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विधि के शासन की सीमाएँ | विधि के शासन के अपवाद

विधि के शासन की सीमाएँ
विधि के शासन की सीमाएँ

विधि के शासन की सीमाएँ

इंग्लैंड के संविधान और शासन के अन्तर्गत सिद्धांत और व्यवहार में भारी अन्तर पाया जाता है और विधि के शासन पर भी यह बात लागू होती है। सैद्धांतिक दृष्टि से विधि के शासन के अनुसार इंग्लैंड का प्रत्येक नागरिक कानून की दृष्टि से समान है। राजा से लेकर निर्धनतम व्यक्ति तक सभी विधि के नियंत्रण में हैं, सभी के लिए एक ही प्रकार के कानून और एक ही प्रकार के न्यायालय हैं, किन्तु आचरण की दृष्टि से सभी बातें निर्मूल हैं। कई ऐसी बातें भी हैं जो विधि के शासन से मेल नहीं खातीं और उनके आधार पर हम डायसी के इस विचार से सहमत नहीं हो सकते कि इंग्लैंड में विधि का शासन सर्वोच्च है। विधि के शासन के अपवाद निम्नलिखित हैं :

(1) अधिकारियों की विवेकात्मक शक्ति

‘विधि के शासन’ की व्याख्या करते हुए डायसी ने प्रतिपादित किया है कि “विधि का शासन इस बात के विरुद्ध है कि अधिकारियों को शक्ति के व्यापक, स्वेच्छापूर्ण तथा विवेकगत प्रयोग का अधिकार प्राप्त हो ।” डायसी के इस कथन के अनुसार ब्रिटेन में विधि के शासन की व्यवस्था होने के कारण अधिकारी वर्ग को कोई विवेकात्मक शक्ति प्राप्त नहीं होनी चाहिए। किन्तु वास्तविकता यह है कि ब्रिटेन में भी वर्तमान समय में राज्य का कार्य क्षेत्र बहुत अधिक व्यापक हो गया है और सरकारी अधिकारी अपने उत्तरदायित्वों को पूरा कर सकें, इस दृष्टि से अपने विवेक के अनुसार कार्य करने की छूट देना नितान्त आवश्यक हो गया है। ब्रिटेन में भी प्रशासनिक अधिकारियों को विवेकात्मक शक्ति प्राप्त होने के कारण विधि के शासन की धारणा सीमित हो गयी है। 

(2) लोक सेवा अधिकारियों के संबंध में विशेष स्थिति

विधि के शासन का तात्पर्य यह है कि सामान्य व्यक्तियों और लोक अधिकारियों में कोई अन्तर नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन ब्रिटेन में भी लोक अधिकारियों को एक सीमा तक विशेष स्थिति प्राप्त है। इंग्लैंड में 1893 में ‘लोक अधिकारी संरक्षण अधिनियम’ पारित किया गया, जिसके अनुसार किसी सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही उसके द्वारा किये गये अपराध के छः मास की अवधि के अन्दर ही की जानी चाहिए, अन्यथा वह काल तिरोहित हो जाती है। साथ ही साथ, यदि सरकारी कर्मचारी पर चलाया गया अभियोग सत्य सिद्ध न हो सके, तो अभियोग चलाने वाले व्यक्ति को उसका खर्च देना होता है। ऐसी दशा में कोई भी व्यक्ति सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध अभियोग चलाने का साहस ही नहीं करता। सरकारी अधिकारियों को कुछ सीमा तक प्राप्त इस विशेष स्थिति के कारण विधि के शासन की धारणा सीमित हो गयी है।

(3) प्रदत्त व्यवस्थापन

इन सबके अतिरिक्त, पिछले लगभग 40-50 वर्षों में राज्य के कार्यों और उनके परिणामस्वरूप कानूनों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण व्यवस्थापिका के द्वारा अपनी कानून निर्माण की शक्ति का एक बड़ा भाग कार्यपालिका को सौंप दिया गया है, जिसे प्रदत्त व्यवस्थापन कहते हैं। यह प्रदत्त व्यवस्थापन भी विधि के शासन को सीमित ही करता है, क्योंकि डायसी द्वारा प्रतिपादित विधि के शासन का अर्थ यह है कि प्रशासन का प्रत्येक कार्य या तो सामान्य कानून अथवा संसदीय कानून द्वारा अधिकृत हो । किन्तु प्रदत्त व्यवस्थापन की उक्त व्यवस्था के अन्तर्गत प्रशासन स्वयं द्वारा निर्मित नियमों के अनुसार ही कार्य करता है। वर्तमान समय में प्रदत्त व्यवस्थापन की उपयोगिता सभी पक्षों के द्वारा स्वीकार कर ली गयी है और प्रदत्त व्यवस्थापन की इस व्यवस्था से ‘विधि के शासन’ को निश्चित रूप से बहुत आघात पहुँचा है।

(4) प्रशासनिक नियम और न्यायालय

विधि के शासन का एक पक्ष यह है कि सामान्य व्यक्ति और राजकीय पदाधिकारी, दोनों के लिए एक ही प्रकार की विधि और एक ही प्रकार के न्यायालय हों। किन्तु व्यवहार के अन्तर्गत वर्तमान समय में ब्रिटेन में ऐसी बात नहीं है। पिछली लगभग दो पीढ़ियों में ब्रिटिश संसद ने राष्ट्रीय बीमा अधिनियम, मकान अधिनियम, किराया अधिनियम और सड़क यातायात अधिनियम आदि के रूप में अनेक कानूनों का निर्माण किया है और इन कानूनों ने नागरिकों तथा विभागीय अधिकारियों के पारस्परिक संबंधों को एक विशेष दिशा प्रदान की है, जो प्रशासनिक नियमों और न्यायाधिकरणों की ओर ही जाती है।

