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विकलांगों के कार्याणार्थ विभिन्न राष्ट्रीय संस्थाओं की भूमिका (Role of Various National Institution for Upliftment to Disabled Children)
विकलांगों के कार्याणार्थ विभिन्न राष्ट्रीय संस्थाओं की भूमिका- निःशक्त व्यक्तियों के समावेशन की बजाए बहिराव का सामना करना पड़ता रहा है। इसी के मद्देनजर केन्द्र सरकार ने 25 सितम्बर, 1985 को कल्याण मंत्रालय का गठन किया। साथ ही निःशक्त व्यक्तियों के कल्याण मामले को इस मंत्रालय के परिधि में लाया गया। कालांतर में नि:शक्त व्यक्तियों के कल्याण संबंधी नीति निर्माण के लिए नोडल एजेंसी के रूप में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय का गठन हुआ। वर्ष 1995 में नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम बनाया गया जो फरवरी 1996 से पूरे देश भर में लागू है। यह अधिनियम निःशक्त व्यक्तियों को शिक्षा, रोजगार व्यावसायिक प्रशिक्षण, बाधारहित वातावरण, पुनर्वास सेवा, सांस्थानिक सेवाएँ और सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराने को प्रतिबद्ध है। यह अधिनियम प्रत्येक निःशक्त बालक को अठारह वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक उचित वातावरण में निःशुल्क शिक्षा सुनिश्चित करती है। शारीरिक, मानसिक और बहुविकलांगों के कल्याणार्थ देश भर में कई राष्ट्रीय संस्थान खोले गए। ये संस्थान हैं।
(i) राष्ट्रीय दृष्टिबाधितार्थ संस्थान, (ii) राष्ट्रीय अस्थि विकलांग संस्थान, (iii) राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान, (iv) राष्ट्रीय मानसिक विकलांग संस्थान, (v) राष्ट्रीय पुनर्वास प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, (vi) राष्ट्रीय बहुविकलांगता संस्थान, (vii) विकलांग जन संस्थान।
राष्ट्रीय दृष्टिबाधितार्थ संस्थान (National Institute for the Visually Handicapped-NIVH)
राष्ट्रीय दृष्टिबाधितार्थ संस्थान की स्थापना राष्ट्रीय दृष्टिहीन केन्द्र का उन्नयन करके जुलाई 1979 में की गई। इसे अक्टूबर 1982 में पंजीकृत किया गया था। इसने एक स्वायत्त निकाय का दर्जा अक्टूबर 1982 में प्राप्त किया। यह संस्थान देहरादून (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं।
लक्ष्य- दृष्टिबाधितार्थी की शिक्षा पुनर्वास के सभी पहलुओं में अनुसंधान करना, उसे प्रायोजित, समन्वित करना व आर्थिक सहायता प्रदान करना।
जैव- चिकित्सा इंजीनियरिंग में अनुसंधान करना, उसे प्रायोजित, समन्वित करना या आर्थिक सहायता प्रदान करना जिससे सहायक यंत्रों या उपयुक्त सर्जिकल या मेडिकल प्रक्रिया का प्रभावी मूल्यांकन या नए सहायक यंत्रों का विकास हो।
मूल्यांकन, दृष्टिबाधितार्थ व्यक्तियों के प्रशिक्षण और पुनर्वास को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षार्थियों और शिक्षकों, रोजगार अधिकारियों, मनोवैज्ञानिकों, व्यावसायिक परामर्शकों और ऐसे अन्य कार्मियों, जिन्हें संस्थान द्वारा आवश्यक समझा जाए, के प्रशिक्षण का आरंभ या प्रायोजित करना।
प्रोटोटाइप्स के निर्माण को बढ़ावा देना और आर्थिक सहायता प्रदान करना तथा दृष्टिबाधितार्थी की शिक्षा, पुनर्वास या थेरापी के किसी पहलू को बढ़ावा देने के लिए तैयार किए गए किसी या सभी प्रकार के सहायक यंत्रों के वितरण का प्रबंध।
राष्ट्रीय अस्थि विकलांग संस्थान (National Institute for the Orthopaedically Handicapped (NIOH)
