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शिक्षा का माध्यम व त्रिभाषा सूत्र के विकास पर प्रकाश डालें। (Throw light on the mediun of education and development of three language formula)
शिक्षा के माध्यम की समस्या का समाधान राष्ट्रीयता की भावना को अपनाकर तथा अंग्रेजों व अंग्रेजी की मानसिक दासता की भावना का परित्याग कर बड़ी सरलता से किया जा सकता है। बस इसके लिए दृढ़ संकल्प के साथ इच्छा शक्ति को जाग्रत करने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें अपनी सम्पूर्ण शिक्षा को प्रारम्भ से ही अपनी राष्ट्रभाषा के माध्यम से ही प्रदान करना होगा। अधिक से अधिक यह हो सकता है कि पूर्व प्राथमिक तथा प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा में दिया जाए तथा माध्यमिक शिक्षा एवं उच्च शिक्षा का माध्यम राष्ट्रभाषा हो।
अत: यह है कि भारत के प्रत्येक बच्चे को प्रारम्भिक स्तर से ही राष्ट्र भाषा का सम्पूर्ण ज्ञान कराया जाए और यदि अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाओं के ज्ञान भण्डार की, तो उच्च शिक्षा के द्वारा ऐसे योग्य अनुवादकों को तैयार किया जा सकता है, जो विश्व की समृद्ध भाषाओं के लगभग सम्पूर्ण ज्ञान भण्डार का राष्ट्रभाषा में अनुवाद करें। इस पद्धति को अपना कर भारतीय भाषाओं को अपमान से बचाया जा सकता है। भारत के दक्षिणी राज्य हिन्दी-विरोधी हैं तथा अंग्रेजी भाषा के घोर समर्थक हैं। अतः यह आवश्यक है कि हिन्दी भाषा का ज्ञान दक्षिणी राज्यों की जनता को भी कराया जाए तथा उनके लिये इसे सीखने के लिये उपर्युक्त साधनों की व्यवस्था की जाए तथा उनके लिये हिन्दी सीखने हेतु एक अवधि भी निश्चित की जाए, ताकि वे एक निश्चित समय-सीमा के अंदर ही इस भाषा को सीख सकें।
1. ताराचन्द समिति, (1948) – इस समय भारत गणतंत्र नहीं था और संघीय भाषा के विषय में भी कोई निर्णय नहीं हुआ था तथा इसी आधार पर ‘ताराचन्द समिति’ ने अपना यह सुझाव दिया कि उच्च प्राथमिक स्तर के पश्चात् मातृभाषा के अतिरिक्त संघीय भाषा को भी अनिवार्य बना दिया जाए। इस समिति ने माध्यमिक स्तर पर दो भाषाओं के अध्ययन के सुझाव दिये- (अ) मातृभाषा (ब) अंग्रेजी या संघीय भाषा।
2. राधाकृष्णन् आयोग, (1948-49) – इस आयोग का सुझाव था कि छात्रों को तीन भाषाओं का ज्ञान कराया जाए – (अ) मातृभाषा या प्रान्तीय भाषा (ब) राज्य की भाषा (स) अंग्रेजी।
3. मुदालियर आयोग, (1952)- मुदालियर आयोग’ ने छात्रों के लिये माध्यमिक स्तर पर दो भाषाओं के अध्ययन पर अपना सुझाव दिया।
(अ) मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा या मातृभाषा और एक शास्त्रीय भाषा का मिश्रित पाठ्यक्रम।
(ब) निम्नलिखित में से चुनी जाने वाली एक अन्य भाषा- (i) हिन्दी (उनके लिये जिनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं है।) (ii) प्रारम्भिक अंग्रेजी (उनके लिए जिन्होंने मिडिल स्तर पर इसका अध्ययन नहीं किया है।) (iii) उच्च अंग्रेजी (उनके लिये जिन्होंने पहले अंग्रेजी का अध्ययन किया है।) (iv) हिन्दी के अतिरिक्त एक अन्य भारतीय भाषा (v) अंग्रेजी के अतिरिक्त एक अन्य आधुनिक भाषा। (v) एक शास्त्रीय भाषा।
