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संक्षेपण की परिभाषा
‘संक्षेपण’ शब्द अंग्रेजी के ‘Precis Writing’ का प्रतिशब्द है। ‘Precis’ मूलतः फ्रेंच भाषा का शब्द है, जिसका सम्बन्ध अँगरेजी के ‘Precise’ शब्द से है। ‘संक्षेपण’ का शाब्दिक अर्थ है (सं+क्षिप्= फेंकना); ‘छोटा करना’, ‘सार प्रस्तुत करना’, ‘सार-संक्षेप’ आदि। इस प्रकार ‘संक्षेपण’ का अर्थ हुआ— ‘एक बड़े अनुच्छेद में अभिव्यक्त विचारों का, समास-शैली में प्रस्तुत सार-संक्षेप ।’
अथवा ‘भावों और विचारों के पुनस्सम्प्रेषण का एक लघु और तीव्र माध्यम है। ‘अथवा’ एक लघु चित्र-फलक पर, विस्तृत दृश्य का छोटा छवि-चित्र है। अथवा ‘किसी कथन, रचना, अवतरण, प्रपत्र, व्याख्यान या वर्णन आदि को इतना संक्षिप्त करके लिखना कि उसमें उसका मूल विषय का मूल भाव अथवा सार-तत्त्व सुरक्षित रहे।’ यह कम-से-कम शब्दों में प्रस्तुत करने की एक कला है, जो निरन्तर अभ्यास से आती है। हिन्दी में यह कला अँगरेजी से आयी हैं।
हिन्दी में संक्षेपण के लिए ‘भाव-संक्षेपण’ ‘संक्षेपण’ ‘संक्षेपीकरण’, ‘संक्षिप्तीकरण’ ‘संक्षिप्त लेख’ ‘संक्षिप्त लेखन’ ‘सार-लेखन’ ‘सार-लेख’ आदि अनेक शब्द प्रचलित हैं। पर जो भाव ‘संक्षेपण शब्द से व्यक्त होता है, वह अन्य समानान्तर शब्दों से नहीं। शब्द की एकरूपता भी आवश्यक है। ‘संक्षेपण’ शब्द अन्य पर्याय शब्दों की तुलना में अधिक भाव-व्यंजक एवं सार्थक लगता है।
इसका कारण यह है कि “यह अपने अन्य प्रतिद्वन्द्वियों से छोटा है और जिस रचना-रूप में हम लघुता का प्रयत्न करते हैं, उसके नामकरण में भी लघुता का ध्यान होना चाहिए।”
परिभाषा – विद्वानों ने संक्षेपण की परिभाषा अपने ढंग से प्रस्तुत की है। कंतिपय परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं-
डॉ. वासुदेवनन्दन प्रसाद के मतानुसार “किसी विस्तृत विवरण, सविस्तार व्याख्या, वक्तव्य, पत्र व्यवहार या लेख के तथ्यों और निर्देश के ऐसे संयोजन को ‘संक्षेपण’ कहते हैं, जिसमें अप्रासंगिक, असम्बद्ध, पुनरावृत्त, अनावश्यक बातों का त्याग और सभी अनिवार्य, उपयोगी तथा मूल तथ्यों का प्रवाहपूर्ण और संक्षिप्त संकलन हो ।”
प्रो. नलिनीमोहन शर्मा के अनुसार- “संक्षेपीकरण को हम किसी बड़े ग्रंथ का संक्षिप्त संस्करण, बड़ी मूर्ति का लघु अंकन और बड़े चित्र का छोटा चित्रण कह सकते हैं।”
डॉ. महेन्द्र चतुर्वेदी के अनुसार- “संक्षेपण किसी अवतरण अथवा किसी प्रपत्र अथवा किसी एक विषय पर लिखे गये अनेक प्रपत्रों या पत्रों आदि के सार-तत्त्व अथवा मूल विषय को कम-से कम शब्दों में प्रस्तुत करने की कला है।”
डॉ. भगवत्स्वरूप मिश्र के मतानुसार “किसी लिखित अवतरण से मूल तथ्यों को चुनकर, विना किसी प्रकार के अनावश्यक या सजावट के सीधे, सरल, स्पष्ट एवं क्रमबद्ध रूप में कम शब्दों में व्यक्त कर देना ही संक्षेपण कहलाता है।”
इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि ‘संक्षेपण’ अपने आप में स्वतंत्र और पूर्ण रचना है। किसी विस्तृत आख्यान, वर्णन, पत्र, लेख, भाषण, निबन्ध, अनुच्छेद आदि को सीमित या संक्षिप्त करना संक्षेपण के अन्तर्गत आता है। अस्तु, कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक भावों-विचारों को स्पष्ट, सरल तथा समास-शैली में प्रस्तुत करना संक्षेपण का कार्य है।
उक्त परिभाषाओं के आधार पर हम संक्षेपण की परिभाषा यों कर सकते हैं- “किसी विस्तृत दिवरण, भाषण, व्याख्या, निबन्ध, लेख, अनुच्छेद आदि में अभिव्यक्त भावों एवं विचारों को मूल की अपेक्षा एक-तिहाई शब्दों में क्रमबद्ध, सरल, स्पष्ट और सुबोध शैली में प्रस्तुत करना संक्षेपण कहलाता है।”
संक्षेपण की विशेषताएँ
श्रेष्ठ संक्षेपण की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-
1. मूल का सार- संक्षेपण मूल का अनुलेखन है। अतएव इसमें मूल के स्वर, भाव, विचार, प्रभाव और तथ्य का रक्षण आवश्यक इसमें अनावश्यक और अप्रासंगिक तथ्यों का परित्याग अपेक्षित है।
2. क्रमबद्धता- मूल अनुच्छेद में अभिव्यक्त या निरूपित मुख्य भावों एवं विचारों की क्रमबद्ध स्थापना संक्षेपण की दूसरी विशेषता है। असम्बद्ध, असंगत, क्रमहीन भाव या विचार तथा तथ्य का संक्षेपण में कोई स्थान नहीं होता।
3. संक्षिप्तता- संक्षिप्तता संक्षेपण की तीसरी अनिवार्य आवश्यकता है। यह उसका आधारभूत गुण है। संक्षेपण की आत्मा ही संक्षिप्तता है। अतः संक्षेपण को सामान्यतया मूल का तृतीयांश होना चाहिए।
4. स्पष्टता- यह संक्षेपण की चौथी विशेषता है। मूल भावों, विचारों और तथ्यों को स्पष्ट रूप में प्रस्तुत करना चाहिए। यदि संक्षेपण की अर्थव्यंजना सुबोध और स्पष्ट नहीं है, तो वह व्यर्थ है।
5. व्यावहारिक भाषा और प्रवाहमयता- भाव-संक्षेपण की भाषा का व्यावहारिक और प्रवाहमय होना उसकी पाँचवीं विशेषता है। अतः इसके संक्षेपक को चाहिए कि वह कठिन, अलंकृत और समास बहुल भाषा का प्रयोग न करें।
6. अपनी शैली- संक्षेपण में संक्षेपक की अपनी शैली होनी चाहिए। चमत्कार, आडम्बर और अलंकृत शैली संक्षेपण में अनपेक्षित है। अतः संक्षेपण में शैली अपनी और भाषा सरल होनी चाहिए।
7. शुद्धता – भाव और भाषा की शुद्धता संक्षेपण की सातवीं विशेषता है। भाव-संक्षेपण की शैली में शुद्धता का विशेष आग्रह है। अतः संक्षेपण की भाषा व्याकरण-सम्मत और विषयानुकूल होनी चाहिए। अशुद्ध शब्द और वाक्य कभी रचना के आशय को पाठक तक नहीं पहुँचा सकते।
8. प्रभावात्मकता- अच्छे संक्षेपण की आठवीं विशेषता है— प्रभावात्मकता । प्राभावात्मकता से अभिप्राय यह कि पाठक मूल अवतरण के स्वर को सहज रूप में ग्रहण कर उससे तादात्म्य स्थापित कर सके। ऐसा न होने पर संक्षेपण प्रभावात्मक नहीं होगा।
9. स्वतः पूर्णता- उत्कृष्ट संक्षेपण की नवीं किन्तु अन्तिम विशेषता उसकी स्वतः पूर्णता है। संक्षेपण एक कला है। प्रत्येकं कलाकृति स्वतंत्र और स्वतः पूर्ण होती है। इसलिए संक्षेपण को सभी दृष्टि से पूर्ण होना चाहिए। उसे पढ़कर अपूर्णता की अनुभूति न हो।
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