राष्ट्रीय अस्थि विकलांग संस्थान की स्थापना गत्यात्मकता, पेशी समन्वय तथा कार्य संचालन क्षमता को बाधित करने वाले विभिन्न विकलांगताओं से पीड़ित विकलांग व्यक्तियों, अस्थि विकलांग बच्चों तथा वयस्कों की प्रशिक्षण एवं पुनर्वास को बढ़ावा देने के लिए कलकत्ता में की गई थी। इसे अप्रैल 1982 में एक स्वायत्त सोसाइटी के रूप में पंजीकृत किया गया था। इसका मुख्यालय हुगली में स्थित है।
उद्देश्य- अस्थि विकलांग जनसंख्या की सेवाएँ प्रदान करने के लिए जनशक्ति का विकास करना जैसे फिजियों थैरेपिस्टों, व्यावसायिक थैरापिस्टों, आर्थोटिक एवं प्रोस्थेटिक टैक्निशियनों, रोजगार और स्थापना अधिकारियों, व्यावसायिक परामर्ददाताओं इत्यादि का प्रशिक्षण।
रेस्टोरेटिव सर्जरी, सहायक यंत्र एवं उपकरण व्यावसायिक प्रशिक्षण इत्यादि के क्षेत्रों में अस्थि, विकलांग जनसंख्या के लिए मॉडल सेवाओं का विकास करना।
अस्थि विकलांग लोगों को विशेष सेवाएँ प्रदान करना।
अस्थि विकलांग लोगों के सम्पूर्ण पुनर्वास से संबंधित सभी पहलुओं पर अनुसंधान संचालन एवं प्रयोजन करना।
अस्थि विकलांग व्यक्तियों के लिए सहायक यंत्रों एवं उपकरणों को मानकीकृत करना और उनके विनिर्माण और वितरण को बढ़ावा देना।
अस्थि विकलांगता के क्षेत्र में शीर्ष स्तरीय प्रलेखन एवं सूचना केन्द्र के रूप में कार्य करना।
अस्थि विकलांग व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए कार्यरत राज्य सरकारों और स्वैच्छिक संगठनों को परामर्श देना।
राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान (National Institute for the Hearing Handicapped)
अली यावर जंग, राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान, की स्थापना 9 अगस्त, 1983 को मुंबई में की गई।
लक्ष्य-श्रवण विकलांगों की शिक्षा और पुनर्वास के लिए अनुसंधान करना, उसे प्रायोजित, समन्वित करना या आर्थिक सहायता प्रदान करना।
जैव- चिकित्सा इंजीनियरिंग में अनुसंधान करना, उसे प्रायोजित, समन्वित करना या आर्थिक सहायता प्रदान करना जिससे सहायक यंत्रों उपयुक्त सर्जिकल या मेडिकल प्रक्रिया का प्रभावी मूल्यांकन या नए सहायक यंत्रों का विकास हो।
मूल्यांकन, श्रवण विकलांग व्यक्तियों के प्रशिक्षण और पुनर्वास को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षार्थियों और शिक्षकों, रोजगार अधिकारियों, मनोवैज्ञानिकों, व्यावसायिक परामर्शकों और ऐसे अन्य कार्मिकों, जिन्हें स्थान द्वारा आवश्यक समझा जाए, के प्रशिक्षण को आरंभ या प्रायोजित करना।
प्रोटोटाइप्स के निर्माण को बढ़ावा देना और आर्थिक सहायता प्रदान करना तथा दृष्टिबाधितार्थों की राशि, पुनर्वास या थेरापी के किसी पहलू को बढ़ावा देने के लिए तैयार किए गए किसी या सभी प्रकार के सहायक यंत्रों के वितरण का प्रबंध करना।
राष्ट्रीय मानसिक विकलांग संस्थान (National Institute for the Mentally Handicapped)
राष्ट्रीय मानसिक विकलांग संस्थान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त निकाय है। यह वर्ष 1984 में एक पंजीकृत सोसाइटी के रूप में स्थापित हुआ। यह आन्ध्र प्रदेश के सिकन्दराबाद शहर में स्थित है।
उद्देश्य- मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों की देखभाल और पुनर्वास के लिए उपयुक्त मॉडलों का विकास करना जो भारतीय स्थितियों के अनुकूल हो। मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों को सेवाएँ प्रदान करने के लिए जनशक्ति का विकास करना।
मानसिक मन्दता के क्षेत्र में अनुसंधान की पहचान, संचालन एवं समन्वय करना। मानसिक विकलांगता के क्षेत्र में स्वैच्छिक संगठनों को परामर्श सेवाएँ प्रदान करना और आवश्यक होने पर उनकी सहायता करना।