4. भावात्मक एकता-समिति, 1962- इस समिति ने ‘त्रिभाषा सूत्र’ का समर्थन किया, जिसका वर्णन ‘त्रिभाषा सूत्र’ के अन्तर्गत किया गया है।
5. कोठारी आयोग, 1964- इस आयोग ने निम्नलिखित त्रिभाषा सूत्र प्रतिपादित किया—(i) मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा (ii) संघ की राज भाषा या सह-राजभाषा (iii) एक आधुनिक भारतीय भाषा या विदेशी भाषा, जो न (i) और (ii) के अन्तर्गत छात्र द्वारा न चुनी गई हों और जो शिक्षा का माध्यम न हो।
उपर्युक्त सुझावों पर नजर डालने से यह ज्ञात होता है कि स्वतंत्र भारत में भाषाओं की उलझन को सुलझाने के लिये दो सूत्र प्रतिपादित किये गये – द्विभाषा सूत्र और त्रिभाषा सूत्र। दोनों सूत्र उपयोगी हैं परंतु भारत की वर्तमान परिस्थितियों के सन्दर्भ में ‘त्रिभाषा सूत्र’ को अधिक उपयोगी स्वीकार किया गया है। इस सम्बन्ध में प्रो. अन्नदानेश गोडक ने कहा- राष्ट्र की भावैक्यता बनाये रखने के लिये त्रिभाषा सूत्र को अमल में लाना सही मार्ग है द्विभाषा सूत्र से बढ़कर त्रिभाषा सूत्र समायोजित है। हिन्दी राष्ट्रभाषा है। इसलिये उसे अपनाना हमारा कर्त्तव्य है। यह भी ठीक है कि मातृभाषा में हर एक शिक्षार्थी आसानी से अपनी शिक्षा प्राप्त कर सकता है। अंग्रेजी लम्बे समय से अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के स्थान पर है। अंग्रेजी जैसी भाषा से जो लाभ हमें उठाना चाहिये अवश्य उठायेंगे। विश्व भाषा के रूप में उसे अपनाने में हम संकोच नहीं करेंगे, इस तरह मातृभाषा, राष्ट्रभाषा और हिन्दी और अन्तर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी तीनों भाषाओं को विद्यार्थी सीखते हैं।
त्रिभाषा सूत्र (Three Language Formula)
सन् 1956 में केन्द्रीय स्तर पर द्वि-भाषा सूत्र की अपेक्षा त्रि-भाषा सूत्र को अधिक उपयोगी मानकर इसका प्रतिपादन किया। गया। उस समय से लेकर सन् 1968 तक, जब केन्द्रीय सरकार ने इसको मान्यता प्रदान की, यह अपना अंतिम रूप ग्रहण करने के लिये अनेक अवस्थाओं में से होकर गुजरा। हम इस सम्बन्ध में निम्नलिखित विषयों का अध्ययन करेंगे।
1. सूत्र का प्रतिपादन, 1956- देश की आवश्यकताओं के सन्दर्भ में त्रिभाषा का सूत्र का सर्वप्रथम प्रतिपादन सन् 1956 में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (Central Advisory Board of Education) ने अपनी 23वीं बैठक में किया। उसने सरकार के अनुमोदन हेतु निम्नलिखित दो सूत्रों का निर्माण किया-
प्रथम सूत्र- (i) (अ) मातृभाषा या (ब) क्षेत्रीय भाषा या (स) मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषा का मिश्रित पाठ्यक्रम या (द) क्षेत्रीय भाषा और एक शास्त्रीय भाषा का मिश्रित पाठ्यक्रम। (ii) हिन्दी या अंग्रेजी। (ii) एक आधुनिक भारतीय भाषा या एक आधुनिक यूरोपीय भाषा, जो (i) और (ii) में न ली गई हो
द्वितीय सूत्र – (i) पहले सूत्र के समान । (ii) अंग्रेजी या एक आधुनिक यूरोपीय भाषा। (iii) हिन्दी (अहिन्दी क्षेत्रों के लिये या कोई अन्य आधुनिक भारतीय भाषा हिन्दी क्षेत्रों के लिये)।
