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प्रश्न 6.4 संविधान और संविधानवाद में अन्तर बताइए।
संविधान और संविधानवाद में अन्तर The difference in the constitution and constitutionalism
उत्तर-संविधान संविधानवाद की अभिव्यक्ति करता है। इसी पर सविधानवाद आधारित होता है। अत: दोनों में अन्तर की विभाजक रेखा खींचना व्यावहारिक रूप में कठिन है। दोनों का अन्तर करने पर ही उन परिस्थितियों को पहचाना जा सका है जो संविधान और संविधानवाद की अलग-अलग दशाओं का संकेत करती हैं। जैसे-क्रान्तियों द्वारा बलपूर्वक स्थापित सैनिक तानाशाही व्यवस्थाओं में संविधान व संविधानवाद की भिन्न दशाओं को तभी समझा जा सकता है, जब हम यह जान सकें कि वहाँ संविधान में जो है वह संविधानवाद के अनुकूल नहीं प्रतिकूल है। इन दोनों में अनुकूलता की प्रतिकूलता संविधान व संविधानवाद के अन्तर में ही स्पष्ट हो सकता है इसलिए इन दोनों का अन्तर स्पष्ट रूप से समझ लेना आवश्यक है-
1. परिभाषा की दृष्टि से संविधानवाद एक विचारधारा का प्रतीक है। इसमें राष्ट्र के मूल्य, विश्वास और राजनैतिक आदर्श आते हैं, जिनसे मिलकर उस विचारधारा का निर्माण होता है जो संविधानवाद का प्रतीक है। लेकिन जहाँ तक संविधान का प्रश्न है यह संगठन का प्रतीक है। यह उन सिद्धान्तों के संकलन को कहा जा सकता है जिनके अनुसार सरकार की शक्तियों व अधिकारों के मध्य समायोजन किया जाता है। इससे सरकार, व्यक्ति व समाज के संगठन के आपसी सम्बन्धं का बोध होता है। इनमें पारस्परिकता व पृथकता का सम्बन्ध है। इनमें साम्य, समाज में व्यवस्था, स्थायित्व प्रगतिशीलता की सूचना होती है । यदि दोनों में साम्य न हो अर्थात् दोनों की दिशायें अलग-अलग हों तो क्रान्ति की पृष्ठिभूमि तैयार होती है । सी० एफ० स्ट्राँग के शब्दों में संविधान उन सिद्धान्तों का समूह है जिनके अनुसार राज्य के अधिकारों और दोनों के सम्बन्धों में सामंजस्य स्थापित किया जाता है। संविधान जहाँ एक तरफ सरकार पर नियमित नियंत्रण रखता है, वहीं संविधानवाद समाज में एकता लाने वाली शक्तियों के प्रतीक के रूप में कार्य करता है इसलिए फाइनर ने संविधान को किसी राजनीतिक व्यवस्था में शक्ति सम्बन्धों की आत्मकथा बतलाया है। राजनीतिक प्रक्रिया के रूप में संविधान न्यायोचित खेल की गारण्टी करने वाले नियमों को कहा गया है। संविधानवाद उन विचारों और सिद्धान्तों की ओर संकेत करता है जो संविधान का विवरण और समन्वय करते हैं, जिनके माध्यम से राजनीतिक शक्ति पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित करना सम्भव होता है। कोरी तथा अब्राहम के शब्दों में “स्थापित संविधान के निर्देशों के अनुरूप शासन को संविधानवाद माना जाता है।”
2. उत्पत्ति की दृष्टि से भी दोनों में अन्तर है। संविधानवाद हमेशा ही विकास का परिणाम रहा है। हर देश के मूल्यों, विश्वासों व आदर्शों का विकास शताब्दियों की यात्रा करने के बाद धीरे- धीरे होता है। मूल्यों और आस्थाओं का यह विकास कई तत्वों से प्रभावित होता है। परम्परागत, संस्थागत व मानव सम्बन्धी तत्वों से राष्ट्रों के विकास और आदर्श विकसित होते रहते हैं जो जनसाधारण के जीवन में इतने घुल-मिल जाते हैं कि इनकी प्राप्ति और रक्षा के लिए समाज बड़े से बड़ा बलिदान करने को तैयार रहता है। लेकिन संविधान साधारणतया निर्मित होता है। हालाँकि ब्रिटेन का संविधान इसका अपवाद है और बाद में परम्पराओं के माध्यम से संविधानवाद आवश्यकताओं के अनुरूप स्वत: बदलते और पलटते जाते हैं। स्वत: बदलने का अभिप्राय यह है कि औपचारिक संशोधनों से संविधान को संविधानवाद के अनुरूप बनाये रखा जाता है। इस प्रकार उत्पत्ति की दृष्टि से संविधान सुनिश्चित प्रयत्नों से निश्चित अवधि में निर्मित होता है जबकि संविधानवाद राष्ट्र में मूल्यों की व्यवस्था होने के कारण लम्बी अवधि में विकसित होता है।