मानसिक मन्दता के क्षेत्र में प्रलेखन एवं सूचना केन्द्र के रूप में कार्य करना। देश भर में मानसिक मन्दता के परिमाण, कारणों, ग्रामीण-शहरी संघटन, सामाजिक आर्थिक कारणों आदि का निवारण करने के लिए संबंधित आँकड़े प्राप्त करना।
देश भर में मानसिक मन्दता से पीड़ित व्यक्तियों के लिए विभिन्न प्रकार की गुणवत्ता सेवाओं के विकास को बढ़ावा देना और उन्हें उत्प्रेरित करना।
राष्ट्रीय पुनर्वास प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (National Institute for Rehabilitation Training and Research (NIRTAR))
राष्ट्रीय पुनर्वास प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधीन एक सोसाइटी एवं स्वायत्त निकाय के रूप में 24 फरवरी, 1984 को पंजीकृत किया गया था । यह उड़ीसा के कटक जिले स्थित है।
उद्देश्य – भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम के उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देना। कार्मिकों जैसे डॉक्टरों, इंजीनियरों, प्रोस्थेटिक, आर्थिटिक, फिजियोथिरेपिस्टो, व्यावसायिक थिरेपिस्टों, बहुउद्देशीय पुनर्वास थिरेपिस्टों तथा शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए वैसे अन्य कार्मिकों के प्रशिक्षण का प्रायोजन अथवा समन्वय करना।
अस्थि विकलांग व्यक्तियों के लिए गति यंत्रों के प्रभावी मूल्यांकन के उद्देश्य से जैव-चिकित्सा इंजीनियरिंग अथवा उपयुक्त शल्य चिकित्सा अथवा चिकित्सा प्रक्रियाओं या नवीन उपकरणों के विकास के संबंध में अनुसंधान का संचालन, प्रायोजन, समन्वय अथवा उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करना।
विकलांग व्यक्तियों की शिक्षा और पुनर्वास थिरेपी के किसी पहलू को बढ़ावा देने के लिए पोटाइम डिजाइन के सहायक यंत्रों के निर्माण को बढ़ावा देना, वितरण करना और आर्थिक सहायता प्रदान करना।
पुनर्वास के लिए सेवा वितरण कार्यक्रमों के मॉडलों का विकास करना। शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों का व्यावसायिक प्रशिक्षण, स्थापना और पुनर्वास। भारत तथा विदेश में पुनर्वास संबंधी जानकारी का प्रलेखन और प्रसार करना।
शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के पुनर्वास के क्षेत्र में कोई अन्य कार्य शुरू करना।
समस्त आय का उपयोग उपर्युक्त लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाएगा।
राष्ट्रीय बहुविकलांगता संस्थान
एक ही छत के नीचे बहुविकलांगताग्रस्त व्यक्तियों को पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय विकलांगता संस्थान की स्थापना का प्रस्ताव है, यह संस्थान शीघ्र पड़ताल व हस्तक्षेप, चिकित्सीय, पुनर्वास, शिक्षा, मनोसामाजिक पुनर्वास आदि जैसी सेवाएँ प्रदान करेगा। यह मानव शक्ति, विकास तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को भी चलाएगा। यह उनके अल्पावधि तथा दीर्घा विधि पाठ्यक्रम जिसमें कार्यान्मुख पाठ्यक्रमों तथा समाज के एक बड़े वर्ग में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए समग्र भी सम्मिलित है, भी आयोजित करेगा।
तमिलनाडु सरकार ने इस प्रयोजन के लिए सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय को चेन्नई के निकट मुत्तूकडू गाँव में 15.5 एकड़ भूमि जमीन भी दान की है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय विकलांग जन संस्थान (Pt. Deen dayal Upadhyaya Institute for the Physically Handicapped)
विकलांग जनसंस्थान सोसाइटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1860 के अंतर्गत पंजीकृत एक स्वायत्त निकाय है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वर्ष 1976 में स्थापित विकलांग व्यक्तियों के लिए जनशक्ति विकास के क्षेत्र में यह एक शीर्ष स्तरीय संस्थान है । यह नई दिल्ली में स्थित है।
