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वुड के घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशों का वर्णन कीजिए।

वुड के घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें
वुड के घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें

वुड के घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें

सन् 1933 ई० के बाद 1833 ई० में कम्पनी की आज्ञा पत्र को नवीन रूप देने का अवसर आया। इस समय तक ब्रिटिश सभा यह सोचने लगी थी कि भारतीयों की शिक्षा की अवहेलना अब नहीं की जा सकती। इस दृष्टि को सम्मुख रखते हुए आज्ञा पत्र को प्रकाश में लाने के पहले लोकसभा के ‘संसदीय समिति’ की नियुक्ति की। समिति के के संचालकों ने 19 जुलाई 1854 ई0 को ‘भारतीय शिक्षा नीति’ की घोषणा कर दी। उस सुझाव के अनुसार कम्पनी समय चार्ल्स वुड “बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल” का प्रधान था इसलिए उसी के नाम पर शिक्षा का यह नवीन घोषणा पत्र प्रकाशित किया गया। यह सौ अनुच्छेदों का लम्बा लेखपत्र था। इस घोषणा पत्र ने भारतीय शिक्षा के इतिहास में एक नये उषाकाल की शुरूआत की। यही कारण है कि कुछ लोगों के इस घोषण पत्र को ‘भारतीय शिक्षा का अधिकार पत्र भी कहा है।

घोषणा पत्र की प्रमुख सिफारिशें एवं सुझाव (Important suggestions and recommendations of the Despatch)

1. शिक्षा का उत्तरदायित्व- वुड के घोषणा पत्र में यह बात स्वीकार की गयी कि शिक्षा, की जिम्मेदारी ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर होगी।

2. शिक्षा का उद्देश्य- शिक्षा का उद्देश्य भारतीय जनसमुदाय तथा अंग्रेजों के राज्य या शासन सम्बन्धी हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया था।

3. पाठ्यक्रम- घोषणा पत्र में प्राच्य पाश्चात्य विवाद का भी उल्लेख किया गया है और – वुड ने संस्कृति, अरबी और फारसी की उपयोगिता को स्वीकार करके उनके पाठ्यक्रम में विशेष ध्यान देने की बात कही है और अन्त में उसने मैकाले की भाँति पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान को भारतवासियों के लिए उपर्युक्त स्वीकार करते हुए यूरोपीय कला, विज्ञान, दर्शन तथा साहित्य का ही प्रसार भारत में करने की इच्छा व्यक्त की है।

4. शिक्षा का माध्यम- घोषणा पत्र में यह बात बतलायी गयी है कि भारतीय भाषाओं में पाठय पुस्तकों का अभाव होने से अंग्रेजी को ही शिक्षा का माध्यम बनाना चाहिए। साथ ही यह बात भी स्पष्ट कर दी गयी थी कि अंग्रेजी भाषा के माध्यम में केवल उन्हीं लोगों को शिक्षा प्रदान की जाय जो अंग्रेजी का ज्ञान रखते हों तथा जिनमें इस भाषा के द्वारा यूरोपीय साहित्य तथा ज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर सकने की क्षमता हो। अन्य व्यक्तियों के लिए भारतीय भाषाओं को ही शिक्षा का माध्यम माना गया पर साथ ही यह स्पष्ट कर दिया कि इन भाषाओं द्वारा यूरोपीय साहित्य और विज्ञान से सम्बन्धित शिक्षा ही प्रदान की जाय।

5. शिक्षा विभाग की स्थापना- घोषणा पत्र में यह कहा गया था कि भारत के प्रत्येक प्रान्त में एक ‘जन शिक्षा विभाग को स्थापित किया जाए तथा इसका सबसे बड़ा अधिकारी जन शिक्षा संचालक’ हो। यह भी आदेश दिया गया कि जन शिक्षा संचालक को सहायता के लिए उप शिक्षा संचालक निरीक्षक तथा सहायक निरीक्षक नियुक्त किये जाएं।

6. विश्वविद्यालयों की स्थापना- भारतीयों को उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए कलकत्ता, बम्बई और यदि आवश्यक हो तो मद्रास तथा अन्य स्थानों में विश्वविद्यालय स्थापित करने का आदेश दिया जाय। ये विश्वविद्यालय आदर्श रूप में लन्दन विश्वविद्यालय का अनुकरण करेंगे। प्रत्येक विश्वविद्यालय के संचालन के लिए कुलपति तथा उप कुलपति और मनोनीत अभिसदस्यों का भी सुझाव दिया गया। भारत में विश्वविद्यालयों की स्थापना की आवश्यकता को स्पष्ट करते हुए घोषणा पत्र में कहा गया है। –

“अब भारत में विश्वविद्यालयों की स्थापना का समय आ गया है जो साहित्यिक उपाधियों को प्रदान करके शिक्षा के नियमित तथा उदार पाठयक्रम को प्रोत्साहित करें।”

7. क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना- घोषणा पत्र में पूरे भारत में क्रमबद्ध विद्यालयों की योजना पर बल दिया गया है तथा शिक्षा का क्रम इस प्रकार निर्धारित किया गया है. –

1. विश्वविद्यालय, 2. कॉलेज, 3. हाईस्कूल, 4. मिडिल स्कूल, 5. प्राथमिक स्कूल

8. जन साधारण की शिक्षा की स्थापना- वुड ने शिक्षा में छनाई के सिद्धान्त पर सन्तोष प्रकट कर जन साधारण के लिए व्यावहारिक और उपयोगी शिक्षा पर बल देते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि “अब हमारा ध्यान इस महत्वपूर्ण समस्या की ओर जाना चाहिए जिसकी अभी तक उपेक्षा की गयी है, अर्थात जीवन के सभी अंगों के लिए लाभदायक एवं व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त करने में पूर्णतः असमर्थ रहे हैं।