3. संविधान व संविधानवाद में प्रकृति सम्बन्धी मौलिक अन्तर है। संविधानवाद में किसा राजनीतिक समाज के लक्षणों और उद्देश्यों की प्रधानता होती है। अन्ततोगत्वा हर समाज एक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उद्देश्य रखता है और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने की व्यवस्था हो संविधानवाद का मूल है। लेकिन संविधान प्रमुख रूप से उन लक्ष्यों तक पहुँचने के साधनों की है। इस तरह संविधानवाद के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतू साधन जुटाने का कार्य संविधान सुव्यवस्था करता है। अत: संविधानवाद साध्य प्रधान और संविधान साधन प्रधान धारणा है।
4. इन दोनों में अन्तर का एक आधार क्षेत्र सम्बन्धी भी है । संविधानवाद अन्तर्भूतकारी(Inclusive) तथा संविधान अपवर्जक (Exclusive) धारणा है। संविधानवाद कई देशों का एक सा हो सकता है। किसी एक राष्ट्र के मूल्य, विश्वास, राजनीतिक आदर्श व संस्कृति के प्रति अन्य देश भी निष्ठा रख सकते हैं। संस्कृति, मूल्य, विश्वास और राजनीतिक आदर्श कई देशों में एक से ही हो सकते हैं। अत: यह नहीं समझना चाहिए कि हर देश का अपना अलग मौलिक संविधानवाद होता है। जैसे ऐंग्लो अमरीकन अर्थात् पार्चात्य संस्कृति के राष्ट्रों के संविधानवाद में समानता का संकेत मिलता है। इसी तरह साम्यवादी देशों में भी राजनीतिक मूल्यों व आदर्शों की एकरूपता दिखाई पड़ती है। हालाँकि अनेक राष्ट्रों में संविधानवाद सम्बन्धी मात्रात्म अन्तर दिखलाई पड़ता है। पाश्चात्य राष्ट्रों में प्रांस व अल्बानिया के संविधानवाद में मात्रात्मक अन्तर स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ते हैं। विकासशील देशों में यह अन्तर अधिक पाया जाता है क्योंकि इन राष्ट्रों में राष्ट्रीय अहम् बनाने के लिए मौलिक जीवन दर्शन की खोज इनमें भिन्नता भर देत है जिसके कारण इनके संविधानवाद में मात्रात्मक अन्तर आ जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि संविधानवाद एक व्यापक धारणा है और अनेक राष्ट्रों में समान रूप से पाया जा सकता है। लेकिन जहां तक संविधान का प्रश्न है इनमें बहुत अधिक अन्तर देखने को मिलता है। विभिन्न राज्यों के संविधानों में मात्रा और प्रकार दोनों का अन्तर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। संविधान चूँकि साधनों की व्यवस्था है, इसलिए एक जैसे साध्यों की प्राप्ति के लिए अलग- अलग राज्य में अपनी विशिष्ट परिस्थितियों के कारण अलग-अलग साधनों को अपनाने का प्रयत्न करते हैं, जिसके कारण हर देश का संविधान अलग-अलग होता है। इस प्रकार संविधानवाद से सीमित धारणा का बोध होता है और यह राज्य विशेष का ही होता है। यानी संविधान अलग-अलग राज्यों का अलग-अलग होता है, जबकि संविधानवाद अनेक राज्यों में समान ही होते हैं।
5. संविधान और संविधानवाद का अन्तर औचित्य या वैधताओं के आधार पर ही किया जाता है। संविधानवाद के आदर्शों के औचित्य का प्रतिपादन मुख्यत: विचारधारा के आधार पर होता है जबकि संविधान की वैधता विधि या कानून के आधार पर निश्चित की जाती है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि संविधान और संविधानवाद में गहरा सम्बन्ध अवश्य है। लेकिन दोनों के मध्य आधारभूत अन्तर भी है। इससे यह स्पष्ट है कि किसी भी राज्य में संविधानवाद विना कुछ आधारभूत मतैक्यों के सम्भव नहीं था क्योंकि सरकार नागरिक तथा विभिन्न सरकारी सत्ताओं में सामंजस्य, सहयोग तथा पारस्परिकता इन आधारों की अनुपस्थिति में अर्थपूर्ण नहीं बन सकती।
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