उद्देश्य- 42 वर्षों की अवधि के पी टी/ओटी पाठ्यक्रमों का संचालन करना।
प्रोस्थेटिक तथा आर्थोटिक इंजीनियरिंग में 22 वर्षों की अवधि के डिप्लोमा का संचालन करना।
आर्थोटिक एवं प्रोस्थेटिक उपकरणों के निर्माणार्थ कार्यशाला संचालित करना। फिजियोथिरेपी, अकुपेशनल थिरेपी तथा स्पीच थिरेपी, ओपीडी सेवाएँ संचालित करना। अस्थि विकलांग बच्चों के लिए प्राथमिक स्तर तक विशेष स्कूल तथा एक सामाजिक व व्यावसायिक यूनिट चलाना।
भारतीय पुनर्वास परिषद् (Rehabilitation Council of India)
भारत सरकार ने 1986 में सोसाइटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1986 के अंतर्गत भारतीय पुनर्वास परिषद् की स्थापना एक रजिस्टर्ड सोसाइटी के रूप में की। तत्पश्चात् इसे दिनांक 31 जुलाई, 1993 से प्रभावी भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम के अंतर्गत एक सांविधानिक निकाय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था। यह सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रणाधीन है। यह नई दिल्ली में स्थित है।
परिषद् के उद्देश्य: (i) विकलांग व्यक्तियों के पुनर्वास के क्षेत्रों में प्रशिक्षण नीतियों और कार्यक्रमों को विनियमित करना।
(ii) विकलांग व्यक्तियों से संबंधित व्यावसायिक/कार्मिकों की विभिन्न श्रेणियों के शिक्षण और प्रशिक्षण के न्यूनतम मानक निर्धारित करना।
(iii) विकलांग व्यक्तियों के लिए कार्य रहे व्यवसायियों के प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों मानकीकरण लाना।
(iv) देश में सभी संस्थाओं में समान रूप से इन मानकों को विनियमित करना।
(v) निःशक्त व्यक्तियों के पुनर्वास के क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिग्री/स्नातक डिग्री/स्नातकोत्तर डिप्लोमा / प्रामाणपत्र पाठ्यक्रम चलाने वाली संस्थाओं / विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करना।
(vi) विदेशी विश्वविद्यालयों/संस्थाओं द्वारा डिग्रियों/डिप्लोमाओं/प्रमाणपत्रों को पारस्परिक आधार पर मान्यता प्रदान करना।
(vii) मान्यता प्राप्त पुनर्वास योग्यता रखने वाले व्यावसायिकों/ कार्मिकों के केन्द्रीय पुनर्वास रजिस्टर का रख-रखाव करना।
(viii) भारत और विदेश में कार्यरत संगठनों के सहयोग के द्वारा पुनर्वास के क्षेत्र में शिक्षा और प्रशिक्षण के संबंध में नियमित आधार पर सूचना एकत्र करना।
(ix) देश और विदेश में कार्यरत संगठनों के सहयोग के द्वारा पुनर्वास और विशेष शिक्षा के क्षेत्र में अनुवर्ती शिक्षा को प्रोत्साहित करना।
(x) व्यावसायिक पुनर्वास केन्द्रों को जनशक्ति विकास केन्द्रों के रूप में मान्यता देना । (xi) व्यावसायिक पुनर्वास केन्द्रों में कार्यरत व्यावसायिक अनुदेशकों और अन्य कार्मिकों को पंजीकृत करना।
(xii) सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय संस्थाओं और शीर्ष संस्थानों में कार्यरत कर्मिकों को पंजीकृत करना।
भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम, कानपुर (Artificial Limbs Manufacturing Corporation of India- ALIMCO)
भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (एलिम्को) को 25 दिसंबर, 1972 को कंपनी अधिनियम, 1956 को धारा 25 के अंतर्गत एक लाभ न कमाने वाली कंपनी के रूप में पंजीकृत किया गया था। इसका मुख्यालय कानुपर में स्थित है।
उद्देश्य : (क) देश में विकलांग व्यक्तियों द्वारा अपेक्षित आर्थोटिक्स/प्रोस्थेटिक्स एवं पुनर्वास सहायक यंत्रों का विनिर्माण ।
