राजनीति विज्ञान (Political Science)

संघवाद का अर्थ | संघवाद की परिभाषायें | संघ निर्माण के लिए आवश्यक शर्तें

संघवाद का अर्थ और परिभाषायें
संघवाद का अर्थ और परिभाषायें

संघवाद का अर्थ

शब्द व्युत्पत्ति के आधार पर संघवाद की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है—फैडरेलिज्म शब्द लेटिन भाषा के फोइडस शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है सन्धि अथवा समझौता। इस प्रकार संवैधानिक दृष्टिकोण से संघात्मक शासन का अभिप्राय उस शासन से है, जिसमें संविधान द्वारा केन्द्रीय सरकार और इकाइयों को सरकार के मध्य शक्ति विभाजन कर दिया जाता है तथा इस प्रकार का प्रबन्ध कर दिया जाता है कि इन दोनों पक्षों में से कोई भी एक पक्ष इस शक्ति विभाजन में परिवर्तन न कर सके, अर्थात् जब दो या दो से अधिक राज्य एक नया राज्य बनाकर उसे प्रभुसत्ता का एक भाग देने पर सहमति प्रकट कर दें तब संघीय सरकार की स्थापना होती है।

संघात्मक शासन व्यवस्था आधुनिक युग की देन है। एकात्मक शासन के विपरीत इस शासन व्यवस्था में दुहरी शासन व्यवस्था प्रचलित रहती है, एक संघीय सरकार अर्थात् केन्द्रीय | शासन व्यवस्था तथा द्वितीय इकाइयों अर्थात राज्यों की सरकारें। इस प्रकार संघीय शासन व्यवस्था में शासन संचालन द्विस्तरीय होता है।

संघवाद की परिभाषायें

संघात्मक शासन की मुख्य परिभाषायें इस प्रकार हैं-

हरमन फाइनर – “संघीय राज्य वह है जिसमें अधिकार और शक्ति का कुछ भाग स्थानीय क्षेत्रों में निहित हो और शेष भाग स्थानीय क्षेत्रों के समुदाय द्वारा विचारपूर्वक निर्मित केन्द्रीय संस्था को दिया जाये।”

हैमिल्टन – “संघात्मक शासन राज्यों का एक ऐसा समुदाय है जो नवीन राज्यों का निर्माण करता है।”

डायसी–“संघात्मक राज्य एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता तथा राज्य के अधिकारों के साथ समन्वय स्थापित करना है।”

गार्नर – “संघात्मक शासन वह पद्धति है, जिसमें एक ही सम्प्रभुसत्ता के अधीन केन्द्रीय तथा स्थानीय सरकारें संगठित होती हैं और जो संसद के कानून के अन्तर्गत अपने-अपने क्षेत्र में सर्वोच्च होती हैं।”

मान्टेस्क्यू – “संघात्मक सरकार एक ऐसा समझौता है जिसके द्वारा बहुत से एक जैसे राज्य एक बड़े राज्य के सदस्य बनने के लिये सहमत हो जायें।”

प्रो० ह्वीयरे–“संघ शासन का अर्थ एक ऐसी पद्धति से है, जिसके द्वारा सामान्य और प्रादेशिक शासकों में सामंजस्य होते हुए भी अपने-अपने तन्त्र में वे स्वतन्त हैं।”

संक्षेप में उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर संघात्मक शासन व्यवस्था से अभिप्राय एक ऐसी व्यवस्था से है, जिसके अनुसार छोटे-छोटे राज्य संविधान के अधीन समस्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपनी स्वायत्तता और स्वरूप को सुरक्षित रखते हुए एक केन्द्रीय सरकार की स्थापना करते हैं। समस्त शासकीय शक्ति केन्द्र सरकार के पास सीमित न होकर केन्द्र सरकार तथा इकाई राज्यों की सरकारों के मध्य विभाजित होती हैं।

संघ निर्माण के लिए आवश्यक शर्तें

संघीय सरकार की स्थापना उस समय होती है जब दो या दो से अधिक स्वतन्त्र राज्य एक नया राज्य बनाकर, उसे प्रभु सत्ता का एक भाग देने पर सहमत हो जाये। कभी-कभी एकात्मक शासन की प्रशासनिक इकाइयाँ केन्द्र को उन्हें कुछ स्वतन्त्रता देने पर सहमत कर लेती हैं तब भी संघात्मक शासन की स्थापना हो जाती है। संघ निर्माण के लिये आवश्यक शर्तें निम्न प्रकार हैं-