2. सूत्र का सरलीकरण, 1961- प्रस्तुत दोनों सूत्रों पर विचार करने के लिये सरकार ने 1961 में ‘मुख्य मंत्रियों का सम्मेलन’ (Chief Minister Conference) आयोजित किया। इस सम्मेलन ने दोनों सूत्रों पर विचार-विमर्श करने के पश्चात् यह निश्चय किया कि शिक्षा के माध्यमिक स्तर पर छात्रों द्वारा किसी आधुनिक भारतीय भाषा का अध्ययन किया जाना सम्भव नहीं है। अपने इस निश्चय के अनुसार, सम्मेलन ने त्रिभाषा सूत्र का निम्नलिखित सरलीकृत रूप तैयार किया- (i) क्षेत्रीय भाषा (यदि क्षेत्रीय भाषा, मातृभाषा से भिन्न है, तो क्षेत्रीय भाषा और मातृभाषा दोनों) । (ii) हिन्दी या अहिन्दी क्षेत्रों में इसके स्थान पर कोई अन्य भारतीय भाषा (iii) अंग्रेजी या कोई अन्य आधुनिक यूरोपीय भाषा।
3. सूत्र में दो संशोधन, 1962 और 1964 – त्रिभाषा सूत्र में संशोधन करके, उसे देश के लिये वास्तव में उपयोगी बनाने के लिये सन् 1962 की भावनात्मक एकता समिति (Emotional Integration Committee) और सन् 1964 के ‘कोठारी आयोग’ द्वारा रचनात्मक कदम उठाए गये। उसके द्वारा त्रिभाषा सूत्र में किये जाने वाले संशोधन दृष्टव्य हैं-
1. भावात्मक एकता समिति का संशोधन –‘ भावात्मक एकता समिति’ ने हिंदी और अहिन्दी क्षेत्रों के लिये दो पृथक् त्रिभाषा सूत्रों का निर्माण किया, जैसे-
हिन्दी क्षेत्रों के लिये त्रिभाषा सूत्र –
(अ) निम्न प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से कक्षा 5) – (i) केवल एक अनिवार्य भाषा मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा, जो शिक्षा का माध्यम हो । (ii) किसी भारतीय भाषा या अंग्रेजी की शिक्षा स्वेच्छा से ही दी जा सकती है।
(ब) उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 6 से 8) – (i) मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा (i) आधुनिक भारतीय भाषा या एक शास्त्रीय भाषा (iii) अंग्रेजी ।
(स) निम्न माध्यमिक स्तर ( कक्षा 9 व 10) – (i) मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा (ii) अंग्रेजी (iii) नं. (i) से भिन्न आधुनिक भारतीय भाषा या एक शास्त्रीय भाषा या एक आधुनिक विदेशी भाषा।
(द) उच्च माध्यमिक स्तर (कक्षा 11 व 12) – निम्नलिखित में से दो भाषाएँ- (i) हिन्दी के अलावा कोई अन्य आधुनिक भारतीय भाषा (ii) अंग्रेजी या कोई अन्य आधुनिक विदेशी भाषा (iii) शास्त्रीय भाषा
अहिन्दी क्षेत्रों के लिए त्रिभाषा सूत्र
(अ) निम्न प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से कक्षा 5) – (i) केवल एक अनिवार्य भाषा मातृभाषा, या क्षेत्रीय भाषा, जो शिक्षा का माध्यम हो (ii) किसी भारतीय भाषा या अंग्रेजी की शिक्षा स्वेच्छा से दी जा सकती है।
(ब) उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 6 से 8) – (i) मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा या मातृभाषा और शास्त्रीय भाषा का मिश्रित पाठ्यक्रम या क्षेत्रीय भाषा और शास्त्रीय भाषा का मिश्रित पाठ्यक्रम । (ii) हिन्दी (iii) अंग्रेजी।