(ख) आर्थोटिक/प्रोस्थेटिक तकनीशियनों तथा इंजीनियरों का प्रशिक्षण।
(ग) आर्थोटिक्स एवं प्रोस्थेटिक्स के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास का संचालन।
कार्यान्वयन – कानपुर स्थित इस निगम का कारखाना इस प्रकार के विनिर्माण के लिए अपेक्षित अत्याधुनिक संयंत्रों एवं मशीनरी से सुसज्जित है। उत्पादन के आधार पर इस कारखाने में एक सुसज्जित औजार कक्ष भी है। गुणवत्ता नियंत्रण विभाग यह सुनिश्चित करता है कि कारखाने के उत्पादन भारतीय मानक ब्यूरो और अन्य अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा निर्धारित विनिर्देशकों के अनुरूप हों।
इस निगम में एक गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला है जिसमें आने वाले सामग्री की गुणवत्ता की जाँच करने और निगम द्वारा उत्पादित वस्तुओं के परीक्षण के लिए अपेक्षित सभी आधुनिक उपकरण उपलब्ध हैं। इस गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला को उत्तर भारत में अन्य उत्पादकों द्वारा प्रयुक्त सामग्री की गुणवत्ता के प्रमाणीकरण एजेंसी के रूप में भारतीय मानक ब्यूरो से मान्यता प्राप्त की है।
जिला पुनर्वास केंद्र (District Rehabilitation Centre)
उद्देश्य-ग्रामीण विकलांग व्यक्तियों को उनके घरों में व्यापक पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करना।
कार्यान्वयन- 11 जिले (1) भुवनेश्वर (उड़ीसा), (2) बिलासपुर (मध्य प्रदेश), (3) खड़गपुर (पश्चिम बंगाल), (4) मैसूर (कर्नाटक), (5) चेंगलपट्टू (तमिलनाडु), (6) सीतापुर (उत्तर प्रदेश), (7) जगदीशपुर (उत्तर प्रदेश), (8) विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश), (9) भिवानी (हरियाणा), (10) कोटा (राजस्थान) और (11) विरार (महाराष्ट्र)।
भारतीय मेरुदंड क्षति केंद्र, नई दिल्ली- भारतीय मेरुदंड क्षति केन्द्र की स्थापना इटली की सरकार के सहयोग से मेरुदंड क्षतिग्रस्त रोगियों को व्यापक इलाज, पुनर्वास सेवाएँ तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण और मार्ग दर्शन देने के लिए की गई है। यह एशिया का अपने किस्म का पहला केन्द्र है। यह केन्द्र ऐसे मरीजों के पुनर्वास के बहुआयामी पहलुओं में अनुसंधान करता है। इस केन्द्र को मशीनरी तथा तकनीकी विशेषज्ञता इटली के भारत-इटली सहयोग के अंतर्गत उपलब्ध कराई गई। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय इस केन्द्र को भवन के लिए अनावर्त्ती व्यय तथा आवर्ती आधार पर 30 मुफ्त बिस्तरों को प्रायोजित करने दोनों के लिए वित्तीय समर्थन करता रहा है। यह केन्द्र कार्य कर रहा है और देश भर से आने वाले व्यक्तियों को सेवा प्रदान कर रहा है।
मानसिक मंदता, प्रमस्तिष्क अंगघात, ऑटिज्म तथा बहु विकलांगताओं वाले व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय न्यास :
(1) मंत्रिमंडल ने मानसिक मंदता, प्रमस्तिष्क अंगघात, ऑटिज्म तथा बहु विकलांगता वाले व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय न्यास के गठन का अनुमोदन कर दिया है। यह विधेयक संसद में प्रस्तुत किया जा रहा है ।
(2) यह न्यास मानसिक मंदता, ऑटिज्म, प्रमस्तिष्क अंगघात तथा बहुविकलांगता वाले व्यक्तियों को पूरी देखभाल प्रदान करेगा तथा न्यास की सौंपी गई सम्पत्तियों का भी प्रबंध करेगा।
न्यास के उद्देश्य
न्यास के उद्देश्य निम्नलिखित है:
(i) विकलांग व्यक्तियों को अपने परिवार में यथासंभव पूरी तरह स्वतंत्रतापूर्वक रहने के लिए समर्थ बनाना और शक्ति प्रदान करना।
(ii) विकलांग व्यक्तियों को अपने परिवार में सहायता के लिए सुविधाओं को सुदृढ़ करना।
