स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

शारीरिक शिक्षा की परिभाषा | शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता

शारीरिक शिक्षा की परिभाषा
शारीरिक शिक्षा की परिभाषा

शारीरिक शिक्षा की परिभाषा

(i) चार्ल्स ए0 बुचर के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग और उद्यम का क्षेत्र है, जिसका उद्देश्य शारीरिक, मानसिक, भावात्मक तथा सामाजिक रूप से सम्पूर्ण नागरिकों का इस प्रकार की क्रियाओं द्वारा विकास करना है जिनका चयन उनके उद्देश्यों की पूर्ति को ध्यान में रखकर किया गया हो।”

(ii) जे० पी० थॉमस के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा शारीरिक गतिविधियों द्वारा बालक के समग्र-व्यक्तित्व विकास हेतु दी जाने वाली शिक्षा है।”

(iii) डी० ओबरट्यूफर के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा उन अनुभवों का सामूहिक प्रभाव है जो शारीरिक क्रियाओं द्वारा व्यक्ति को प्राप्त होते हैं।”

(iv) जे० बी० नैश के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा समूची शिक्षा का वह अंग है जो बड़ी मांसपेशियों से सम्बन्धित क्रियाओं एवं उनसे सम्बन्धित प्रतिक्रियाओं से जुड़ा हुआ

(v) ए0आर0 वेमैन के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का वह भाग है जिसके अन्तर्गत शारीरिक गतिविधियों द्वारा व्यक्ति को प्रशिक्षण एवं उनका पूर्ण विकास किया जाता है।”

(vi) निक्सन एवं कजन्स के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा, शिक्षा की सम्पूर्ण प्रक्रिया का वह पहलू है, जिसका सम्बन्ध पेशीय क्रियाओं एवं उससे सम्बन्धित प्रतिक्रियाओं तथा व्यक्ति में इन प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप होने वाले सकारात्मक परिवर्तनों से है।”

(vii) आरo कैसेडी के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा मनुष्य के भीतर उन परिवर्तनों का समूह है जो गति भरे अनुभवों द्वारा होती है।”

सामान्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा का सम्बन्ध

आज शारीरिक शिक्षा को सामान्य शिक्षा के महत्त्वपूर्ण अंगभूत स्वरूप में स्वीकार कर लिया गया है। डॉ० एन० परमेश्वर राम के शब्दों में भी इसी तथ्य पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि- “इसे कहने में कोई अतिश्योक्ति न होगी कि शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का अंतरंग भाग है।” समय व युग परिवर्तन के साथ-साथ शिक्षा का अर्थ, लक्ष्य व आयाम बदले तथा सभी शिक्षाशास्त्रियों द्वारा शिक्षा के अन्तिम व परम लक्ष्य का निर्धारण ‘सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास’ के रूप में स्वीकार किया गया। सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास अर्थात् व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं चारित्रिक पहलुओं का अधिकतम एवं श्रेष्ठतम विकास। वही ‘सम्पूर्ण व श्रेष्ठ मानव की संकल्पना। आज इस सत्य को भी स्वीकार कर लिया गया है कि व्यक्ति एक मनःशारीरिक प्राणी है जो समग्र व्यक्ति का धनी तभी बन सकता है जबकि उसका शरीर और मन दोनों पुष्ट हों। इस दृष्टि से शारीरिक शिक्षा का सीधा सम्बन्ध शिक्षा और उसके लक्ष्यों से स्पष्ट रूप से जुड़ जाता है। अगर हम इस बात को यूँ कहें कि शिक्षा और शारीरिक शिक्षा के लक्ष्यों में समानता है तो इस प्रकार शारीरिक शिक्षा और सामान्य शिक्षा के अटूट सम्बन्ध को हमें स्वीकार करना ही होगा और इस प्रकार शारीरिक शिक्षा के शैक्षिक आधार को गहनता से समझना व क्रियात्मक रूप प्रदान करना ही होगा चूँकि सामान्य शिक्षा और शारीरिक शिक्षा के मध्य जो सम्प्रत्यय, सिद्धान्त, विधियाँ और सूत्र निहित हैं उन सबका अन्तिम व चरम ध्येय बालक का समग्र व्यक्तित्व विकास करना ही है।

शारीरिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय मानक, 2004

इन मानकों के अनुसार शारीरिक रूप से शिक्षित व्यक्ति वह है-

मानक 1 : विविध प्रकार की शारीरिक गतिविधियों को करने के लिए गामक कौशलों एवं गतियों के रूपों में दक्षता को प्रदर्शित करना।

मानक 2 : शारीरिक गतिविधियों को सीखने एवं उनका सम्पादन करने के लिए शारीरिक गतियों की संकल्पनाओं, सिद्धांतों, योजनाओं एवं रणनीतियों की समझ को प्रदर्शित करना ।

मानक 3 : शारीरिक गतिविधियों में नियमित रूप से भाग लेना।”

मानक 4: शारीरिक योग्यता या फिटनेस के स्वास्थ्यवर्द्धन स्तर को प्राप्त करना और उसे बनाए रखना।

मानक 5: शारीरिक गतिविधि विन्यास में उत्तरदायी व्यक्तिगत एवं सामाजिक व्यवहार को प्रदर्शित करना ।

मानक 6: इस बात के महत्त्व को समझना कि शारीरिक गतिविधि आनंद, चुनौती, आत्म अभिव्यक्ति एवं सामाजिक सम्पर्क के अवसर उपलब्ध कराती है।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता

आधुनिक समय में विकास शारीरिक शिक्षा एवं खेल की भूमिका की मान्यता में निरन्तर वृद्धि हो रही है। अन्तर्राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा और खेल चार्टर, यूनेस्को 1978 में उल्लेख है कि — “प्रत्येक व्यक्ति का शारीरिक शिक्षा एवं खेल के लिए उसकी पहुँच होना उसका मौलिक अधिकार है जो कि उसके व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए अनिवार्य है। शारीरिक शिक्षा और खेल के माध्यम से शारीरिक, बौद्धिक एवं नैतिक शक्तियाँ विकसित करने की स्वतंत्रता की गारंटी शैक्षिक प्रणाली और सामाजिक जीवन के अन्य पहलुओं दोनों के अन्तर्गत होनी चाहिए।”

संयुक्त राष्ट्र ने 2001 में अपने एजेंडा में विकास और शान्ति के लिए खेल विषय वस्तु के रूप में अंगीकार किया जिसमें खेल विकास और युवा विकास के बीच निकट सम्बन्ध प्रदर्शित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2005 को खेल और शारीरिक शिक्षा वर्ष के रूप में मनाया जिसके द्वारा खेल और शारीरिक शिक्षा को समग्र विकास एजेंडा में समेकित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। इस पहल में खेल को निम्न प्रकार किया गया है—

1. खेल अच्छी शिक्षा का अभिन्न अंग है जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यक्तित्व विकास को बढ़ावा देने के लिए शारीरिक शिक्षा को एक आवश्यक पूर्ण अपेक्षा के रूप में अनिवार्य हो ।

2. खेल से लोगों के स्वास्थ्य में सुधार होता है।

3. खेल से व्यापक वृद्धि के माध्यम से सतत् विकास उपलब्ध होता है।

4. खेल से स्थायी शान्ति निर्मित होती है।

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shubham yadav

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