1. भौगोलिक एकता- संघात्मक राज्य का निर्माण उन्हीं इकाइयों के मिलने से सम्भव है। जो भौगोलिक रूप से निकट हों। वे भूमि अथवा जल द्वारा एक दूसरे से दूर न हों अन्यथा उनमें से प्रशासनिक एकता स्थापित नहीं हो सकेगी। इसके अतिरिक्त वहाँ संघ के स्थायित्व के लिये आवश्यक भावात्मक एकता तथा संगठन की इच्छा का भी अभाव होगा। उदाहरण के लिये बंगला देश के पाकिस्तान से पृथक होने का प्रमुख कारण पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में भौगोलिक एकताका अभाव था। अमेरिका, भारत तथा सोवियत संघ में संघात्मक शासन सफल है क्योंकि इन दोनों में भौगोलिक एकता पायी जाती है।

2. एक होने की भावना– इकाइयों में सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिये एक होने की भावना विद्यमान होनी चाहिये। डायसी ने कहा है कि, “संघात्मक राज्य एक ऐसे राजनीतिक उपाय के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता तथा अधिकारों में मेल रखता है।”

3. संगठन की इच्छा, एकता की नहीं- डायसी ने कहा है कि, “संघ की स्थापना वहाँ होती है। जहाँ स्वतन्त्र राज्यों में कुछ बातों के लिये संगठन की इच्छा हो, एकता की नहीं।” यदि एकत्व की इच्छा होती है जब संघ के स्थान पर एकात्मक राज्य हो जाता है। संघात्मक व्यवस्था में राज्य अथवा इकाइयाँ कुछ शक्तियाँ समान रूप से केन्द्र को देती हैं तथा कुछ शक्तियाँ अपने पास रख लेती हैं।

4. सामान्य उद्देश्य– इकाइयाँ विभिन्न सामान्य हितों जैसे सुरक्षा, विकास तथा आर्थिक अनिवार्यता की प्राप्ति के लिये केन्द्रीय सरकार की स्थापना करती है। वे केन्द्रीय सरकार को राष्ट्रीय हित के विषय सुपुर्द करके अन्य विषयों में स्वतन्त्र रहती हैं।

5. भाषा धर्म, संस्कृति तथा हितों की एकता- जिन राज्यों में धार्मिक, सांस्कृतिक तथा हितों की समानता होती है वही मिलकर संघ का निर्माण कर पाते हैं।

6. सामाजिक तथा राजनैतिक संस्थाओं की समानता- जिन राज्यों में सामाजिक तथा राजनैतिक संस्थाओं की समानता पायी जाती है वे ही मिलकर संघ शासन का निर्माण कर पाते हैं। यदि इन संस्थाओं में विभिन्नता अधिक हो तब संघ में स्थायित्व नहीं होता। उदाहरण के लिये यदि कुछ इकाइयों का स्वरूप प्रजातन्त्रात्मक हो तथा कुछ में तानाशाही की ओर झुकाव हो तब उनका परस्पर संगठन सफल नहीं हो सकता।

7. राजनैतिक योग्यता- संघात्मक सरकार एक जटिल पद्धति है। इस व्यवस्था की सफलता के लिये लोगों में राजनैतिक चेतना तथा अराजनैतिक योग्यता की आवश्यकता है।

8. राज्यों में समानता- संघ का निर्माण करने वाली इकाइयों में आकार तथा जनसंख्या की यथासम्भव समानता होना आवश्यक है। इकाइयों में असमानता होने पर बड़े राज्य छोटे राज्यों पर प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करेंगे, जिस कारण अविश्वास तथा संघर्ष उत्पन्न होगा। प्रो. व्हीयरे ने कहा है, “संविधान निर्माताओं को देखना चाहिए कि संघ में न तो ज्यादा बड़ी इकाइयाँ हों और न ज्यादा छोटी।”

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shubham yadav

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