(iii) पारिवारिक विपत्ति के दौरान जरूरत आधारित सेवाओं के लिए विकलांग व्यक्तियाँ अथवा माता-पिता के संगठनों तथा स्वैच्छिक संगठनों को सहायता प्रदान करना।
(iv) विकलांग व्यक्तियों की चिंताओं का समाधान करना, जिनको कोई पारिवारिक समर्थन नहीं है।
(v) विकलांग व्यक्तियों को उनके माता-पिता अथवा अभिभावक की मृत्यु के बाद उनकी देखभाल तथा सुरक्षा के लिए उपायों को बढ़ावा देना।
(vi) विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण तथा पूर्ण भागीदारी को सुसाध्य बनाना।
राष्ट्रीय शैक्षिक शोध एवं प्रशिक्षण परिषद् (National Council of Educational Research & Training-NCERT)
भारत सरकार द्वारा सितम्बर 1961 में स्थापित राष्ट्रीय शैक्षिक शोध एवं प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी.) स्कूली शिक्षा के अकादमिक मुद्दों शोध एवं प्रशिक्षण की नीति तैयार करने वाले देश की सर्वोच्च संसाधन संस्थान है । यह आकदमिक मसले पर केन्द्र और राज्य सरकार को सलाह एवं सहायता प्रदान करती है। इसके मुख्य कार्य हैं:
(i) शिक्षा नीति के निर्माण पर क्रियान्वयन में मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सहायता पहुँचाना।
(ii) शैक्षिक अध्ययन अनुसंधान, प्रयोग, पॉयलट प्रोजेक्ट, सर्वे एडवांस ट्रेनिंग एवं विस्तार सेवा का आयोजन करना ।
(iii) केन्द्र और राज्यों के शिक्षा विभागों के बीच समन्वय कायम करना।
(iv) उन्नत स्तरीय सेवा पूर्व एवं सेवाकालीन प्रशिक्षण का संचालन करना।
(v) उन्नत शैक्षिक तकनीकों को बिखेड़ना।
(vi) पुस्तकों, शोध जर्नलों एवं अन्य शैक्षिक साहित्यों का प्रकाशन करना।
सामान्य शिक्षा तंत्र को करने के लिए एन.सी.ई.आर.टी. ने वर्ष 1987 में यूनीसेफ की सहायता से प्रोजेक्ट इंटेग्रेटेड एजुकेशन फॉर डिसएबल्ड परियोजना लागू की। यह परियोजना विकलांग बच्चों के लिए समेकित शिक्षा के क्रियान्वयन प्रक्रिया को सशक्त बनाने के लिए डिजाईन किया गया था। इस योजना के तहत सामान्य स्कूलों में विभिन्न क्षमता वाले बच्चों के अधिकाधिक नामांकन और ठहराव पर विशेष बल दिया गया। प्रत्येक परियोजना क्षेत्रों को एक संकुल का दर्जा दिया गया और परियोजना क्षेत्र के सभी स्कूलों में नि:शक्त बच्चों के नामांकन सुनिश्चित करने को कहा गया। संबंधित क्षेत्र स्थित स्कूली शिक्षकों को त्रिस्तरीय प्रशिक्षण दिया गया। प्रथम चरण में परियोजना क्षेत्र के सभी प्राथमिक शिक्षकों को एक सप्ताह का प्रशिक्षण दिया गया। दूसरे चरण में नि:शक्त बच्चों की देख-रेख और शिक्षण के लिए छ: सप्ताह का सघन प्रशिक्षण दिया गया। वहीं तीसरे चरण में एन.सी.ई.आर.टी. के अधीन संचालित कॉलेजों के माध्यम से शिक्षकों को एक वर्ष की प्रशिक्षण सुविधा मुहैया कराई गई।
अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ (International Agencies)
नि:शक्त बच्चों के शैक्षिक के लिए न केवल राष्ट्रीय संस्थानों को मदद की जरूरत होती है बल्कि इस दिशा में कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। जिनमें प्रमुख हैं-
(i) यूनेस्को (UNESCO)- यूनेस्को, संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृति का संक्षिप्त नाम है। यह 4 नवम्बर, 1946 को स्थापित यह संगठन 14 दिसंबर, 1946 को संयुक्त राष्ट्र साथ सम्बद्ध किया गया। इसका मुख्यालय पेरिस में है । यह सदस्य देशों के बीच शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और संचार आदि के प्रोत्साहन के जरिए शांति और सुरक्षा कायम करने को प्रयत्नशील है। यह प्रत्येक सदस्य देशों को शिक्षा के विस्तार और दिशा-निर्देश उपलब्ध कराने को तत्पर रहती है ताकि सभी देशों की जनता स्वयं अपना विकास करने के लिए सक्षम हो जाएँ। यह वैज्ञानिक एवं तकनीकी फाउंडेशन की स्थापना के जरिए प्रत्येक देश को अपने संसाधनों के अधिकाधिक उपयोग, राष्ट्रीय सांस्कृतिक मूल्य के प्रोत्साहन और सांस्कृतिक विरासत के प्रस्तुतीकरण, सामाजिक सेवाओं के प्रोत्साहन सरीखे मानवाधिकार को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए मदद करती है।
