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विभिन्न वर्गों में होने वाले नैतिक पतन
भारतीय समाज के विशेष संदर्भ में नैतिकता के पतन की समस्या और इसकी गंभीरता का अनुमान लगाने के लिये आवश्यक है कि विभिन्न वर्गों में नैतिक पतन की सीमा को समझने का प्रयत्न किया जाये। विभिन्न वर्गों में होने वाले नैतिक पतन को निम्न आधारों पर समझा जा सकता है
1. राजनेताओं में नैतिक पतन
वर्तमान युग में नैतिक पतन का सबसे विषम रूप राजनेताओं में विद्यमान है। राजनेताओं के पास कानून बनाने, उन्हें लागू करने तथा अपराधियों को दण्ड देने की शक्ति होती है। वे जनसाधारण का आदर्श होते हैं तथा जनता को उनसे विशेष आशायें होती हैं। इसके पश्चात् भी वर्तमान समय की समस्या यह है कि अधिकांशतः राजनेता जनता को अपनी लक्ष्य-पूर्ति का व्यवहार कोई सामंजस्य नहीं होता स्वयं अधिकाधिक सुविधाएं तथा उनका तात्कालिक लक्ष्य होता है तथा सम्पूर्ण राष्ट्र के हितों की अवहेलना कर देना कोई अनैतिक कार्य जैसा ही माना जाता है। इसी मनोवृत्ति का परिणाम है कि राजनेताओं में न केवल घूसखोरी की प्रवृत्ति बढ़ रही है। वर्तमान युग में राजनेताओं द्वारा राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करने के लिये समाज-विरोधी तत्वों को संरक्षण देना, स्थान-स्थान पर साम्प्रदायिकता तथा जातिवाद को प्रोत्साहन देना, अयोग्य व्यक्तियों को महत्वपूर्ण पदों पर आसीन करना, चुनाव के विशिष्ट साधनों का उपयोग करना तथा जनता के पैसे का उदासीनतापूर्वक दुरुपयोग करना सामान्य घटनाएँ मानी जा रही हैं।
2. अधिकारी वर्ग में नैतिक पतन
प्रत्येक समाज में अधिकारी वर्ग न केवल प्रशासन और सम्पूर्ण जनता के प्रति उत्तरदायी होता है बल्कि जनता और सरकार के बीच की आवश्यक कड़ी भी होती है। अधिकार की यही भावना वर्तमान युग में अधिकारी वर्ग के नैतिक पतन का मुख्य कारण सिद्ध हुयी है। अधिकारी वर्ग एक साधारण जनता के प्रति अपने कर्तव्यों की अपेक्षा अधिकार प्रदर्शन को ही अधिक महत्व देना लगा है। आज सम्पूर्ण अधिकारी वर्ग को सुख-सुविधाएँ उन्हें प्राप्त होने वाले वेतन की तुलना में इतने अधिक हैं कि उसके जीवन में भ्रष्टाचार तथा नैतिक मूल्यों की अवहेलना का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता। उनके अधिकारों की शक्ति के भय के कारण हम नैतिक पतन के विरोध की बात तो दूर, उल्ले जनसामान्य के द्वारा उनकी प्रशंसा ही की जाती है। नैतिक पतन को इससे और अधिक प्रोत्साहन मिलता है। अधिकारी वर्ग अपनी संतुष्टि के लिये अनैतिक सुख-सुविधाओं की व्यवस्था करते हैं। अधिकारी वर्ग द्वारा अधीनस्थ कर्मचारियों को गुलाम समझा, शक्ति के दुरुपयोग द्वारा जनसामान्य को अनैतिक कार्यों के लिये बाध्य करना, भ्रष्ट आचरण करना, तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना राजनेतओं के अनैतिक हितों को संरक्षण देना नैतिक पतन की समस्या को स्पष्ट करते हैं।
3. व्यवसायियों में नैतिक पतन
आज विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में लगे हुये व्यक्तियों का जितना अधिक नैतिक पतन हुआ है। वह किसी भी तरह राजनेताओं और अधिकारी वर्ग के नैतिक पतन में कम गंभीर नहीं है। शिक्षक, डॉक्टर, वकील और व्यापारी इस वर्ग के प्रतिनिधि है। शिक्षक का सबसे बड़ा नैतिक मूल्य आजीवन, ज्ञान का संचय करके व्यक्तिगत लाभ की भावना के बिना विद्यार्थियों में इसका प्रसार करना है। इसके विपरीत कितने ही शिक्षकों द्वारा शिक्षा संस्था में कम से कम समय देना, विद्यार्थियों को सही दिशा देने के स्थान पर अक्सर उन्हें गुमराह करना और भडकाना, सहायता के नाम पर उन्ह ट्यूशन पर पढ़ाने के लिए बाध्य करना आदि नैतिक पतन के उदाहरण हैं। इसी प्रकार डॉक्टर भी अपने नैतिक मूल्यों का पालन नहीं कर रहे हैं। व्यापारी भी आज स्वास्थ्य के लिये घातक वस्तुओं की मिलावट करना, कर की चोरी करना, रिश्वत और भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन देना ऐसे व्यवहार हैं जिन्हें नैतिकता की खुली अवहेलना कहा जा सकता है।
4. युवा वर्ग में नैतिक पतन
युवा वर्ग में नैतिक पतन वर्तमान सांस्कृतिक संकट का एक प्रमुख रूप से युवा वर्ग में नैतिकता यह माँग करती है कि वे शांतिपूर्ण रूप से जान के संचय को ही अपना एकमात्र लक्ष्य मानते हैं। युवावर्ग जागरुकता तथा अधिकारों के नाम पर जितना भारी नैतिक पतन हुआ है, उसकी कुछ समय पहले कल्पना भी नहीं की गयी थी। आज हमारे देश में अधिकांश युवा लड़के तथा लड़कियाँ जान के संचय के प्रति उदासीन हैं। कक्षाओं से गायब रहना, फीस और पुस्तकों के नाम पर माता-पिता से लिये गये धन का दुरुपयोग करना, आर्थिक कठिनाई के नाम पर शुल्क मुक्ति के लिये अधिकारियों से अभद्र व्यवहार आदि नैतिक पतन के उदाहरण माने गये हैं।
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