9. प्रशिक्षण विद्यालयों की स्थापना – घोषणा पत्र में शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय खोलने की बात कही गयी तथा यह सिफारिश की गयी कि “छात्राध्यापकों को छात्रवृत्तियाँ एवं शिक्षकों को अधिक वेतन देकर अन्य राजकीय विभागों के समान शिक्षा विभाग को भी उतना ही आकर्षक बनाया जाय।

10. सहायता अनुदान प्रणाली – यह अनुभव किया गया कि भारत की विशाल जनसंख्या को शिक्षा प्रदान करने का सम्पूर्ण व्यय केवल सरकार ही वहन कर सकती है। घोषणा पत्र में सहायता अनुदान प्रणाली का सुझाव दिया गया है तथा यह भी कहा गया है कि प्रान्तीय सरकारों, इंग्लैण्ड की सहायता अनुदान प्रणाली का उद्देश्य मिशनरियों को प्रोत्साहन प्रदान करना था क्योंकि उस समय व्यक्तिगत रूप से चलने वाले मिशन स्कूलों का बाहुल्य था।

11. स्त्री शिक्षा- घोषण पत्र में स्त्री शिक्षा को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है और इस सम्बन्ध में दान आदि के द्वारा सहायता देने वाले व्यक्तियों की सहायता ली गयी। स्त्री शिक्षा के लिए उदारपूर्ण नीति बरतने की बात कही गयी तथा लोगों को इस कार्य के लिए प्रोत्साहन देने के लिए भी कहा गया। जो विद्यालय स्त्री शिक्षा प्रदान कर रहे हैं या करें उनको अनुदान दिया जाए।

12. व्यावसायिक शिक्षा- घोषणा पत्र में व्यावसायिक शिक्षा पर भी बल दिया गया है – दो उद्देश्य तथा यह कहा गया है कि प्रान्तों में इस प्रकार के स्कूल तथा कॉलेज खोले जाय। भारतीय युवकों को विभिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा देने के लिए विद्यालयों की स्थापना के प्रमुख थे- 1. व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त भारतीय युवक बेकार न रहेंगे तथा उनको किसी प्रकार के आन्दोलन में भाग लेने का अवसर नहीं मिलेगा। 2. व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने से उनको सरलतापूर्वक नौकरी प्राप्त हो जायेगी जिससे की वे सरकार का उपकार मानेंगे तथा सरकार के स्वामिभक्त बने ।

13. प्राच्य साहित्य तथा प्रचलित भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन- घोषणापत्र में पाश्चात्य साहित्य तथा विज्ञान की उपादेयता की स्वीकार कर भारतीयों के लिए – यद्यपि उनका अध्ययन आवश्यक कहा गया है पर साथ ही प्राच्य साहित्य को प्रोत्साहन देने की सिफारिश करते हुए यह सुझाव दिया गया कि पाश्चात्य साहित्य तथा विज्ञान को पुस्तकों का न केवल भारतीय भाषाओं में अनुवाद कराया जाए अपितु इन विषयों पर अन्य भाषाओं में भी पुस्तकें लिखवायी जाय और लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिये उचित पुरस्कार भी दिये जाँय ।

14. शिक्षा और सरकारी नौकरी- वुड ने शिक्षित व्यक्तियों को सरकारी नौकरियों पर नियुक्त करने का सुझाव देते हुए यह भी स्पष्ट किया कि सरकारी पदों पर नियुक्तियाँ करते समय व्यक्तियों की शिक्षा दीक्षा पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाय तथा उन व्यक्तियों को प्राथमिकता दी जाय जिसकी शिक्षा सम्बन्धी योग्यता अन्य व्यक्तियों से अधिक हो ।

15. मुसलमानों की शिक्षा- घोषणा पत्र में मुस्लिम शिक्षा के प्रति सहानुभूति व्यक्त की गयी है और मुस्लिम शिक्षा की स्थिति पर विचार करते हुए कम्पनी के कर्मचारियों से अपील की गयी कि इस ओर विशेष रूप से ध्यान दें।

घोषणा पत्र का मूल्यांकन

वुड का घोषणापत्र भारतीय शिक्षा के इतिहास में विशेष महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके अनुसार सरकार ने प्रथम बार भारतीय शिक्षा के दायित्व को स्वीकार करते हुए शिक्षा सम्बन्धी नीति को निर्धारित करते हुए सभी महत्व की समस्याओं पर विचार किया है। उसमें यूरोपीय ज्ञान विज्ञान के प्रसार, अंग्रेजी तथा देशी भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने, जन शिक्षा प्रसार, सहायता, अनुदान, शिक्षक प्रशिक्षण व्यावसायिक शिक्षा, प्राच्य साहित्य के प्रोत्साहन तथा शिक्षित व्यक्तियों को सरकारी नौकरियों पर नियुक्त करने की सिफारिश आदि बातों पर प्रकाश डाला गया है इसलिए इन सभी से उसकी उपयोगिता स्वतः स्पष्ट होती है।

उक्त सभी गुणों के होने पर भी आलोचकों ने इस घोषणा पत्र की कड़ी आलोचना की है और “परांजपे” ने तो ब्रिटिश स्वार्थों की पूर्ति और ईसाई मत को अपरोक्ष रूप से प्रचार नामक दो बातों की प्रधानता देखकर इसे शिक्षा का घोषणा पत्र कहना न केवल अनुपयुक्त अपितु हास्यप्रद भी माना है।

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shubham yadav

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