(ii) यूनिसेफ (UNICEF) – यूनिसेफ अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष का संक्षिप्त नाम है। यह संस्था आम सभा द्वारा 1946 में स्थापित किया गया था एवं इसका मुख्यालय न्यूयार्क में स्थित है। 130 राष्ट्रों का एक कार्यकारी मंडल इसका संचालन करता है। इस कोष का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य और पोषण आदि कार्यक्रमों के माध्यम से बाल कल्याण कार्यों को प्रोत्साहन देना है। इसके अतिरिक्त यह औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा के प्रोत्साहन के लिए सदस्य देशों को आर्थिक सहायता मुहैया कराता है। ‘सभी के लिए शिक्षा’ की सुनिश्चितता के लिए यह यूनेस्को से भी तालमेल रखता है। यूनिसेफ की सहायता से भारत में निम्नलिखित कार्यक्रमों का संचालन हो रहा है।
(i) जिला स्तर पर ‘सभी के लिए शिक्षा’ कार्यक्रम का प्रोत्साहन एवं प्रबंधन।
(ii) प्रोजेक्ट ऑन इन्टेग्रेटेड एजुकेशन फॉर डिसएबल्ड का क्रियान्वयन।
(iii) एरिया इन्टेसिव एजुकेशन प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन।
(iv) अध्यापक शिक्षण।
(v) वंचित शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम।
(vi) संपूर्ण साक्षरता अभियान का दस्तावेजीकरण एवं मूल्यांकन।
(iii) विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation)- विश्व स्वास्थ्य संगठन 7 अप्रैल, 1948 को अस्तित्व में आयी। इस संगठन का उद्देश्य विश्व के देशों की आम जनता को स्वास्थ्य की उच्चतम सम्भव दशा को प्राप्त कराना है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यों का संचालन एवं समन्वय, महामारियों एवं बीमारियों के उन्मूलन को प्रोत्साहित करना, आहार पोषण, निवास गृह और सफाई तथा काम करने की दशाओं को उन्नत करने आदि का कार्य करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विकासशील देशों के हित में छुआछूत से फैलने वाली बीमारियों एवं महामारियों की रोकथाम में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इसका मुख्यालय जेनेवा में है।
(iv) हेलेन केलर इंटरनेशलन (Hellen Keller International) – इसकी स्थापना 1915 में हेलेन केलर और जॉर्ज केसलर ने किया था। यह अंतर्राष्ट्रीय संस्था अति पिछड़े लोगों की दृष्टि और जिंदगी के बचाव के लिए प्रयत्नशील है। आँखों के स्वास्थ्य और स्वास्थ्य एवं पोषण के क्षेत्र में इस संस्था को काफी अनुभव हासिल है। आँखों के स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत यह मोतियाबिंद, ट्रैकोमा, आंकोसेसिंथेसिस एवं रिफ्रैक्टिव एरर सरीखे अंधापन के कारणों को ढूँढ़ने पर बल देता है जबकि स्वास्थ्य एवं पोषण कार्यक्रम के अंतर्गत विटामिन ‘ए’, लौह, सामान्य भोज्य पदार्थ की किलाबंदी, समुदाय एवं स्कूल गार्डेनिंग के अलावा स्कूली स्वास्थ्य कार्यकलाप, स्तनपान प्रोत्साहन आदि क्षेत्रों में हस्तक्षेप कर सरकार एवं अपने सहयोगी संस्थाओं को स्वास्थ्य संबंधी आँकड़े उपलब्ध कराना शामिल है। इन कार्यक्रमों से प्रतिवर्ष लाखों लोग लाभान्वित होते हैं। अफ्रीका, अमेरिका एवं एशिया सहित, विश्व के कुल 25 देशों में इस संस्था का स्वास्थ्य कार्यक्रम चल रहा है। इसका मुख्यालय न्यूयार्क में स्थित है।