(स) निम्न प्राथमिक स्तर ( कक्षा 9 व 10) – (i) मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा (ii) अंग्रेजी या हिन्दी (iii) नं. (ii) से भिन्न आधुनिक भारतीय भाषा या एक शास्त्रीय भाषा या एक आधुनिक विदेशी भाषा ।
(द) उच्च माध्यमिक स्तर (कक्षा 11 व 12 )
निम्नलिखित में से दो भाषाएँ – (i) हिन्दी (ii) एक आधुनिक भारतीय भाषा, जो शिक्षा का माध्यम न हो। (iii) अंग्रेजी
2. कोठारी आयोग का संशोधन-‘कोठारी आयोग’ ने त्रिभाषा सूत्र के क्रियान्वयन का विस्तृत अध्ययन और सूक्ष्म विश्लेषण किया परिणामस्वरूप वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इसके क्रियान्वयन में अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। उसने अपने प्रतिवेदन में इन कठिनाइयों का वर्णन किया है, फिर सूत्र के आधारभूत सिद्धांतों का उल्लेख किया है और अन्त में संशोधित त्रिभाषा सूत्र को लेखबद्ध किया है। ‘आयोग’ ने त्रिभाषा सूत्र का रूप निम्न प्रकार अंकित किया है- (i) मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा (ii) संघ की राजभाषा या सह-राजभाषा और (iii) एक आधुनिक भारतीय भाषा – विदेशी भाषा, जो नं. (i) और (ii) के अन्तर्गत छात्र द्वारा न चुनी गई हो और जो शिक्षा का माध्यम न हो।
भाषाओं का अध्ययन-‘आयोग’ ने शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर भाषाओं के अध्ययन के विषय में निम्नलिखित सुझाव दिए हैं-
(अ) निम्न प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से 4) – (i) एक भाषा मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
(ब) उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 5 से 7) दो भाषाएँ – (i) मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा (ii) हिन्दी या अंग्रेजी-
(अ) निम्न माध्यमिक स्तर (कक्षा 8 से 10 )
तीन भाषाएँ – अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में सामान्य रूप से निम्नलिखित भाषाएँ होनी चाहिए- (i) मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा (ii) उच्च या निम्न स्तर की हिन्दी (iii) उच्च या निम्न स्तर की अंग्रेजी।
हिन्दी भाषी क्षेत्रों में सामान्यतः निम्नलिखित भाषाएँ होनी चाहिए- (i) मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा (ii) अंग्रेजी या हिन्दी, यदि अंग्रेजी मातृभाषा के रूप में ली गई है । (iii) हिन्दी के अतिरिक्त एक अन्य आधुनिक भारतीय भाषा।
(द) सूत्र का अंतिम रूप 1968- भारत सरकार ने त्रिभाषा सूत्र के समस्त रूपों का अध्ययन करने ‘पश्चात् इस सूत्र को अंतिम रूप प्रदान किया है। सरकार ने अपनी सन् 1968 की ‘शिक्षा की राष्ट्रीय नीति’ (National Policy of Education) में निम्नलिखित त्रिभाषा सूत्र को मान्यता प्रदान की है और घोषित किया है कि माध्यमिक स्तर पर छात्रों के लिये निम्नलिखित तीन भाषाओं का अध्ययन अनिवार्य है-
(i) हिन्दी-भाषी राज्यों में- हिन्दी अंग्रेजी और आधुनिक भारतीय भाषा जिसमें दक्षिण की कोई भाषा होनी चाहिए। (ii) अहिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी, अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषा।