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व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और परिभाषा, प्रकार एवं कारण – वैयक्तिक विभिन्नता
व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और परिभाषा – इस पोस्ट में आप जानेंगे व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ और परिभाषा, प्रकार एवं कारण – वैयक्तिक विभिन्नता ( Meaning and definition of individual difference in hindi ) जिसके अंतर्गत व्यक्तिगत विभिन्नता, व्यक्तिगत विभिन्नता का अभिप्राय, व्यक्तिगत विभिन्नता की परिभाषाएँ, व्यक्तिगत विभिन्नता के स्त्रोत, कारक, कारण, प्रतिभाशाली बालको की विशेषताएँ, पिछड़े बालक की पहचान या विशेषताएँ, बालअपचारी बालक की पहचान / विशेषताएँ, तथा साथ ही व्यक्तिगत विभिन्नता की परिभाषा जो कि विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई है. व्यक्तिगत विभिन्नता से संबंधित प्रश्न उत्तर UPTET,CTET & All TET Exams में विशेष रूप से पूछे जाते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए यह पोस्ट बनाई गई है आशा है यह आपके लिए उपयोगी साबित होगी।
व्यक्तिगत विभिन्नता
अर्थ एवं स्त्रोत, विशेष आवश्यकता वाले बालकों की शिक्षा प्रतिभाशाली, धीमी गति से सीखने वाले, बाल अपचारी
व्यक्तिगत विभिन्नता का अभिप्राय:-
एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से जैविक, सामाजिक सांस्कृतिक और बौद्धिक रूप में भिन्न नजर आने से है। प्रकृति में प्रत्येक प्राणी को इस प्रकार से बनाया है कि वह दूसरे व्यक्ति से भिन्नता रखता है। यही व्यक्तिगत
भिन्नता है।
व्यक्तिगत विभिन्नता का प्रत्यय मनोविज्ञान के क्षेत्र में 19वीं शब्ताब्दी में आया । इसे लाने का श्रेय इग्लैण्ड के निवासी फ्रांसीस गाल्टन टरमन, थार्नडाइक, स्किनर आदि को दिया जाता है।
वर्तमान बाल केन्द्रित शिक्षा प्रणाली की कल्पना व्यक्तिगत विभिन्नता के बिना अधुरी है।
व्यक्तिगत विभिन्नता की परिभाषाएँ :-
स्किनर के अनुसार :- “सम्पूर्ण व्यक्तित्व का कोई सा भी ऐसा पहलू जिसका माप किया जा सके उसे व्यक्तिगत विभिन्नता में शामिल किया जाता है।”
जम्स ड्रेवर के अनुसार :- “कोई भी दो व्यक्तियों का एक समान ना होना ही व्यक्तिगत विभिन्नता है।”
व्यक्तिगत विभिन्नता के आधार
औसत से बहुत कम | औसत से कम | औसत से बहुत अधिक | औसत से अधिक |
वर्तमान समय में व्यक्तिगत विभिन्नता को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जाता है।
व्यक्ति विशेष के गुण या लक्षण विशेष के प्राप्त प्राप्तांक का उसके बडे समूह पर प्राप्त प्राप्तांक से मध्य मान से विचलन ही व्यक्तिगत विभिन्नता है।
व्यक्तिगत विभिन्नता के स्त्रोत, कारक, कारण
1. वंशानुक्रम
2. वातावरण
3. जाति-प्रजाति, देश
4. आयु एवं परिपक्वता
5. बुद्धि
6. अधिक स्थिति एंव शिक्षा
7. लिंगभेद
विशेष आवश्यकता के बालक :-
1. प्रतिभाभाली बालक :-
