुछ प्रमुख पद्धतियों के उपयोग से इसमें अधिक वैज्ञानिकता आती है। इस प्रकार वर्णनात्मक अध्ययन की योजना को सावधानीपूर्वक नहीं बनाया गया, तो परिणाम बेहतर नहीं निकलगें।
2. प्रविधियों का उचित चुनाव – दूसरी बात यह है कि इन तथ्यों को जिन प्रविधियों के द्वारा सबसे अधिक उपयुक्त रूप में संकलित किया जा सके, उनका चुनाव भी अत्यन्त सावधानी से होना चाहिये। किसी भी अनुसन्धान कार्य की यथार्थता प्रविधियों के उचित चुनाव पर निर्भर करती है। वर्णनात्मक अनुसन्धान कार्य में इस प्रकार के चुनाव का और भी अधिक उपयोग इस कारण से है कि यदि चुनाव ठीक तरीके से नहीं किया गया, तो अनुसन्धान कार्य में वैज्ञानिकता पनपने के स्थान पर उनमें दार्शनिक तत्वों का प्रवेश हो जायेगा।
3. मिथ्या झुकाव से बचाव – चूँकि इस प्रकार के अनुसंधान में वर्णनात्मक पक्ष पर बल दिया जाता है। अतः पक्षपात, मिथ्या झुकाव, पूर्वधारणा आदि का वर्णनात्मक विवरण में प्रवेश कर जाने की सम्भावना अधिक रहती है अपने वर्णन को अधिक से अधिक रोचक तथा आकर्षक बनाने का लोभ संभालना प्राय: कठिन हो जाता है और अनुसंधानकर्त्ता के वर्णन में अतिशयोक्ति का पुट सरलता से देखने को मिलता है। इसलिये इस प्रकार की स्थिति से बचने की आवश्यकता है।
4. विशिष्ट व आकर्षक तथ्यों के सम्बन्ध में संतुलित दृष्टिकोण अपनाना – वर्णनात्मक विवरण को एक ‘साधारण’ स्वरूप प्रदान करने के लिये प्रायः अनुसंधानकर्त्ता अपना ध्यान आकर्षक एवं विशिष्ट तथ्यों पर अधिक केन्द्रित कर सकता है। परन्तु यह प्रवृत्ति वैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं हो सकती, इसलिए अध्ययनकर्ता को अति संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
5. खोज प्रयास में मितव्ययिता – वर्णनात्मक अध्ययन का क्षेत्र बहुत विस्तृत और विशाल होता है। इसलिए अनुसन्धान प्रयास को सीमित करना पड़ता है क्योंकि अनुसन्धानकर्ता व्यर्थ की चीजों पर अपना परिश्रम धन तथा समय नष्ट नहीं करना चाहता है।
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