अनुक्रम (Contents)
समाचार प्रस्तुतीकरण से क्या आशय है?
पत्रकारिता के आरम्भिक काल में समाचार प्रस्तुति में किसी विशेष तकनीक को नहीं अपनाया जाता था। लेखक अपनी सुविधा के अनुसार पाठकों की रुचि तथा समाचार के ध्यान में रखकर कहानी की तरह लिख दिया करते थे। उनका प्रयास होता था कि सुरुचिपूर्ण व आकर्षक ढंग से सजीव रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर दें। महत्व समाचार को को
कालान्तर में, मुद्रण-कला के विकास, समाचार क्षेत्रों के विस्तार, व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा तथा लाभोपार्जन की इच्छा ने समाचार-लेखन को प्रभावित किया। अब समाचार लेखन का स्वरूप कहानी-लेखन नहीं रहा। इसे पूर्ण रूप से वैज्ञानिक अध्ययन का विषय बनाकर नियमबद्ध कर दिया गया। आज समाचार लेखन इन्हीं कतिपय नियमों के अनुकूल किया जाता रहा है।
प्रस्तुतीकरण की विधियाँ
वस्तुतः मूल रूप से समाचारपत्रों के लिए समाचार निर्माण की दो प्रमुख विधियाँ प्रचलित हैं। | रेडियो एवं दूरदर्शन के लिए समाचार लेखन की एक अलग विधि है। इस प्रकार, कुल मिलाकर निम्नलिखित तीन विधियाँ हैं-
1. इनवर्टेड पिरामिड या विलोम-स्तूपी लेखन
2. पिरामिड या स्तूपी लेखन
3. ब्रिलियन्ट डायमण्ड विधि या पहलदार हीरा पद्धति ।
1. विलोम-स्तूपी लेखन-पद्धति (Inverted Pyramid)- इस विधि के अन्तर्गत समाचार लेखक तथ्यों को क्रमबद्ध करता है। तत्पश्चात वह समाचार की मूल आत्मा को आमुख में प्रस्तुत करता है। उसके बाद विभिन्न पैराग्राफों में निर्धारित क्रम के अनुसार समाचार सम्बन्धी महत्वपूर्ण तथ्य, विशेषज्ञों के बयान, घटना की पृष्ठभूमि तथा अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रस्तुत करके समाचार के शरीर का गठन करता है।
इस पद्धति में समाचार – कथा महत्वपूर्ण तथ्यों से प्रारम्भ होकर गैर-महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख करते हुए समाप्त की जाती है।
वर्तमान समय में समाचार- लेखन में इसी पद्धति का प्रयोग किया जा रहा है। इस पद्धति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि समाचार चुस्त रहते हैं, उसमें अनावश्यक तथ्यों का समावेश नहीं मिलता, अपेक्षाकृत छोटे होते हैं, स्थान कम लेते हैं। पाठक को आरम्भ में ही पूर्ण समाचार की आत्मा से परिचय हो जाता है, ये आकर्षक होते हैं तथा संक्षिप्तता के कारण पाठकों को रुचिकर लगते है।
2. स्तूपी लेखन-पद्धति ( Pyramid Style )- स्तूपी लेखन-पद्धति में आमुख में महत्वपूर्ण तथ्यों का समावेश नहीं होता। लेखक अपने ढंग से समाचार को एक कहानी के रूप में प्रस्तुत करता जाता है। वह इस बात का प्रयास नहीं करता कि समाचार से जुड़े मुख्य तथ्य प्रारम्भ में ही पाठक को बता दिये जायँ। वह जिस बिन्दु से उचित समझता है, समाचार-कथा का निर्माण प्रारम्भ कर देता है और विवरण देते-देते किसी भी बिन्दु पर कथा को समाप्त कर देता है। इस पद्धति के अन्तर्गत घटनाक्रम को क्रमबद्ध (Chronological Order) रूप में सहज भाव से उद्धृत किया जाता है।
यह विधि पूर्व में आठ दशक तक प्रचलित रही। किन्तु वर्तमान में यह पद्धति केवल विशेष लेख, संस्मरण तथा अन्य सूचना प्रदान करने वाले लेखों के लिए ही प्रयुक्त होती है। इस विधि में किसी एक छोटे-से तथ्य से समाचार – कथा प्रारम्भ होकर धीरे-धीरे विस्तार प्राप्त करती है और उपसंहार के साथ समाप्त हो जाती है।
3. पहलदार हीरा (Brilliant Diamond Scheme) — यह पद्धति रेडियो व दूरदर्शन के लिए लिखे जाने वाले समाचारों में अपनायी जाती है। इसमें पहले मुख्य समाचार को संक्षिप्त रूप में लिखा जाता है। दूसरे पैराग्राफ में समाचार सम्बन्धी मुख्य विवरण दिया जाता है। तीसरे पैराग्राफ में अन्य विस्तृत विवरण तथा चौथे पैराग्राफ में उपसंहार के साथ समाचार समाप्त कर दिया जाता है।
रेडियो अथवा दूरदर्शन के लिए समाचार बहुत ही संक्षिप्त होते हैं। बड़े-से-बड़े समाचार पचास शब्दों से अधिक नहीं लिखे जाते।
- पत्रकारिता का अर्थ | पत्रकारिता का स्वरूप
- समाचार शब्द का अर्थ | समाचार के तत्त्व | समाचार के प्रकार
- विश्व पत्रकारिता के उदय तथा भारत में पत्रकारिता की शुरुआत
- हिन्दी पत्रकारिता के उद्भव और विकास
- टिप्पण-लेखन के विभिन्न प्रकार
- अर्द्धसरकारी पत्र का अर्थ, उपयोगिता और उदाहरण देते हुए उसका प्रारूप
You May Also Like This
- पत्राचार का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कार्यालयीय और वाणिज्यिक पत्राचार को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के प्रमुख तत्त्वों के विषय में बताइए।
- राजभाषा-सम्बन्धी विभिन्न उपबन्धों पर एक टिप्पणी लिखिए।
- हिन्दी की संवैधानिक स्थिति पर सम्यक् प्रकाश डालिए।
- प्रयोजन मूलक हिन्दी का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध रूप- सर्जनात्मक भाषा, संचार-भाषा, माध्यम भाषा, मातृभाषा, राजभाषा
- प्रयोजनमूलक हिन्दी के विषय-क्षेत्र की विवेचना कीजिए। इसका भाषा-विज्ञान में क्या महत्त्व है?