ऐसे बालक जो सभी कार्यो को सामान्य बालकों की तुलना में श्रेष्ठ तरीके से करते है वे प्रतिभाशाली बालक कहलाते है। इनकी बुद्धिलब्धि 140 से अधिक होती है।
प्रतिभाशाली बालक जन्मजात होते है। और उपयुक्त वातावरण मिलता है तो इनके गुणों का और अधिक विकास होता है।
प्रतिभाशाली बालको की विशेषताएँ:-
1. शब्द कोषो की विशालता
2. अध्ययन कार्यों में अद्वितीय सफलता
3. सामान्य ज्ञान में श्रेष्ठ
4. आश्चर्यजनक अन्तदृष्टि का प्रभाव
5. बुद्धिलब्धि 140 से अधिक
प्रतिभाशाली बालक की शिक्षा व्यवस्था :-
1. सामान्य रूप से कक्षोन्नति
2. विस्तृत एंव विशेष पाठ्यक्रम
3. शिक्षक द्वारा व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना ।
4. संस्कृति की शिक्षा
5. सामान्य बालकों के साथ शिक्षा
6. विशेष अध्ययन की व्यवस्था
2.धीमी गति से सीखने वाले बालक / या पिछड़े बालक :-
इनकी बुद्धिलब्धि 80-89 होती है। “पिछड़ा बालक वह है जो अपनी कक्षा का औसत कार्य नहीं कर पाता और कक्षा के सामान्य छात्रों से पीछे रहता है। पिछड़ा बालक कहलाता हैं ।”
एक प्रतिभाशाली बालक भी पिछड़ा बालक हो सकता है। यदि वह अपनी आयु के समकक्ष उपलब्धियाँ प्राप्त नह कर पाता है।
जब उसे उपयुक्त वातावरण नहीं मिलता है।
पिछड़े बालक की पहचान या विशेषताएँ
1. धीमी गति से सीखते है।
2. इनकी बुद्धिलब्धि 80 – 89 होती है।
3. जन्मजात योग्यताओं की तुलना में कम उपलब्धि
4. जीवन के प्रति निराशा का भाव
5. सामान्य पाठ्यक्रम से सीखने में असमर्थ
6. सामान्य शिक्षण विधियों से सीखने में असमर्थ
धीमी गति से सीखने वाले बालको की शिक्षा व्यवस्था :-
1. विशेष विद्यालयों की व्यवस्था
2. विशेष कक्षाओं का आयोजन
3. सरल एवं सक्षिप्त पाठ्यक्रम
4. हस्त कौशल की शिक्षा
5. विशेष शिक्षकों की व्यवस्था
6. विशेष शिक्षण विधियों का प्रयोग
3. बाल अपचारी बालक (अपराधी) । :-
बालअपचारी बालक ऐसा होता है जो अपनी आवश्यकता की पूर्ति समाज द्वारा अस्वीकृत तरीके से करता हैं या सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बने नियमों व कानूनों का उल्लंघन करता है। वह बाल अपचारी बालक कहलाता है।
इनकी आयु – 7 से अधिक 18 से कम हाती है।
बाल अपराध – मनोविज्ञान का जनक – सीज़र लोम्ब्रेंसो है।
बालअपचारी बालक की पहचान / विशेषताएँ :
1. शारीरिक रूप से हस्ठ-पुस्ठ।
2. छोटे बच्चों को परेशान करना।
3. विद्यालय की सम्पति को नुकसान पहुँचाने वाला।
4. सत्ता को चुनौति देने वाला
5. अध्ययन कार्य में व्यवधान उत्पन्न करने वाला ।
6. चोरी करने वाला
7.झगड़ा करने वाला
8.अपशब्द कहने वाला
9. यौन अपराध करने वाला आदि ।
बलअपचारी बालक की शिक्षा व्यवस्था :-
1. उचित वातावरण
2. उचित व्यवहार ।
3. निर्देशन व परामर्श उचित होना चाहिए।
4. युवा गोष्ठियों की स्थापना ।
5. प्रर्याप्त स्वतन्त्रता।
6. पाठ्य सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था।
7. उपचारात्मक एंव व्यवसायिक कक्षा में शिक्षा व्यवस्था
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