डोनमोर समिति के द्वारा 1932 में प्रकाशित अपनी रिपार्ट में कहा गया था कि प्रशासनिक न्यायाधिकरण सामान्य न्यायालयों की अपेक्षा शीघ्रतापूर्वक और कम खर्च में कार्य करते हैं और यह एक तथ्य है। इन प्रशासनिक न्यायाधिकरणों द्वारा अर्द्ध-न्यायिक रूप में कार्य किया जाता है और ब्रिटेन में इस प्रकार के प्रशासनिक न्याय का अनेक विषयों के संबंध में उदय हो रहा है।

1946 के ‘राष्ट्रीय बीमा अधिनियम के अनुसार बीमा अधिकारी के निर्णय के विरुद्ध अपील, स्थानीय अपील न्यायाधिकरण में की जा सकती है, जिसमें उस क्षेत्र के नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के प्रतिनिधि सम्मिलित हों। बीमा अधिकारी या दावेदार के द्वारा आगे अपील ‘औद्योगिक विवाद कमिश्नर’ के सम्मुख की जा सकती है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के अन्तर्गत ऐसे ‘न्यायाधिकरणों की स्थापना की गयी जिनके द्वारा इस बात का निर्णय किया जाता है कि एक विशेष क्षेत्र में कोई चिकित्सक चिकित्सा संबंधी कार्य कर सकता अथवा नहीं। ‘मूल्य निर्धारण अधिकारी’ मकान के मूल्य का निर्धारण कर सकता है, जिसके आधार पर उस मकान का किराया निश्चित किया जाता है। इस अधिकारी के निर्णय के विरुद्ध अपील ‘मूल्य निर्धारण न्यायालय में की जा सकती है।

इस प्रकार के प्रशासनिक न्यायाधिकरणों की संख्या बढ़ती जा रही है और वर्तमान समय में समस्त ब्रिटेन में इस प्रकार के प्रशासनिक न्यायाधिकरणों’ की संख्या लगभग 2,000 है। इन न्यायाधिकरणों में लगभग 1 लाख 20 हजार विवादों की सुनवाई प्रतिवर्ष की जाती है। इन प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति सामान्यतया संबंधित विभाग के मंत्री द्वारा की जाती है, लेकिन कुछ अधिक महत्त्वपूर्ण न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति सम्राट या लॉर्ड चान्सलर के द्वारा की जाती है।

इस प्रकार के समस्त प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के ऊपर एक ‘न्यायाधिकरणों की परिषद्’ की स्थापना की गयी है। इस परिषद् में 15 सदस्य होते हैं, जिनकी नियुक्ति लॉर्ड चान्सलर के द्वारा की जाती है। प्रशासनिक न्यायाधिकरणों की कार्यवाही के नियम आधारित करने के संबंध में इस परिषद् से परामर्श लिया जाता है और इस परिषद् का कार्य सभी प्रशासनिक न्यायाधिकरणों के कार्य का निरीक्षण करना है।

विधि के शासन की अन्य भी कुछ सीमाएँ हैं :

(5) इंग्लैंड के सम्राट के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में कोई अभियोग नहीं चलाया जा सकता और उसे कभी भी किसी न्यायालय के सम्मुख पेश नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार सम्राट् अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग करने में भी स्वतंत्र है।

(6) विधि का शासन विदेशी शासकों तथा राजदूतों पर लागू नहीं होता। देश के कानून का उल्लंघन किये जाने पर भी उन पर किसी न्यायालय में अभियोग नहीं चलाया जा सकता और न ही किसी विदेशी जहाज के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।

( 7 ) गृहमंत्री को यह अधिकार है कि वह किसी भी विदेशी नागरिक को ब्रिटिश प्रजा होने का प्रमाण-पत्र दे सकता है, किसी के प्रमाण-पत्र को रद्द कर सकता है या अवांछित विदेशी को देश से बाहर निकाल सकता है। इन सब कार्यों के लिए उसके विरुद्ध कोई अभियोग नहीं चलाया जा सकता।

(8) सैनिक बल के सदस्यों पर सैनिक विधियों का नियंत्रण होता है और उनका अभियोग सैनिक न्यायालय में ही निर्णीत होता है। चिकित्सक सर्वसाधारण चिकित्सक परिषद् के अधीन होते हैं और प्रतिष्ठित धर्मोपदेशक धर्मपकर न्यायालयों के। ये सभी तथ्य सामान्य कानून और सामान्य न्यायालय के क्षेत्र को सीमित कर देते हैं।

वास्तव में, आज इंग्लैंड में उस रूप में विधि का शासन विद्यमान नहीं है, जिस रूप में डायसी के द्वारा उसका चित्रण किया गया है। आज इंग्लैण्ड में अनेक रूपों में इसका उल्लंघन किया जाता है और अब इंग्लैंड में बहुत अधिक सीमा तक प्रशासकीय न्याय का विकास हो रहा है।

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shubham yadav

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